Monday, August 17, 2020

How accurate is the suspicion on social media?

Ujjain is a peace loving city. The city of Mahakal, does not usually contain reports of violent protests etc. But in 2015, suddenly one day thousands of Muslims gather around the mosque and start protesting against Kamlesh Tiwari.  Kamlesh Tiwari of Lucknow was accused of condemning Mohammed, who is considered an unpardonable crime in Islam.  Such a response in Madhya Pradesh to this incident of Uttar Pradesh was surprising.  Immediately the administration became active and investigation started that how such a huge crowd gathered and how the administration did not even know.  Investigations revealed that the social media platform Watts App was used to mobilize the crowd and secretly gathered people and created a ruckus in the city.

With the rise of social media, there is an increased risk that people with wrong intentions can also use it. This had already emerged in the London riots. This year, whether there is anti-citizenship riots in Delhi or the riotous crowd on the road within an hour in Bangalore, social media is definitely used in all these.  True misinformation is broadcast secretly and an attempt is made to spoil the atmosphere of the society.  In such a situation, can the question of misuse of social media be questioned by questioning only one group?

off course not.  The right people are using social media according to their own and wrong people according to their own.  The technology does not recognize true or false.  The technology only provides the platform to you, use it as you wish.  But Rahul Gandhi's tweet on a report published in the Wall Street Journal alleging that a particular group of social media has misused it against another minority group, seems to be more of a politically motivated issue.

The way the report of the Wall Street Journal is also written, it seems that those people are also deliberately targeting a particular group of Hindus.  It is true that Narendra Modi started using social media since 2012 and the American PR company, which is allegedly watching his media management, brought Modi to the people through Facebook.  National media had an censorship on Modi at that time and news related to Modi was not usually shown on TV.  Aaj Tak, the largest channel in the country after the 2002 riots, even ran a long campaign against Modi. Therefore, it was necessary for Modi to reach people through alternative routes.  In such a situation, Facebook became a very impressive medium.

 So is it just Facebook's fault that it allowed Modi's campaign?  No.  This cannot be his fault.  Social media platforms are not the same as traditional media platforms.  One can promote himself by spending money on social media.  Be it Facebook or Twitter, both these mediums promote your content by taking money and this is their stated policy.  How can anyone question this?  If the Congress party wishes, it can also spend its money on social media and new media platforms.  And they also promotes.Today Congress has its own social media wing in which people work.  At the time of elections, the Congress also uses this platform on the same side as the BJP does.  If people on social media support BJP more than Congress, is it the fault of Facebook or Twitter?

 As far as accusation is concerned, nationalist groups also keep alleging that their post's reach is being reduced.  Twitter had recently blocked journalist Ranganathan's Twitter account as he questioned the Bangalore riots citing a verse from the Quran.  Twitter not only deleted that tweet by calling it a hate tweet but also stopped them from posting.  After Rahul Gandhi questioned, BJP MP Tejashwi Surya also tweeted and alleged on Facebook and Twitter that he has such information that these social media platforms are intentionally reducing the reach of nationalist posts and increasing anti-Hindu posts.  She is presenting it.  He said that by gathering the information, he will raise this issue in the Parliamentary Committee so that action can be taken on these social sites.

Apart from these political allegations, it is true that in technology it is possible that the reach of a post can be reduced or increased.  Or even remove some special post like Ranganathan's tweet has been deleted.  But beyond this, technology also has its limitations.  They can neither increase the people of a particular class or decrease the people of a particular class. To say that those who are talking about Hindutva on social media are all agents of BJP or RSS or BJP is promoting such people, it is just political allegation.  BJP has an IT cell and Congress also has an IT cell.  But this does not mean that every person speaking is associated with some or the other IT cell.  By saying this, if an effort is made to limit social media, then the importance of new technology will end.  Remember, social media is not a beautiful garden of information, but a dense forest in which all kinds of information are floating.  Right as well as wrong. The user has to decide how carefully he travels in this forest of information.

Wednesday, July 29, 2020

सुशांत की आत्महत्या के पीछे रिया का रोल?

एक कहावत है। हर खूबसूरत चेहरे की रखवाली एक बदसूरत दिमाग करता है। हो सकता है ये समाज के हर व्यक्ति पर पूरी तरह सच न बैठता हो लेकिन सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या में जिस तरह से उनके पिता ने पटना में एफआईआर दर्ज करवाकर सुशांत की प्रेमिका रिया चक्रवर्ती पर आरोप लगाये हैं उसे पढने के बाद तो ऐसा ही लगता है कि रिया चक्रवर्ती के मामले में ये कहावत शायद पूरी तरह सच है। 

बॉलीवुड में सुशांत सिंह राजपूत ने अपने दम पर अपना मुकाम बनाया था और उनकी मोहक मुस्कान और अभिनय कला के दम पर लगातार आगे बढ रहे थे। लेकिन इसी बीच एक दिन खबर आती है कि सुशांत सिंह राजपूत ने लॉकडाउन के दौरान अपने फ्लैट में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। उनकी आत्महत्या की खबर सोशल मीडिया की सनसनी बनती है औप इतना हंगामा मचता है कि महाराष्ट्र पुलिस इस पूरे मामले की जांच शुरु कर देती है। महाराष्ट्र पुलिस ने अब तक करीब चालीस लोगों से पूछताछ किया है लेकिन आत्महत्या के कारणों के किसी ठोस नतीजे पर नहीं पहुंच सकी है। 

सोशल मीडिया पर ये आरोप लगा था कि सुशांत सिंह राजपूत फिल्म इंडस्ट्री के भाई भतीजावाद के शिकार हो गये थे। फिल्म इंडस्ट्री में पंजाबी लॉबी का कब्जा है और एक बिहारी कलाकार उनके बीच अपनी जगह बनाने में नाकाम हो गया, शायद इसलिए हारकर उसने आत्महत्या कर ली। इस आरोप प्रत्यारोप में सबसे बड़ा नाम करन जौहर का आया जिनकी धर्मा प्रोडक्शन की फिल्म से सुशांत को बाहर कर दिया था। लेकिन सुशांत सिंह को करीब से जानने वाले ये भी कहते रहे कि सुशांत इतना कमजोर नहीं था कि सिर्फ फिल्में न मिलने से आत्महत्या कर ले। आरोप तो यह भी लगे कि सुशांत ने आत्महत्या नहीं किया बल्कि उनकी हत्या की गयी और लोगों का ध्यान भटकाने के लिए फांसी के फंदे पर लटका दिया गया। 

इन आरोप प्रत्यारोप में क्या सच है यह तो जांच पड़ताल से ही निकलकर सामने आयेगा लेकिन इस बीच उनके पिता के के सिंह ने पटना में एफआईआर दर्ज करवाकर बॉलीवुड की एक स्ट्रगलर और सुशांत सिंह की कथित प्रेमिका रिया चक्रवर्ती पर गंभीर आरोप लगाये हैं। पटना में दर्ज एफआईआर में उन्होंने रिया पर आरोप लगाया है कि रिया चक्रवर्ती के संपर्क में आने के बाद ही उनका बेटा मानसिक रूप से परेशान रहने लगा और उसकी परेशानी इतनी बढी कि उसे मनोचिकित्सक से अपना इलाज करवाना पड़ा। के के सिंह का आरोप है कि रिया ने न सिर्फ सुशांत को मानसिक रूप से टार्चर किया बल्कि उसका करीब पंद्रह करोड़ रूपया भी हड़प गयी। सुशांत के पिता ने एफआईआर में लिखवाया है कि सुशांत का बैंक स्टेटमेन्ट देखने पर पता चलता है कि उनके खाते में पिछले एक साल में पंद्रह करोड़ रूपया अलग अलग बैंक खातों में ट्रांसफर किया गया है। ये पैसा जिनको ट्रांसफर हुआ है वो उन खातों के बारे में बिल्कुल नहीं जानते। तो क्या रिया ने सुशांत का पैसा अपने परिचितों के खाते में ट्रांसफर किया? सुशांत के पिता का कहना है कि इन खातों की जांच की जाए और जिनके खाते हैं उनका रिया से संबंध तलाशा जाए ताकि सच्चाई सामने आ सके।

केके सिंह का एक और गंभीर आरोप ये है कि सुशांत आर्गेनिक फार्मिंग करना चाहते थे इस सिलसिले में वो केरल में जमीन खरीदना चाहते थे। रिया को जब इस बात का पता चला कि सुशांत अपने पैसों का निवेश आर्गेनिक फार्मिंग में करना चाहता है तो उसने विरोध किया। वह नहीं चाहती थी कि सुशांत केरल में जाकर आर्गेनिक फार्मिंग करे। इस बात पर दोनों में झगड़ा हुआ और इसके बाद सुशांत के इलाज का सारा कागजात और बैंक का पासवर्ड, फोन तथा अन्य जरूरी डाक्युमेन्ट लेकर वह वहां से चली गयी और सुशांत को ब्लैकमेल करना शुरु कर दिया कि अगर वह कुछ करेगा तो रिया उसके इलाज के सारे कागजात मीडिया के सामने रख देगी और उसे पागल घोषित करवा देगी जिसके बाद इंडस्ट्री में कोई उसे पूछेगा भी नहीं। 

केके सिंह के आरोप न सिर्फ गंभीर हैं बल्कि जिस तरह के तथ्य उन्होंने पुलिस के सामने रखे हैं उससे वो अविश्वसनीय भी नहीं लगते हैं। रिया और सुशांत के संबंधों को लेकर पहले भी सोशल मीडिया पर सवाल उठते रहे हैं। और अब केके सिंह के एफआईआर के बाद सुशांत सिंह की करीबी रही अंकिता लोखंडे ने भी सोशल मीडिया पर लिखकर कहा है कि सत्य जरूर विजयी होगा। एक तरह से उन्होंने सुशांत सिंह आत्महत्या मामले में उनके पिता के एफआईआर का समर्थन किया है। उधर पटना पुलिस ने भी मामले की जांच शुरु कर दी है और बिहार पुलिस की एक टीम जांच के लिए मुंबई पहुंच भी गयी है। पटना के एसएसपी विनय तिवारी का कहना है कि एफआईआर दर्ज कर ली गयी है और जिनका भी नाम एफआईआर में है उन सबसे पूछताछ करके आगे की कार्रवाई की जाएगी। 

उम्मीद करनी चाहिए कि अब सुशांत सिंह आत्महत्या की गुत्थी सुलझ जाएगी और केके सिंह को न्याय मिलेगा जिनके इकलौते बेटे ने भरी जवानी में आत्महत्या कर लिया था। रिया के ऊपर के के सिंह ने जिस तरह के गंभीर आरोप लगाये हैं अगर वो सत्य पाये जाते हैं तो फिल्म इंडस्ट्री के खूबसूरत चेहरों के पीछे छिपी ऐसी कालिख सामने आयेगी जो न जाने कितने सुशांत को असमय शांत होने से बचा लेगी। 

जाकिर नाईक के जहरीले बोल

पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद में प्रस्तावित मंदिर के संदर्भ में डॉक्टर जाकिर नाईक ने एक बार फिर ऐसा बयान दिया है जिसे लेकर उनकी आलोचना हो रही है। इस्लामिक प्रवक्ता जाकिर नाईक ने कहा है कि किसी इस्लामिक स्टेट में गैर मुस्लिमों के लिए इबादतगाह बनाना गैर इस्लामिक है और किसी इस्लामिक देश में मुस्लिम करदाताओं के पैसे से मंदिर या चर्च नहीं बनाया जा सकता। हालांकि जाकिर नाईक का ये बयान अपने आप में ही विरोधाभाषी है। एक तरफ वो इस्लामिक स्टेट की बात कर रहे हैं और दूसरी तरफ मुस्लिम करदाता भी कह रहे हैं। जो वास्तविक इस्लामिक स्टेट होंगे वहां मुसलमान से कर नहीं लिया जाता क्योंकि कर लेना भी एक तरह की मुनाफाखोरी है जिसका इस्लाम में निषेध है। सऊदी अरब में आज भी आयकर नहीं लिया जाता क्योंकि वो इस्लामिक स्टेट है। तो ऐसे में उनकी बात सिरे से ही खारिज हो जाती है क्योंकि पाकिस्तान इस्लामिक स्टेट नहीं बल्कि इस्लामिक रिपब्लिक है।

पाकिस्तान यूरोप के राष्ट्र राज्य के सिद्धांत पर चलता है, वहां चुनाव भी होते हैं और जनता की आय पर कर भी वसूला जाता है। बैंक ब्याज देते भी हैं और वसूलते भी हैं। इसलिए पाकिस्तान को इस्लामिक स्टेट कहा ही नहीं जा सकता। हां, ये बात सही है कि पाकिस्तान अपने आप को सेकुलर स्टेट नहीं मानता और उसका गठन भी इस्लाम के नाम पर ही हुआ था लेकिन बनने के बाद मोहम्मद अली जिन्ना ने अपने पहले सार्वजनिक संबोधन में ही कहा था कि स्टेट को किसी के धर्म से कोई लेना देना नहीं है। लोग अपने मंदिर में, मस्जिद में, चर्च में जाने के लिए आजाद हैं। लेकिन बनने के बाद धीरे धीरे पाकिस्तान इस्लामिक रिपब्लिक की आड़ में इस्लामिक स्टेट बनने की कोशिश करने लगा। इसका पहला प्रयास मौलाना मौदूदी ने किया और उन्होंने पाकिस्तान को एक मॉडल इस्लामी स्टेट के रूप में गठित करने का अभियान शुरु किया। उस समय सन साठ के दशक में उनकी जमात ए इस्लामी पर प्रतिबंध लगा दिया गया और उन्हें सार्वजनिक सभा करने से भी रोक दिया जाता था। लेकिन समय बीतने के साथ पाकिस्तान जिन्ना के रास्ते पर चलने की बजाय मौलाना मौदूदी के रास्ते की तरफ आगे बढने लगा। 

इन्हीं मौलाना मौदूदी के शागिर्द थे डॉ इसरार अहमद जो पाकिस्तान ही नहीं पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में सुन्नी इस्लाम के बड़े जानकार माने जाते हैं। डॉ इसरार अहमद के शागिर्द हैं डॉ जाकिर नाईक जो बांग्लादेश में हुए आतंकी हमले में उनका नाम आने से ही भारत से निर्वासित जीवन व्यतीत कर रहे हैं। आजकल वो मलेशिया में हैं और वहीं रहकर अपना वीडियो संदेश जारी करते हैं जो भारत पाकिस्तान दोनों जगह खूब देखा जाता है। अपने ताजा वीडियो संदेश में उन्होंने इस्लामाबाद में प्रस्तावित मंदिर को गैर इस्लामिक बताते हुए विरोध किया है। लगभग सात मिनट के अपने वीडियो संदेश में जाकिर नाईक ने कहा है कि किसी इस्लामिक देश में गैर मुस्लिमों का प्रार्थना घर बनाने की इजाजत नहीं दी जा सकती। ये पूरी तरह से गैर इस्लामिक है। गैर मुस्लिम या काफिरों के जो प्रार्थना घर पहले से हैं उनको भी दुरुस्त कराने की इजाजत इस्लामिक मुल्क में देना गैर इस्लामिक है। उन्होंने ये भी कहा है कि किसी मुसलमान या इस्लामी रियासत का ऐसे मंदिर/चर्च/गुरुद्वारा या फिर अन्य किसी भी धार्मिक स्थल के लिए चंदा देना गैर इस्लामिक है। ऐसा नहीं किया जा सकता। और सबसे आखिर में उन्होंने कहा है कि फिर भी अगर मठ/मंदिर/चर्च/गुरुद्वारा बना दिया जाता है तो मुसलमानों का फर्ज (कर्तव्य) है कि वो उसे गिरा दें। 

जाकिर नाईक की इन बातों पर हो सकता है आपको ऐतराज हो लेकिन डॉक्टर नाईक अपनी तरफ से कुछ नहीं कह रहे। जो इस्लाम कहता है वो सिर्फ वही बता रहे हैं। अपने विडियो संदेश में उन्होंने ये संदेह भी मिटा दिया है सुन्नी इस्लाम के किसी फिरके में कोई गुंजाइश है क्या? उनका साफ कहना है कि सुन्नी इस्लाम के चारों फिरके इस बारे में एकमत हैं कि इस्लामिक देश में गैर इस्लामिक पूजा पद्धतियों के धर्मस्थल नहीं बनाये जा सकते। इस्लाम के स्वर्ग सऊदी अरब में यह नियम लागू है। वहां मस्जिदों के अलावा चर्च या अन्य धार्मिक स्थल बनाने की इजाजत नहीं है। अब क्योंकि पाकिस्तान भी संपूर्ण रूप से सऊदी अरब बनने के रास्ते पर है तो वहां कैसे इजाजत दी जा सकती है? और पाकिस्तान ही क्यों? संपूर्ण संसार में जहां भी इस्लामिक शासन है वहां ये बात जोर पकड़ेगी क्योंकि कुरान और हदीस ऐसा करने के लिए ही कहते हैं। यूएई ने जरूर आबू धाबी में स्वामीनारायण मंदिर बनाने की अनुमति दे दी क्योंकि यूएई ने अपना राजकीय धर्म इस्लाम नहीं रखा है। आज से करीब पचास साल पहले अस्तित्व में आते समय ही उन्होंने तय कर लिया था कि युनाइटेड अरब अमीरात का कोई राजकीय धर्म नहीं होगा, इस्लाम भी नहीं। 

लेकिन जाकिर नाईक के बयान पर एक अमेरिकी इस्लामिक विद्वान ने यह कहते हुए आपत्ति दर्ज किया कि जाकिर नाईक जो कह रहे हैं वो पूरी तरह से गलत है। आज तक रेडियो ने इस मामले पर अमेरिका में रह रहे डॉ मुक्तदर खान से बात की। डॉ मुक्तदर खान एक अमेरिकी यूनिवर्सिटी में पढाते हैं और इस्लामिक मामलों के साथ साथ अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार भी हैं। डॉ खान ने अपने बयान में पहले तो डॉ जाकिर नाईक के बयान की निंदा की और जब उनसे ये सवाल पूछा गया कि डॉ नाईक अपनी बात के समर्थन में कुरान और हदीस का हवाला दे रहे हैं तो उन्होंने कुरान की ही एक आयत का उल्लेख करते हुए कहा कि कुरान सब प्रकार के मजहब, उनकी महिलाओं की सुरक्षा के लिए कहता है। अपनी बात के समर्थन में उन्होंने कुरान की जो आयत कोट की वह है सूरा अल हज की आयत नंबर २२। उनकी बात की पड़ताल करते हुए जब हमने उस आयत को पढा तो पाया कि उस आयत में ऐसा कुछ नहीं कहा गया है कि मुसलमानों को गैर मुस्लिमों की इबदतगाहों और महिलाओं की रक्षा करनी है। वह आयत थोड़ी सी रहस्यमय है जो स्पष्ट तौर पर कुछ नहीं कहती। कुरान की वह आयत बताती है कि "ये वे लोग है जो अपने घरों से नाहक़ निकाले गए, केवल इसलिए कि वे कहते है कि "हमारा रब अल्लाह है।" यदि अल्लाह लोगों को एक-दूसरे के द्वारा हटाता न रहता तो मठ और गिरजा और यहूदी प्रार्थना भवन और मस्जिदें, जिनमें अल्लाह का अधिक नाम लिया जाता है, सब ढा दी जातीं। अल्लाह अवश्य उसकी सहायता करेगा, जो उसकी सहायता करेगा - निश्चय ही अल्लाह बड़ा बलवान है।"

स्पष्ट तौर पर इस आयत में ऐसा कुछ नहीं कहा गया है जैसा डॉक्टर खान दावा कर रहे हैं। उल्टे यह अल्लाह की सहायता करने के लिए कहता है। अब अल्लाह की सहायता क्या मंदिर और चर्च बनाकर किया जाएगा? जबकि जाकिर नाईक जो दावा कर रहे हैं वो स्पष्ट तौर पर गैर मुस्लिमों के पूजाघरों की इजाजत नहीं देता है। वो कुरान के अध्याय 5 की आयत नंबर 2 का हवाला दे रहे हैं जो कहता है कि  "हक़ अदा करने और ईश-भय के काम में तुम एक-दूसरे का सहयोग करो और हक़ मारने और ज़्यादती के काम में एक-दूसरे का सहयोग न करो।" डॉ जाकिर नाईक का कहना है कि कुरान स्पष्ट तौर पर गैर मुस्लिमों के साथ किसी भी प्रकार के सहयोग करने की मनाही करता है। यह शिर्क है। तो क्या किसी इस्लामी देश में गैर मुस्लिमों का मंदिर बनाने में मदद करके मुसलमान शिर्क कर सकता है? बिल्कुल नहीं। मामला मूर्ति पूजा से जुड़ा हो तो कदापि नहीं। हां, अपने वीडियो संदेश में जाकिर नाईक इतना जरूर कहते हैं कि अगर गैर मुसलमानों का मुसलमानों से कोई समझौता हो जाता है और वो जजिया देने पर राजी हो जाते हैं तब उन्हें धिम्मी (दूसरे दर्जे का नागरिक) का दर्जा देकर उनके पूजाघरों में जाने की छूट दे सकता है। इस्लाम के मुताबिक कोई भी धिम्मी जजिया देकर अपने धर्म का पालन कर सकता है। लेकिन नये निर्माण की रोक इस दशा में भी जारी रहेगी भले ही गैर मुस्लिम अपने ही पैसे से अपने लिए पूजाघर क्यों न बनवा रहे हों। 

भारतीय उपमहाद्वीप में मुसलमानों के शासन के दौरान ऐसे उदाहरण मिलते हैं जब जजिया लेकर उन्होंने हिन्दुओं को अपनी पूजा पद्धति मानने की छूट दे रखी थी। कुछ इतिहासकार तो यहां तक कहते हैं कि जजिया से इतनी अधिक कमाई होती थी कि मुस्लिम शासक धर्म परिवर्तन पर ज्यादा जोर नहीं देते थे। हालांकि कट्टरपंथी डॉ जाकिर नाईक हों या उदारवादी डॉ मुक्तसर खान दोनों ही कुरान की कोई ऐसी आयत प्रस्तुत नहीं कर पाये जो स्पष्ट तौर पर मंदिर बनाने की इजाजत देता या न देता हो। दोनों ही संदर्भों में ही बात कर रहे हैं। अब यह मुसलमान को तय करना है कि वह अल्पसंख्यक होने पर कौन सा संदर्भ इस्तेमाल करता है और बहुसंख्यक होने पर कौन सा संदर्भ इस्तेमाल करता है। हां, डॉ मुक्तदर खान एक महत्व की बात जरूर कहते हैं कि दुनिया में अगर 52 इस्लामिक मुल्क हैं तो सवा सौ के करीब गैर इस्लामिक मुल्क भी हैं जहां मुस्लिम अल्पसंख्यक हैं। अगर वो भी अल्पसंख्यक मुसलमानों के साथ जैसे को तैसा का व्यवहार करने लगेंगे तो क्या होगा? क्या जाकिर नाईक जैसे इस्लामिक विद्वानों के पास इसका कोई जवाब है? 

Saturday, June 13, 2020

जोगेन्द्र नाथ मंडल और दलित मुस्लिम एकता की विफलता

29 जनवरी 1904 को बंगाल में पैदा हुए जोगेन्द्र नाथ मंडल दलित मुस्लिम एकता के पहले विचारक थे। बंटवारे से पहले ही वे मुस्लिम लीग से जुड़ गये थे और बंटवारे के बाद दलित मुस्लिम एकता का उनका आदर्श इतना परवान चढ़ा कि वे पाकिस्तान चले गये। कानून के इतने बड़े जानकार थे कि बैरिस्टर जिन्ना और बैरिस्टर अंबेडकर दोनों उनके कायल थे। बहुत पढ़े लिखे आदमी थे, इसलिए संविधान बनाने में जो भूमिका भारत में अंबेडकर को मिली उससे भी बड़ी भूमिका जिन्ना ने पाकिस्तान में जोगेन्द्र नाथ मंडल को दी। अंबेडकर ड्राफ्टिंग कमेटी के चेयरैमन थे जबकि मंडल को पाकिस्तान में संविधान सभा का कार्यवाहक अध्यक्ष बनाया गया।

इसके साथ ही जोगेन्द्र नाथ मंडल को पाकिस्तान का पहला कानून मंत्री बनाया गया ताकि पाकिस्तान के भविष्य के रूपरेखा की कानूनी बुनियाद रखी जा सके। जाहिर है, जोगेन्द्र नाथ मंडल की दलित मुस्लिम एकता को पक्का करने का यह स्वर्णिम अवसर था। लेकिन दो ढाई साल में ही मंडल कल्पनालोक से हकीकत की जमीन पर आ गये। आखिरकार उन्हें इस्तीफा देना पड़ा और इस्तीफा देने के बाद वे लौटकर भारत आ गये और यहीं पश्चिम बंगाल में 1968 में उनका निधन हुआ।

1950 में जब जोगेन्द्र नाथ मंडल ने पाकिस्तान में कानून मंत्री के पद से इस्तीफा दिया तो पाकिस्तान के प्रधानमंत्री लियाकत अली खान को एक लंबा पत्र लिखा जिसकी शुरुआत ही उन्होंने इन शब्दों से की, "बहुत भारी मन से और अति खिन्नता से मैं यह पत्र आपको लिख रहा हूं।" फिर उन्होंने बहुत विस्तार से मुसलमानों के हाथों दलितों के शोषण, धर्मांतरण, दलित महिलाओं के साथ बलात्कार, सत्ता में दलितों का बहिष्कार जैसे मुद्दे उठाये हैं। दो ढाई साल में उन्होंने करीब से जिस इस्लामिक राज्य को देखा था, उसके अनुभव से उन्होंने कहा कि पाकिस्तान भविष्य में दक्षिण एशिया का सबसे गरीब मुल्क होगा।

जाहिर है दो ढाई साल में ही जोगेन्द्र नाथ मंडल का दलित मुस्लिम एकता वाला ख्वाब चकनाचूर हो गया। "इस्लाम" में दलितों के लिए क्या जगह है यह उन्होंने अपनी आंखों से देख लिया था और मन पर भुगत भी लिया था। पता नहीं क्याें लेकिन आजकल जो लोग दलित मुस्लिम एकता का नया "लीगी" माहौल बना रहे हैं वे भूलकर भी जोगेन्द्र नाथ मंडल का नाम नहीं लेते। उन्हें लेना चाहिए और यह भी बताना चाहिए कि मुस्लिमों ने सत्ता मिलने के बाद मंडल के साथ क्या किया।

https://en.m.wikisource.org/wiki/Resignation_letter_of_Jogendra_Nath_Mandal

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