इसके साथ ही जोगेन्द्र नाथ मंडल को पाकिस्तान का पहला कानून मंत्री बनाया गया ताकि पाकिस्तान के भविष्य के रूपरेखा की कानूनी बुनियाद रखी जा सके। जाहिर है, जोगेन्द्र नाथ मंडल की दलित मुस्लिम एकता को पक्का करने का यह स्वर्णिम अवसर था। लेकिन दो ढाई साल में ही मंडल कल्पनालोक से हकीकत की जमीन पर आ गये। आखिरकार उन्हें इस्तीफा देना पड़ा और इस्तीफा देने के बाद वे लौटकर भारत आ गये और यहीं पश्चिम बंगाल में 1968 में उनका निधन हुआ।
1950 में जब जोगेन्द्र नाथ मंडल ने पाकिस्तान में कानून मंत्री के पद से इस्तीफा दिया तो पाकिस्तान के प्रधानमंत्री लियाकत अली खान को एक लंबा पत्र लिखा जिसकी शुरुआत ही उन्होंने इन शब्दों से की, "बहुत भारी मन से और अति खिन्नता से मैं यह पत्र आपको लिख रहा हूं।" फिर उन्होंने बहुत विस्तार से मुसलमानों के हाथों दलितों के शोषण, धर्मांतरण, दलित महिलाओं के साथ बलात्कार, सत्ता में दलितों का बहिष्कार जैसे मुद्दे उठाये हैं। दो ढाई साल में उन्होंने करीब से जिस इस्लामिक राज्य को देखा था, उसके अनुभव से उन्होंने कहा कि पाकिस्तान भविष्य में दक्षिण एशिया का सबसे गरीब मुल्क होगा।
जाहिर है दो ढाई साल में ही जोगेन्द्र नाथ मंडल का दलित मुस्लिम एकता वाला ख्वाब चकनाचूर हो गया। "इस्लाम" में दलितों के लिए क्या जगह है यह उन्होंने अपनी आंखों से देख लिया था और मन पर भुगत भी लिया था। पता नहीं क्याें लेकिन आजकल जो लोग दलित मुस्लिम एकता का नया "लीगी" माहौल बना रहे हैं वे भूलकर भी जोगेन्द्र नाथ मंडल का नाम नहीं लेते। उन्हें लेना चाहिए और यह भी बताना चाहिए कि मुस्लिमों ने सत्ता मिलने के बाद मंडल के साथ क्या किया।
https://en.m.wikisource.org/wiki/Resignation_letter_of_Jogendra_Nath_Mandal