Wednesday, April 24, 2013

तलवार पर संदेह की कटार

15 मई 2008 की आधी रात को नोएडा के जलवायु विहार के उस घर में जो कुछ हुआ था उसके बारे में आज गाजियाबाद की अदालत में सीबीआई ने जो जांच पड़ताल पेश किया है उसमें शायद ही ऐसा कुछ हो जिसे सुनकर कोई चौंक जाए। किंवंदिंतों और कहानियों में अभी तक जो बातें कही जाती थीं, उसी बात को सीबीआई ने अपनी जांच पड़ताल बनाकर सामने रख दिया है। इसका मतलब यह तो नहीं हो सकता कि सीबीआई ने किवंदियों और किस्सों को कागजों में नत्थी करके अपना काम पूरा कर लिया। लेकिन मतलब यह जरूर हो सकता है कि सीबीआई ने आज जो कुछ कहा वह जनता का एक बड़ा वर्ग बहुत पहले से कहता आ रहा था। आरुषि और हेमराज की हत्या उसके ही मां-बाप राजेश और नुपुर तलवार ने की थी।

हालांकि सीबीआई के इस तफ्सीस का अब अदालती परीक्षण होगा और जिरह दर जिरह यह साबित करने की कोशिश की जाएगी यह सब सच है या नहीं है। पिछले चार सालों में आरुषि तलवार के मां बाप ने जिस तरह से अपने आपको बचाने की कोशिश की है उसे देखकर नहीं लगता है कि इतनी जल्दी वे अपना गुनाह कबूल कर लेंगे। वे इसे एक लंबी अदालती लड़ाई में तब्दील करने की कोशिश करेंगे ताकि जेल के बाहर उन्हें ज्यादा से ज्यादा दिन जीने का मौका मिल सके।

सीबीआई अब जितनी सफाई से राजेश तलवार और नुपुर को हत्यारा बता रही है, तब उसने इतनी सफाई से यह बात नहीं कही थी जब 2010 में 29 दिसंबर को गाजियाबाद की इसी विशेष अदालत में क्लोजर रिपोर्ट लगाया था। उस वक्त सीबीआई ने तलवार दंपत्ति पर शक व्यक्त करते हुए फाईल बंद कर दी थी। आरुषि और हेमराज की हत्या के लिए सीबीआई अपनी जांच में पहले दिन से दांतों के डॉक्टर को शक की निगाह से देख रही थी। और सीबीआई ही क्यों? 18 मई 2008 को जब इस मामले की जांच में दिल्ली पुलिस शामिल हुई तो उसने सरसरी निगाह दौड़ाने के बाद ही कह दिया कि ''हत्या या तो किसी डॉक्टर ने की है, या फिर किसी कसाई ने।''

आज कमोबेश चार साल बाद सीबीआई जिस नतीजे पर पहुंची है वह उसी संदेह को पुष्ट करती है जो दिल्ली पुलिस ने व्यक्त किया था। सीबीआई की ओर से जांच अधिकारी एजीएल कौल ने जो विवरण दिया है वह बताता है कि 15 मई की आधी रात आरुषि के मां बाप घर लौटे तो उन्होंने घर के चालीस वर्षीय नौकर हेमराज और अपनी चौदह वर्षीय बेटी को आपत्तिजनक अवस्था में पाया। ऐसी स्थिति में कोई भी मां-बाप बेकाबू हो सकता है। तलवार दंपत्ति भी बेकाबू हो गये। उन्होंने गोल्फ स्टिक से हत्या तो हेमराज की लेकिन गोल्फ स्टिक से की गई मारपीट में बेटी के सिर में भी गहरी चोट आई। पूरे कमरे में खून ही खून भर गया। कहते तो यह भी हैं कि आरुषि का भेजा बाहर निकल आया था। सीबीआई मानती है कि तलवार दंपत्ति द्वारा हेमराज की हत्या अगर जानबूझकर की गई तो आरुषि की हत्या अचानक हो गई। लेकिन हत्या हो गई तो इसके आगे की कहानी और भी वीभत्स है।

राजेश और नुपुर ने अपनी ही बेटी का गला उस चाकू से रेत दिया जिससे आपरेशन किया जाता है। सीबीआई भी मानती है कि ऐसा इसलिए किया गया ताकि यह मामला हेमराज द्वारा की गई हत्या का लगे। हेमराज के शव को छत पर ही छिपा दिया गया और 16 मई को जो कहानी गढ़ी गई उसमें तलवार दंपत्ति द्वारा मृत हेमराज को ही सस्पेक्ट बता दिया गया। सीबीआई का कहना है कि हेमराज और आरुषि की हत्या के बाद तलवार दंपत्ति रातभर शराब पीते रहे और पूरे कमरे का खून साफ करते रहे ताकि अगले दिन आरुषि की हत्या के लिए हेमराज को दोषी साबित किया जा सके। जाहिर है, मृत हेमराज कभी मिलता नहीं और मामला अपने आप रफा दफा हो जाता। लेकिन तलवार दंपत्ति की यह चालाकी एक दिन से भी अधिक कायम न रह सकी। 17 मई को ही उन्हीं की छत से हेमराज का शव बरामद कर लिया गया और पूरी कहानी पलट गई। हालांकि इसके बाद भी तलवार दंपत्ति लगातार अपनी पहुंच और प्रभाव का इस्तेमाल करके बचाव करते रहे लेकिन मामला इतना साफ था कि वे चाहकर भी बहुत कीचड़ फैला नहीं पाये।

अब जबकि सीबीआई ने अपनी दलील दे दी है तब अदालत को तय करना है कि वह क्या फैसला करती है लेकिन जिस वक्त यह खबर आई है वह ऐसा वक्त है जब बेटियों सचमुच चिंता का कारण बनी हुई हैं। जो कहानी बार बार सामने आ रही है वह यही है कि हेमराज और आरुषि को एक कमरे में देखकर तलवार दंपत्ति आग बबूला हो गये जिसके बाद यह हत्याकांड हुआ। लेकिन जो बात कभी जिरह में शामिल नहीं हुई वह यह कि आखिर नौंवी क्लास में पढ़नेवाली एक तेज तर्रार लड़की घर के चालीस वर्षीय व्यक्ति के साथ आपत्तिजनक अवस्था तक कैसे पहुंच गई? उसे अबोध मान भी लें तो क्या हेमराज दोषी था? अगर ऐसा था, तो हो सकता है इसका लाभ तलवार दंपत्ति को मिल जाए क्योंकि सीबीआई ने अपनी रिपोर्ट में एक बात तो कह ही दिया है कि आरुषि की हत्या दुर्घटनावश हो गई। यानी वह हेमराज इसलिए मार दिया गया क्योंकि वह एक अबोध बच्ची के साथ हमबिस्तर था, जबकि वह अबोध बच्ची इसलिए मर गई क्योकि एक दुर्घटना हो गई?

एक सामान्य समझ वाला व्यक्ति भी ऐसी अवस्था में तलवार दंपत्ति को संदेह का लाभ दे देगा जैसी स्थिति पैदा की जा रही है। जबकि जो कहानी अनाधिकारिक रूप से सामने आई है उसमें कहीं न कहीं आरुषि अपने ही मां-बाप के किसी काम से इतनी नाखुश थी कि उसने प्रतिक्रिया में हेमराज से संबंध विकसित कर लिया। कहते हैं आरुषि के इस सवाल का जवाब तलवार दंपत्ति कभी नहीं दे पाते थे कि वे दोनों अक्सर रात में उसे अकेला छोड़कर जाते कहां हैं और पूरी पूरी रात गायब रहते हैं। जाहिर है, आरुषि को कुछ बातें ऐसी भी पता चली होंगी जिसके कारण उसके कच्चे मन को गहरी चोट पहुंची होगी। इसलिए यहां भी सीबीआई को उन परिस्थितियों की पड़ताल भी सामने लानी चाहिए कि आखिर क्या कारण है कि हेमराज की गोद में खेलनेवाली आरुषि उसके साथ आपत्तिजनक अवस्था में पाई गई? इस पहलू से इस घटनाक्रम को देखना इसलिए भी जरूरी है कि अभी तक जो परिस्थितियां पैदा की गई हैं उसमें भविष्य में तलवार दंपत्ति को संदेह का लाभ मिल सकता है। आखिरकार, अब तक अपने संबंधों का इस्तेमाल करके तलवार दंपत्ति अपने आपको बचाते ही रहे हैं। खुद कौल ने भी स्वीकार ही किया है कि उनके वरिष्ठ अधिकारियों ने भी जांच में दखल देने की कोशिश की थी।

तलवार दंपत्ति का अब तक व्यवहार देखकर लगता नहीं है कि वे इतनी आसानी से अपना गुनाह कबूल कर लेंगे। अब अदालत की जिम्मेदारी बनती है कि वह इस पूरे मामले के संदर्भों को भी समाहित करके किसी निष्कर्ष की तरफ आगे बढ़े ताकि कम से कम तलवार दंपत्ति को संदेह का लाभ न मिल सके। किसी भी कीमत पर। किसी भी सूरत में।

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