Tuesday, September 29, 2009

बोफोर्स विवाद को आखिरी सलामी

केन्द्र सरकार ने 22 साल बाद देश की सर्वोच्च अदालत में बोफोर्स विवाद को आखिरी सलामी दे दी है. सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में केन्द्र सरकार के महाधिवक्ता गोपाल सुब्रमण्यम ने सूचित किया कि केन्द्र सरकार ने फैसला किया है कि वह बोफोर्स विवाद के मुख्य आरोपी इटैलियन व्यवसायी औट्टावियो क्वात्रोच्ची के खिलाफ सारे मामले वापस लेता है. महाधिवक्ता ने सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया कि "केन्द्र सरकार क्वात्रोच्ची के खिलाफ लंबित सभी मामलों को निरस्त कर रहा है."

निरस्तीकरण का यह प्रस्ताव इतनी अनहोनी भी नहीं है. आम चुनाव में जाने से ठीक पहले केन्द्र की यूपीए सरकार ने एक बड़ा कदम उठाते हुए 28 अप्रैल 2009 को इंटरपोल द्वारा क्वात्रोच्ची के खिलाफ रेड कार्नर नोटिस को निरस्त कर दिया था. मतलब अब भारत सरकार को क्वात्रोच्ची के खिलाफ किसी प्रकार की शिकायत नहीं रह गयी और केन्द्रीय खुफिया एजंसी ने भी अपनी वेबसाइट से रेड कार्नर के तहत दर्ज अपराधियो की सूची से क्वात्रोच्ची का नाम हटा दिया था. उस वक्त भी इस मामले में विवाद उठ खड़ा हुआ था लेकिन न तो विपक्ष ने इसे चुनाव में अपना मुद्दा बनाया और न ही सरकार ने इसे मुद्दा बनने दिया.
64 करोड़ की बोफोर्स तोप दलाली ने 1989 में भले ही केन्द्र से राजीव गांधी सरकार को उखाड़ फेंका हो लेकिन अब 22 साल बाद क्वात्रोच्ची के खिलाफ केस वापस लेने पर शायद ही किसी के ऊपर कोई फर्क पड़ता हो. कांग्रेस खुद बोफोर्स के इस कलंक से मुक्ति पाना चाहती थी. निश्चित रूप से कांग्रेस की यूपीए सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में जो हलफनामा दिया है वह उसकी कलंकमुक्ति के लंबे अभियान का आखिरी कार्य है. 1987 में घटित हुए इस दलाली काण्ड में इटली की बोफोर्स एबी कंपनी की होवित्जर तोपों ने कारगिल युद्ध के दौरान देश को जैसी सलामी दी उसने भाजपा को भी इस मुद्दे पर रक्षात्मक कर दिया है. शायद इसीलिए जब केन्द्र सरकार ने क्वात्रोच्ची के खिलाफ रेड कार्नर नोटिस वापस लिया और अब सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर करके केस को खत्म होने की सूचना दी तो भी भाजपा इस मुद्दे पर कुछ साफ बोलने की स्थिति में नहीं है. पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह अब हैं नहीं, अगर होते तो वे भी शायद इस निर्णय का स्वागत ही करते क्योंकि उन्होंने भी आखिरी दिनों में मान लिया था कि कांग्रेस ही देश का भविष्य है और सोनिया गांधी तथा उनके बच्चों के हाथ में ही देश सुरक्षित रह सकेगा. शायद यह उनका बोफोर्स प्रायश्चित था जिसने उन्हें फर्श से अर्श पर पहुंचा दिया था.

कथित दलाली के दस साल बाद 1990 में सीबीआई ने यह केस दर्ज किया. सीबीआई ने अपने आरोप पत्र में रक्षा सौदों के दलाल विन चड्ढा, इटली के व्यापारी अट्टावियो क्वात्रोच्ची, हिन्दुजा भाईयो, राजीव गांधी और तत्कालीन रक्षा सचिव एस के भटनागर को मुख्य आरोपी बनाया. 1998 में देश में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार बनी लेकिन छह साल तक इस मामले में चुप्पी छाई रही. 2003 में हाईकोर्ट के एक आदेश के बाद अट्टावियो क्वात्रोच्ची के दो ब्रिटिश बैक एकाउण्ट फ्रीज कर दिये गये. एक साल बाद 2004 में दिल्ली हाईकोर्ट ने इस मामले में सुनवाई करते हुए सबसे पहले राजीव गांधी को निर्दोष साबित कर दिया. इसके बाद अगले साल 2005 में दिल्ली हाईकोर्ट ने हिन्दुजा बन्धुओं को भी बोफोर्स के केस से बरी कर दिया.

अब मुख्य रूप से अट्टावियो क्वात्रोच्ची ही मुख्य आरोपी था जिसके खिलाफ सीबीआई भारतीय अदालतों में लड़ रही थी. 6 फरवरी 2007 को क्वात्रोच्ची को अर्जेन्टीना में गिरफ्तार किया लेकिन सीबीआई ने उसकी गिरफ्तारी को तीन दिन तक छिपाये रखा. दो दिन बाद यह राज खुला तो भी सीबीआई उसे भारत नहीं ला सकी क्योंकि अर्जेन्टीना के साथ भारत की प्रत्यर्पण संधि नहीं है. जल्द ही क्वात्रोच्ची मुक्त हो गया. इसके बाद अक्टूबर 2008 में तत्कालीन महाधिवक्ता ने सीबीआई को सलाह दी कि वह अब क्वात्रोच्ची के खिलाफ रेड कार्नर नोटिस वापस ले ले. इसके छह महीने बाद अप्रैल 2009 में क्वात्रोच्ची के खिलाफ रेड कार्नर नोटिस वापस ले ली गयी. अब 29 सितंबर 2009 को केन्द्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया है कि जब क्वात्रोच्ची के खिलाफ कोई मामला लंबित नहीं है तो फिर इस केस पर सुनवाई का कोई औचित्य नहीं है. महाधिवक्ता की इस दलील पर सुप्रीम कोर्ट ने अपनी मुहर लगा दी है.

22 साल पुराने इस तोप घोटाले का आखिरी गोला दग चुका है और रक्षा सौदे के बिचौलिये अट्टावियो क्वात्रोच्ची को पूरी तरह से दोषमुक्त कर दिया गया है. भारतीय सेना में होवित्जर तोपे आनेवाले दिनों में भी सीमा पर अपने गोले दागती रहेंगी लेकिन अब बोफोर्स तोपों से राजनीतिक गोलाबारी नहीं होगी. ऐसा इसलिए नहीं कि देश ने भ्रष्टाचार पर फतेह हासिल कर ली है बल्कि ऐसा इसलिए क्योंकि अब भ्रष्टाचार सेवा शुल्क का रूप धारण कर चुका है. रक्षा सौदे आज भी देश के सबसे भ्रष्ट सौदों में गिने जाते हैं लेकिन अब कोई रक्षा सौदा विवाद नहीं बनता. बदलते वक्त के साथ भ्रष्टाचार ने जिस प्रकार से सलाहकार और सेवा क्षेत्र का स्वरूप धारण कर लिया है, उसमें बोफोर्स के 64 करोड़ अब प्रासंगिक भी नहीं रह गये हैं. इससे कई गुना अधिक तो सीबीआई इसकी जांच पर खर्च कर चुकी है. सादगी अभियान चलाकर देश की पूंजी बचाने में लगी केन्द्र सरकार के इस काम को भी आप उसी बचत अभियान का हिस्सा मानिए, और भूल जाइये. सरकार इस मामले की जांच पर पैसा बर्बाद भी करे तो आखिर क्यों?

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