Wednesday, April 9, 2014

काजल की कोठरी में केजरी

केजरीवाल पर एक बार फिर वही प्रहार। कभी उनके ऊपर स्याही फेंक दी जाती है। कभी थप्पड़ मार दिया जाता है। कभी गाली दे दी जाती है। सिर्फ बम और गोली बची है। नहीं तो जिस तरह से अरविन्द केजरीवाल को अब तक निशाना बनाया गया है, अगर उन हमलों के दौरान हमलावर गोली बारुद लेकर केजरी के पास तक पहुंचा होता तो अब तक उनका काम तमाम हो चुका होता। दिल्ली में केजरीवाल के उभार के साथ ही देश में एक खास राजनीति का समर्थक वर्ग ऐसा हो गया है जो उन्हें जब तब निशाना बनाता रहता है। और केवल केजरीवाल ही क्यों? आम आदमी पार्टी के अन्य नेता भी ऐसे हमलों का शिकार हो चुके हैं। योगेन्द्र यादव। कुमार विश्वास। प्रशांत भूषण। कौन बचा है जिस पर अब तक डायरेक्ट अटैक न किया गया हो? टीम केजरीवाल पर दोतरफा हमले हो रहे हैं। एक तरफ अगर जमीन पर कुछ सिरफिरे लोग सीधा हमला बोल रहे हैं तो उन्हीं सिरफिरों के आका लोग अपने बयानों से केजरीवाल और उनकी आम आदमी पार्टी को निशाना बना रहे हैं। 

दिल्ली में विधानसभा चुनाव के साथ ही देश की राजनीति में एक नाम बड़ी तेजी से उभरा था- अरविन्द केजरीवाल। चुनाव परिणाम आने से पहले तक खुद केजरीवाल को भी भरोसा नहीं था कि वे लोगों के मन में कौन सी आग लगा चुके हैं। नतीजों ने बताया कि लोग काजल की कोठरी में परिवर्तन की रोशनी चाहते हैं। शायद इसीलिए परिणाम आने के बाद खुद केजरीवाल ने कहा कि उन्हें खुद इतनी बड़ी जिम्मेदारी की उम्मीद नहीं थी। लेकिन केजरीवाल ने सिर्फ दिल्ली विधानसभा में बड़ी जीत ही दर्ज नहीं की। उन्होंने एक अनोखे तरह से सरकार भी बनाई और 50 वें दिन बहुत अनोखे अंदाज में इस्तीफा भी दे दिया।

दिल्ली में विधानसभा चुनाव के दौरान ही एक राजनीतिक दल ऐसा था जो अरविन्द केजरीवाल और उनकी पार्टी को बहुत अलोकतांत्रिक तरीके से बर्बाद करने की योजना पर अमल कर रहा था। सरकार बनाने से लेकर इस्तीफा देने तक इसी राजनीतिक दल ने दिन रात सिर्फ केजरीवाल को ही निशाने पर रखा। राजनीतिक रूप से यह निशानेबाजी होती तो कोई दिक्कत नहीं थी लेकिन जिस तरह से केजरीवाल को सीआईए एजंट बताने से लेकर भगोड़ा करार देने का क्रमबद्ध अभियान चलाया गया वह न केवल अलोकतांत्रिक था, बल्कि बहुत वीभत्स और भयावह भी था। इस कथित राष्ट्रवादी दल के नेता जहां अपने बयानों से केजरीवाल के चेहरे पर कालिख लगाने की कोशिश कर रहे थे, वहीं उसी विचारधारा से जुड़े कुछ अन्य लोगों ने जब तब केजरीवाल को निशाना बनाना शुरू कर दिया। सोशल मीडिया से लेकर वास्तविक दुनिया तक सब जगह इसी राष्ट्रवादी विचारधारा ने केजरीवाल को शत्रु साबित करने का संगठित अभियान चला दिया।

अब तक राष्ट्रवादी कौमों ने जितना केजरीवाल को बदनाम करने की चाल चली है उनकी हर चाल नाकाम हुई है। अपनी सादगी और ईमानदारी की वजह से जनता के मन में केजरीवाल तेजी से जगह बनाते जा रहे हैं। शायद यही कारण है कि 'राष्ट्रवादी कौमें' बौखला गई हैं और वे हर तरह से केजरीवाल पर हमले कर रही हैं, करवा रही हैं। 

एक तरफ इसी विचारधारा के लोग केजरीवाल को निशाना बनाने लगे तो इसी विचारधारा के लोगों ने सबसे ज्यादा केजरीवाल के तरीकों का इस्तेमाल भी करना शुरू कर दिया। दिल्ली विधानसभा में सरकार बनने और इस्तीफा देने के मौकों पर अगर भाजपा का रुख किसी ने देखा होगा तो उसे बताने की जरूरत नहीं रह जाएगी कि भाजपा सिर्फ विरोध के लिए विरोध कर रही थी। उसके पास केजरीवाल का विरोध करने का न कोई नैतिक बल था और न ही उचित कारण। लेकिन शायद केजरीवाल की जनता में बढ़ती स्वीकार्यता और अनोखी कार्यशैली के कारण मिलती सफलता ने इस तथाकथित राष्ट्रवादी पार्टी की चूलें हिलाकर रख दी और इन्हें अपना खेल खराब होता दिखने लगा। इसलिए दिल्ली में अगर केजरीवाल को बदनाम करने के अभियान भी चलाए गये तो दूसरी तरफ उनकी टोपी का जवाब देने के लिए भगवा टोपी भी सिलवा ली गई।

दिल्ली विधानसभा चुनाव में मिली सफलता से उत्साहित आम आदमी पार्टी ने देशभर में आम चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया। इससे भाजपा की बौखलाहट और बढ़ गई। भाजपा नेताओं के बयान उठाकर देख लीजिए। उनकी बौखलाहट का अंदाज लग जाता है। जिन लोगों को भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम शुरू करने के लिए केजरीवाल दिल्ली दरबार तक लेकर आये थे वे लोग भी अब बीजेपी के इशारे पर केजरीवाल को भ्रष्टाचारी कहने लगे। बाबा रामदेव, श्री श्री रविशंकर जैसे गैर राजनीतिक लोगों ने भाजपा के ही इशारे पर केजरीवाल को निशाना बनाना शुरू कर दिया। सवाल उठता है कि आखिर केजरीवाल ने ऐसा क्या कर दिया है कि पूरा राष्ट्रवादी कुनबा बौखला उठा है?

असल में केजरीवाल ने भारी पूंजीबल से विकल्प का दावा करनेवाले नरेन्द्र मोदी का खेल खराब कर दिया है। अभी तक बीजेपी और मोदी उम्मीद कर रहे थे कि कांग्रेस के विकल्प के रूप में वे देशभर में अपनी जीत का डंका बजा लेंगे और राष्ट्रीय स्तर पर उन्हें कोई चुनौती नहीं मिलेगी लेकिन अरविन्द केजरीवाल ने अपनी कार्यशैली से इतनी तेजी से राष्ट्रीय विकल्प पैदा कर दिया है कि आज लोकसभा चुनाव में 'आप' के उम्मीदवार कांग्रेस और बीजेपी से ज्यादा हो गये हैं। कोई साल डेढ़ साल पुरानी पार्टी और ऐसा व्यापक विस्तार चौंकानेवाला तो है ही लेकिन उन लोगों के लिए परेशान करनेवाला भी है जो कांग्रेस को रावण बनाकर खुद राम होने का दावा कर रहे थे। देखते ही देखते एक और राम मैदान में आ गया तो इन लोगों की हालत खराब हो गई। यही कारण है कि रावण को पीछे छोड़ इन्होंने पहले उस राम को ही निपटाना शुरू कर दिया जो उनसे भी सशक्त राजनीतिक विकल्प लेकर मैदान में आ डटा था।

अरविन्द केजरीवाल को जिस अलोकतांत्रिक और घटिया तरीके से राष्ट्रवादी जमात केजरीवाल को निशाना बना रही हैं उससे उन्हें फायदा हो न हो, खुद केजरीवाल बहुत फायदे में रहनेवाले हैं। केजरी ने राजनीति की काली कोठरी में कदम रखा है। सब देख रहे हैं कि अभी तक उन्होंने अपने दामन पर कोई दाग लगने नहीं दिया है। अगर केजरी इसी तरीके से आगे बढ़ते रहे तो तय है कि बीजेपी कांग्रेस का विकल्प बनें न बने आम आदमी पार्टी बीजेपी का विकल्प जरूर बन जाएगी। कांग्रेस को रावण साबित करनेवाली 'राष्ट्रवादी' फौज इसी तरह केजरी पर 'हमले' करती रही तो वह दिन दूर नहीं जब राष्ट्रवादी कौमें खुद रावण की कतार में खड़ी नजर आयेंगी।

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