Sunday, July 7, 2013

चीन के मोबाइल का चवन्नीछाप कारोबार

ब्लू मोबाइल का माइक्रोमैक्स से घोषित तौर पर कोई कारोबारी नाता नहीं है। एक दूर देश अमेरिका और लैटिन अमेरिका के देशों में ब्लू सीरीज के स्मार्टफोन बेचती है तो दूसरी कंपनी भारत की उभरती हुई स्मार्टफोन मैन्युफैक्चरिंग कंपनी है। लेकिन दोनों ही कंपनियों में अचानक ही एक समानता पैदा हो गई है। अमेरिका के मियामी में रजिस्टर्ड ब्लू मोबाइल पिछले कुछ हफ्तों से जो ब्लू लाइफ वन नाम से बेच रही थी, ठीक वही मोबाइल अब भारत में माइक्रोमैक्स लांच करने की पूरी तैयारी कर चुका है। माइक्रोमैक्स पांच-पांच हजार रूपये में इस कैनवास-4 नामक स्मार्टफोन के लिए अलग से वेबसाइट बनाकर प्रीआर्डर बुकिंग भी ले रहा है। संभवत जुलाई में किसी समय वह इस स्मार्टफोन की डिलिवरी अपने ग्राहकों को देना शुरू कर देगा। लेकिन क्या ठीक वही फोन भारत में लांच करने के लिए ब्लू मोबाइल से कोई समझौता कर लिया है?
इस बात की कोई सार्वजनिक जानकारी नहीं है कि सार्वजनिक या गुपचुप तरीके से ही दोनों कंपनियों में कोई समझौता हुआ है। अगर ऐसा नहीं है तो माइक्रोमैक्स ठीक वही मोबाइल अपने ब्रांड नेम के साथ भारतीय बाजार में बेचकर क्या एप्पल और सैमसंग की तर्ज पर किसी अदालती लड़ाई को आमंत्रण तो नहीं दे रही है? क्या कल ब्लू मोबाइल माइक्रोमैक्स पर किसी पेटेन्ट के उल्लंघन का दावा तो नहीं ठोंक देगी? बिल्कुल ऐसा कुछ नहीं होगा। क्योंकि जो मोबाइल ब्लू लाइफ वन के नाम से बेच रहा है और माइक्रोमैक्स कैनवास-4 नाम से भारत में लांच करने की तैयारी कर रहा है वे दोनों ही इस मोबाइल के मैन्युफैक्चरर नहीं है। यह मोबाइल न तो अमेरिका में बना है और न ही भारत में। इस मोबाइल का निर्माता चीन में बैठा है और पूरी दुनिया के दुकानदारों को इसी तरह ठप्पे लगा लगाकर अपना माल बेचता है।

2003 के आस पास ही जब दुनिया में पहली बार स्मार्टफोन शब्द आकार ले रहा था ठीक उसी वक्त से चीन में स्मार्टफोन मैन्युफैक्सचरर्स मार्केट तैयार होने लगा था। इस बीच चीन के उदार आर्थिक नीतियों के कारण दुनिया की शीर्ष मोबाइल निर्माता कंपनियों के वेन्डर भी चीन में ही सबसे ज्यादा पाये जाने लगे और आज हालात यह है कि दुनिया का सारा स्मार्टफोन कमोबेश अकेले चीन ही बनाता है। ब्लैकबेरी को छोड़ दें तो स्मार्टफोन मार्केट की अन्य दिग्गज कंपनियां सैमसंग, लेनोवो (खुद चीनी कंपनी), एप्पल और एचटीसी के मोबाइल चीन में ही निर्मित होते हैं। अभी अभी चीन के स्मार्टफोन मार्केट के बारे में आई एक रिपोर्ट (चीन में स्मार्टफोन निर्माण उद्योग) में साफ तौर पर इस बात का उल्लेख किया गया है कि कैसे चीन की स्मार्टफोन मैन्युफैक्चरिंग मार्केट चीन की जीडीपी से भी चार गुणा तेजी से बढ़ोत्तरी कर रही है। पिछले पांच सालों में चीन में स्मार्टफोन मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की ग्रोथ रेट 48.8 फीसदी है। और अगले पांच साल के दौरान इसमें जरूर 20 प्रतिशत की 'भारी गिरावट' आयेगी लेकिन इस 'भारी गिरावट' के बाद भी ग्रोथरेट 28 फीसदी सालाना के दर पर बने रहने की उम्मीद है। यानी चीन की सकल घरेलू उत्पाद दर 8 फीसदी से साढ़े तीन गुना ज्यादा।
चवन्नीछाप उत्पाद बनाने के लिए बदनाम चीन ने यह तरक्की ऐसे ही हासिल नहीं की है। ताजा रिपोर्ट में जो आंकलन बताया गया है उसमें बताया गया है कि 2013 के अंत तक चीन स्मार्टफोन का 55.3 अरब डॉलर का कारोबार करेगा। चीन जितने भी स्मार्टफोन बनाता है उसमें आधे से अधिक संख्या उन चार बड़ी कंपनियों (एप्पल, सैमसंग, लेनोवो और एचटीसी) के हिस्से में जाती हैं जो यहां निर्मित होनेवाले स्मार्टफोन को दुनियाभर के बाजार में बेचती हैं। लेकिन आधा हिस्सा उन छोटे कारोबारियों का है जो हर बड़ी कंपनी के डिजाइन को हूबहू कापी करके नये स्मार्टफोन मॉडल के रूप में पेस्ट कर देते हैं। इन स्मार्टफोन कंपनियों की बाजार हिस्सेदारी 48 प्रतिशत के आसपास है। चीन में बननेवाले कुल स्मार्टफोन का 86.4 फीसदी एक्सपोर्ट होता है। यानी, ठीक वही स्मार्टफोन लैटिन अमेरिका, अफ्रीका के बाजार में अलग अलग ब्रांड नेम से बिकने के लिए चला जाता है जो भारत जैसे उभरते बाजार में किसी घरेलू कंपनी के नाम से बिकता है। इसलिए दुनिया में स्मार्टफोन कहीं भी बिके बनता चीन में ही है फिर वह चाहे किसी ब्रांडेड कंपनी का स्मार्टफोन हो कि चवन्नीछाप कंपनी का स्मार्टफोन। दोनों ही तरह के स्मार्टफोन का अकेला निर्माता चीन ही है।

लेकिन अगर ब्रांडेड कंपनियों के स्मार्टफोन का जिक्र अलग कर दें तो भी चीन में इस वक्त 295 कंपनियां हैं जो स्मार्टफोन बनाने का कारोबार कर रही हैं। आनेवाले पांच सालों में इनकी संख्या में कोई कमी नजर नहीं आ रही है। 2018 तक स्मार्टफोन बनानेवाली कंपनियों की यह संख्या 411 तक पहुंच जाने की उम्मीद है। जाहिर है, हर साल 315 मिलियन स्मार्टफोन बनानेवाली इन कंपनियों के लिए दुनिया के सारे देश बेहतरीन कारोबार के अवसर हैं। लेकिन एक सवाल जरूर उठता है कि इन कंपनियों के लिए यह कैसे संभव हुआ है कि उन्होंने सस्ते मोबाइल निर्मित कर लिये। चीन में लोकल स्मार्टफोन का विकास दो सुविधाओं के कारण जबर्दस्त तरीके से हुआ है। पहला, एन्डराइड का ओपेन सोर्स साफ्टवेयर और दूसरा ताइवानी मीडियाटेक और क्वालकॉम के सस्ते प्रोसेसर। सस्ते प्रोसेसर और मुफ्त साफ्टवेयर की बदौलत चीन के स्मार्टफोन मार्केट ने स्मार्ट मूव हासिल कर लिया है और भारत जैसे बाजार में करीब दर्जनभर कंपनियां ही ऐसी हैं जो एक समय में एक ही जैसा स्मार्टफोन लांच करती हैं और हमारे मोबाइल विशेषज्ञ उसकी जमकर विशेषताएं बताते हैं। लेकिन कोई यह सवाल नहीं उठाता कि आखिर क्या कारण है कि भारत की लावा, माइक्रोमैक्स, झोलो, स्पाइस, सेलकॉन जैसी सड़कछाप मोबाइल कंपनियां एक समय में एक ही जैसे स्मार्टफोन मॉडल क्यों लांच करती हैं?

वह इसलिए एक वक्त में चीन में जिस एक तरह के का माल बन रहा होता है वह अमेरिका, अफ्रीका और एशिया के देशों में अलग अलग ब्रांड नेम से बिकने के लिए पहुंचा दिया जाता है। इसीलिए कोई एक भारतीय कंपनी अगर एचडी स्क्रीन का स्मार्टफोन लांच करती है तो इसी प्राइसरेंज में दर्जनों एचडी स्क्रीन के मोबाइल मार्केट में पैदा हो जाते हैं। फिलहाल यह वक्त 5 इंच स्क्रीन से आगे जाने का आ गया है इसलिए जैसे ही सैमसंग ने गैलेक्सी मेगा सीरीज के नाम पर 5.8 इंच स्क्रीन साइज का स्मार्टफोन लांच किया चीन में 5.5 इंच स्क्रीन के मोबाइल का नया लॉट बनकर तैयार हो गया। और भारत में लावा मोबाइल हो कि माइक्रोमैक्स सब एक साथ 5.5 इंच एचडी स्क्रीन में क्वाडक्वोर प्रोसेसर के साथ 13 मेगापिक्सल कैमरेवाला स्मार्टफोन लांच करने के लिए तैयार हो गये हैं, यह बताते हुए कि यह उनकी अपनी कंपनी का स्मार्टफोन है।

आश्चर्य चीन के कारोबार पर नहीं बल्कि भारत के कारोबारियों पर होता है जो भारत जैसे उभरते बाजार में सिर्फ चीनी माल बेचकर मुनाफा कमाने की मानसिकता से काम कर रहे हैं। इस वक्त भारत में 7 करोड़ से अधिक स्मार्टफोन यूजर हैं जिनमें अगले पांच सालों में भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा स्मार्टफोन यूजर देश बन जाएगा। ठीक उसी वक्त में जब चीन अपने स्मार्टफोन मैन्युफैक्चरिंग में 28 फीसदी सालाना की दर से बढ़ोत्तरी दर्ज करेगा। तब क्या भारतीय कारोबारियों के सामने यह सवाल खड़ा नहीं होना चाहिए कि भारत जैसे उभरते मोबाइल बाजार में भारत का अपना स्मार्टफोन निर्माण बाजार हो? अगर ताइवान अपनी जरूरतों के हिसाब से सस्ते प्रोसेसर बना सकता है तो यहां की सिलिकॉन वैलियों में बसनेवाले कौन सी घास काट रहे हैं? आईटी और टेक्नॉलाजी में चीन अगर एक दशक में इतना ताकतवर हो गया है कि पूरी दुनिया के सामने उसने बेहतर जीवन का घटिया ही सही, सस्ता विकल्प खड़ा कर दिया है तो भारत का आईटी बूम क्या यूरोप और अमेरिका के लिए साफ्टवेयर बनाने से आगे कभी नहीं सोच पायेगा? दुनिया के उभरते दोयम दर्जे के मोबाइल बाजार में भी क्या हम केवल चवन्नीछाप कारोबारी बनकर ही रह जाएंगे? चीन को सरकारी चुनौती देकर परास्त करने की ख्वाहिस रखनेवाले राष्ट्रभक्त नागरिकों को फुर्सत मिले तो इस बारे में भी जरूर सोचना चाहिए।

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