Tuesday, May 14, 2013

कितने शरीफ मियां नवाज शरीफ?

आतंकी संगठन लश्कर-ए-झांगवी के हेड मलिक इशाक (सबसे बाएं) के साथ नवाज शरीफ
इसी 13 मार्च की बात है। पाकिस्तान के सिंध प्रांत की राजधानी कराची में एक जबर्दस्त बम विस्फोट हुआ। विस्फोट शिया बहुल अब्बास टाउन में हुआ था। इस भीषण विस्फोट में 45 लोग मारे गये थे और 135 लोग घायल हो गये थे। विस्फोट के बाद पाकिस्तानी इंटिरियर मिनिस्टर रहमान मलिक दौरे के दौरान वहां पहुंचे थे। कराची में पत्रकारों से बात करते हुए उन्होंने आतंकी विस्फोट के पीछे लश्कर-ए-झांगवी का नाम लिया। मलिक ने सिर्फ इस विस्फोट के लिए झांगवी को जिम्मेदार नहीं ठहराया बल्कि अब तक कराची में जितना उपद्रव हुआ है उसके लिए पंजाब सरकार को दोष देते हुए कहा कि पंजाब आतंकियों की पनाहगाह बन गया है।
पंजाब का मतलब वह राज्य जहां नवाज शरीफ की पार्टी और परिवार लंबे समय से एकछत्र राज्य कर रही है। नवाज शरीफ के भाई शाहबाज शरीफ पाकिस्तानी पंजाब के दो बार मुख्यमंत्री रह चुके हैं और तीसरी बार बेजोड़ बहुमत के साथ पंजाब का मुख्यमंत्री बनने का रास्ता साफ हो गया है। पहली बार बार 1993 से 1999 और दूसरी बार 2008 से 2013। 1999 में मुशर्ऱफ द्वारा उत्पीड़न के बाद शाहबाद शरीफ भी पाकिस्तान छोड़कर चले गये थे और 2007 में दोबारा पाकिस्तान लौटे थे।

शरीफ परिवार पाकिस्तान का सबसे समृद्ध और रसूखदार परिवारों में गिना जाता है। नवाज शरीफ के पिता मियां मुहम्मद शरीफ बंटवारे के वक्त अपने भाइयों के संग अमृतसर से लाहौर जाकर बस गये थे और वहां के मध्यवर्गीय व्यापारियों में शुमार हो चले थे। लेकिन मुहम्मद शरीफ के बेटों नवाज और शाहबाज ने अपने राजनीतिक रसूख की बदौलत जितनी दौलत पैदा की उसकी बदौलत वे आज पाकिस्तान के सबसे रसूखदार ही नहीं बल्कि सबसे अधिक पैसेवाले नेताओं में शुमार हैं। लेकिन यह अकूत धन दौलत और रसूख शरीफ परिवार ने ऐसे ही नहीं हासिल की है। उसके लिए शरीफ परिवार ने इतिहास में बहुत कुछ ऐसा भी किया है जिसके दोष से वे कभी मुक्त नहीं हो सकते।

इस्लाम में सुन्नी मत माननेवाला शरीफ परिवार सुन्नी इस्लाम में भी देवबंदी विचारधारा का समर्थक है। देवबंदी विचारधारा भारत के उस दारुल उलूम मदरसे की देन है जो इस्लाम को हनफी शिक्षा के अनुसार मानता है। शरीफ परिवार उसी देवबंदी सुन्नी इस्लाम को माननेवाला है। और सिर्फ माननेवाला ही नहीं है बल्कि आज वह पाकिस्तान में देवबंदी सुन्नी मुस्लिमों का राजनीतिक संरक्षक है। पाकिस्तान में देवबंदी मुसलमानों की संख्या भले ही 20 प्रतिशत हो लेकिन पाकिस्तान में दीनी इस्लाम के नाम पर चलनेवाले 65 प्रतिशत मदरसों पर इनका ही कब्जा है। इस्लाम की हनफी शिक्षा के अनुसार ही एक दूसरे इस्लामिक स्कूल बरेलवी मुस्लिमों की संख्या पाकिस्तान में सबसे अधिक है। विभिन्न अंतरराष्ट्रीय अध्ययनों और आंकड़ों के अनुसार पाकिस्तान में बरेलवी मुसलमानों की संख्या करीब 50 से 60 प्रतिशत है लेकिन दीनी शिक्षा के मामले में बरेलवी मुसलमानों के मदरसों की संख्या महज 25 प्रतिशत है। पाकिस्तान में शिया मुसलमानों की संख्या 4 प्रतिशत, अहले हदीथ और अहमदियां मुसलमानों की संख्या भी दो दो प्रतिशत के करीब है।
जो लोग यह समझते हैं कि शरीफ के आने से भारत के लिए पाकिस्तान शराफत के रास्ते पर चल पड़ेगा, उन्हें अपने सोचने पर दोबारा विचार करना चाहिए। पाकिस्तान में शरीफ ऐसे 'उन्मादी शेर' पर सवार होकर विजेता बने हैं जिस पर बैठे रहे तो पाकिस्तान की जनता ही उन्हें बहुत देर तक बर्दाश्त नहीं करेगी और उतरे तो उन्मादी शेर ही उन्हें खा जाएगा। जाहिर है, पाकिस्तान में देवबंदी मुसलमान भले ही आबादी में दूसरे नंबर पर हों लेकिन दीनी तालीम पर उनका एकाधिकार है। इस एकाधिकार और देवबंदी मुसलमानों के पंजाब कनेक्शन के कारण ही पाकिस्तान में तालिबान मूवमेन्ट पैदा हुआ। पाकिस्तानी देवबंदी मुसलमानों ने अब तक इस्लाम के नाम पर जितने आंदोलन पैदा किये हैं उसमें तालिबान मूवमेन्ट सबसे प्रमुख है। तालिबान के साथ ही देवबंदी इस्लाम के नाम पर और पंजाब की जमीन से लश्कर-ए-झांगवी, सिपाह-ए-शहाबा, तहरीक-ए-तालिबान जैसे आतंकी संगठन भी पैदा हुए हैं और लंबे समय से इस्लाम के नाम पर जेहाद को अंजाम दे रहे हैं। पाकिस्तान का बदनाम लश्कर-ए-तैयबा जेहादी समूह भले ही देवबंदी इस्लाम से ताल्लुक न रखता हो लेकिन वह इस्लाम के जिस अहल-ए-हदीठ मत का माननेवाला है वह भी पाकिस्तान में वही कर रहा है जो देवबंदी मुसलमान चाहते हैं। फिर, तालिबान और लश्कर दो ऐसे समूह हैं जिन्हें आईएसआई का खुला समर्थन हासिल है और दोनों ही कम से कम तब तक शांत नहीं बैठना चाहते जब तक पूर्वी पाकिस्तान और पश्चिमी पाकिस्तान के बीच बसा भारत इस्लाम कबूल न कर ले।

पंजाब की शाहबाज सरकार ने जिस तरह से लश्कर-ए-झांगवी को मदद किया है और बदले में झांगवी इलेक्शन में पीएमएल-एन को सपोर्ट करता है उसी तरह हाफिज सईद द्वारा गठित जमात-उद-दावा को भी शाहबाज सरकार ने हर तरह से हमेशा मदद ही की है। पंजाब की शाहबाज सरकार ने अगर झांगवी के प्रमुख को कत्ल के सभी आरोपों में साफ्ट कार्नर लेकर जमानत पर छुड़वा दिया तो जमात उद दावा को 8.6 करोड़ रूपये मदद के नाम पर दे दिये, पूरी तरह सरकारी तौर पर। जमात उद दावा ने पिछले दो सालों में आईएसआई के पूर्व प्रमुख हामिद गुल की मदद से जो दिफा-ए-पाकिस्तान मूवमेन्ट चला रखा है उसकी तीन बड़ी रैलियां अकेले पंजाब प्रांत में हुई और पंजाब की शाहबाज सरकार ने इन रैलियों को सफल बनाने में हर संभव मदद की। यह आईएसआई के हामिद गुल ही थे जिनकी पहल पर नब्बे के दशक में पाकिस्तान में इस्लामी जम्हूरी इत्तेहाद का गठन करके 18 पार्टियां शामिल की गई थी। इन पार्टियों को बड़ी मात्रा में आईएसआई ने फण्ड दिये थे। आईएसआई से पैसा पानेवालों में मियां नवाज शरीफ की पार्टी पीएमएल-एन भी थी और समझा जाता है कि नब्बे के चुनाव में सिर्फ आईएसआई की बदौलत मियां नवाज शरीफ प्रधानंत्री बन सके थे। 1994 में आईएसआई के असद दुर्रानी ने पाकिस्तानी सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देकर स्वीकार किया था कि मियां नवाज शरीफ की पार्टी को आईएसआई की ओर से 35 लाख रूपये कैश में दिये गये थे।

मियां नवाज शरीफ की पीएमएल-एन और हामिद गुल के रिश्तों की मिठास का ही नतीजा है कि इस बार भी आम चुनाव में हाफिद सईद के जमात उद दावा ने मियां नवाज शरीफ की पार्टी को अपना सपोर्ट किया है। दिफा-ए-पाकिस्तान को हामिद गुल खुलकर सपोर्ट कर रहे हैं। दिफा-ए-पाकिस्तान में जो 36 संगठन और समूह शामिल हैं उसमें सिपाह-ए-शहाबा और हरकत-उल-मुजाहिदीन तो है ही, लश्कर-ए-झांगवी के संस्थापक मलिक इशाक का वह दल 'अहले सुन्नत वल जमात' भी है जिसके साथ पीएमएल-एन ने चुनाव पूर्व गठबंधन करने की बात कही थी। जाहिर है, पाकिस्तान की जनरल असेम्बली इलेक्शन में नवाज शरीफ की भारी जीत के पीछे पाकिस्तान की आवाम तो है ही वे जमातें भी शामिल हैं जो आतंकी गतिविधियों के लिए जानी जाती हैं।

पंजाब वैसे भी पाकिस्तान में आतंक पैदा करने की सबसे उपजाऊ धरती है। जेहाद के लिए मुजाहिद तैयार करने की फैक्टरी सबसे अधिक पंजाब से ही चलाई जाती है। दीनी तालीम पर देवबंदी मुसलमानों का कब्जा, सेना तथा आईएसआई में पंजाबियों की बहुलता के कारण आतंक और पंजाबियत का जो गहरा रिश्ता विकसित होता है उसकी बदौलत पंजाब अपने आप आतंकियों को पैदा करनेवाली नर्सरी में तब्दील हो जाता है।

आतंक के इस इस पनाहगाह पंजाब का अभी तक सबसे बेहतर इस्तेमाल नवाज शरीफ की पार्टी पाकिस्तान मुस्लिम लीग ने ही किया है। 2007 में पाकिस्तान वापस लौटने के बाद मियां नवाज शरीफ के भाई शाहबाज शरीफ साल भर के भीतर 2008 में ही फिर से पंजाब प्रांत में वापसी कर लेते हैं तो सिर्फ इन्हीं आतंकी समूहों के ही बल पर। खुद मियां नवाज शरीफ खुलेआम इन आतंकियों का समर्थन भी करते रहे हैं और कई मौकों पर इनके प्रमुखों के साथ नजर भी आते रहे हैं (देखें फोटो)। इसलिए अगर मियां नलाज शरीफ बहुत शराफत से यह कहते हैं कि वे आतंकी गतिविधियों पर रोक लगाएंगे और भारत जैसे पड़ोसी देश के साथ संबंधों को मधुर बनाएंगे, तो यह कूटनीतिक रूप से पूरी तरह सही होने के बाद भी राजनीतिक रूप से पूरी तरह गलतबयानी है। पंजाब सहित पूरे पूर्वी पाकिस्तान में उन्हें जो समर्थन और सीटें हासिल हुई हैं उसमें अगर प्रगतिशील और आधुनिक मुसलमानों के वोट भी शामिल हैं तो उन कट्टरपंथियों ने भी शिया समुदाय के जरदारी की  बजाय देवबंदी सुन्नी मियां नवाज शरीफ को ही सपोर्ट किया हैं, जो कि पाकिस्तान में सबसे ताकतवर दीनी जमात है।

सत्ता संभालने के बाद व्यापारी शरीफ सिर्फ व्यापार और मधुर रिश्ते कायम करने पर कायम रहने की कोशिश करेंगे तो वे आतंकी जमातें एक बार फिर शरीफ को साफ कर देंगी जिनकी मदद से जीतकर वे सत्ता के शिखर तक पहुंचे हैं। अगर अमेरिका से मधुर रिश्तों की बात करते हुए भी वे द्रोन हमलों को रोकने की वकालत कर रहे हैं तो उनकी 'मजबूरी' साफ झलक रही है। जहां तक पड़ोसी भारत का सवाल है तो मियां नवाज शरीफ के लिए भारत विरोधी आतंकी समूहों पर लगाम लगा पाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन होगा। हो सकता है नवाज शरीफ भी अपने भाई शाहबाज की तर्ज पर यह कह दें कि आतंकी समूहों को मदद करने से कम से कम उनका इलाका इन हमलावरों से सुरक्षित रह जाएगा लेकिन ऐसा हो नहीं पाता है। 2008 से 2013 के दौरान सिर्फ सिंध और बलोचिस्तान ही आतंकी गतिविधियों का गवाह नहीं बना है। पंजाब में भी अल्पसंख्यकों के खिलाफ जमकर आतंकी वारदातों को अंजाम दिया गया है। अल्पसंख्यक ईसाईयों और मुसलमानों पर जमकर हमले हुए हैं। शाहबाज के शासनकाल में पंजाब में अल्पसंख्यकों के खिलाफ कट्टरपंथियों के जो हमले हुए हैं उसमें पिछले पांच साल में कम से कम 200 लोगों की जान गई है और हजारों घर बेघर कर दिये गये। पंजाब में होनेवाले आतंकी हमलों की जद में मुख्यरूप से ईसाई, अहमदी और शिया मुसलमान ही रहे हैं। लेकिन पांच सालों में पंजाब की शाहबाज सरकार ने दोषियों को दंडित करने की बजाय हमेशा ही उन्हें महिमामंडित किया। गोजरा में एक ईसाई परिवार के आठ सदस्यों को जिन्दा जला देनेवाली घटना में जिन 72 लोगों के खिलाफ एफआईआर की गई थी, पंजाब की शाहबाज सरकार ने उन सबको आरोप मुक्त कर दिया। क्या यह आतंकवाद पर लगाम लगाने का संकेत है?

जाहिर है, मियां साहब की अगुवाई में शासन का पंजाब पैटर्न ही अब फेडरल पाकिस्तान में दोहराया जाएगा। अगर छोटे भाई पंजाब के स्तर पर आतंकवाद को पालते पोसते हैं और अपने आपको सुरक्षित रखते हैं तो नवाज शरीफ इससे उलट जाकर कुछ कर लेंगे यह सोचना थोड़ा दूर की कौड़ी है। कारगिल घुसपैठ को लेकर नवाज शरीफ कुछ भी कहें लेकिन क्या कोई मान सकता है कि बार्डर पर इतनी बड़ी मूवमेन्ट हो गई हो और प्रधानमंत्री को पता ही न हो? शरीफ को पता था और संभवत: अंतरराष्ट्रीय बिरादरी की फजीहत और युद्ध से बचने के लिए उन्होंने इसका विरोध किया तो शरीफ सत्ता से ही बेदखल कर दिये गये। फर्ज करिए एक बार फिर वे ही आतंकी समूह भारत के खिलाफ जेहाद में शरीफ की मदद मांगेगे तो क्या नवाज शरीफ उन्हें रोक पायेंगे जिनके समर्थन की बदौलत वे सत्ता में आये हैं? अगर रोकने की कोशिश की तो क्या उनका फिर से वही हश्र नहीं होगा जो 1999 में हुआ था?

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