Wednesday, January 11, 2017

लोकतंत्र को समझना है तो इस भीड़तंत्र को समझिए

​भीड़ का अपना नशा होता है। जब भीड़ आपको घेरती है तो आप मदहोश हो जाते हैं। एक अजीब सा नशा आप पर छा जाता है। आपके भीतर गुणात्मक परिवर्तन आ जाते हैं। फिर आप वह नहीं बोलते जो आप बोलना चाहते हैं। आप वह नहीं करते जो आप करना चाहते हैं। फिर आप वह बोलते हैं जो भीड़ आप से बुलवाना चाहती है। आप वह करते हैं जो भीड़ आपसे करवाना चाहती है। 

यह जो लोकतंत्र है, यह भीड़तंत्र है। हर नेता के आस पास एक भीड़ है। या फिर ऐसा भी कह सकते हैं कि हर भीड़ के पास एक नेता है। वह वही बोल रहा है, जो भीड़ सुनना चाहती है। वह वही कर रहा है जो भीड़ करवाना चाहती है। इस करनेवालों में क्या मोदी, क्या केजरीवाल, क्या मुलायम और क्या ममता। वे कुछ नहीं हैं। वे भीड़ की भाड़ में अकेले चने जैसे हैं। उन्हें लगता है उन्होंने भीड़ को फंसा लिया है लेकिन हकीकत में भीड़ ने उन्हें फंसा रखा है। 

दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की सबसे बड़ी भीड़ के भीतर भांति भांति की भीड़ है। कुछ अवसादी भीड़ तो कुछ अवसरवादी भीड़। कुछ सामंतवादी भीड़ तो कुछ समतावादी भीड़। कुछ सांप्रदायिक भीड़ तो कुछ साम्यवादी भीड़। हर भीड़ के प्रतिलोम में एक भीड़ खड़ी है और हर भीड़ ने अपना एक नेता खड़ा कर रखा है। मजमा लगा है। भाषण हो रहे हैं। तालियां बज रही हैं। वोट बंट रहे हैं। लोकतंत्र खतरनाक हालात में होकर भी खतरे में नहीं है। सब इसी भीड़ की माया है। हर भीड़ दूसरी भीड़ से संतुलन साध रही है। 

भीड़ का अपना एक व्यवस्थित तंत्र है। ऊपर से दिखने में नरमुंडों का झुंड भले ही समझ में न आये लेकिन खुद वह झुंड नासमझ नहीं है। बहुत सधा हुआ तंत्र है। धर्म की भीड़ में भले ही भगदड़ हो जाती हो, सैकड़ों हजारों लोग पलक झपकते काल के गाल मे समा जाते हों लेकिन राजनीति की भीड़ में कभी भगदड़ नहीं होती। वह एक सधा हुआ समुदाय है। अनेकता में एकता लिए हुए। समान रूप से समझदार। 

इसलिए अगर आपको लोकतंत्र समझना है तो इस भीड़ को समझिए। जिस दिन आपको यह भीड़तंत्र समझ में आ जाएगा लोकतंत्र के प्रति आपकी समस्त शंकाओं का समाधान हो जाएगा। नेताओं को समझने से यह लोकतंत्र कभी समझ में नहीं आयेगा।

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