Thursday, October 28, 2010

ठाकरे परिवार में कौन बनेगा सरदार?

महाराष्ट्र की राजनीति में पिछले विधानसभा चुनाव में जो नहीं हुआ वह एक महानगरपालिका के चुनाव में हो रहा है. शिवसेना सुप्रीमो बाल ठाकरे अपने ही भतीजे से उलझ गये हैं. कल्याण-डोंबिवली महानगरपालिका चुनाव में जैसे ही राज ठाकरे ने बाल ठाकरे पर छींटाकसी की, बाल ठाकरे ने पलटकर ऐसा वार किया कि महाराष्ट्र की राजनीति गर्म हो गयी. चुप रहने की बजाय राज ठाकरे ने फिर जवाब दिया और आपसी ठसक परिवार की चौखट से निकलकर राजनीतिक के अखाड़े की जंग बन गयी.

शिवसेना की राजनीति को नजदीक से देखने समझनेवाले लोग बताते हैं कि बाल ठाकरे को यह कत्तई मंजूर नहीं है कि ठाकरे परिवार से राजनीति की दो धाराएं फूटे. पिछले विधानसभा चुनाव में उद्धव ठाकरे ने बाल ठाकरे को विश्वास में लिया था कि वे राजनीति में बेहतर प्रदर्शन करेंगे इसलिए वे (बाल ठाकरे) स्वास्थ्य लाभ करें. चुनाव परिणाम आया तो साफ हो गया कि महाराष्ट्र की राजनीति में राज फैक्टर चल निकला है. सीमित और समेकित अर्थों में ही सही राज ठाकरे चाचा बाल ठाकरे के विकल्प के रूप में उभर रहे हैं. राज ठाकरे का रंग रूप, चाल-ढाल, बोलने की शैली और काम करने का अंदाज बिल्कुल वही है जो बाल ठाकरे का है. इसलिए विधानसभा चुनाव के दौरान राज ठाकरे ने मराठियों के उस खास हिस्से को प्रभावित किया जो बाल ठाकरे का विकल्प खोज रहा था. शिवसेना के लिए यह संकट की सूचना थी.

विधानसभा चुनाव बाद बाल ठाकरे का इलाज शुरू हो गया और जैसे जैसे वे ठीक होने लगे उन्होंने योजनाबद्ध तरीके से राज ठाकरे और मनसे को निशाने पर लेना शुरू कर दिया. उन्होंने मराठी राष्ट्रवाद पर शिवसेना का दोबारा दावा ठोंका और मराठी मानुष को संदेश दिया कि बालासाहेब के राजनीतिक वर्चस्व को चुनौती नहीं दी जा सकती. बीती दशहरा रैली में बाल ठाकरे ने खुलकर राज ठाकरे के खिलाफ मोर्चा खोल दिया और ऐसा मुद्दा उठाया जिसे लगभग महाराष्ट्र की राजनीति में कोई नहीं उठा रहा था. बाल ठाकरे ने कहा कि उद्धव ठाकरे को कार्याध्यक्ष बनाने का प्रस्ताव खुद राज ठाकरे ने किया था, अब भला राज ठाकरे ही मेरे ऊपर बेटों को आगे बढ़ाने का आरोप कैसे लगा सकते हैं? उस वक्त तो नहीं लेकिन एक सप्ताह बाद राज ठाकरे ने कल्याण की एक जनसभा को संबोधित करते हुए जवाब दिया कि यह सच्चाई है कि उन्होंने प्रस्ताव किया था, लेकिन ऐसा करके उन्होंने कुछ गलत तो नहीं किया? बस यही बाल ठाकरे चाहते थे कि राज उनके द्वारा उठाये जा रहे सवालों का जवाब दे.

इसके बाद से बाल ठाकरे अपने संपादकीय में कांग्रेस के साथ ही साथ महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना को भी निशाना बना रहे हैं. नकपोछवां कह दिया और भिखारी की संज्ञा भी दे दी है. जाहिर है बाल ठाकरे जितना अधिक राज ठाकरे को निशाना बनाएंगे राज ठाकरे अपनी खाल बचाने के लिए उतना अधिक आक्रामक होंगे. युद्ध खुलकर होना शुरू हो जाएगा. राज ठाकरे ने अगर शिवसेना के मुखपत्र सामना में शाहरुख खान के विज्ञापन पर सवाल उठाया और कहा कि शिवसेना टेण्डर के पैसे से चलती है तो बाल ठाकरे ने पलटवार करते हुए कहा है कि राज ठाकरे बिल्डर है और अपना धंधा चमकाने के लिए कल्याण डोंबिवली महानगरपालिका का चुनाव जीतना चाहता है. मुंबई से लेकर दुबई तक राज ठाकरे का प्रापर्टी का कारोबार है और मातोश्री रियेलटर्स के बैनर तले उन्होंने प्रापर्टी के धंधे में निवेश कर रखा है. कोई तय आकड़ा तो उपलब्ध नहीं है लेकिन कहते हैं कि करीब 2000 करोड़ रुपये का उनका कंस्ट्रक्शन का कारोबार है. निश्चित तौर पर इस कारोबार की नींव तभी पड़ गयी थी जब राज ठाकरे मातोश्री के अगले बालासाहेब के बतौर तैयार हो रहे थे. लेकिन अब दोनों ही चाचा भतीजे सरेआम एक दूसरे की सच्चाई सामने लाने में लग गये हैं.

आज हर कोई यह जानना चाहेगा कि चाचा भतीजे के इस राजनीतिक पोल खोल का असल उद्देश्य क्या है और इस पोल खोल में आखिरकार फायदे में कौन रहेगा? विधानसभा चुनाव के बाद से बाल ठाकरे चाहते थे कि राज ठाकरे को अपने निशाने पर लें. ऐसा दो कारणों से जरूरी था. राज ठाकरे स्वाभाविक तौर पर बाल ठाकरे के राजनीतिक उत्तराधिकारी के बतौर देखे जा रहे थे. अगर राज ठाकरे सीधे बाल ठाकरे से भिड़ते हैं तो उनकी पहली यह छवि टूटती है कि उनमें बाल ठाकरे का राजनीतिक स्वरूप मौजूद है. हम जिसके अक्स के बतौर पहचाने जाते हैं उसी से झगड़कर अपना अस्तित्व भला कितने दिन बचाकर रख पायेंगे? कल्याण डोंबिवली महानगर पालिका चुनाव ने बाल ठाकरे को वह मौका दे दिया है और राज ठाकरे का भी सब्र टूट गया और कल तक इज्जत की दुहाई देनेवाले राज ठाकरे को चाचा नहीं बल्कि अपना राजनीतिक दल मनसे और उसके लिए सत्ता दिखाई दे रही है. कल्याण महानगरपालिका चुनाव में प्रचार के दौरान बुधवार को उन्होंने साफ कहा कि वे सत्ता चाहते हैं ताकि एक बार वे काम करके दिखा सकें और लोगों में यह विश्वास पैदा कर सकें कि मनसे विकास करना जानती है. लेकिन अपने भाषण में भले ही वे नाली, सड़क बनाने की वकालत करते हों लेकिन मराठी माणुस को खुश करने का कोई मौका नहीं चूकते.

निश्चित तौर पर चाचा भतीजे के बीच शुरू हुई इस राजनीतिक जंग का असली लक्ष्य सत्ता है. मनसे और शिवसेना दोनों ही सत्ता को साधना चाहते हैं लेकिन इसके लिए वे मराठी राष्ट्रवाद को अपने विस्तार का आधार बनाना चाहते हैं. इस मराठी राष्ट्रवाद पर शिवसेना पैंतालिस सालों से काबिज है इसलिए वह अपना दावा इतनी आसानी से नहीं छोड़ेगी. लेकिन राज ठाकरे के पास भी सत्ता तक पहुंचने का और कोई दूसरा रास्ता नहीं है इसलिए वे भी इसी में अपनी हिस्सेदारी चाहेंगे. चाचा भतीजे की इस जंग में निश्चित तौर पर नुकसान में राज ठाकरे रहेंगे क्योंकि वे उसी से लड़ पड़े हैं जिसके हमशक्ल होने का फायदा उठाते रहे हैं लेकिन शिवसेना को भी बहुत फायदा हो जाएगा इसकी उम्मीद कम ही है. शिवसेना के पास फिलहाल दूसरा बाल ठाकरे नहीं है जो उन्हीं की तरह शिवसेना को आगे ले जा सके और राज ठाकरे दूसरी शिवसेना बना लेंगे इसमें संदेह है. राजनीतिक विश्लेषक चाहें तो इस विषय पर और विचार कर सकते हैं कि क्या चाचा भतीजे की इस राजनीतिक जंग में आखिरकार उस मराठी राष्ट्रवाद का ही सफाया तो नहीं हो जाएगा जिसे दोनों ही अपना आधार बनाये रखना चाहते हैं? अगर ऐसा होता है तो कम से कम प्रदेश के दूसरे दल जरूर राहत की सांस लेंगे.

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