Friday, October 23, 2015

शरीफ सरकार के गुड तालिबान

अच्छा! तो शरीफ साहब पंजाबी तालिबान के खिलाफ कार्रवाई करेंगे? अगर आप ऐसा सोच रहे हैं तो आप ऐसा ख्वाब देख रहे हों जो कभी हकीकत ही नहीं बन सकता. पाकिस्तान में पंजाबी तालिबान का मतलब सेना और सरकारी संगठन का ऐसा गठजोड़ होता है जिसे तोडयने का मतलब है पाकिस्तान टूटने का खतरा पैदा हो जाएगा. क्यों हो जाएगा, इसको समझने के लिए तालिबान की फैक्ट्री को देखना जरूरी है जो पाकिस्तान के पंजाब में चलती है. 

जरा यहां साथ में दी गयी फोटो को गौर से देखिए. तीन लोगों की इस फोटो में दो  चेहरे नजर आ रहे हैं. एक चेहरा कोई अनजाना नहीं है. लेकिन जो चेहरा अनजाना है और ठीक आपकी तरफ देख रहा है वाे उस आतंकी सरगना से बड़ा रसूख रखता है जिसे दुनिया हाफिज सईद के नाम से जानती है.

ये है मौलाना समी उल हक देओबंदी उर्फ मौलाना सैंडविच. मौलाना सैंडविच को पाकिस्तान में फादर आफ तालिबान कहा जाता है. अफगानिस्तान में सोवियत संघ से जंग के लिए जनरल जिया ने आईएसआई के हामिद गुल और कर्नल सुल्तान अमीर तरार की अगुवाई में जो टीम बनाई थी उसने तालिबान की स्थापना के लिए इन्हीं मौलवी को अपना मोहरा बनाया था. मौलाना सैण्डविच न सिर्फ अफगान तालिबान के हेड रहे मुल्ला उमर के उस्ताद रहे बल्कि हाफिज सईद के इस्लामिक आका यही हैं.

मौलाना सैंडविच पाकिस्तान के दारुल उलुम हक्कानिया (देओबंदी) के चांसलर हैं जहां से अफगान तालिबान, हक्कानी नेटवर्क और लश्कर ए तोएबा पैदा हुए हैं. दारुल उलूम हक्कानिया इस्लाम का वही जिहादी पाठ पढ़ाता है जो पढ़ते ही तालिब तालिबान बन जाता है. बेनजीर भुट्टो की हत्या में दारुल उलूम हक्कानिया का नाम आ चुका है जो बहुत हद तक सही लगता है. क्योंकि यह बेनजीर भुट्टो ही थीं जिन्होंने पीएम रहते आईएसआई के भीतर तालिबानी मूवमेन्ट पर रोक लगाने की कोशिश की थी.

बिना शक दारुल उलूम हक्कानिया ही पाकिस्तान में तालिबानी आतंकवाद का मदर इंस्टीट्यूशन है जिसके हेड मौलाना सैंडविच है. आप मुल्ला उमर को मार दीजिए, हाफिज सईद को मार दीजिए उससे क्या फर्क पड़ेगा? जब तक दारुल उलुम हक्कानियां जैसे इस्लामिक मदरसे और मौलाना सैंडविच जैसे चांसलर जिन्दा हैं पाकिस्तान में तालिबान पैदा होते रहेंगे. ये पाकिस्तान के वही गुड तालिबान हैं जो सरकारें बनाने बिगाड़ने का खेल करते हैं. इनका खेल बिगाड़ने की कोशिश की गयी तो शरीफ का खेल बिगड़ते देर नहीं लगेगी.

वैसे भी शरीफ सरकार से यह उम्मीद करना कि वे पंजाबी तालिबान को खत्म करने का काम करेंगे शेखचिल्ली के किस्से जैसी हकीकत है. जिन पंजाबी तालिबानियों की मदद से वे सरकार में आये हैं उनके खिलाफ कार्रवाई करेंगे? भूल जाइये.

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