Wednesday, October 12, 2011

माया की छाया

उत्तर प्रदेश के एकमात्र कमाऊ और उपजाऊ शहर नोएडा में मायावती ने अपनी दमदारी से दस्तक दे दी. लखनऊ को मायामय बनाने के बाद शुक्रवार को वे नोएडा आईं और करीब सात सौ करोड़ रूपये के घोषित लागत से तैयार दलित प्रेरणा स्थल का उद्घाटन कर दिया. लखनऊ से दूर नोएडा मायावती के जज्बातों के ज्यादा करीब है क्योंकि खुद मायावती इसी इलाके की मूल निवासी हैं इसलिए दलित प्रेरणा स्थल पर अपने मां और बाप की मौजूदगी और उनके चेहरे पर छाई खुशी ने मायावती को मुख्यमंत्री होने का ज्यादा बड़ा सुख प्रदान किया. 

मायावती कांशीराम को खोज हैं. इसलिए पत्थरों के स्मारक बनाते समय मायावती ने अपने राजनीतिक गुरु कांशीराम को सबसे प्रमुख स्थान दिया है. लखनऊ में कांशीराम स्मारक के बाद नोएडा में दलित प्रेरणा स्थल भी कांशीराम को ही समर्पित है. लेकिन आप चाहे लखनऊ जाएं या नोएडा आपको क्रमिक रूप से माया की छाया कांशीराम से बड़ी होती दिखाई देगी. नोएडा में मुख्य स्मारक भवन में जो तीन मूर्तियां लगाई गई हैं वे उस तर्ज पर हैं जैसे पहले दूसरे और तीसरे नंबर के विजेताओं की घोषणा करते समय एक नंबर को सबसे ऊपर तथा दो और तीन नंबर को दाएं बाएं खड़ा कर दिया जाता है. दो नंबर हमेशा दाहिने होता है और तीन नंबर बाएं. इस क्रम में अगर नोएडा के दलित प्रेरणा स्थल को देखें तो निर्विवाद रूप से पहले नंबर पर डॉ भीमराव अंबेडकर हैं. लेकिन दूसरे नंबर पर कांशीराम नहीं बल्कि मायावती हैं. कांशीराम की मूर्ति तीसरे नंबर पर है. लखनऊ हो या फिर नोएडा मायावती की मूर्ति हर जगह कांशीराम के दाहिने खड़ी की गई है.
नोएडा के दलित प्रेरणा स्थल का निर्माण उत्तर प्रदेश सरकार ने किया है लेकिन मूर्तियों की डिजाइन राम सुतार ने किया है. ये वही राम सुतार हैं जिन्होंने अयोध्या में राम मंदिर का मॉडल तैयार किया है लेकिन उनका वह मॉडल क्योंकि सांप्रदायिक है इसलिए वह जमीन पर खड़ा नहीं हो सका. लेकिन मायावती का माडल दलित उत्थान का मॉडल है इसलिए उसके लिए सरकार ने अपना खजाना खोलकर अपने कार्यकाल में काम पूरा करवा लिया. राम सुतार को इतनी छोटी सी तकनीकि बात समझ में नहीं आई होगी, कहना मुश्किल है. लेकिन मूर्ति स्थापना में खुद को दाहिने रखकर अपने गुरू मान्यवर कांशीराम को बाएं धकेल देना बिना मायावती की इच्छा के संभव नहीं था. जाहिर है, मायावती जो दलित इतिहास गढ़ रही हैं उसमें वे कांशीराम से आगे दिखना चाहती हैं. उनकी राजनीति में यह दिख चुका है. दलित नीति में अब दिख रहा है.

जो लोग मायावती की मूर्ति परियोजनाओं को मजाक में लेते हैं या इसे किसी जिद्दी नेता के सनक की संज्ञा देते हैं वे थोड़ा दूर तक नहीं देख पा रहे हैं. मायावती जो कर रही हैं उसका दूरगामी असर जानती हैं. मायावती का यह आरोप सही है कि युमना का दक्षिणी किनारा न जाने कितनी समाधियों से भरा पड़ा है लेकिन वहां बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर के लिए कोई जगह नहीं है. वे जिस जगह की ओर इशारा कर रही हैं वहां महात्मा गांधी की समाधि से लेकर राजीव गांधी तक की समाधियां हैं. लेकिन समाधियों की इस संगम स्थली पर भीमराव अम्बेडकर के लिए कोई जगह नहीं छोड़ी गई. ऐसे में मायावती ने यमुना का पूर्वी किनारा पकड़ा और नदी के इस पार दिल्ली में अगर नेहरू गांधी परिवार की चलती है तो उस पार उन्होंने अपनी चलाई तथा बाबा साहेब को जगह दिलवाई.

भीमराव अम्बेडकर के साथ ही इस दलित प्रेरणा स्थल पर कई दलित चिंतकों और नायकों को स्थापित किया गया है जिसमें कबीर, नारायण गुरू, गुरू घासीदास, ज्योतिबा फुले, बिरसा मुंडा से लेकर कांशीराम और खुद मायावती भी शामिल हैं. इसमें कोई दो राय नहीं कि मायावती द्वारा दलितों के बनाया गया यह मंहगा प्रेरणा स्थल निश्चित रूप से स्वागत योग्य कदम है लेकिन इस दलित प्रेरणा स्थल पर मूर्तिवत रूप में उनकी अपनी खुद की मौजूदगी दलितों को सम्मान दिलाने के उनके प्रयास को कमतर कर देता है. क्या यह अच्छा नहीं होता कि उनसे प्रेरित अगला कोई दलित मुख्यमंत्री उनके लिए वह काम करता जो वे दलित नायकों के लिए कर रही हैं. लेकिन शायद खुद मायावती को भी इस बात का भरोसा और विश्वास नहीं है इसलिए कुछ जुनूनी लोगों की तरह वे अपने हाथ से अपना श्राद्ध करने जैसे कर्म को अंजाम दे रही हैं.

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