Friday, February 3, 2012

टूजी घोटाले के टूटी हुई कड़ियां

टूजी स्पेक्ट्रम घोटाले पर सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका पर फैसला देते हुए अदालत ने बहुत महत्वपूर्ण टिप्पणी की. यह टिप्पणी सॉलिसिटर जनरल की इस दलील पर आया कि कार्यपालिका के नीति निर्धारण के क्षेत्र में न्यायपालिका का हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए. इस पर अदालत ने टिप्पणी की कि "राष्ट्र की संपत्तियों की रखवाली का जिम्मा सबका है. इसलिए राष्ट्रीय संपत्तियों का इस्तेमाल राष्ट्र के लिए होना चाहिए, इसका फायदा कुछ निजी लोगों को नहीं पहुंचाया जाना चाहिए. "

टूजी स्पेक्ट्रम घोटाले में सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी महत्वपूर्ण है. टूजी स्पेक्ट्रम आवंटन घोटाले में सारा झगड़ा इसी बात का है कि निजी घरानों को लाभ पहुंचाने के लिए स्पेक्ट्रम आवंटन नीति में मनमानी बदलाव किये गये और कौड़ियों के दाम में अनमोल स्पेक्ट्रम टेलिकॉम कंपनियों को बांट दिये गये. मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा. सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश देने शुरू किये. उन निर्देशों के आधार पर सीबीआई को केस रजिस्टर करना पड़ा और उसके बाद क्या कुछ हुआ उसको पूरा देश जानता है. अपने इस आदेश के साथ कि जो लाइसेन्स तत्कालीन संचार मंत्री ए राजा द्वारा आवंटित किये गये थे उन्हें कैंसिल किया जाए और उन कंपनियों पर फाइन लगाया है जिन्होंने गड़बड़झाला करके स्पेक्ट्रम हासिल किया था.

गड़बड़झाले में शामिल सबसे बड़ी कंपनी है एटिसलाट डीबी टेलिकॉम. यह वही कंपनी है जिसके मुखिया शाहिद बलवा तिहाड़ में लंबा वक्त बिताकर मुंबई लौट गये हैं. डीबी रियलिटी के नाम से रियल एस्टेट का कारोबार करनेवाली इस कंपनी ने दुनिया के दूसरे सबसे बड़े मोबाइल मार्केट में इस उम्मीद से कदम रखा था कि वे उसी तरह से भारतीय टेलिकॉम मार्केट में घुसपैठ कर लेंगे जिस तरह से रिलायंस ने किया था. एटिसलाट दुनिया के 19 देशों में मोबाइल सेवा देती है और दुनिया में उसके करीब 10 करोड़ ग्राहक है. जाहिर है कंपनी का भारत में प्रवेश व्यावसायिक उम्मीदों से भरा था. स्पेक्ट्रम आवंटन घोटाले में पकड़ में आने से पहले कंपनी ने मुंबई और दिल्ली में चीयर्स मोबाइल के नाम से अपनी सेवाएं देना शुरू भी कर दिया था. उसे आगे चलकर 15 सर्किल में अपनी मोबाइल टेलिफोनी मार्केट का विस्तार करना था. लेकिन इसी बीच घोटाले का बवंडर उठ खड़ा हुआ और कंपनी की सारी योजनाएं धरी की धरी रह गईं. अब सुप्रीम कोर्ट ने इस कंपनी पर पांच करोड़ का जुर्माना लगाया है और पूर्व में आवंटित लाइसेन्स कैंसिल कर दिया है.

इसी तरह एक और बड़ी कंपनी यूनीनॉर भी स्पेक्ट्रम आवंटन घोटाले की दूसरी बड़ी गुनहगार कंपनी है. यूनिनॉर नार्वे की टेलिनॉर और भारत की यूनिटेक कंपनी का संयुक्त उपक्रम है जो देश के कई हिस्सों में मोबाइल टेलीफोनी सेवा दे रही है. इस फैसले से दूसरा बड़ा झटका यूनिनॉर को लगेगा और उसकी सेवाएं बंद हो जाएंगी. एमटीएस नाम से मोबाइल सेवा देनेवाली सिस्टमा श्याम टेलिकॉम भी रूस की सिस्टमा कंपनी के साथ शुरू किया गया संयुक्त उपक्रम था जो इस फैसले से प्रभावित होगी. इस फैसले से प्रभावित होनेवाली एक और कंपनी है विडियोकॉन मोबाइल जो कि विडियोकॉन समूह की कंपनी है. पूर्व में बीपीएल मोबाइल के नाम से सेवा देनेवाली कंपनी जो बाद में लूप मोबाइल हो गयी और जिसका प्राइमरी मार्केट मुंबई है, वह भी इस फैसले से प्रभावित होगी. आदित्य बिड़ला समूह का आइडिया सेल्युलर भी इस फैसले से प्रभावित होगा और उसके कुछ लाइसेन्स निरस्त हो सकते हैं.

टूजी स्पेक्ट्रम आवंटन घोटाला कुछ भी हो लेकिन इसे सामने कोई और नहीं बल्कि बड़ी कंपनियां लेकर आई हैं. इस घोटाले की आड़ में बड़ी कंपनियों ने बड़ी चतुराई से छोटी कंपनियों का लाइसेन्स कैंसिल करवा दिया जिसके बाद अब इन बड़ी कंपनियों को सरकार की ओर से 500 मेगाहर्ज्ट का अतिरिक्त स्पेक्ट्रम मिल जाएगा, जिसकी बड़ी कंपनियों द्वारा जिसकी मांग बहुत दिनों से हो रही थी. जिन कंपनियों का लाइसेन्स रद्द किया गया है वे पुनर्विचार याचिका दाखिल करेंगी लेकिन आगे का फैसला उनको तारनेवाला तभी हो सकता है जब वे नये सिरे से मैदान में आने का वचन दें.


क्या यह महज इत्तेफाक है कि देश में टूजी घोटाले की पर्ते उसी वक्त उघड़नी शुरू हुई जब देश के मोबाइल मार्केट में छोटे खिलाड़ी उतरने लगे? या यह भी महज इत्तेफाक ही है कि सिंगल लाइसेन्स और सिंगल सर्किल की दलीलें भी उसी वक्त दी गई जब ये छोटे खिलाड़ी मैदान में उतर रहे थे? और आज एक बार फिर क्या यह महज संयोग ही है कि टूजी घोटाले पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद शेयर बाजार में एयरटेल, वोदाफोन और आइडिया सेल्युलर के शेयर मजबूत हो गये और उन छोटी कंपनियों के शेयर लुढ़क गये जिन पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद ग्रहण लगने के आसार बढ़ गये हैं. एक घोटाले के नाम पर इतने सारे संयोग क्या यूं ही इकट्ठा हो गये या फिर इकट्ठा किये गये हैं? ये वो टूटी हुई कड़ियां है जिस पर सोच विचार होना चाहिए, लेकिन शायद कोई जनहित याचिका इस बारे में किसी कोर्ट में दाखिल नहीं होगी.

पूरे देश में 1,76,000 करोड़ का घोटाला कहकर प्रचारित किये गये टूजी स्पेक्ट्रम आवंटन में सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से बड़ी टेलिकॉम कंपनियां कहीं से प्रभावित नहीं हो रही हैं. असर उन पर पड़ रहा है जो मोबाइल मार्केट में नये नये उतरे थे. शुरू से भारत में मोबाइल मार्केट में विविधता बनाये रखने की कोशिश की गई है ताकि यहां कुछ कंपनियों का प्रभुत्व न स्थापित हो जाए. लेकिन इस शुरूआती नीति में बाद में बदलाव के संकेत मिलने लगे. बड़े होते मोबाइल बाजार को संगठित करने के लिए सिंगल लाइसेन्सिंग और सर्किल का खात्मे पर भी बातें शुरू हो गई थी. क्या इसे महज संयोग ही माना जाना चाहिए कि टूजी स्पेक्ट्रम घोटाले का केस उस वक्त उठा जब सरकारी स्तर पर सिंगल लाइसेन्स सिस्टम की बयानबाजी शुरू कर दी गई थी? इसे केवल संयोग मानना अतिश्योक्ति होगी.

1994 में जब देश में मोबाइल फोन सेवा की शुरूआत हुई थी तो चार महानगरों में आठ आपरेटरों को लाइसेन्स दिया गया था. आज जबकि देश में 22 मोबाइल सर्किल हैं तब भी हर सर्किल में विविधता बनाये रखने के लिए अलग अलग कंपनियों को लाइसेन्स इसलिए दिये जाते रहे कि बाजार में प्रतिस्पर्धा बनी रहे। लेकिन रिलायंस के इस बाजार में प्रवेश के साथ ही बहुत सारे नियम कायदे बदल दिये गये. रिलायंस को फायदा देने के बहाने सरकार ने नियमों के साथ जो बदलाव किया था उसकी भरपाई के रूप में एयरटेल और हच-एस्सार जैसी कंपनियों ने यूनिफाइड लाइसेन्स और हर सर्किल में जाने की सरकारी इजाजत ले ली. हांगकांग की हचिक्सन टेलिकॉम को ब्रिटिश टेलिकॉम कंपनी वोदाफोन ने खरीद लिया और अब तो एस्सार भी अपनी हिस्सेदारी वोदाफोन से बेच चुका है. एयरटेल, वोदाफोन, रिलायंस, टाटा और आइडिया सेल्युलर ऐसे पांच बड़े आपरेटर हैं जो पूरे देश में मोबाइल सेवा देते हैं. टाटा और रिलायंस को अलग कर दें क्योंकि ये सीडीएमए तकनीकि के आधार पर मोबाइल सेवा देते हैं तो एयरटेल, वोदाफोन और आइडिया संयुक्त रूप से भारत के 57 फीसदी मोबाइल मार्केट पर काबिज हैं. एयरटेल तो देश के मोबाइल मार्केट की बेताज बादशाह है और अकेले एयरटेल के पास मोबाइल मार्केट में 27 फीसदी की हिस्सेदारी है. ये वो कंपनियां हैं जिनको टूजी घोटाले में कोई आंच नहीं आई है. तो क्या पूरा का पूरा टूजी स्पेक्ट्रम घोटाला कुछ बड़ी कंपनियों की पहल पर उठाया गया?

जिन छोटी कंपनियों को शिकार बनाकर सरकार और अदालतें पचास लाख से लेकर पांच करोड का जुर्माना लगाकर न्याय करती दिखाई दे रही हैं क्या उनकी जानकारी में यह बिल्कुल नहीं आया है कि कुछ बड़ी मछलियां बाजार की छोटी मछलियों को खाने के लिए पूरी व्यवस्था का अपने मनमाफिक तरीके से इस्तेमाल कर रही हैं? आज जो दो बड़ी मोबाइल आपरेटर कंपनियां (एयरटेल और वोदाफोन) बाजार की बेताब बादशाह उनकी शुरूआत के वक्त सरकार ने उनको जितनी छूट दी थी, उसके एवज में टूजी स्पेक्ट्रम आवंटन में सरकार ने कोई रियायत नहीं की है. लेकिन टूजी स्पेक्ट्रम घोटाले के सामने आने से पहले जिस तरह से लॉबिस्ट और पीआर कंपनियां सूचनाओं का आदान प्रदान पत्रकारों के साथ कर रही थी उस वक्त ही यह साफ हो गया था कि कुछ बड़े मोबाइल आपरेटर छोटे खिलाड़ियों को मैदान से बाहर कर देना चाहते हैं. इसलिए ब्लाग वेबसाइटों के बाद पहली बार अगर किसी अखबार ने यह मामला उठाया तो वह द पायनियर था. द पायनियर अघोषित तौर पर लालकृष्ण आडवाणी का अखबार है क्योंकि एनडीए शासन के गाढ़े वक्त में इस अखबार के संपादक चंदन मित्र को आडवाणी जी ने मदद की थी. और यह भी महज संयोग नहीं हो सकता कि 2009 में लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान आडवाणी एयरटेल कंपनी के मालिक सुनील मित्तल का निजी विमान लेकर पूरा प्रचार अभियान चलाते हैं और चुनाव खत्म होने के बाद पायनियर टूजी घोटाले की परत उधेड़ने लगता है.

एक बार फिर से बड़ी पूंजी लगाकर मैदान में उतरना इन कंपनियों के वश में नहीं होगा और अंतत: इन्हें बाजार से जाना ही होगा. इन छोटी कंपनियों के बाजार से हटने के बाद बाजार में कुछ बड़ी मछलियां ही शेष रहेंगी और जैसे चाहेंगी वैसे बाजार को संचालित करेंगी. तो क्या, सुप्रीम कोर्ट की महान टिप्पणी को हम इसी अर्थ में ले कि राष्ट्र की संपत्तियों राष्ट्र के लोंगों के लिए हैं, निजी हाथों में देने के लिए नहीं? या फिर कहानी कुछ और है जिसे हम शायद कभी जान ही न पायें? पर अब सुप्रीम कोर्ट ने भी अपना निर्णय सुना दिया है, इसलिए इस महाघोटाले की महासाजिशें और इसके पीछे के बड़े खिलाड़ी हमेशा हमेशा के लिए पर्दे के पीछ छिप जाएंगे. इस घोटाले की टूटी हुई कड़िया कभी मिल नहीं पायेंगी और हम शायद पर्दे पर मंचन किये गये इस महाघोटाले की नौटंकी की सच्चाई कभी जान नहीं पायेंगे.

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