Friday, June 3, 2016

तेजस फाइटर के पितामह

नयी सदी की वह 4 जनवरी 2001 की सुबह। बंगलौर के सर्द मौसम में हवा नम थी लेकिन एक जगह ऐसी थी जहां बहुत गर्मजोशी थी। हिन्दुस्तान एयरोनॉटिक्स का एचएएल कैंपस। दिल्ली से रक्षा मंत्री जार्ज फर्नांडीज के साथ दूसरे अफसर और डीआरडीओ चीफ बंगलौर पहुंच चुके थे। १८ साल की मेहनत के परीक्षा की घड़ी आज आ चुकी थी। लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (एलसीए) को आज पहली उड़ान भरनी थी।

एलसीए प्रोग्राम के इंचार्ज और फादर आफ एलसीए डॉ के हरिनारायण बेचैन थे क्योंकि अब तक मीडिया में जो कुछ रपटें आ रही थीं वो एलसीए के प्रोग्राम पर सवाल खड़े कर रही थीं। रक्षामंत्री तक को यह रिपोर्ट भेजी गयी थी कि वे बंगलौर न जाएं क्योंकि यह विमान हवा में उड़ा भी तो कोई गारंटी नहीं कि जमीन पर वापस लौटेगा। भारत पहली बार वह करने जा रहा था जिसकी उससे किसी को उम्मीद नहीं थी। लड़ाकू विमानों का सबसे बड़ा आयातक भारत अपना खुद का बनाया लड़ाकू विमान उड़ाने जा रहा था।

सुबह 10.18 मिनट पर एलसीए ने उड़ान भरी और पहली परीक्षण उड़ान पूरी करके जमीन पर आ गया। जार्ज फर्नांडीज ने सभी वैज्ञानिकों को बधाई दी। देश भर के मीडिया ने यह बताया कि हमने कर दिखाया। वैज्ञानिकों को यह भरोसा होने में थोड़ा वक्त लगा कि उन्होंने कर दिखाया है। नेशनल जियोग्राफिक की एक डाक्यूमेन्ट्री में डॉ के हरिनारायण ने बताया कि उन्हें यह भरोसा होने में थोड़ा वक्त लग गया कि अब हम वो लोग नहीं हैं जो कर नहीं सकते। अब हम वो लोग हैं जो कर सकते हैं।

पंद्रह साल बाद एलसीए तेजस के रूप में भारतीय सेना में शामिल हो गया। डॉ के हरिनारायण भारत की भीड़ में कहीं खो गये लेकिन उनकी मेहनत और आत्मविश्वास ने आज भारत को वह काबिलियत दे दी है कि वह तेजस के आगे जा सकता है। तेजस प्रोग्राम के बाद भारत पांचवी पीढ़ी के जिस स्टील्थ फाइटर जेट पर काम कर रहा है वह कभी संभव नहीं होता अगर तेजस और डॉ के हरिनारायण न होते।

के हरिनारायण एक सामान्य मध्यवर्गीय परिवार से आते हैं। उनका जन्म उड़ीसा में एक ऐसे परिवार में हुआ जहां शिक्षा का स्तर बहुत अच्छा नहीं था। लेकिन पिता फ्रीडम फाइटर थे इसलिए शुरूआती शिक्षा के बाद उन्हें बनारस हिन्दू युनिवर्सिटी में इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए बनारस भेज दिया गया। बनारस में पढ़ाई पूरी करने के बाद वे एयरोनाटिकल इंडस्ट्री की तरफ झुके और आगे की पढ़ाई के बाद वे हिन्दुस्तान एयरोनाटिक्स से जुड़ गये और यहीं पर उन्होंने तेजसे के डिजाइन पर काम शुरू किया। 

डॉ हरिनारायण जैसे हीरो शून्य से पैदा जरूर होते हैं लेकिन शून्य में समाते नहीं हैं। वे अपने जीवन में कुछ ऐसा कर जाते हैं जो शून्य को निर्माण की उर्जा से भर देता है और हमारा हम पर भरोसा थोड़ा और बढ़ जाता है कि हम वो लोग नहीं हैं जो कर नहीं सकते। हम वो लोग हैं जो कर सकते हैं।

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