Saturday, June 11, 2016

अपने ही बनाये चक्रव्यूह में फंसा पाकिस्तान

युद्ध का एक मनोविज्ञान होता है। लेकिन एक मनोविज्ञान का भी युद्ध होता है। आप वास्तविक रूप से कभी मैदान में नहीं उतरते लेकिन युद्ध लड़ते हैं और जीत भी जाते हैं। पाकिस्तान और भारत में अब यही फर्क नजर आ रहा है। युद्ध के मनोविज्ञान में जीनेवाले कबाइली पाकिस्तान के सामने भारत ने मनोविज्ञान के युद्ध की गंभीर चुनौती पेश कर दी है।

पहले कारगिल युद्ध फिर मुंबई हमलों के बाद संभवत: भारत की रणनीति में यह बदलाव आया है कि पाकिस्तान युद्ध के मनोविज्ञान को मनोवैज्ञानिक युद्ध से ही निपटा जा सकता है। यह मनोवैज्ञानिक युद्ध कई स्तरों पर है। इसमें सबसे पहला स्तर है कि पाकिस्तान को अपनी प्राथमिकताओं से ही अलग कर दिया जाए। भारत की सैन्य ताकत मजबूत की जाए और बजाय पाकिस्तान के ट्रैप में उलझने के उसको उसके ही ट्रैप में उलझने के लिए खुला छोड़ दिया जाए। जब पाकिस्तान को यह अहसास होगा कि भारत उनसे आर्थिक और सामरिक रूप से कई गुना ताकतवर हो चुका है तो धीरे धीरे उसका युद्धोन्माद का मनोबल टूटता चला जाएगा। वे बिना लड़े ही हार मानने लगेंगे।

अगर बीते कुछ सालों की गतिविधियों पर नजर डालें तो आपको भारत पाक संबंधों में पाकिस्तान की मनोवैज्ञानिक हार साफ नजर आयेगी। मोदी सरकार आने के बाद जिस तरह से मोदी डोभाल की जोड़ी ने रणनीति अख्तियार की है उससे पाकिस्तान पर भारत के मनोवैज्ञानिक दबाव में बहुत इजाफा हुआ है। पहले अफगानिस्तान और अब ईरान के साथ संबंधों में नयी गर्मजोशी भरकर इस सरकार ने पाकिस्तान को बहुत बड़ी मनोवैज्ञानिक चुनौती दी है। ऐसा नहीं है कि यह कोई नयी नीति है। इन देशों के साथ भारत के कूटनीतिक रिश्ते पुराने हैं लेकिन इस सरकार ने उन रिश्तों में आक्रामक तेजी ला दी है जिसका सीधा असर पाकिस्तान पर पड़ रहा है।

हाल में प्रधानमंत्री मोदी के विदेश दौरों से पाकिस्तान की सियासत में ऐसा भूचाल आया है कि न सिर्फ विदेश मामलों के प्रभारी सरताज अजीज को मीडिया के सामने आकर अपनी उपलब्धियां गिनानी पड़ी बल्कि पाकिस्तान की संसद में भी चिंता जाहिर की गई कि मोदी की आक्रामक विदेश नीति से पाकिस्तान अकेला पड़ता जा रहा है। इस स्थिति से बाहर निकलने के लिए जरुरी है कि पाकिस्तान न सिर्फ अपने पड़ोसी मुल्कों अफगानिस्तान और ईरान से रिश्ते बेहतर करे बल्कि इस्लामिक मुल्कों में बढ़ती भारत की दखल को कम करने के लिए नये सिरे से प्रयास शुरू किये जाएं। सऊदी अरब और यूएई जो कि पाकिस्तान के हमेशा "मददगार" रहे हैं वे भी भारत की तरफ झुक रहे हैं और अब पाकिस्तान चीन के साथ इस पूरे इलाके में अकेला पड़ गया है।

असल में बनने के साथ ही पाकिस्तान ने जो झूठ और मक्कारी की बुनियाद पर फौजी हुकुमत कायम की उसे नाम तो दिया गया लोकतंत्र का लेकिन हकीकत में वहां कभी लोकतंत्र आया नहीं। और इस बात की उम्मीद न के बराबर है कि पाकिस्तान में कभी लोकतंत्र आयेगा। पाकिस्तान पर शासन पंजाबी फौजी हुक्मरानों का ही रहेगा भले ही वे कभी अगली सीट पर बैठकर ड्राइव करें कि पिछली सीट पर बैठकर। पाकिस्तान बनने से पहले भी यह इलाका फौज का ही इलाका था। आजादी से पहले तक ब्रिटिश इंडियन आर्मी के 60 फीसद सैनिक इसी इलाके से भर्ती होते थे। ब्रिटिश इंडिया की सबसे ताकतवर नार्दर्न कमांड इसी इलाके में बनाई गयी थी। पेशावर डिवीजन, रावलपिंडी डिविजन, लाहौर डिविजन, कोहाट ब्रिगेड, बन्नू ब्रिगेड के अलावा वेस्टर्न कमांड में भी वर्तमान पाकिस्तान का दखल होता था। पठान, हजारा, पंजाबी मुसलमान, बलोच ब्रिटिश आर्मी के प्रमुख लड़ाके हुआ करते थे।

इसलिए जो पाकिस्तान बना वह विरासत में वही ब्रिटिश फौज अपने साथ ले गया जिन्होंने कभी सिविलियन पर शासन किया था। जिन्ना की बहार और इस्लाम की फुहार चंद दिनों तक जरूर रही लेकिन धीरे फौज ने पूरे सिस्टम को अपने कब्जे में ले लिया। आज के पाकिस्तान में फौज के दायरे से बाहर कुछ भी नहीं है। शासन प्रशासन, व्यापार, बौद्धिक वर्ग यहां तक कि विदेश नीति भी फौज ही नियंत्रित करती है। फौज के ही लोग ही नीति बनाते हैं और फौज के लोग ही टेलीवीजन पर बैठकर पाकिस्तान की उन नीतियों का समर्थन भी करते हैं। ऐसा भी नहीं है कि पाकिस्तान को यह सब बुरा लगता है। कुछ थोड़े से वर्गों को छोड़ दें तो पाकिस्तान की आम जनता भी फौज के हाथ में ही अपना भविष्य सुरक्षित देखती है। टेलीवीजन की बहसों में भी लोकतंत्र को को पाकिस्तान के लिए खतरा बतानेवाले लोग बड़ी तादात में दिखते हैं। इसका कारण यह है कि एक तो फौज की विरासत दूसरे इस्लाम की समझ दोनों ही लोकतंत्र को खारिज करते हैं। अगर फौज गलती से लोकतंत्र की बात कर भी दे तो उसकी इस्लाम के हवाले से आलोचना शुरू हो जाती है।

इसलिए ऐसे पाकिस्तान ने लंबे समय तक भारत को बंधक बनाए रखा। भारत की लोकतांत्रिक और अहिंसक समझ हर वक्त पाकिस्तानी फरेब और झूठ के सामने कमजोर पड़ जाती थी। अभी भी पाकिस्तान के झूठ और फरेबी चरित्र में रत्तीभर भी बदलाव नहीं आया है लेकिन अब वे अपने उसी झूठ और फरेब में बुरी तरह फंसते जा रहे हैं जो उन्होंने हमेशा भारत के लिए बोला था। अमेरिका जैसे मुल्क को यह बात समझ में आ गयी है कि पाकिस्तानी शासन प्रशासन मूलत: फ्रॉड लोगों के हाथ में है जो मुजाहिद के नाम पर लिये जाने हथियार को तालिबान के हाथों में दे देते थे। झूठ और मक्कारी का जो चरित्र पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ विकसित किया था अब वही चरित्र उसका सबसे बड़ा दुश्मन बन गया है।

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