कोटा हरिनारायण आज जहां कहीं भी होंगे, बहुत खुश होंगे। उनका "बच्चा" सेना की सेवा में शामिल हो गया। सीरियल प्रोडक्शन सीरिज के दो लड़ाकू विमान तेजस मार्क-1 को लेकर आज पहले स्कवार्डन का गठन हो गया। वायुसेना ने पहले ही तेजस के स्वागत के लिए सारी जरूरी तैयारियां कर ली हैं और ऐलान किया है जैसे जैसे तेजस की डिलिवरी मिलती जाएगी वे सुविधाओं में विस्तार करते जाएंगे। अभी हिन्दुस्तान एयरॉनॉटिक्स लिमिटेड सालाना छह तेजस का उत्पादन कर रहा है जिसे अगले दो साल में बारह तेजस सालाना करने की योजना है। इसलिए तेजस का पूरा बेड़ा तैयार होने में अभी भी कम से कम एक दशक का समय लगेगा लेकिन तीन दशक की कोशिशों ने आज अपने अंजाम को हासिल कर लिया।
स्वेदशी जंगी विमान बनाने का सपना एयरफोर्स ने उसी दिन देख लिया था जिस दिन देश आजाद हुआ था। उसकी पहली कोशिश कुर्त टैंक के 'मारुत' डिजाइन से शुरू हुई लेकिन यह प्रयोग कुछ विदेशी हथियार लॉबी और कुछ तकनीकि के तेजी से बदलते दौर में बहुत जल्द गायब हो गया। इस विमान को इसकी उम्र से पहले रिटायर कर दिया गया। वायुसेना ने अपनी निर्भरता मिग-२१ और मिग-२७ विमानों पर बढ़ा दी। इकहत्तर की भारत पाक जंग के बाद वायुसेना ने विदेशों से बड़ी संख्या में फाइटर जेट खरीदे जिसमें मिराज-२०००, जगुआर स्पेशकैट जैसे चौथी पीढ़ी के उन्नत विमान शामिल थे लेकिन मुख्यरूप से उसकी निर्भरता सोवियत संघ के मिग विमानों पर ही थी। लेकिन जैसा कि दुनियाभर की एयरफोर्स इंडस्ट्री में होता है यहां भविष्य की तैयारियां बहुत पहले शुरू कर दी जाती हैं, इसलिए अस्सी के दशक में आधिकारिक रूप से स्वदेशी हल्केे लड़ाकू विमान की बुनियाद रख दी गयी। इसे लाइट कॉबैट एयरक्राफ्ट का नाम दिया गया।
मूल योजना थी कि बीस साल के भीतर इन विमानों को सेना में शामिल कर लिया जाएगा। १९८३ से अगर देखें तो यह विमान परियोजना एक दशक से भी ज्यादा देरी से पीछे चल रही है। लेकिन अगर आप भारत की हथियार लॉबी की सक्रियता को जरा भी समझते हैं तो आपको इसी बात पर संतोष हो जाएगा कि यही क्या कम है कि हल्के लड़ाकू विमान बनाने की यह परियोजना जिंदा बची रह गयी और आज उसको विधिवत सेना में शामिल किया जा रहा है। हथियार लॉबी की पूरी कोशिश थी यह विमान बनने न पाये। बन जाए तो उड़ने न पाये और अगर उड़ जाए तो फिर सेना में शामिल न होने पाये। हथियार लॉबी की आखिरी कोशिश हाल फिलहाल तक दिखाई दी है जब मीडिया में तेजस को सेना के लिए नाकाफी बताया गया। लेकिन यहां कम से कम देश सौभाग्यशाली रहा है कि अटल, मनमोहन और मोदी सरकार के तीनों रक्षामंत्री मजबूती के साथ तेजस के साथ खड़े रहे और सेना को तेजस के लिए राजी करने में कामयाब रहे। सेना की जो कुछ शिकायतें तेजस से थीं वह आनेवाले कुछ सालों में दूर करके तेजस मार्क-१ए का मॉडल विकसित किया जाएगा जो वर्तमान मॉडल से ज्यादा उन्नत होगा।
लड़ाकू विमानों के लिए यह कोई नई बात नहीं है। विमान का ढांचा एक बार विकसित हो जाने के बाद समय के साथ उसमें बदलाव किये जाते हैं ताकि वे लंबे समय तक सेना का साथ दे सकें। लेकिन वर्तमान स्वरूप में भी तेेजस कहीं से कमतर नहीं है। यह दुनिया का सबसे हल्का लड़ाकू विमान है। हवा में इसकी काबिलियत किसी भी और चौथी पीढ़ी के मुकाबले कमतर नहीं है। बहरीन एयर शो में तेजस ने अपने प्रदर्शन से साबित कर दिया कि हवा में यह किसी भी दूसरे विमान के मुकाबला उतनी की तत्परता से कर सकता है जितना कि आज की पीढ़ी के विमान कर रहे हैं। हवा से हवा में और हवा से जमीन पर मार करने की क्षमता के कारण यह फाइटर और बॉम्बर दोनों ही भूमिकाएं निभा सकता है। अत्याधुनिक फ्लाई बाई वायर तकनीकि का कमाल है कि 3100 परीक्षण उड़ान के दौरान एक भी विमान दुर्घटना का शिकार नहीं हुआ। यह अपने आप में पहली बार विकसित किये गये किसी परीक्षण विमान के लिए बड़ी उपलब्धि है। लेकिन इन सबसे आगे इसकी खूबी यह है कि यह हिमालय की ऊंची चोटियों पर भी कार्रवाई करने में सक्षम है जहां जगुआर या मिराज २००० जैसे अग्रिम पंक्ति के विमान कारगिल युद्ध के दौरान कमजोर पड़ गये थे।
निश्चित रूप से तेजस न सिर्फ भारत की एक बड़ी उपलब्धि है बल्कि तीस सालों की मेहनत मशक्कत ने भारत के सामने लड़ाकू विमानों का एक नया क्षेत्र खोल दिया है जहां अभी तक हम सिर्फ आयातक थे। तेजस विकास कार्यक्रम के लिए न सिर्फ एयरॉनिटकल डेवलमेन्ट एजंसी अस्तित्व में आयी जो पूरी तरह से जंगी विमानों के डिजाइन और निर्माण को समर्पित है बल्कि देशभर में एक तकनीकि विकसित करने में मदद मिली जिसका देश को दूरगामी फायदा होगा। तेजस के लिए ६५ फीसदी से अधिक विकास और निर्माण का कार्य देश के भीतर किया गया जिससे यह पूरा एविएशन सेक्टर विकसित हुआ है। यह बात सही है कि तेजस के लिए कावेरी इंजन का कार्यक्रम सफल नहीं हो पाया लेकिन भविष्य के लिए फ्रांस के साथ मिलकर कावेरी इंजन को दोबारा विकसित करने की योजना पर काम चल रहा है ताकि अगली पीढ़ी का विमान जब भारत बनाये तो इंजन तकनीकि भी भारतीय हो।
तेजस कार्यक्रम के कारण देशभर में सरकारी और निजी स्तर पर जो संस्थाएं विकसित हुई हैं उसी का परिणाम है कि आज भारत पांचवी पीढ़ी के मिडियम कॉम्बैट एयरक्राफ्ट के डिजाइन और डेवलपमेन्ट पर काम कर रहा है। देशभर के सरकारी और निजी क्षेत्र को मिलाकर करीब दस हजार वैज्ञानिक, तकनीशियन अगली पीढ़ी के विमान को विकसित कर रहे हैं। अगले कुछ सालों में जब यह लड़ाकू विमान परीक्षण के लिए उड़ान भरने की शुरूआत करेगा तो निश्चित रूप से भारत दुनिया के कुछ चुनिंदा देशों के साथ खड़ा हो जाएगा जो पांचवी पीढ़ी के स्टील्थ लड़ाकू विमान बनाने की क्षमता रखते हैं। अगर तेजस न होता तो भविष्य की यह परियोजना भी कभी आकार न लेती। तेजस ने बहुत सारी तकनीकि और व्यावसायिक बाधाओं को पार करते हुए अपनी मंजिल हासिल कर ली है लेकिन यह मंजिल सिर्फ शुरूआत है। ४ जनवरी २००१ को तेजस की पहली परीक्षण उड़ान के सफल रहने पर तेजस के पितामह कहे जाने वाले के हरिनारायण ने कहा था, "हम वो लोग नहीं रहे जो कर नहीं सकते। अब हम वो लोग हैं जो कर सकते हैं।" तेजस के विकास ने भारत के एविएशन सेक्टर में वह आत्मविश्वास भर दिया है जिसके बल पर वह लंबी छलांग लगाने के लिए तैयार है।
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