Sunday, July 17, 2016

यूं ही नहीं होता किसी फौजिया का कंदील हो जाना

कुछ लोग कंदील की तुलना राखी सावंत या पूनम पांडे से करते रहे हैं जो ऐसा करते हैं वो न तो कंदील को जानते हैं और न ही उसके साहस को समझते हैं। उसने कभी पब्लिसिटी स्टंट नहीं किया बल्कि जो किया वह पब्लिसिटी स्टंट बन गया। उसके पास कोई फिल्म या टीवी का कैरियर नहीं था। उसने फेसबुक और ट्विटर को अपना जरिया बनाया और देखते ही देखते चर्चा में आ गयी।

सबसे बड़ी बात। वह मुंबई या दिल्ली जैसे मेट्रोपोलिटन में नहीं रहती थी। वह मुजफ्फराबाद में पैदा हुई थी जो कि तालिबानी सोच का गढ़ है और लाहौर कराची उसके शहर थे जहां बुर्का इस्लामिक औरत की पहचान हो गया है। ऐसे कट्टरपंथी माहौल में पैदा होकर उसने अपनी देह पर बम नहीं बांधा लेकिन देह को कट्टरता के खिलाफ बम की तरह ही इस्तेमाल किया। करती क्या थी वो? स्विमिंग पूल में लड़कों के साथ तैराकी करती थी। वीडियो बनाकर अपने मैसेज फेसबुक पर पोस्ट करती थी। कठमुल्लों के स्टिंग आपरेशन करती थी। खुलेआम टीवी पर बैठकर उनके झूठ का नकाब उतार देती थी।

उसके इस जिहाद का असर यह हुआ कि पूरा पाकिस्तानी कट्टरपंथ उसके खिलाफ उठ खड़ा हुआ। टीवी चैनलों पर उसे समझाने की कोशिश की जाती कि वह जो कर रही है वह इस्लाम के खिलाफ है। एक बार तो कराची के एक मशहूर मुफ्ती ने उसे अपने यहां आने की सलाह दी कि उनकी शिक्षाओं से बिगड़ी हुई वीना मलिक रास्ते पर आ गयी हैं और हिजाब निकाब पर्दे की पाबंद हो गयी हैं। अगर कंदील चाहे तो उसे भी इस्लाम की शिक्षाओं का पाबंद कर सकते हैं ताकि वह हिजाब निकाब की दुनिया में वापस लौट सके। उसे घेरने की हर तरह से कोशिश की गयी लेकिन हिरणी की तरह जब वह किसी की पकड़ में नहीं आयी तो उसके फौजी भाई ने ही उसका गला घोंट दिया।

उसकी तुलना किसी से नहीं हो सकती। अपने तरह की वह अकेली बिंदास और बहादुर लड़की थी। अपने बारे में इतनी आत्मनिर्भर कि अपना नाम भी उसने खुद तय किया कि दुनिया उसे किस नाम से जानेगी। फौजिया से अपना नाम बदलकर कंदील बलोच कर लिया। घर परिवार से अलग हटकर एक ऐसे देश में अपना कैरियर बनाने का फैसला किया जहां खुलेआम मर्दों के साफ दफ्तर में काम न किये जाने के फतवे दिये जाते हों। फिर शो बिज तो कोई सोच भी नहीं सकता। लेकिन कंदील ने किया और बहुत बेफिक्र होकर किया।

लेकिन ऐसा नहीं है कि वह यह जानती नहीं थी कि वह क्या कर रही है। वह खूब अच्छे से जानती थी। उसे पता था कि उसके आसपास कैसा कट्टरपंथी समाज है जो मजहब के नाम पर औरतों पर गुलाम बनाने में माहिर है। दुनिया के दूसरे धर्मों में जहां इस स्थिति में समय के साथ बदलाव आया वहीं इस्लाम में मजहब के नाम पर कट्टरपंथ लगातार लोगों पर हावी होता गया। वह उसी कट्टरपंथी मानसिकता से लड़ रही थी इसका उसे खूब अहसास था। 

अपनी बहादुरी और निडरता के मामले में कहीं न कहीं वह मलाला से भी बड़ी शख्सियत थी। मलाला को दुनिया का समर्थन और सपोर्ट मिला लेकिन वह जिस रास्ते पर थी, बिल्कुल अकेली थी। वह कहती थी कि वह लड़कियों को आजाद ख्याल बनना सिखा रही है। लड़कियों पर जो पाबंदियां लगाई जाती हैं वह उसके खिलाफ बोल नही रही थी बल्कि अपने व्यवहार से खारिज करके दिखा रही थी। किसी फौजिया का कंदील हो जाना यूं ही नहीं होता उसके पीछे शोषण का त्रासद इतिहास छिपा होता है। इस शोषण के खिलाफ करोड़ों में कोई एक लड़की कभी कभार कंदील हो पाती है, लेकिन पाकिस्तान जैसे बंद दिमाग वाले मजहबी देश में अब किसी लड़की का कंदील होना अब शायद मुमकिन न हो। लेकिन इतना जरूर होगा कि कंदील की यह कुर्बानी बर्बाद नहीं जाएगी।

No comments:

Post a Comment

Popular Posts of the week