बीटी बैंगन पर पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश को 8 फरवरी को आखिरी
जन सुनवाई करनी थी. वे बंगलौर पहुंचे. वहां लोगों से बात शुरू की. इतने में
एक किसान खड़ा हुआ और उसने जयराम रमेश पर आरोप लगाया कि वे मोनसेन्टों के
हित में बीटी बैंगन को बढ़ावा दे रहे हैं. दो दिन बाद ही जयराम रमेश ने जब
बीटी बैंगन पर अपना बहुप्रतिक्षित फैसला किया तो उस किसान को भी जवाब देने
की कोशिश की कि वे मोनसेन्टों के एजेन्ट नहीं है.
532 पेज की अपनी रिपोर्ट में जयराम रमेश ने बीटी बैंगन के उत्पादन पर अस्थाई रोक लगाने की सिफारिश की. उनकी इस सिफारिश से हो सकता है उस किसान को यह अहसास हो गया हो कि जयराम रमेश वास्तव में मोनसेन्टों के लिए काम नहीं कर रहे हैं लेकिन अब छिपे तौर पर जो लोग ऐसी कंपनियों के लिए काम करते हैं, बोलने की बारी उनकी थी. अगले दिन सभी बड़े अंग्रेजी अखबारों ने जयराम रमेश को निशाने पर ले लिया. हिन्दुस्तान टाइम्स, टाइम्स आफ इण्डिया ने एकतरफा अपने लाडले मंत्री जयराम रमेश पर हमलाा करना शुरू कर दिया. शायद इन अंग्रेजी अखबारों को यह उम्मीद नहीं थी कि आईआईटी मुंबई का ग्रेजुएट इतना 'दकियानूसी' और 'अवैज्ञानिक' फैसला कर लेगा. इन अखबारों ने अपने संपादकीय और विशेष लेखों के द्वारा जयराम रमेश को दोषी करार देते हुए कहा कि ऐसे वक्त में जब देश में तीसरी हरित क्रांति की जरूरत है और पैदावार बढ़ाने के लिए वैज्ञानिक शोध और नजरिये को अपनाने की आवश्यकता है तो जयराम रमेश ने ऐसा प्रतिगामी फैसला कैसे कर लिया?
केवल लिखकर ही विरोध नहीं किया गया. हिन्दुस्तान टाइम्स ने जयराम रमेश को बाकायदा अपने दफ्तर बुलाया और अपने पढ़े लिखे संपादकों द्वारा इतना जलील करवाया कि जयराम रमेश को कहना पड़ा कि रोक अस्थाई है और आगे इस बारे में विचार नहीं किया जाएगा ऐसा नहीं है. हम यह तो नहीं कहते कि हिन्दुस्तान टाइम्स ने मोनसेन्टों के इशारे पर जयराम रमेश को अपने दफ्तर बुलवा लिया था लेकिन एचटी और टाईम्स ने सीधे तौर पर जयराम रमेश पर दबाव बनाने की कोशिश जरूर की है. अंग्रेजीदां सोच समझ वाले लोग मान रहे हैं कि जयराम रमेश ने बीटी बैंगन को तत्काल अनुमति न देकर जयराम रमेश ने गलत काम किया है. भले ही इसके लिए जयराम रमेश पर जनसुनवाई का दबाव रहा हो लेकिन उन्हें फैसला तो मोनसेन्टों के पक्ष में ही करना चाहिए था. अमेरिका की नंबर वन बीज उत्पादक कंपनी मोनसेन्टों पिछले नौ सालों से भारत में बीटी बीजों के ब्यापार में उतरने की कोशिश कर रही है. अपने इस अभियान में सरकारी तौर पर उसे जहां जहां से अनुमति की आवश्यकता थी उसने उन सभी सरकारी विभागों को उपकृत करते हुए अनुमति ले ली. पिछले दो तीन सालों से वह बीटी बैंगन, बीटी टमाटर और बीटी राइस का फील्ड ट्रायल भी कर रही है लेकिन उसके फील्ड ट्रायल का क्या परिणाम है यह उसने लाख दबाव के बाद भी आम आदमी को बताने की जरूरत नहीं समझी. फील्ड ट्रायल के परिणामों को जानने के लिए जब कुछ लोगों ने सूचना आयुक्त से आदेश भी प्राप्त कर लिया तब मोनसेन्टों की भारतीय इकाई माहिको ने दिल्ली हाईकोर्ट से स्टे आर्डर ले लिया जिसमें अपने व्यावसायिक हितों का हवाला देते हुए उसने परिणामों को सार्वजनिक न करने की दुहाई दी. केन्द्र में विज्ञान और तकनीकि मंत्री कपिल सिब्बल भी लगातार मोनसेन्टों के तर्क का ही समर्थन कर रहे थे.
एक तरफ बीटी बैंगन का विरोध होता रहा तो दूसरी ओर माहिको कंपनी की महिमा से सरकारी कार्यालयों में फाइलें कदम दर कदम आगे बढ़ती रहीं. जीईएसी जो कि जैव तकनीकि जनित उत्पादों को मंजूरी देने के लिए जिम्मेदार है उसने भी बीटी बैंगन को पूरी तरह से सुरक्षित माना और सरकार को कहा कि इसे कैबिनेट में मंजूरी दी जा सकती है. जीईएसी से कैबिनेट के बीच जयराम रमेश ने जन सुनवाई करके लोगों की राय जानने का फैसला किया और इसी फैसले ने बीटी बैंगन पर अस्थाई रोक लगा दी. और जन सुनवाईयों का क्या हाल रहा यह कहना तो मुश्किल है लेिकन चण्डीगढ़ में हुई जनसुनवाई के दौरान लगभग 200 किसानों ने बीटी फसलों का समर्थन किया था. बाद में स्थानीय जन संगठनों ने जब उन किसानों के बारे में पता करना शुरू किया तो पता चला कि उन्हें माहिको अपने खर्चे पर जनसुनवाई में लेकर आयी थी. यानी माहिको ने बीटी बैंगन को मंजूरी दिलाने के लिए हर स्तर पर प्रयास जारी रखा. लेकिन 10 फरवरी को जब जयराम रमेश ने अस्थाई रोक का ऐलान किया तो भी माहिको ने बुरा नहीं माना. माहिको ने अपनी प्रेस रिलीज में कहा कि उन्हें पूरी उम्मीद है कि भारत सरकार खेती में शोध को बढ़ावा देगी और आनेवाले वक्त में उसके द्वारा नौ सालों तक किया गया काम निष्फल नहीं जाएगा.
माहिको मोनसेन्टों की सब्सिडरी कंपनी है और मोनसेन्टो अमेरिका की सबसे बड़ी बीज कंपनी. मोनसेण्टो ने पिछले साल अपने तथाकथित शोध पर 980 मिलियन डॉलर खर्च किया. मोनसेण्टो पूरी दुनिया में अपनी उपस्थिति बढ़ाना चाहती है और उसका इस समय सारा जोर एशिया पैसिफिक पर है क्योंकि यहां उसके कुल व्यापार का महज 7 प्रतिशत कारोबार होता है. अमेरिका अब स्थिर बाजार है इसलिए एशिया के बीज बाजार पर कब्जा मोनसेण्टो के लिए भविष्य की चतुराईभरी रणनीतिक चाल है. इसके लिए वे न केवल वैज्ञानिकों को मुंह मांगे दाम पर खरीद रहे हैं बल्कि सरकार के सामने भी ना करने का कोई विकल्प नहीं छोड़ रहे हैं. मोनसेण्टों के इस "पावन कार्य" में मीडिया उनका सबसे बड़ी साथी बनकर खड़ा है. अगर ऐसा न होता तो भारतीय मीडिया, प्रशासन भूले से भी बीटी बैंगन का समर्थन नहीं करता. विरोध करने का आधार केवल तकनीकि नहीं है. यह सिद्धांतरूप में भी सही नहीं है. भारत में बैंगन की ही अकेले ढाई हजार से अधिक प्रजातियां हैं. इनमें से तो बैंगन की कई ऐसी प्रजातियां हैं जिनकी चिकत्सकीय खूबियां हैं. फिर भी जब तक जैव तकनीकि के नाम पर वैज्ञानिक प्रयोग नहीं किये जाएंगे निजी कंपनियों को बीज बाजार में घुसने का मौका नहीं मिलेगा. चिंता किसी कंपनी के रुख से नहीं है. वह तो अपना व्यापार कर रही है और उसे सिर्फ अपने व्यापार के हितों की ही चिंता होगी. लेकिन जो लोग जन सरोकार के प्रतिनिधित्व का दावा करनेवाले लोगों को तो सोचना ही होगा कि आखिर वे किसके साथ खड़े रहेंगे? भारत में अभी भी अन्न और फल सब्जियों के 300 से अधिक बीजों पर जीएम प्रयोग चल रहे हैं. एक अकेले बीटी बैंगन पर अस्थाई रोक लगा देने भर से अगर जयराम रमेश आधुनिक कृषि के दुश्मन करार दे दिये जाएंगे तो फिर बाकी बचे बीजों को उन्हें मजबूरी में मंजूरी दे देनी होगी. जिस दिन ऐसा होना शुरू हो जाएगा, उस दिन क्या होगा? अभी तो सोच पाना भी मुश्किल लग रहा है.
532 पेज की अपनी रिपोर्ट में जयराम रमेश ने बीटी बैंगन के उत्पादन पर अस्थाई रोक लगाने की सिफारिश की. उनकी इस सिफारिश से हो सकता है उस किसान को यह अहसास हो गया हो कि जयराम रमेश वास्तव में मोनसेन्टों के लिए काम नहीं कर रहे हैं लेकिन अब छिपे तौर पर जो लोग ऐसी कंपनियों के लिए काम करते हैं, बोलने की बारी उनकी थी. अगले दिन सभी बड़े अंग्रेजी अखबारों ने जयराम रमेश को निशाने पर ले लिया. हिन्दुस्तान टाइम्स, टाइम्स आफ इण्डिया ने एकतरफा अपने लाडले मंत्री जयराम रमेश पर हमलाा करना शुरू कर दिया. शायद इन अंग्रेजी अखबारों को यह उम्मीद नहीं थी कि आईआईटी मुंबई का ग्रेजुएट इतना 'दकियानूसी' और 'अवैज्ञानिक' फैसला कर लेगा. इन अखबारों ने अपने संपादकीय और विशेष लेखों के द्वारा जयराम रमेश को दोषी करार देते हुए कहा कि ऐसे वक्त में जब देश में तीसरी हरित क्रांति की जरूरत है और पैदावार बढ़ाने के लिए वैज्ञानिक शोध और नजरिये को अपनाने की आवश्यकता है तो जयराम रमेश ने ऐसा प्रतिगामी फैसला कैसे कर लिया?
केवल लिखकर ही विरोध नहीं किया गया. हिन्दुस्तान टाइम्स ने जयराम रमेश को बाकायदा अपने दफ्तर बुलाया और अपने पढ़े लिखे संपादकों द्वारा इतना जलील करवाया कि जयराम रमेश को कहना पड़ा कि रोक अस्थाई है और आगे इस बारे में विचार नहीं किया जाएगा ऐसा नहीं है. हम यह तो नहीं कहते कि हिन्दुस्तान टाइम्स ने मोनसेन्टों के इशारे पर जयराम रमेश को अपने दफ्तर बुलवा लिया था लेकिन एचटी और टाईम्स ने सीधे तौर पर जयराम रमेश पर दबाव बनाने की कोशिश जरूर की है. अंग्रेजीदां सोच समझ वाले लोग मान रहे हैं कि जयराम रमेश ने बीटी बैंगन को तत्काल अनुमति न देकर जयराम रमेश ने गलत काम किया है. भले ही इसके लिए जयराम रमेश पर जनसुनवाई का दबाव रहा हो लेकिन उन्हें फैसला तो मोनसेन्टों के पक्ष में ही करना चाहिए था. अमेरिका की नंबर वन बीज उत्पादक कंपनी मोनसेन्टों पिछले नौ सालों से भारत में बीटी बीजों के ब्यापार में उतरने की कोशिश कर रही है. अपने इस अभियान में सरकारी तौर पर उसे जहां जहां से अनुमति की आवश्यकता थी उसने उन सभी सरकारी विभागों को उपकृत करते हुए अनुमति ले ली. पिछले दो तीन सालों से वह बीटी बैंगन, बीटी टमाटर और बीटी राइस का फील्ड ट्रायल भी कर रही है लेकिन उसके फील्ड ट्रायल का क्या परिणाम है यह उसने लाख दबाव के बाद भी आम आदमी को बताने की जरूरत नहीं समझी. फील्ड ट्रायल के परिणामों को जानने के लिए जब कुछ लोगों ने सूचना आयुक्त से आदेश भी प्राप्त कर लिया तब मोनसेन्टों की भारतीय इकाई माहिको ने दिल्ली हाईकोर्ट से स्टे आर्डर ले लिया जिसमें अपने व्यावसायिक हितों का हवाला देते हुए उसने परिणामों को सार्वजनिक न करने की दुहाई दी. केन्द्र में विज्ञान और तकनीकि मंत्री कपिल सिब्बल भी लगातार मोनसेन्टों के तर्क का ही समर्थन कर रहे थे.
एक तरफ बीटी बैंगन का विरोध होता रहा तो दूसरी ओर माहिको कंपनी की महिमा से सरकारी कार्यालयों में फाइलें कदम दर कदम आगे बढ़ती रहीं. जीईएसी जो कि जैव तकनीकि जनित उत्पादों को मंजूरी देने के लिए जिम्मेदार है उसने भी बीटी बैंगन को पूरी तरह से सुरक्षित माना और सरकार को कहा कि इसे कैबिनेट में मंजूरी दी जा सकती है. जीईएसी से कैबिनेट के बीच जयराम रमेश ने जन सुनवाई करके लोगों की राय जानने का फैसला किया और इसी फैसले ने बीटी बैंगन पर अस्थाई रोक लगा दी. और जन सुनवाईयों का क्या हाल रहा यह कहना तो मुश्किल है लेिकन चण्डीगढ़ में हुई जनसुनवाई के दौरान लगभग 200 किसानों ने बीटी फसलों का समर्थन किया था. बाद में स्थानीय जन संगठनों ने जब उन किसानों के बारे में पता करना शुरू किया तो पता चला कि उन्हें माहिको अपने खर्चे पर जनसुनवाई में लेकर आयी थी. यानी माहिको ने बीटी बैंगन को मंजूरी दिलाने के लिए हर स्तर पर प्रयास जारी रखा. लेकिन 10 फरवरी को जब जयराम रमेश ने अस्थाई रोक का ऐलान किया तो भी माहिको ने बुरा नहीं माना. माहिको ने अपनी प्रेस रिलीज में कहा कि उन्हें पूरी उम्मीद है कि भारत सरकार खेती में शोध को बढ़ावा देगी और आनेवाले वक्त में उसके द्वारा नौ सालों तक किया गया काम निष्फल नहीं जाएगा.
माहिको मोनसेन्टों की सब्सिडरी कंपनी है और मोनसेन्टो अमेरिका की सबसे बड़ी बीज कंपनी. मोनसेण्टो ने पिछले साल अपने तथाकथित शोध पर 980 मिलियन डॉलर खर्च किया. मोनसेण्टो पूरी दुनिया में अपनी उपस्थिति बढ़ाना चाहती है और उसका इस समय सारा जोर एशिया पैसिफिक पर है क्योंकि यहां उसके कुल व्यापार का महज 7 प्रतिशत कारोबार होता है. अमेरिका अब स्थिर बाजार है इसलिए एशिया के बीज बाजार पर कब्जा मोनसेण्टो के लिए भविष्य की चतुराईभरी रणनीतिक चाल है. इसके लिए वे न केवल वैज्ञानिकों को मुंह मांगे दाम पर खरीद रहे हैं बल्कि सरकार के सामने भी ना करने का कोई विकल्प नहीं छोड़ रहे हैं. मोनसेण्टों के इस "पावन कार्य" में मीडिया उनका सबसे बड़ी साथी बनकर खड़ा है. अगर ऐसा न होता तो भारतीय मीडिया, प्रशासन भूले से भी बीटी बैंगन का समर्थन नहीं करता. विरोध करने का आधार केवल तकनीकि नहीं है. यह सिद्धांतरूप में भी सही नहीं है. भारत में बैंगन की ही अकेले ढाई हजार से अधिक प्रजातियां हैं. इनमें से तो बैंगन की कई ऐसी प्रजातियां हैं जिनकी चिकत्सकीय खूबियां हैं. फिर भी जब तक जैव तकनीकि के नाम पर वैज्ञानिक प्रयोग नहीं किये जाएंगे निजी कंपनियों को बीज बाजार में घुसने का मौका नहीं मिलेगा. चिंता किसी कंपनी के रुख से नहीं है. वह तो अपना व्यापार कर रही है और उसे सिर्फ अपने व्यापार के हितों की ही चिंता होगी. लेकिन जो लोग जन सरोकार के प्रतिनिधित्व का दावा करनेवाले लोगों को तो सोचना ही होगा कि आखिर वे किसके साथ खड़े रहेंगे? भारत में अभी भी अन्न और फल सब्जियों के 300 से अधिक बीजों पर जीएम प्रयोग चल रहे हैं. एक अकेले बीटी बैंगन पर अस्थाई रोक लगा देने भर से अगर जयराम रमेश आधुनिक कृषि के दुश्मन करार दे दिये जाएंगे तो फिर बाकी बचे बीजों को उन्हें मजबूरी में मंजूरी दे देनी होगी. जिस दिन ऐसा होना शुरू हो जाएगा, उस दिन क्या होगा? अभी तो सोच पाना भी मुश्किल लग रहा है.
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