Tuesday, September 10, 2013

बहुत बलात्कारी है बलात्कार

बिना शक बलात्कार किसी महिला के साथ किया गया सबसे जघन्य अपराध है। लेकिन क्या इस देश को बलात्कारी साबित करने की कोई गंभीर साजिश चल रही है? पिछले कुछ महीनों में बलात्कार के खिलाफ जो सक्रियता और जागरूकता सामने आई है वह काबिले तारीफ तो है लेकिन अब जिस तरह से इस हर प्रकार के शारीरिक संबंधों को बहुत सफाई से बलात्कार की श्रेणी में रखा जाने लगा है वह इस बात की ओर गंभीर सवाल उठाता है कि क्या इसके पीछे कोई गंभीर साजिश चल रही है। यह जो तथाकथित सर्वे आया है संयुक्त राष्ट्र का वह देश के हर चौथे आदमी को बलात्कारी साबित कर रहा है। ऐसा कहकर वे क्या साबित करना चाहते हैं यह तो वे लोग जानें जो इस अभियान में पूंजी लगा रहे हैं लेकिन इस ग्राफिक में प्रेमी या साथी के साथ किये गये सहवास को भी बलात्कार की श्रेणी में रखा गया है। (जाहिर है सबसे ज्यादा बड़ा ग्राफ उसी का है।) यह निहायत आपत्तिजनक है। अमेरिका और यूरोप में लड़के/लड़कियां डेटिंग करें तो शिष्टाचार यहां ऐसा होता है तो बलात्कार। 


लेकिन सिर्फ साथी प्रेमी के साथ किये गये सहवास को ही बलात्कार नहीं समझाया जा रहा है। संयुक्त राष्ट्र के ये आंकड़े बताते हैं कि कैसे पड़ोसी, मकान मालिक, रिश्तेदार और यहां तक कि पूर्व पति और कुछ मामलों में सौतेला पिता भी बलात्कार करता है। बलात्कार की ऐसा विश्लेषण करते समय अध्ययनकर्ताओं ने एक बात की पूरी तरह से अनदेखी की है। और वह यह कि क्या अनैतिक संबंध को भी बलात्कार की श्रेणी में रखा जा सकता है? अगर आप उन्हीं के आंकड़ों को देखें तो कमोबेश सारे अनैतिक संबंध नजर आते हैं। अगर ऐसे संबंध बलात्कार हैं तो तत्काल उनकी शिकायत क्यों नहीं होती है? निश्चित रूप से ऐसे अनैतिक संबंधों का बाद में पछतावा होता है जिसे इस सर्वे में बलात्कार कहकर परिभाषित कर दिया गया है।

दुनिया के जो देश भारत में बलात्कार को लेकर कुछ ज्यादा ही चिंतित नजर आ रहे हैं उनकी असली चिंता को उनके अपने ही देश में टीन पोर्न के बढ़ते कारोबार से होनी चाहिए। लेकिन संबंधों की कच्ची समझ को वे अपने यहां किसी और तरह से परिभाषित करते हैं लेकिन जब विकासशील देशों की बात आती है तो वे इसे अपराध की श्रेणी में रखकर देखते हैं। अनैतिक संबंधों का पैरोकार न कभी यह समाज रहा है और न ही हुआ जा सकता है। मध्यकाल के भक्ति आंदोलन में कवियों ने उस भीषण दौर में भी पर नारी के प्रति सम्मान बनाये रखने के तरह तरह के उपाय सुझाये थे और इसे गंभीर पाप बताकर इससे दूर रहने की सलाह दी थी। जाहिर है, ये भक्तिकालीन कवि अपनी तरह के एक समाज सुधार को संचालित कर रहे थे जिसमें स्त्री पुरुष संबंधों की नैतिकता को बहुत शीर्ष पर रखा गया था। 


लेकिन अब जो लोग अनैतिक संबंध को अपराध घोषित कर चुके हैं वे लोग इस देश को नष्ट करके ही मानेंगे। हो सकता है एकदम से यह बात सुनकर यह कोरी गप्प नजर आये कि इन सबके पीछे दुनिया के विकसित देशों की अति विकसित योजनाएं हैं लेकिन योजनाएं हैं और यह सब अनायास नहीं है। बलात्कार की भीषण से भीषण परिभाषा गढ़ी जा रही है और यह यह साबित किया जा रहा है कि इस देश में हर पुरुष बलात्कारी है और हर महिला बलात्कार की शिकार है। सब प्रकार के शारीरिक संबंध को सिर्फ बलात्कार की श्रेणी में क्यों घसीटा जा रहा है?

इस पर बहुत विस्तार से सोचने की जरूरत है कि कैसे बलात्कार के नाम पर छद्म बलात्कार का आवरण खड़ा किया जा रहा है और एक साजिश के तहत शारीरिक संबंध बनाने को इस देश का सबसे बड़ा अपराध बनाया जा रहा है। आखिर क्या कारण है संयुक्त राष्ट्र की सांस सीरिया संकट से ज्यादा भारत के बलात्कार संकट पर अटकी हुई है? अमेरिकी एनजीओ और अकादमिक लोग अपने देश की लंपटई की चिंता छोड़ अचानक भारत के बलात्कार को सुधारने का बीड़ा उठाकर क्यों निकल पड़े हैं? भारत में जो लोग बलात्कार के खिलाफ अचानक बड़े भारी आंदोलनकारी बनकर उभर रहे हैं उनको कहां से पैसा मिल रहा है और क्यों?

अमेरिका और यूरोप ने संयुक्त राष्ट्र सहित अनेक एजंसियों के जरिए एशिया की परिवार व्यवस्था को नष्ट करने की जो दीर्घकालिक योजना चला रखी है यह सब उसी का नतीजा है। विवाह में सख्त दहेज कानून के कारण पहले ही यह देश उजाड़ हुआ जा रहा है और शादी समाज का सबसे बड़ा संकट बनता जा रहा है और अब विवाह पूर्व या विवाहेत्तर संबंधों को बलात्कार बताकर बहुत योजनाबद्ध तरीके से इस देश को गे और लेसिबियन बनाने की लंबी साजिश शुरू कर दी गई है।

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