Tuesday, August 2, 2016

कश्मीर में कट्टरपंथ और कम्युनिज्म का नापाक गठजोड़

जिस वक्त ब्रिटिश हुकूमत ने भारत से जाने की तैयारी की उसने "हिन्दू मुस्लिम" समस्या का समाधान करने का भी निश्चय किया। जो हिन्दू मुसलमान एक साथ मिलकर १८५७ की जंग में ब्रिटिश हूकूमत को चुनौती दे चुके थे वही हिन्दू मुसलमान १९४७ आते आते इतनी बड़ी समस्या बन गये थे कि ब्रिटिश हुकूमत बिना उनका समाधान किये अपना उपनिवेश नहीं छोड़ना चाहती थी। उसने हिन्दू मुस्लिम समस्या का जो समाधान दिया वह देश का तीन हिस्सों में बंटवारा था। जो हिस्सा मुस्लिम बहुल था उसे पाकिस्तान बना दिया बाकी भारत को हिन्दुस्तान रहने दिया।

बंटवारे की इस जद्दोजहद में सबसे बड़ी समस्या थे देश के पांच सौ सेे अधिक छोटे बड़े रजवाड़े। बाकी सबने बंटवारे की ब्रिटिश योजना तो स्वीकार कर ली लेकिन इस बंटवारे के वक्त तीन राज्य ऐसे थे जिन्हें यह अधिकार दिया गया कि वे खुद फैसला करें कि वे किसके साथ जाना चाहेंगे। कश्मीर, बलोचिस्तान और हैदराबाद को स्वनिर्णय का अधिकार दिया गया। हैदराबाद में बहुसंख्यक हिन्दू पर निजाम का शासन था जबकि कश्मीर में बहुसंख्यक मुसलमान पर हिन्दू राजा का शासन था। एक और राज्य था जूनागढ़ जिसके बहुसंख्यक हिन्दू जनता की बदौलत मुस्लिम शासक ने खुद को भारतीय गणराज्य का हिस्सा बना लिया। हैदराबाद भी भारत गणराज्य का हिस्सा हो गया और कश्मीर के राजा ने भी भारत में विलय कर लिया। लेकिन पाकिस्तान ने मुस्लिम बहुसंख्यक जनता के आधार पर बंटवारे के तुरंत बाद कश्मीर पर दावा कर दिया और कबाइलियों के जरिए आधे कश्मीर पर कब्जा भी कर लिया।

तब से अब तक कश्मीर इस विवाद में फंसा हुआ कि उसे आत्मनिर्णय का अधिकार नहीं दिया गया जैसा कि उससे वादा किया गया। तकनीकि तौर पर यह दावा ही गलत है कि कश्मीरी जनता को आत्मनिर्णय का अधिकार नहीं दिया गया क्योंकि जिस वक्त बंटवारा हो रहा था उस वक्त कोई जनमत सर्वेक्षण नहीं करवाया गया था। राजा के निर्णय को ही प्रजा का निर्णय मानकर उसे अंतिम मान लिया गया था। हैदराबाद और जूनागढ़ इसका उदाहरण थे। कश्मीर के महाराजा हरि सिंह ने भी पाकिस्तानी हमले से कश्मीरियों को बचाने के लिए भारत से समझौता कर लिया था। इसलिए यह कहना कि कश्मीर को आत्मनिर्णय का अधिकार ही नहीं मिला यह बात सिरे से ही गलत और बेबुनियाद है।

कश्मीर की जनता ने अलगाववाद का रास्ता अख्तियार भी नहीं किया था लेकिन आधा कश्मीर पर कब्जा करने के बाद पाकिस्तान ने पूरे कश्मीर पर कब्जे की जो योजना बनाई उस योजना के तहत उसने कश्मीर में इस्लामिक आतंकवाद को पैदा किया। ईस्ट पाकिस्तान के अलग होने के बाद वेस्ट पाकिस्तान ने एक पॉलिसी बनाई जिसके तहत उसने बहुत सुनियोजित तरीके से कश्मीर में इस्लामिक आतंकवाद का बीजारोपण किया। वह मकबूल भट जो श्रीनगर जेल से फरार होकर गुलाम कश्मीर चला गया था उसने वहां जब कश्मीर की आवाज उठानी चाही तो पाकिस्तान की एजंसियों ने दोबारा कश्मीर में फेंक दिया। लेकिन उसी मकबूल भट को एक हिन्दू की हत्या के जुर्म में जब दिल्ली में फांसी दी गयी तो पाकिस्तान ने उसके आतंकी संगठन को मदद करना शुरू कर दिया। हिजबुल मुजाहीदीन के आतंकियों को पाकिस्तान में ट्रेनिंग दी और पाकिस्तान के आतंकियों को जिहाद के नाम पर भेजना भी शुरू किया जिसने दो दशक तक कश्मीर में आतंक का माहौल बनाकर रखा।

कश्मीर में आतंकवाद के मूल में इस्लाम की वह जिहादी मानसिकता है जो मूल रूप से कश्मीर की है ही नहीं। कश्मीर शैव भूमि है। यहां जो इस्लाम पनपा वह सूफी परंपरा से पैदा हुआ जिसके मूल में लाल देवी हैं। कश्मीर में जितनी मजारें हैं उतना शायद ही हिन्दुस्तान (भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश) के किसी दूसरे हिस्से में हों। लेकिन पाकिस्तान ने कश्मीर की इस धरोहर को नष्ट किया और आजादी के नाम पर जिहादी इस्लाम को बढ़ावा दिया जिसमें गैर मुस्लिम कश्मीरियों के लिए भी कोई जगह नहीं थी। अब जो कश्मीर में आजादी की जंग है वह कश्मीरियत की नहीं बल्कि इसी इस्लामियत की जंग है जिसमें घाटी का एक वर्ग शामिल है।

घाटी की इस इस्लामियत को दिल्ली में कम्युनिस्ट विचारधारा से जुड़े लोग पहले दबे छिपे समर्थन करते थे लेकिन बुरहान वानी की हत्या के बाद पहली बार ऐसा हुआ है कि उन्होंने खुलकर सोशल मीडिया पर "कश्मीर की आजादी" का समर्थन भी किया है और बुरहान वानी के बारे में वह लाइन ली है जो पाकिस्तान के आतंकवादियों की लाइन है। उन्होने प्रतिबंधित आतंकी संगठन हिजबुल मुजाहीदीन को न तो आतंकी संगठन माना है और न ही उसके कमांडर को आतंकवादी। अगर आप भारत के बंटवारे का थोड़ा भी इतिहास और उसमें कम्युनिस्ट पार्टियों की भूमिका को जानते हैं तो इस समर्थन से आपको कोई खास आश्चर्य नहीं होगा। कम्युनिस्ट पार्टियों ने इसी तरह से १९४० के बाद लगातार मुस्लिम लीग और जिन्ना के बंटवारे के फार्मूले का समर्थन किया था और उनके मुस्लिम आंदोलन को अपना वैचारिक समर्थन भी दिया था।

इस बात की भारत में कम जांच पड़ताल हुई है कि भारत के बंटवारे के लिए असल दोषी कौन था? क्या वास्तव में मुसलमान दोषी थे या फिर ब्रिटिश हुकूमत और कम्युनिस्टों ने अपने अपने तरीके से उन्हें बंटवारे के लिए तैयार किया। लेकिन कश्मीर में कम्युनिस्ट विचारकों की संदिग्ध और जिहादी भूमिका को देखते हुए इस बात पर यकीन किया जा सकता है कि भारत के बंटवारे में कम्युनिस्टों ने अहम रोल अदा किया था। हिन्दू मुसलमान के बीच विवाद पैदा करने में जितनी भूमिका ब्रिटिश हुकूमत की थी उससे कम भूमिका कम्युनिस्ट विचारकों की नहीं थी। पाकिस्तान में जो कुछ शोध हुए हैं उससे यह बात साबित होती है कि १९४० के बाद कम्युनिस्ट विचारक पूरी तरह से मुस्लिम कट्टरपंथियों के साथ हो गये थे और उन्होंने बंटवारे को अंजाम भी दिलवाया। यही भूमिका अब वे कश्मीर में निभाना चाहते हैं।

कश्मीर में कम्युनिस्ट विचारधारा से जुड़े लोग अब खुलकर अलगाववादियों का समर्थन कर रहे हैं। वे आतंकवाद को भी जायज ठहरा रहे हैं और कम्युनिस्ट पार्टियों से जुड़े कुछ छात्र संगठन विश्वविद्यालयों में यह भ्रम फैला रहे हैं कि कश्मीर को आत्मनिर्णय का अधिकार मिलना चाहिए। सोशल मीडिया, टेलीवीजन चैनलों और अखबारों के दफ्तरों में बैठे कम्युनिस्ट पत्रकार लोगों को गुमराह कर रहे हैं कि कश्मीर का आतंकवाद असल में सशस्त्र संघर्ष है। वैसा ही सशस्त्र संघर्ष जैसा देश के भीतर नक्सली सरकार के खिलाफ कर रहे हैं। इस सरलीकरण के वक्त वामपंथी पत्रकार भूल जाते हैं कश्मीर में कोई स्थानीय जंग नहीं है। इस जंग का साजो सामान पाकिस्तान से आता है। खुफिया तौर पर चीन भी इसमें शामिल हो तो इससे इन्कार नहीं किया जा सकता क्योंकि इस वक्त चीन के लिए  यह फायदे में है कि वह भारत अमेरिका की बढ़ती नजदीकी के बीच कश्मीर को अशांत करके भारत को अस्थिर रखे।

हालांकि आधिकारिक तौर पर तो इसके कोई प्रमाण नजर नहीं आये हैं लेकिन देश के भीतर जिस तरह से कम्युनिस्ट बिरादरी ने कश्मीर में आतंकवाद का समर्थन किया है उससे शक बढ़ता है कि कहीं चीन भी तो अब इसमें शामिल नहीं? भारत के कम्युनिस्ट बिरादरी की कश्मीर में सक्रियता को देखते हुए किसी भी आशंका से इन्कार नहीं किया जा सकता। मामला सिर्फ आतंकियों के पास से मिलने वाले मेड इन चाइना हथियार भर नहीं है। मामला भारत से कम्युनिस्टों का आतंकवादियों को दिया जा रहा नैतिक समर्थन भी है। अगर ऐसा है तो कश्मीर में यह अब तक का सबसे नापाक गठजोड़ है। 

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