स्वात धरती का दूसरा स्वर्ग था। कहा जाता है कि रहस्यमय सांग्रीला घाटी में अमर सन्यासी रहा करते थे। वैदिक युग से दो हजार साल पहले तक शांति, ज्ञान और प्रज्ञा को उपलब्ध होने के जितने उपाय यहां हुए, शायद ही कहीं हुए होंगे। बौद्ध धर्म का भी यहां खूब विकास हुआ। यहां पैदा होनेवाले पद्मसंभव दूसरे बुद्ध कहे गये जिन्होंने तिब्बत, चीन और नेपाल में बौद्ध धर्म का प्रचार किया।
बुद्ध गये तो उनके शांत शरीर की राख बारह हिस्सों में बांट दी गयी जिन्हें देश के बारह हिस्सों में भेज दिया गया। उनके अंतिम अवशेष का एक हिस्सा यहां इस स्वात घाटी में भी लाया गया। सम्राट अशोक ने बुद्घ के अवशेष को चिरकाल तक सुरक्षित रखने के लिए यहां एक भव्य स्तूप का निर्माण करवाया। लेकिन अब यहां बुद्ध के सानिध्य में ध्यान करने कोई नहीं आता।
जो स्वात घाटी विद्या और प्रज्ञा की भूमि थी उसे पाकिस्तान ने तालिबान रिक्रूटमेन्ट की फैक्ट्री बना दिया। बीते तीन दशकों से स्वात घाटी में इस्लामिक आतंकवाद इस उफान पर है कि दुनिया का कोई बौद्ध यहां आने की सोच भी नहीं सकता। तालिबान कई बार बौद्ध अवशेषों पर हमला कर चुके हैं और बामियान के बाद बुद्ध की दूसरी सबसे बड़ी मूर्ति को नुकसान भी पहुंचा चुके हैं। लेकिन सौभाग्य से यह स्तूप अभी बचा हुआ है। अच्छा हो कि दुनिया की सरकारें पहल कर इस स्तूप को विश्व धरोहर घोषित करवायें ताकि इस्लाम के नाम पर किसी दिन बुद्ध के इस ऐतिहासिक अवशेष का सफाया न हो जाए।
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