Wednesday, August 17, 2016

प्रमुख स्वामी का प्रस्थान

अक्षर का अर्थ है जिसका कभी क्षर न हो। जिसका कभी विनाश नहीं होता वह होता है अक्षर। वैष्णव मत के स्वामीनारायण संप्रदाय ने अपने संस्थापक गुरू स्वामीनारायण को अक्षर पुरुषोत्तम घोषित किया है। वे ऐसे जागृत पुरुष (आत्मा) थे जिनकी चेतना का कभी क्षरण नहीं होगा। वह अनंतकाल तक धरती में मौजूद रहेगी।

सत्रहवीं सदी में अयोध्या के पास छपैया में पैदा होनेवाले घनश्याम पांडे ही स्वामीनारायण हुए जिन्हें स्वामीनारायण संप्रदाय से जुड़े विष्णु का अवतार मानते हैं। प्रमुख स्वामी महाराज इसी स्वामी नारायण संप्रदाय से जुड़े थे। प्रमुख स्वामी महाराज जिस बीएपीएस शाखा के प्रमुख थे वह स्वामी नारायण की शिक्षाओं का प्रचार करने के लिए एक सौ पंद्रह साल पहले बनायी गयी थी। लेकिन सबसे अधिक विस्तार प्रमुख स्वामी के कार्यकाल में ही हुए। बेहद सरल, सरस और सक्रिय प्रमुख स्वामी का ही प्रभाव था कि दुनियाभर में ११०० से अधिक मंदिर निर्मित किये गये जिनमें दुनिया के कुछ मशहूर मंदिर भी है। अमेरिका का सबसे बड़ा मंदिर, यूरोप का सबसे बड़ा मंदिर और भारत का सबसे बड़ा मंदिर परिसर प्रमुख स्वामी महाराज ने बनवाया।

प्रमुख स्वामी द्वारा बनवाये गये मंदिर न सिर्फ बड़े हैं बल्कि स्थापत्य कला के अद्भुद उदाहरण भी है। लेकिन प्रमुख स्वामी ने एक और बड़ा काम किया। उन्होंने सन्यास को समय के साथ जोड़ा। मसलन एक सन्यासी बिल्कुल आधुनिक दुनिया के साथ तालमेल करता हुआ आदमी होना चाहिए। इसलिए आधुनिक शिक्षा और तकनीकि को उन्होंने परपंरागत ज्ञान के साथ जोड़कर सन्यास का नया स्वरूप सामने रखा। सन्यासी को आधुनिक उपदेशक के साथ साथ सेवक होने का मार्ग प्रशस्त किया। सन्यास में प्रमुख स्वामी का यह योगदान अतुलनीय है। 95 वर्ष की अपनी जीवन यात्रा में उन्होंने न सिर्फ स्वामीनारायण संप्रदाय का विस्तार किया बल्कि संपूर्ण मानव समाज के उत्थान के लिए काम किया। उनके प्रस्थान को नमन।

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