Monday, August 5, 2013

विनाशकाले विपरीत बुद्धि

राजनीति में अड़ जाना भी सही होने का सबूत समझा जाता है। राजनीति का पूरा मुलायम कुनबा दुर्गा शक्ति के नाम पर इस वक्त यही सबूत पेश कर रहा है। एक गलत फैसले को अपने अड़ियलपन से सही ठहराने की कोशिश। भीतर भीतर भले ही दुर्गा शक्ति के निलंबन पर ढेरों बहस चल रही हो लेकिन जब बाहर बोलने की बारी आती है तो सब एक सुर में बोलते हैं- जो किया सही किया और अब फैसले से वापस नहीं लौटेंगे। पहले छुटभैय्ये समाजवादी यह बात बोल रहे थे, आज समाजवादे आला कमान ने भी अपनी बात साफ कर दी।
लखनऊ के राजनीतिक मैदान से जो मैसेज भेजा जा रहा था, आज वही संदेश मुलायम सिंह ने भी संसद के गलियारे में बांच दिया। पत्रकारों से बात करते हुए साफ कर दिया कि दुर्गा शक्ति का निलंबन सही है और निलंबन वापस लेने पर कोई विचार नहीं किया जाएगा। मुलायम सिंह यादव ने पत्रकारों से अपनी बातचीत में दुर्गा के निलंबन को विशेष तौर पर 'अखिलेश सरकार का निर्णय' चिन्हित किया। उनका यह चिन्हित करना चौंकानेवाला है। जब आप किसी बात को विशेष तौर पर चिन्हित करते हैं तो वह अनायास नहीं हुआ करता है। इसलिए इतना तो तय है कि यह निर्णय अखिलेश सरकार का जरूर है लेकिन मुख्यमंत्री अखिलेश कुमार का शायद नहीं।

लेकिन खुद मुख्यमंत्री अखिलेश कुमार भी दुर्गा शक्ति के गलत निर्णय को सही ठहराने से कहां पीछे हट रहे हैं। जिस दिन से निलंबन हुआ है उस दिन से एक ही राग अलाप रहे हैं कि जो किया सही किया और उससे पीछे हटने का सवाल नहीं है। बाप जी और बेटे जी का अड़ियलपन अपनी जगह लेकिन चाचा रामगोपाल जो कि अंदरखाने इस निलंबन का विरोध कर रहे थे और भी मुखर होकर सामने आ गये कि केन्द्र अपने आईएएस अधिकारियों को वापस बुला ले वे बिना आईएएस अधिकारियों के ही काम चला लेंगे। रामगोपाल और मुलायम का ताजा अड़ियल रुख दुर्गाशक्ति के सही या गलत होने से ज्यादा केन्द्र के दखल और सोनिया की उस चिट्ठी के कारण है जिसमें उन्होंने प्रधानमंत्री से कहा है कि ईमानदार अधिकारी के साथ अन्याय नहीं होना चाहिए।

समाजवादी नेताओं का यह अड़ियल रुख साफ तौर पर एक गलत फैसले को सही ठहराने का जरूर है लेकिन इस अड़ियल रुख में क्रमिक कठोरता राजनीतिक मजबूरी की वजह से आती चली गई है। यह तो तय है कि दुर्गा शक्ति का निलंबन सीधे तौर पर खनन माफियाओं को संरक्षण देने के लिए किया गया है। मस्जिद की दीवार गिराने जैसे बहाने तो पैदा किये गये। हकीकत यह है कि समाजवादी सरकार तब भी माफियाओं और गुण्डों की सरकार थी और अब भी उसे माफिया और गुण्डे ही चला रहे हैं। अखिलेश कुमार ने जरूर थोड़ी कोशिश की थी कि समाजवादी पार्टी को नौजवान सभा से जोड़कर साफ सुथरी राजनीति की जाए लेकिन अतीत कभी पीछा नहीं छोड़ता है। अखिलेश की अनिच्छा के बाद भी मुलायम सिंह के दबाव में कई मंत्री ऐसे बना दिये गये जिनका आपराधिक सफरनामा सबके सामने खुला चिट्ठा है। और इन अपराधी मंत्रियों ने आते ही कारनामें भी शुरू कर दिये। राजा भैया और राजाराम पाण्डेय इसी के उदाहरण थे।

किसी भी सरकार में व्यापारी वर्ग ताकतवर स्थिति में रहता ही है क्योंकि सरकार में जो सत्ता तत्व है उसमें व्यापारी बहुत महत्वपूर्ण हिस्सा है। उत्तर प्रदेश में जब व्यापार की बात होती है बाहुबल भी साथ में जुड़ जाता है। उत्तर प्रदेश के जितने बाबुबली, माफिया, अपराधी हैं वे सब आला दर्जे के व्यापारी भी हैं। मुख्तार अंसारी, बृजेश सिंह, नंदी, विजय मिश्र, अतीक अहमद, गुड्डू पंडित, धनंजय सिंह, राजा भैया सबने अपने आतंक को चाक चौबंद कारोबार में तब्दील कर लिया है। राज्य में जब जिसकी सरकार रहती है ये अपराधी उसी का संरक्षण हासिल कर लेते हैं। फिर इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि मुख्यमंत्री मायावती हैं कि मुलायम या फिर अखिलेश कुमार। कुछ देर के लिए भले ही ये अपराधी अपनी बिलों में घुस जाएं लेकिन इनका बाहुबल और जुगाड़ तंत्र इतना तगड़ा होता है कि देर सबेर वे सत्ता की मुख्यधारा में लौट ही आते हैं। दुर्गा शक्ति नागपाल का निलंबन इसी बाहुबल वाले सत्ता तंत्र का नतीजा है।

लेकिन तमाशा देखिए कि जिस दुर्गा शक्ति के निलंबन पर समाजवादी पार्टी को घुटनों के बल बैठकर जनता से माफी मांगनी चाहिए थी वह अपनी अनीति पर अडिग खड़ी रहकर यह बताने की कोशिश कर रही है कि लोकतंत्र में कठोर निर्णय लिये जाते हैं। फिर वह कठोर निर्णय भले ही माफियाओं, गुण्डों और बदमाशों के हित में ईमानदारी की कीमत पर ही क्यों न लिए जाएं। लेकिन समाजवादी सत्ताधीशों को अपना बनवास अभी भूला नहीं होगा। भूलना भी नहीं चाहिए। क्योंकि जल्द ही प्रदेश में एक बार फिर आम चुनाव की बयार बहनेवाली है। उनका यह अडिग और अड़ियल रुख उनके लिए कैसी कब्रगाह साबित होगा, इसे देखने के लिए बहुत लंबा इंतजार नहीं करना पड़ेगा। आखिरकार जनता की स्मृति इतनी भी छोटी नहीं हुआ करती कि छह महीने में ही सब कुछ भूल जाए।

जिया उल हक की हत्या और अब दुर्गा शक्ति का निलंबन ये दो ऐसी बड़ी प्रशासनिक चूक हैं जिससे अखिलेश की समाजवादी सरकार और मुलायम सिंह की समाजवादी पार्टी दोनों की चूलें हिल जाएंगी। तिस पर राजा भैया को क्लीन चिट और निलंबन को सही ठहराने जैसी बातें जनता के जले पर नकम छिड़कने का ही काम करेंगी। इन यादवी समाजवादियों को भगवान कृष्ण सत्ता की चलाने की सद्बुद्धि दें, जो खुद अपनी कब्र खोदने में जुटे हुए हैं। इससे ज्यादा कोई और क्या कह सकता है?

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