Thursday, October 2, 2008

हमारी तुलना सिमी से मत करिए

बजरंग दल एक बार फिर चर्चा में है. विभिन्न राजनीतिक दल यह मांग कर रहे हैं कि सिमी पर प्रतिबंध है तो बजरंग दल पर क्यों नहीं होना चाहिए? इस सवाल के जवाब में बजरंग दल के संयोजक प्रकाश शर्मा का कहना है कि सिमी से उनके संगठन बजरंग दल की तुलना करना गलत है. उनका कहना है कि आप एक देशद्रोही संस्था की एक देशभक्त संस्था से तुलना नहीं कर सकते. ऐसे और भी सम-सामयिक सवालों पर बजरंगदल प्रमुख प्रकाश शर्मा से खास बातचीत.

सवाल- अभी तक आप लोग कहते थे कि बजरंग दल प्रतिक्रिया स्वरूप कार्यवाही करता है. लेकिन अब आपके ऊपर आरोप है कि बजरंग दल हिंसक संगठन हो गया है. इसलिए इस पर प्रतिबंध लग जाना चाहिए?
जवाब- आप बताईये हम हिंसक संगठन कब से हो गये? क्या उड़ीसा में जो कुछ हुआ वह हिंसक नहीं था? एक वयोवृद्ध सन्यासी की हत्या करवा दी गयी. उनका वहां व्यापक प्रभाव था. उन्होंने अपना पूरा जीवन लगाकर वहां जरूरतमंद लोगों के लिए ४० साल काम किया था. अब उनकी हत्या के विरोध में लोग वहां प्रतिक्रिया कर रहे हैं तो इसे आप हिंसा कहेंगे? इसका क्या आधार है?

सवाल- यानी आपका संगठन उसमें शामिल नहीं है?
जवाब- यह पूरी तरह से स्थानीय समाज के लोगों की प्रतिक्रिया है. बाकी जो कुछ कहा जा रहा है वह सीधे तौर पर राजनीतिक खेल है. आगामी चुनावों में मुस्लिम वोटों के ध्रुवीकरण के लिए बजरंग दल को निशाना बनाया जा रहा है.

सवाल- तो क्या बजरंग दल का नाम लेने के पीछे कोई और कारण है?
जवाब- यह उड़ीसा और कर्नाटक की घटनाओं में हमारा नाम बाद में आया है. इसके पहले से यह कोशिश की जा रही थी कि सिमी को बचाने के लिए बजरंग दल को बदनाम करना जरूरी है. इससे चीजें बैलेंस हो जाती हैं. बजरंग दल पर प्रतिबंध की बात तब से शुरू होती है जब से इस देश में कुछ राजनीतिक लोगों ने सिमी का समर्थन शुरू किया. यह उनकी मुस्लिम वोट बैंक की राजनीति है. उड़ीसा की घटनाओं को उसके साथ जोड़ दिया गया ताकि उनकी बात में और वजन आ जाए.

सवाल- लेकिन कर्नाटक में भाजपा की ही सरकार है और वहां मैंगलौर में जो आदमी पकड़ा गया वह बजरंग दल का है. इससे आप कैसे इन्कार करेंगे?
जवाब- हां, वे बजरंग दल के संयोजक हैं औ उन्होंने जो कुछ सार्वजनिक रूप से कहा वह उनका अपना निजी मत था. उन्होंने जो कुछ कहा उसका संगठन के स्तर पर कोई निर्णय नहीं हुआ था. जब हम लोगों ने उनसे बात की तो उन्होंने कहा कि हां, उनसे गलती हुई है और उन्होंने अपने पद से मुक्त होने का निर्णय ले लिया है.


सवाल- क्या आपने उन्हे सच्चाई सार्वजनिक रूप से बोलने का दण्ड दिया?
जवाब- नहीं हमने कोई दण्ड नहीं दिया. संगठन का अपना एक अनुशासन होता है और उन्होंने जो कुछ कहा वह संगठन का अनुशासन भंग करता है. यह बात उन्हें भी समझ में आयी इसलिए उन्होंने खुद पदमुक्त होने का निर्णय लिया. इस बारे में हमारी उनसे बात भी हुई.

सवाल-  तो क्या इससे कर्नाटक में चर्च पर हमलों से बजरंग दल दोषमुक्त हो जाता है?
जवाब- पहली बात वहां हमारी ओर से चर्च पर किसी प्रकार का हमला नहीं हुआ है. हकीकत यह है कि वहां चर्च की ओर से आयोजित प्रार्थना सभाओं में एक पुस्तिका सार्वजनिक रूप से वितरित की गयी जिसका नाम है- सत्यदर्शिनी. इम पुस्तक के पेज नंबर ४८ से ५० पर ऐसे कुछ पैराग्राफ हैं जिनमें हिन्दू देवी-देवताओं के लिए अत्यंत अनादरपूर्ण शब्दों का इस्तेमाल किया गया है. इन प्रार्थना सभाओं में ईसाईयों के अलावा हिन्दू लोग भी भारी संख्या में आये थे. उन्होंने पढ़ा तो प्रतिक्रिया तो होनी ही थी. इसका समाज और गांव के लोगों ने विरोध किया.

सवाल- आपने कहा कि जानबूझकर बजरंगदल को बदनाम करने के लिए सिमी के साथ आपकी तुलना की जा रही है? आपके ऐसा कहने का आधार क्या है?
जवाब- आप आईएसआई एजंटों की तुलना किसी राष्ट्रभक्त संगठन के साथ कैसे कर सकते हैं? क्या कोई आधार बनता है? यह इस देश की सेकुलर राजनीति का दुर्भाग्य है कि एक राष्ट्रद्रोही संस्था की एक राष्ट्रभक्त संस्था के समानांतर बताया जा रहा है. इस सेकुलर राजनीति की शुरूआत ७०-८० के दशक में कांग्रेस ने शुरू की थी. कांग्रेस ने ही यह परिपाटी शुरू की थी कि अगर कहीं दंगों के दोषी १० मुसलमानों को पकड़ा जाता था तो मुसलमान नाराज न हो जाएं इसलिए कुछ हिन्दुओं को भी पकड़ लिया जाता था.

सवाल- कानपुर में पिछले महीने बम बनाते हुए दो व्यक्ति मारे गये थे. कहा जाता है कि इसमें एक बजरंग दल का था?
जवाब- जो व्यक्ति मारा गया वह आज से आठ साल पहले बजरंग दल का स्थानीय संयोजक होता था. उसके बाद से हमारा उससे कोई नाता नहीं है. पुलिस उस मामले में जांच कर रही है और जांच पूरी होते ही सच्चाई सबके सामने आ जाएगी.

सवाल- क्या बजरंग दल अयोध्या और लंका का फर्क भूल गया है?
जवाब- बिल्कुल नहीं. हम जानते हैं कि अयोध्या और लंका में क्या फर्क है. लेकिन हनुमान जी ने अयोध्या में आकर राक्षसों के पैर तो नहीं पकड़ लिये थे? क्या अयोध्या में मंदिरों को तोड़ा जा रहा था, महिलाओं की इज्जत लूटी जा रही थी. अगर अयोध्या में भी ऐसा होता और हनुमान जी चुप रहते तो हम जरूर आपकी बात मान लेतें. जहां भी आततायी होंगे हम उनके साथ एक जैसा ही व्यवहार करेंगे फिर वे अयोध्या में हों या लंका में.

सवाल- क्या अब हिन्दू धर्म के सामने और कोई चुनौती नहीं बची है?
सवाल- मेरा मानना है कि आज हिन्दुओं के सामने सबसे बड़ी चुनौती उसके खत्म हो जाने की है. उसके अस्तित्व पर संकट है. आप देखिए हिन्दुओं को अपने ही देश में अपने ही तीर्थयात्रियों के लिए १०० एकड़ जमीन लेने के लिए चार महीने आंदोलन करना पड़ता है? इस देश में राम के ही अस्तित्व को नकारा जा रहा है. क्या यह चुनौती नहीं है? इस देश में आज जो राजनीति चल रही है वह हिन्दुओं को समाप्त करने की राजनीति चल रही है. यहां खुलेआम आतंकवादियों का समर्थन करनेवाले दल राजनेता और समर्थक हैं. क्या यह हिन्दुओं के सामने कम बड़ी चुनौती है?

सवाल- क्या आपको नहीं लगता कि आप खुद भी जो कह रहे हैं वह एक खास राजनीतिक मकसद के लिए है?
जवाब- हमारा कोई राजनीतिक मकसद नहीं है. आजादी के बाद ईसाई तीन गुना बढ़े, मुसलमान पांच गुना बढ़े. यह सब ध्यान देने की बात नहीं है? आखिर ऐसा क्या हो रहा है कि एक तरफ वे तेजी से बढ़ रहे हैं और दूसरी ओर हिन्दुओं की संख्या लगातर उसी अनुपात में कम हो रही है. इन बातों को लोगों के सामने लाना क्या गुनाह है?

सवाल- तो आप जो कर रहे हैं उसका आगामी चुनावों में भाजपा को कोई लाभ नहीं होगा?
जवाब- विश्व हिन्दू परिषद और बजरंग दल का कोई राजनीतिक एजण्डा नहीं है. अगर संत समाज राजनीतिक रूप से कोई एडण्डा तय करते हैं तो हम निश्चित रूप से संतों के आदेश का पालन करेंगे. बजरंग दल अपनी स्थापना के २५ साल पूरा कर रहा है इसलिए हम अपनी क्षमता का विस्तार करेंगे. इस मौके पर हम देशभर में जाएंगे और जो लोग बजरंग दल को सिमी के समानांतर स्थापित करने की कोशिश कर रहे हैं उनको जनता के सामने बेनकाब करेंगे. फिर इसमें कोई भी राजनीतिक व्यक्ति हो, हम ऐसे राजनीतिक लोगों को जनता के सामने उनका असली चेहरा रखेंगे कि वे कैसे आतंकवाद का समर्थन कर रहे हैं. ये सब भारत के जयचंद हैं जो मुस्लिम तुष्टीकरण के नाम पर देश के टुकड़े करने पर आमादा हैं. 

Monday, August 25, 2008

बूंद बूंद में व्यापार

पहले कुछ डराने वाले आंकड़े फिर चौंकाने वाले तथ्य भी। फिर यह भी कि लाभ की मानसिकता के आगे इंसानियत कैसे घुटने टेक देती है। सिविल सोसायटी के कुकर्मों की लिस्ट लंबी है।
 

औसतन साल में 18 लाख नवजात दुनिया में आते ही दुनिया से कूच कर जाते हैं। वजह दूषित पानी। पांच साल से कम नौनिहालों की मौत का सबसे बड़ा कारण पानी का प्रदूषण है। अगर हमारे पानी का स्रोत साफ हो जाए तो सबसे ज्यादा नुकसान अस्पतालों को उठाना पड़ेगा क्योंकि दुनिया के आधे अस्पताल सिर्फ पानी के प्रदूषण से जुड़ी बीमारियों के कारण भरे पड़े हैं। औद्योगीकरण के गर्भ से निकला प्रदूषण सबसे घातक प्रहार पानी पर ही करता है। पहले ही धरती पर कुल मौजूद शुध्द पानी का मात्र एक प्रतिशत आदमी की पहुंच में है। ऐसे में इस बात की पूरी संभावना पैदा हो जाती है कि आप पानी का समुचित उपयोग करें। इसे व्यर्थ न करें और इसे निजी संपत्ति बनाकर उतना पैसा कमाएं जितना कमा सकते हैं। कंपनियों ने यह खतरा शायद पहले ही भांप लिया था कि भविष्य में शुध्द पानी सबसे बड़ी पूंजी हो जाएगी। इसलिए उन्नीसवीं सदी की शुरूआत से ही यूरोप में बोतलबंद पानी के व्यापारी पैदा होने लगे थे। 1845 में पहली पानी कंपनी पोलैण्ड के मैनी में शुरू हुई जिसका नाम था पोलैण्ड स्प्रिंग बाटल्ड वाटर कंपनी। 1845 से शुरू हुआ बोतलबंद पानी का यह कारोबार आज 100 अरब डालर का भरापुरा उद्योग है। दुनिया में हर साल 100 अरब डालर से भी ज्यादा पैसा बोतलबंद पानी खरीदने पर खर्च किया जाता है।
 

भारत भी इससे अछूता नहीं है। हालांकि यहां पानी के बोतलबंद व्यापार की शुरूआत बहुत देर से हुई यानी अस्सी के दशक में। उस समय प्रफांस की एक कंपनी डैनोन मिनरल वाटर का व्यापार करने आई थी। उसने एक लीटर पानी की कीमत रखी 70 रुपए। आज भारत में बोतलबंद पानी का व्यापार करनेवाली लगभग 100 कंपनियां और उनके 1200 बाटलिंग प्लांट हैं। इनमें वे कंपनियां और ब्राण्ड शामिल नहीं हैं जो कुटीर उद्योग की तर्ज पर पाउच पैक पानी का व्यापार कर रही हैं।
 

मिनरल वाटर के नाम पर बिकने वाला बोतलबंद पानी अपने बनने के दौरान दुगुना पानी खर्च कर देता है। मसलन एक लीटर मिनरल वाटर बनाने पर दो लीटर साफ पानी खर्च करना पड़ता है। यानी जब आप एक लीटर पानी पीते हैं तो आप एक नहीं बल्कि तीन लीटर पानी खर्च करते हैं। इस लिहाज से आप प्रतिदिन अगर स्वस्थ रहने के लिए तीन लीटर पानी पीते हैं और वह डिब्बा बंद होता है तो आप तीन नहीं बल्कि नौ लीटर पानी पीते हैं। इस गणना को ज्यादा तार्किक तौर पर समझना हो तो अमेरिकी नागरिकों को देखिए। जो प्रतिदिन 100 से 176 गैलन पानी खर्च करते हैं। जबकि औसतन प्रति व्यक्ति पानी की जरूरत किसी भी तरह से चार-पांच गैलन से ज्यादा नहीं होती। अफ्रीका के अधिकांश देशों में प्रति व्यक्ति पानी की कुल उपलब्ध्ता ही पांच गैलन है। यानी औसत अमरीकी पानी का 20 से 30 गुणा ज्यादा दुरूपयोग करता है। इसकी कीमत अमरीकन कितना चुकाते हैं यह तो नहीं मालूम लेकिन दुनिया के दूसरे देश और भूमंडल का पर्यावरण इसकी कीमत जरूर चुकाता है। जितना बोतलबंद पानी अमरीकी पीकर पेशाब कर देता है उसको बनाने के लिए अमरीका में हर साल 72 बिलियन गैलन पानी बर्बाद किया जाता है। वहां हर पांचवा आदमी बोतलबंद पानी ही पीता है। इसके लिए साल 2007 में अमरीका में 31 अरब लीटर मिनरल वाटर बेचा गया।
 

बोतलबंद पानी में पानी तो आदमी पी जाता है लेकिन बोतल पर्यावरण के सिर आ पड़ती है। पैसिफिक इंस्टीटयूट का कहना है कि अमरीकी जितना मिनरल वाटर पीता है उसका बाटल बनाने के लिए 20 मिलियन बैरल पेट्रो उत्पादों को खर्च किया जाता है। एक टन बाटल तीन टन कार्बन डाईआक्साईड का उत्सर्जन करता है। इस तरह 2006 में खोजबीन के जो आंकड़े सामने आए हैं उससे पता चलता है कि अमरीकियों ने पानी पीकर 250 मिलियन टन कार्बन उत्सर्जन कर दिया।
 

बोतल के खतरे और भी हैं। यह भारी मात्र में पेट्रो उत्पादों की खपत करता है और पर्यावरण का नाश तो करता ही है। मसलन कई बार ट्रकों से ही नहीं रेल और पानी के जहाज से भी पानी को ट्रांसपोर्ट किया जाता है। इस तरह एक बोतल बनाने और उसमें पानी भरकर उपभोक्ता तक पहुंचाने में वह ढेर सारी उर्जा खर्च करता है। ऊपर से उन बाटल्स के रिसाइक्लिंग का भी कोई सुनिश्चित तरीका नहीं होता। दुनिया भर में पानी को बेचने के लिए जितना प्लास्टिक उपयोग किया जाता है उसका नब्बे फीसदी बिना रिसाइक्लिंग के जमीन पर फेंक दिया जाता है। अमरीका में ही 80 प्रतिशत पानी की बोतलों को बिना रिसाइक्लिंग के खुले मैदानों में फेंक दिया जाता है।

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