Saturday, January 9, 2010

मुकेश अंबानी और मार्क अमेस

मुकेश अंबानी को आप सब जानते हैं. अब शायद मार्क अमेस को भी जान गये होंगे. अमेरिका की एक वेबसाइट में लिखनेवाले पत्रकार मार्क अमेस ने आज से चार महीना पहले एक ब्लाग पोस्ट लिखा था. ब्लाग पोस्ट में उन्होंने आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाईएस राजशेखर रेड्डी की हत्या में अंबानी बंधुओं की ओर शक की सूई घुमाई थी.

मार्के अमेस ने तीन सितंबर को लिखे अपने ब्लाग पोस्ट में लिखा है कि क्योंकि राजशेखर रेड्डी ने कृष्णा गोदावरी बेसिन में गैस विवाद को सुलझाने के लिए प्रधानमंत्री से निवेदन किया था और कहा था कि गैस बंटवारे में राज्य के हितों का भी ध्यान रखा जाना चाहिए. लेकिन मार्क अमेस लिखते हैं कि प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में रेड्डी ने लिखा था कि कृष्णा गोदावरी बेसिन में गैस बंटवारे का फैसला "मां" पर छोड़ने की बजाय सरकार को हस्तक्षेप करना चाहिए. इसी आधार पर मार्क अमेस ने आशंका जताई है कि हो सकता है रेड्डी के हेलिकॉप्टर को जानबूझकर क्रैश करवा दिया गया हो. अपने शक की पुष्टि के लिए मार्क अनिल अंबानी के हेलिकाप्टर की खराबी का भी जिक्र करते हैं और कहते हैं कि जिस तकनीशियन पर गड़बड़ी का शक जा रहा था दो दिन बाद उसकी हत्या हो गयी थी.

मार्क अमेस की इसी स्टोरी को दो दिन पहले आंध्र के तेलुगु चैनल टीवी-5 ने प्रसारित कर दिया जिसके बाद राज्य भर में हड़कम्प मच गया. लेकिन आखिर मार्क अमेस ने ऐसा क्या लिखा है जिसे गलत नहीं माना जा सकता? कृष्णा गोदावरी बेसिन में गैस बंटवारे का विवाद कितना गहरा है इसका अंदाज आपको भी लग ही गया होगा. केन्द्र सरकार अभी तक इस बात का फैसला नहीं कर पायी है कि वह इस पूरे मामले में क्या रुख अख्तियार करे? मामला सुप्रीम कोर्ट में है और केन्द्रीय पेट्रोलियम मंत्री और धीरूभाई अंबानी के दोस्त मुरली देवड़ा लगातार तर्क दे रहे हैं कि बेसिन में मिलनेवाली गैस की कीमतों के निर्धारण का फैसला केन्द्र सरकार के हाथ में दे दिया जाए. केन्द्र सरकार की इस मांग का अनिल अंबानी समूह विरोध कर रहा है. अनिल अंबानी समूह का तर्क है कि अगर ऐसा होता है तो मुकेश अंबानी समूह बाजी मार ले जाएगा क्योंकि मुरली देवड़ा मुकेश अंबानी के खिलाफ जाकर कोई निर्णय नहीं करेंगे. यानी जो नयी कीमतें निर्धारित होंगी वे पहले से तय कीमतों से अधिक होंगी. अनिल अंबानी समूह ने कम कीमत पर आरआईएल से गैस लेने का करार किया था. अगर नयी कीमतें लागू की जाती हैं तो अनिल अंबानी को बड़ा घाटा होगा. अनिल अंबानी के एकमात्र तर्क दादरी पावर प्रोजेक्ट को भी बदनाम करने की कोशिश की गयी और जब इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फैसला दिया कि अगर किसान अपना मुआवजा वापस करें तो उन्हें जमीन वापस दे दी जाए तो मुकेश अंबानी समूह ने मीडिया का भरपूर इस्तेमाल करके इस मामले को ऐसे प्रचारित करवा दिया मानों दादरी परियोजना खत्म हो गयी है. जाहिर है इससे सबसे अधिक फायदा मुकेश अंबानी समूह को ही होता क्योंकि अगर दादरी परियोजना ही खत्म हो गयी तो फिर सस्ती गैस की मांग अपने आप खत्म हो जाती है.

देश में कंपनियों ने लोकतंत्र के सभी दरवाजों पर अपने पहरेदार बैठा दिये हैं. गरीबों के वोट से कुर्सी पर बैठे नेता और उनकी सेवा में लगे नौकरशाह पूंजीपतियों के तलवे चाटते हैं और उनकी कमाई में हिस्सा पाने के लिए जीभ लपलपाते रहते हैं. रेड्डी हत्याकाण्ड में मुकेश अंबानी का नाम आना इस देश में लोकतंत्र और लोकतांत्रिक प्रणाली दोनों के लिए बहुत ही खतरनाक संकेत है. अगर अभी भी हमारे राजनेता और नौकरशाह इस बढ़ते खतरे को नहीं भांप पाये तो उनकी हैसियत पूंजीपतियों के हाथ में कूदनेवाली एक कठपुतली से अधिक कुछ नहीं होगी.

विवाद नया नहीं है और इतनी जल्दी खत्म होने का आसार भी नहीं है क्योंकि कृष्णा गोदावरी बेसिन में 21 खरब 500 अरब रुपये (47 बिलियन डॉलर) कीमत की गैस मिलने का अनुमान है. इसमें से 27 बिलियन डॉलर रिलायंस के खाते में जाएगा जबकि 20 अरब डॉलर भारत सरकार को मिलेगे. यह कोई छोटी मोटी रकम नहीं है. शायद इसीलिए आंध्र के मुख्यमंत्री वाई एस राजशेखर रेड्डी यह जानते हुए भी कांग्रेस मुकेश अंबानी के पैसों पर चलनेवाली पार्टी है, राज्य के हित की बात कही और कहा कि गैस कीमतों के निर्धारण के समय राज्य की रायल्टी का भी ध्यान रखा जाए. रेड्डी मुकेश अंबानी की सोनिया गांधी से नजदीकी को अच्छी तरह जानते थे और शायद वे मान रहे थे कि वे खुद भी सोनिया गांधी के जितने नजदीक हैं, उससे मामला उलझेगा नहीं बल्कि कोई न कोई रास्ता निकलेगा और राज्य को गैस से थोड़ी कमाई हो जाएगी. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. (वैसे आंध्र में कुछ ब्लागर यह खबर भी चला रहे हैं कि रेड्डी ने मुकेश अंबानी से निजी तौर पर पांच सौ करोड़ रूपये मांगे थे. जबकि एक अफवाह यह भी है कि राजशेखर रेड्डी खुद इस परियोजना में शेयर की मांग कर रहे थे. लेकिन रिलायंस समूह ने निजी तौर पर मात्र 200 करोड़ रूपये देने का वादा किया था. और जब इस 200 करोड़ रुपये पर रेड्डी तैयार नहीं हुए तो 100 करोड़ रुपये की सुपारी देकर उन्हें रास्ते से हटा दिया गया.)

हो सकता है यह सब कुछ जो लिखा जा रहा है उसमें सच्चाई की बजाय आशंका और अफवाह अधिक हो लेकिन भारत में जिस तरह से कारपोरेट वार शुरू हो चुका है उसमें ऐसी घटनाएं हो भी तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए। भारत में उदारीकरण के बाद जिस तरह से पूंजी का प्रभाव पनपा है उसमें शक्ति के समस्त स्रोत पूंजीपतियों के हाथ में निहित होते जा रहे हैं. अब इस देश का लोकतंत्र, न्यायपालिका, कार्यपालिका, विधायिका और मीडिया सभी सिर्फ पूंजी का संरक्षण कर रहे हैं. क्योंकि मुकेश अंबानी इस समय देश के सबसे बड़े पूंजीपति है इसलिए चारों स्तंभ अगर उनकी सुरक्षा में लगे हो तो इसमें आश्चर्य क्या है? मार्क अमेस बहादुर हैं जो उन्होंने सच्चाई लिखी. लेकिन बहादुर होने के साथ ही वे खुशकिस्मत भी हैं क्योंकि वे अमेरिका में रहते हैं. चार महीने पहले लिखी पोस्ट को जब भारत के एक चैनल ने खबर के रूप में चलाया तो भारत सरकार और मीडिया संगठन ही उस चैनल के खिलाफ खड़े हो गये. क्यों न हो, मुकेश अंबानी की रक्षा तो हर हाल में होनी ही चाहिए, भले ही उनके ऊपर किसी राज्य के सर्वाधिक लोकप्रिय मुख्यमंत्री को मरवा देने का ही आरोप क्यों न लग रहा हो?

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