लंबे समय से खूनी संघर्ष का शिकार रहा इराक एक बार फिर दुनिया के नक्से पर उभर आया है। खतरा इतना बढ़ गया है कि इराक की राजधानी बगदाद चरमपंथियों के निशाने पर आ गई है। जिन लोगों ने इराक शासन के खिलाफ विद्रोह का बिगुल बजाया है वे पहले ही एक चौथाई इराक पर कब्जा करने का दावा कर चुके हैं और बगदाद पर काबिज होकर पूरे इराक पर अपना कब्जा करना चाहते हैं। तो क्या इराक में एक बार फिर उसी कुर्द समुदाय से कोई सद्दाम उभरकर सत्तानशीं होने की तैयारी कर रहा है या फिर बगदाद की तरफ बढ़ते सुन्नी कुर्द संयुक्त सेनाओं की 'जरुरत के मुताबिक' कार्रवाई का शिकार होकर रह जाएंगी?
अभी के जो ताजा हालात हैं उसमें एक बात साफ है कि इराक फिर से भीषण संकट में फंस गया है। वैसे तो इराक कभी संकट से मुक्त ही नहीं हुआ। लेकिन सद्दाम हुसैन के खात्मे के साथ इराक में लोकतंत्र के नाम पर अमेरिका ने शिया समुदाय को जो प्रतिनिधित्व सौंपा था, वह इराक को कभी मंजूर न हुआ। इधर अमेरिका धीरे धीरे अपने सैनिकों को इराक के बाहर करता रहा और उधर इराक में लगातार आत्मघाती हमले होते रहे और सैकड़ों की तादात में लोग मरते रहे। अमेरिका ने अपने तरीके से भले ही इराक में ग्रीन जोन का खात्मा कर दिया हो लेकिन ग्रीन जोन कभी खत्म नहीं हुआ।
2011 में एबटाबाद की कार्रवाई के बाद तो मानों इराक के लोगों पर मुसीबत ही टूट पड़ी। कभी अल कायदा का लड़ाका रहा अबू बकर अल बगदादी ने इराक और सीरिया में जेहाद का जिम्मा लेकर मैदान में उतर पड़ा। 2006 में इराक में अबू बकर अल कुरैशी ने जिस इस्लामिक स्टेट आफ इराक (आईएसआई) की स्थापना की थी, 2010 में इराक और अमेरिका की एक संयुक्त कार्रवाई में कुरैशी के मारे जाने के बाद आईएसआई की कमान अबू बकर अल बगदादी के हाथ में आ गई। सीधे तौर पर अल कायदा की पहल पर बनाई गयी आईएसआई ने ज्यादा हिंसक रूप अख्तियार कर लिया और 2011 से 2013 के बीच दर्जनों आत्मघाती हमलों से इराक को दहलाकर रख दिया। अल कायदा के जीवित आतंकवादियों में बगदादी जवाहिरी के बाद दूसरा सबसे बड़ा ईनामी आतंकवादी है। लेकिन खुद बगदादी अब अलकायदा का साथी नहीं रहा है। सीरिया में सिविल वार के दौरान बगदादी की बढ़चढ़कर की गई हिस्सेदारी और वहां के स्थानीय आतंकी समूहों के साथ सांठ गांठ के बाद कहते हैं जवाहिरी और बगदादी के रिश्ते खराब हो गये थे और उसने इराक में आईएसआई के साथ सीरिया जोड़कर आइसिस की स्थापना कर दी। अब बगदादी बगदाद पर कब्जा करके दूसरा सद्दाम बनना चाहता था।
बगदादी भी उसी तिगरिस नदी का पानी पीकर बड़ा हुआ है जिस नदी के किनारे बसे तिकरित में कभी सद्दाम हुसैन पैदा हुआ था। तिकरित के पास सामरा के कुर्द समुदाय में पैदा हुआ बगदादी वैसे तो इराक के सुन्नी अल्पसंख्यक समुदाय से नाता रखता है लेकिन तिगरिस नदी के किनारे बसनेवाली कुर्द लड़ाका कौम के रूप में पहचानी जाती है। खुद सद्दाम इसी कबाइली कौम से नाता रखता था और अब बगदादी भी उसी कौम के नेता के रूप में बगदाद की तरफ आगे बढ़ रहा है। बगदादी की इस आइसिस सेना ने अब तक इराक के दो प्रमुख शहरों किरकुक और मोसुल पर कब्जे का दावा कर दिया है। सीरिया में हालात सामान्य होने के बाद इसी साल जनवरी से बगदादी ने जेहादियों को इराक में सक्रिय कर दिया है और जिस आतंकी संगठन जबात अल नुसरा के साथ मेल जोल के कारण बगदादी और अल कायदा के रिश्ते टूटे थे आज उसके अस्सी फीसदी से ज्यादा लड़ाके बगदादी के लिए लड़ रहे हैं। बगदाद के लिए लड़ रहे हैं।
हालांकि इस बीच अमेरिका ने अपनी तरफ से पहल कर दी है और अमेरिका राष्ट्रपति ने कहा है कि वह 'हर संभव उपाय' पर विचार कर रहा है। जाहिर है, अमेरिका के हर संभव उपाय का मतलब हवाई हमले से ही शुरू होंगे और इरान भी शांत नहीं बैठेगा। इराक में साठ से सत्तर फीसदी शिया मुस्लिम हैं और इरान में नब्बे फीसदी से अधिक। सद्दाम के रहते भले ही इरान और इराक का झगड़ा कभी खत्म न हुआ हो लेकिन अरब राजनीति में इरान के लिए इराक जुड़वा भाई जैसा ही है। इरान कभी नहीं चाहेगा कि इराक में एक बार फिर वही कुर्द सत्ता में वापस लौट आये जिन्होंने किसी दौर में शिया समुदाय का कत्लेआम ही नहीं किया था बल्कि सद्दाम के शासन में गुलाम बनाकर रखा था। लेकिन देखना यह होगा कि इरान खुद पश्चिमी ताकतों को इराक में पहुंचने से रोकने के लिए क्या करता है? इराक में शिया समुदाय की बहुलता वाली साझा सरकार है और अगर इरान उन्हें प्रभावित करने में कामयाब रहा तो हो सकता है इराक खुद अमेरिका को अपने यहां आने से रोक दे। लेकिन अगर वह ऐसा करता है तो क्या अपने बूते कुर्द विद्रोहियों और जेहादियों को रोक पायेगा? ऐसी हालत में इरान की चुप रह जाने की स्थिति में अगर संयुक्त सेनाएं एक बार फिर बगदाद के आस पास मौजूद होती हैं तो वे विद्रोहियों को बगदाद पहुंचने से रोक पायेंगी? क्या कार्रवाई करने के लिए अमेरिका के हाथ से अब समय निकल चुका है?
जिस तरह से बगदाद एयरपोर्ट के आसपास की बस्तियों को खाली कराने की खबरें आ रही हैं उससे तो संकेत यही मिलता है कि इराक अमेरिका के हवाई हमलों के लिए जगह तैयार कर रहा है। इस बीच शिया समुदाय के सर्वोच्च धर्मगुरू अयातुल्ला अल सिस्तानी ने सुन्नी आतंकियों के खिलाफ जेहाद का ऐलान कर दिया है। अल सिस्तानी ने शिया समुदाय के लोगों से अपील करते हुए कहा है कि देश, मजहब और लोगों की खातिर हर एक शिया का फर्ज है कि वह आतंकियों के हमलों को रोकने के लिए हथियार उठा ले। जाहिर है, शिया समुदाय पर इसका सीधा असर होगा। हालात चाहे जो बने लेकिन इतना तय है कि इराक गृहयुद्ध से घिर गया है। सत्तर के दशक का कुर्द संग्राम हो कि नब्बे के दशक का इराक वार। दोनों ही दौर इराक की जनता के लिए बहुत मुश्किल दौर रहे हैं। बीते दो तीन सालों से एक बार फिर इराक में अरब के बहावी इस्लाम ने कुर्द समुदाय को आगे करके शिया शासन के समाप्ति का अभियान शुरू कर दिया है। इस जंग से भले ही इस बार कोई सद्दाम पैदा हो कि न हो, लेकिन जंग के जरिए विनाश का वही सिलसिला फिर से शुरू हो जाएगा जिसके लिए अब तक इराक अभिशप्त रहा है।
अभी के जो ताजा हालात हैं उसमें एक बात साफ है कि इराक फिर से भीषण संकट में फंस गया है। वैसे तो इराक कभी संकट से मुक्त ही नहीं हुआ। लेकिन सद्दाम हुसैन के खात्मे के साथ इराक में लोकतंत्र के नाम पर अमेरिका ने शिया समुदाय को जो प्रतिनिधित्व सौंपा था, वह इराक को कभी मंजूर न हुआ। इधर अमेरिका धीरे धीरे अपने सैनिकों को इराक के बाहर करता रहा और उधर इराक में लगातार आत्मघाती हमले होते रहे और सैकड़ों की तादात में लोग मरते रहे। अमेरिका ने अपने तरीके से भले ही इराक में ग्रीन जोन का खात्मा कर दिया हो लेकिन ग्रीन जोन कभी खत्म नहीं हुआ।
2011 में एबटाबाद की कार्रवाई के बाद तो मानों इराक के लोगों पर मुसीबत ही टूट पड़ी। कभी अल कायदा का लड़ाका रहा अबू बकर अल बगदादी ने इराक और सीरिया में जेहाद का जिम्मा लेकर मैदान में उतर पड़ा। 2006 में इराक में अबू बकर अल कुरैशी ने जिस इस्लामिक स्टेट आफ इराक (आईएसआई) की स्थापना की थी, 2010 में इराक और अमेरिका की एक संयुक्त कार्रवाई में कुरैशी के मारे जाने के बाद आईएसआई की कमान अबू बकर अल बगदादी के हाथ में आ गई। सीधे तौर पर अल कायदा की पहल पर बनाई गयी आईएसआई ने ज्यादा हिंसक रूप अख्तियार कर लिया और 2011 से 2013 के बीच दर्जनों आत्मघाती हमलों से इराक को दहलाकर रख दिया। अल कायदा के जीवित आतंकवादियों में बगदादी जवाहिरी के बाद दूसरा सबसे बड़ा ईनामी आतंकवादी है। लेकिन खुद बगदादी अब अलकायदा का साथी नहीं रहा है। सीरिया में सिविल वार के दौरान बगदादी की बढ़चढ़कर की गई हिस्सेदारी और वहां के स्थानीय आतंकी समूहों के साथ सांठ गांठ के बाद कहते हैं जवाहिरी और बगदादी के रिश्ते खराब हो गये थे और उसने इराक में आईएसआई के साथ सीरिया जोड़कर आइसिस की स्थापना कर दी। अब बगदादी बगदाद पर कब्जा करके दूसरा सद्दाम बनना चाहता था।
बगदादी भी उसी तिगरिस नदी का पानी पीकर बड़ा हुआ है जिस नदी के किनारे बसे तिकरित में कभी सद्दाम हुसैन पैदा हुआ था। तिकरित के पास सामरा के कुर्द समुदाय में पैदा हुआ बगदादी वैसे तो इराक के सुन्नी अल्पसंख्यक समुदाय से नाता रखता है लेकिन तिगरिस नदी के किनारे बसनेवाली कुर्द लड़ाका कौम के रूप में पहचानी जाती है। खुद सद्दाम इसी कबाइली कौम से नाता रखता था और अब बगदादी भी उसी कौम के नेता के रूप में बगदाद की तरफ आगे बढ़ रहा है। बगदादी की इस आइसिस सेना ने अब तक इराक के दो प्रमुख शहरों किरकुक और मोसुल पर कब्जे का दावा कर दिया है। सीरिया में हालात सामान्य होने के बाद इसी साल जनवरी से बगदादी ने जेहादियों को इराक में सक्रिय कर दिया है और जिस आतंकी संगठन जबात अल नुसरा के साथ मेल जोल के कारण बगदादी और अल कायदा के रिश्ते टूटे थे आज उसके अस्सी फीसदी से ज्यादा लड़ाके बगदादी के लिए लड़ रहे हैं। बगदाद के लिए लड़ रहे हैं।
हालांकि इस बीच अमेरिका ने अपनी तरफ से पहल कर दी है और अमेरिका राष्ट्रपति ने कहा है कि वह 'हर संभव उपाय' पर विचार कर रहा है। जाहिर है, अमेरिका के हर संभव उपाय का मतलब हवाई हमले से ही शुरू होंगे और इरान भी शांत नहीं बैठेगा। इराक में साठ से सत्तर फीसदी शिया मुस्लिम हैं और इरान में नब्बे फीसदी से अधिक। सद्दाम के रहते भले ही इरान और इराक का झगड़ा कभी खत्म न हुआ हो लेकिन अरब राजनीति में इरान के लिए इराक जुड़वा भाई जैसा ही है। इरान कभी नहीं चाहेगा कि इराक में एक बार फिर वही कुर्द सत्ता में वापस लौट आये जिन्होंने किसी दौर में शिया समुदाय का कत्लेआम ही नहीं किया था बल्कि सद्दाम के शासन में गुलाम बनाकर रखा था। लेकिन देखना यह होगा कि इरान खुद पश्चिमी ताकतों को इराक में पहुंचने से रोकने के लिए क्या करता है? इराक में शिया समुदाय की बहुलता वाली साझा सरकार है और अगर इरान उन्हें प्रभावित करने में कामयाब रहा तो हो सकता है इराक खुद अमेरिका को अपने यहां आने से रोक दे। लेकिन अगर वह ऐसा करता है तो क्या अपने बूते कुर्द विद्रोहियों और जेहादियों को रोक पायेगा? ऐसी हालत में इरान की चुप रह जाने की स्थिति में अगर संयुक्त सेनाएं एक बार फिर बगदाद के आस पास मौजूद होती हैं तो वे विद्रोहियों को बगदाद पहुंचने से रोक पायेंगी? क्या कार्रवाई करने के लिए अमेरिका के हाथ से अब समय निकल चुका है?
जिस तरह से बगदाद एयरपोर्ट के आसपास की बस्तियों को खाली कराने की खबरें आ रही हैं उससे तो संकेत यही मिलता है कि इराक अमेरिका के हवाई हमलों के लिए जगह तैयार कर रहा है। इस बीच शिया समुदाय के सर्वोच्च धर्मगुरू अयातुल्ला अल सिस्तानी ने सुन्नी आतंकियों के खिलाफ जेहाद का ऐलान कर दिया है। अल सिस्तानी ने शिया समुदाय के लोगों से अपील करते हुए कहा है कि देश, मजहब और लोगों की खातिर हर एक शिया का फर्ज है कि वह आतंकियों के हमलों को रोकने के लिए हथियार उठा ले। जाहिर है, शिया समुदाय पर इसका सीधा असर होगा। हालात चाहे जो बने लेकिन इतना तय है कि इराक गृहयुद्ध से घिर गया है। सत्तर के दशक का कुर्द संग्राम हो कि नब्बे के दशक का इराक वार। दोनों ही दौर इराक की जनता के लिए बहुत मुश्किल दौर रहे हैं। बीते दो तीन सालों से एक बार फिर इराक में अरब के बहावी इस्लाम ने कुर्द समुदाय को आगे करके शिया शासन के समाप्ति का अभियान शुरू कर दिया है। इस जंग से भले ही इस बार कोई सद्दाम पैदा हो कि न हो, लेकिन जंग के जरिए विनाश का वही सिलसिला फिर से शुरू हो जाएगा जिसके लिए अब तक इराक अभिशप्त रहा है।
No comments:
Post a Comment