13 सितंबर 2013। शाम के पांच बज चुके थे। अशोक रोड को एक बार
फिर दोनों ओर से बंद कर दिया गया था। रायसीना की तरफ से आनेवाली गाड़ियों
को इंडिया गेट की तरफ जाने से रोक दिया गया था। उन पत्रकारों की गाड़ियों
को भी बैरिकेटिंग के भीतर नहीं जाने दिया जा रहा था जिन्हें पहुंचने में
पांच बज गया था। ठीक बीच सड़क में भाजपा कार्यालय के सामने कोई डेढ़ दो
दर्जन लोग पटाखे और फुलझड़िया छुड़ाते हुए मीडिया के सामने पोज बन रहे थे।
यह मोदी के आकर्षण से ज्यादा कैमरों का आकर्षण नजर आ रहा था कि मुट्ठीभर
लोग चिल्ला चिल्लाकर पूरे देश को यह संदेश दे रहे थे कि भाजपा ने नई सोच के
साथ नई दिशा पकड़ ली है। पटाखों और फुलड़ियों की लड़ियां इतनी थीं कि
आनेवाले दो तीन घण्टों तक वे अभी और इसी तरह अपना उत्साह कायम रख सकते थे।
ढोल ताशों और नगाड़े वालों की तो मानों बारात ही आ गई थी। वैसे भी कोई शादी विवाह हो कि सामाजिक धार्मिक उत्सव। ये ढोल ताशेवाले हमेशा इतने उत्साह में रहते हैं कि बारात उन्हीं के घर से निकलकर उन्हीं के किसी रिश्तेदार के घर में पहुंच रही है। इसलिए इनके इत्साह को भाजपा का उत्साह मान लेना थोड़ी सी भूल हो जाएगी। भाजपा कार्यालय के बाहर और भीतर ये ढोल ताशे वाले समान रूप से मौजूद थे और पूरे जूनून में नगाड़ा पीट रहे थे। कुछ उत्साही लोगों के हाथ में जो बैनर नजर आ रहा था उसमें भाजपा को इस बात के लिए धन्यवाद दिया गया था कि उन्होंने नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री का उम्मीदवार घोषित कर दिया है।
पांच बजकर दस मिनट।
भाजपा कार्यालय के भीतर भाजपा कार्यकर्ताओं से ज्यादा मीडिया, कैमरों और स्वतंत्र पर्यवेक्षकों की भीड़ नजर आ रही है। सुरक्षा जांच से गुजरकर अंदर आनेवाली झंझट खत्म करने के लिए भाजपा कार्यालय के दो दरवाजों में से एक को खोल दिया जाता है। लेकिन बाहर अगर पैसा लेकर नगाड़ा पीटनेवाले बैंड बाजा बाराती ही अब तक जमा हो पाये हैं तो अंदर भी टीवी चैनल के कैमरामैनों की सक्रियता ज्यादा नजर आ रही है। भाजपा कार्यालय के मुख्यभवन के मुख्य द्वारा पर कोई दो तीन दर्जन टीवी कैमरामैन और इतने ही फोटोग्राफर मुंह बाये खड़े हैं। कुछ तो इतने उत्साही हैं कि छत पर चढ़ गये हैं और वहां से मुख्य द्वार को "शूट" करने की पोजीशन लेकर खड़े हो गये हैं।
पांच बजकर बीस मिनट।
शहनवाज हुसैन और विजय सोनकर शास्त्री सहित ऐसे ही अनेक बी ग्रेड नेताओं के चेहरे दिखने लगते हैं जिन्हें प्रवक्ता पद दिया गया है। आगे पीछे ऐसे ही कुछ नेता और कुछ नेता नुमा लोग नजर आ रहे हैं जबकि मुख्य भवन के पिछवाड़े में तेजी से एक अस्थाई मंच बनाने का काम शुरू कर दिया गया है। न जाने किन टीवी चैनलों ने अपने ट्राली कैमरे का झंडा भी यहां गाड़ दिया है और वे लोग भी अपनी अपनी जुगत बनाने में लगे हुए हैं। पिछवाड़े लान में इधर उधर छुटभैये नेता दो दो चार चार की झुंड में खड़े हैं और पत्रकार बिरादरी ने भी अपनी अपनी जान पहचान के हिसाब से अपने अपने झुंड विकसित कर लिये हैं। मानों सब इस ऐतिहासिक क्षण के गवाह बनने की प्रतीक्षा कर रहे हों।
पांच बजकर तीस मिनट।
मुख्य द्वार से पहली बड़ी गाड़ी अंदर आती है। पता चला सफेद होण्डा एकार्ड कार में जो नेता आई हैं वे सुषमा स्वराज हैं। इस बीच भाजपा कार्यालय के भीतर चल रहा टीवी चैनल बताता है कि भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह भी अपने घर से चल चुके हैं। अशोक रोड पर ही दो चौराहा पार करके रहनेवाले राजनाथ सिंह को पहुंचने में कितनी देर लगेगी इसका अंदाज लगाना ज्यादा मुश्किल नहीं था। मंच बनानेवाला बड़ी फुर्ती से काम कर रहा है और जितने कैमरामैन आगे गेट पर मौजूद थे करीब उतने ही वहां भी आकर खड़े हो गये। इतने ही अंदर प्रेस कांफ्रेस रूम में सेट थे। लगता था टीवी चैनलों ने आज अपनी सारी ताकत भाजपा कार्यालय के भीतर झोंक दी थी। टीवी रिपोर्टिंग के लिहाज से एकसाथ तीन सेट तैयार हो रहे थे। एक भाजपा भवन के गेट पर। दूसरा सार्वजनिक सभा के मंच पर और तीसरा प्रेस कांफ्रेस वाले हाल में। लेकिन अभी भी कार्यकर्ताओं की भीड़ कमोबेश नदारद।
छह बजकर जीरो मिनट।
भाजपा कार्यालय के भीतर जो टीवी चल रहा था अचानक उस पर ब्रेकिंग न्यूज आती है कि आडवाणी संसदीय समिति की बैठक में नहीं आयेंगे। इसी के साथ उस टीवी चैनल पर एक खबर फ्लैश करती है कि नरेन्द्र मोदी का काफिला गुजरात भवन से चल चुका है और बस थोड़ी ही देर में उनका काफिला भाजपा कार्यालय के भीतर दाखिल होनेवाला है। मंच तैयार करनेवाले कारीगरों ने जो साउण्ड सिस्टम लगाया है उस पर देशभक्ति के गाने बजने शुरू हो गये हैं और बीच बीच में माइक चेक माइक चेक की आवाज से वह पोडियम के माइक को भी सेट कर रहा है। अब तक भाजपा कार्यालय के भीतर अप्रत्याशित रूप से लोग नजर आने लगे हैं और नगाड़ों की धुन बाहर और भीतर लगभग समान हो गई है। पूरा भाजपा कार्यालय जितने कार्यकर्ताओं से भर सकता था भर रहा था लेकिन वहां आनेवाले ज्यादातर लोग मुख्य दरवाजे के आस पास ही सिमटे हुए थे। कुछ इस लिहाज से कि मोदी दर्शन होंगे तो कुछ टीवी पर खुद का दर्शन करने की जुगत लगाये हुए थे। मोदी तो अभी तक भाजपा कार्यालय के भीतर अभी तक नहीं आये थे लेकिन उनके दो आदमकद कट आउट भाजपा कार्यालय के भीतर जरूर पहुंच चुके थे।
छह बजकर बीस मिनट।
गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी का काफिला भाजपा कार्यालय में प्रविष्ट हो जाता है। काफिला क्या है उनकी एक बुलेटप्रूफ स्कार्पियो जीप है और वैसी ही एक दूसरी जीप भी है। साथ में एस्कार्ट का एक दूसरा वाहन भी। फिर भी इस काफिले के भाजपा कार्यालय के भीतर प्रवेश करते ही नेता, पत्रकार और कार्यकर्ता हर आदमी सक्रिय नजर आने लगता है। ढोल ताशेवाले अभी भी अपनी रौं में बह रहे हैं। घण्टों बजाते रहने का उनका अभ्यास साफ दिखाई दे रहा है। पीछे सार्वजनिक सभास्थल पर भाजपा के कार्यालय प्रभारी रहे श्याम जाजू व्यवस्था बनाते हुए दिखने लगते हैं। भाजपा कार्यालय के मुख्य भवन के भीतर क्या चल रहा है यह तो किसी को पता नहीं क्योंकि अंदर किसी के भी जाने की मनाही थी लेकिन अब पीछे बने अस्थाई मंच पर श्याम जाजू प्रकट होते हैं और वे सूचित करते हैं कि जिस घड़ी के लिए आप सब लोग यहां इकट्ठा हुए हैं वह घड़ी बस अब जल्द ही आनेवाली है। वे सार्वजनिक रूप से सूचित भी करते हैं कि मोदी जी भाजपा कार्यालय में पधार चुके हैं।
छह बजकर तीस मिनट।
श्याम जाजू की औपचारिक घोषणा के बाद एक नेतानुमा व्यक्ति माइक पकड़ लेता है जिसके बोलने के अंदाज से वह भी महाराष्ट्र या गुजरात का ही कोई व्यक्ति नजर आता है। जहां डाल डाल पर सोने की चिड़िया करती है बसेरा वाला गाना बंद हो चुका है और वह नेता नारे लगवाता है। अटल बिहारी जिन्दाबाद। नरेन्द्र मोदी जिन्दाबाद। राजनाथ सिंह जिन्दाबाद। यही तीन नारे तीन चार बार लगवाने के बाद वह चुप हो जाता है। लेकिन जैसे उसे तत्काल यह महसूस हो जाता है कि उससे कोई गलती हो गई है। इसलिए वह दोबारा माइक पकड़ता है और आडवाणी जिन्दाबाद के नारे लगाता है। इसके बाद तो उसे जिस नेता का नाम याद आ जाता है उसके जिन्दाबाद का नारा लगवाने लगता है लेकिन बड़ी सफाई से हर नाम के साथ मोदी का नाम जोड़ रहा था। ऐसी नारेबाजी शायद आपने भी कभी नहीं सुनी हो जैसी नयी रचना करके वह आया था। नितिन गडकरी मोदी जिन्दाबाद। राजनाथ सिंह मोदी जिन्दाबाद। सुषमा स्वराज मोदी जिन्दाबाद। अरुण जेटली मोदी जिन्दाबाद। संकेत साफ था अब हर नेता की पहचान मोदी की पहचान से मिल चुकी है।
छह बजकर पैंतालीस मिनट।
मंच के ठीक पीछे बने हाल से निकलकर नरेन्द्र मोदी और राजनाथ सिंह मंच पर आते हैं। वहां मौजूद सैकड़ों लोगों को शायद उम्मीद रही हो कि वे संबोधन भी करेंगे। इसी आस में माइक वाले ने कई बार माइक चेक माइक चेक भी किया था। लेकिन दोनों नेताओं ने दो मिनट से ज्यादा मंच पर नहीं गुजारा। हाथ हिलाकर अभिवादन किया। पोज दिया और जिस तरह भारी धक्का मुक्की के बीच दोनों नेता मंच पर आये थे उसी तरह भारी धक्का मुक्की के बीच वापस चले गये। हां इस बीच मंच के ठीक ऊपर मंडराते चीलों का झुंड भी अब जा चुका था। न जाने कहां से चीलों का यह झुंड ठीक भाजपा कार्यालय के पिछवाड़े बने इस मंच के आसमान में पहुंच गया था और करीब आधे घण्टें तक वहीं मंडराता रहा था। नीचे राजनाथ और मोदी ऊपर चीलों का झुंड कमोबेश साथ साथ ही वहां से विदा हुए।
सात बजकर शून्य मिनट।
जिस तरह भाजपा कार्यालय के भीतर पहली गाड़ी सुषमा स्वराज की अंदर आई थी ठीक उसी तरह उन्हीं की 0008 नंबरवाली होन्डा एकार्ड गाड़ी सबसे पहले बाहर गई। थोड़ी ही देर में पदयात्रा करके बाहर जाते नितिन गडकरी भी दिखे तो कुछ नेता दूसरे दरवाजे से भाजपा कार्यालय से दूर चले गये। करीब घण्टे भर के भीतर जो नेता और कार्यकर्ता अचानक से भाजपा कार्यालय पर उपस्थित हुए थे वे भी रेले की शक्ल में बाहर जाने लगे थे। मोदी की गाड़ी अभी भी भाजपा कार्यालय के भीतर खड़ी थी और खुद मोदी भीतरखाने की राजनीतिक बैठक कर रहे थे। इस बीच कुछ मिठाई के डिब्बे भी घूमने लगे जो मोदी जी को पीएम कैंडिडेट बनाये जाने पर मुंह मीठा करवा रहे थे। पत्रकारों को अलग से पूरा पूरा डिब्बा दे दिया गया था। शायद उनकी मेहनत को देखते हुए उनके लिए यह जरूरी भी था।
सात बजकर पंद्रह मिनट।
नरेन्द्र मोदी का वह काफिला अब आगे जाने के लिए अपनी जगह छोड़कर आगे खिसक जाता है। शायद उन्हें संदेश आ गया था कि वे मुख्य दरवाजे पहुंच जाएं मोदी जी निकलनेवाले हैं।
पिछले करीब छह महीने से भाजपा के भीतर परिवर्तन की जो कवायद शुरू की गई थी वह सवा दो घण्टे में पूरी हो गई। खुद मोदी इन सवा दो घण्टों में सिर्फ गिनती के 55 मिनट शामिल हुए लेकिन इन 55 मिनटों की तैयारी उन्होंने साढ़े पांच साल पहले ही शुरू कर दी थी जिसे आज वे सिर्फ 55 मिनटों में निपटाकर चलता बने। बाद में टीवी ने सूचना दी कि नरेन्द्र मोदी आडवाणी से आशिर्वाद लेने उनके घर भी गये और बीमार अटल बिहारी वाजपेयी के भी घर। लेकिन देर रात ग्यारह बजे तक उनका विशेष विमान वापस गांधीनगर की धरती पर उतर चुका था और दिल्ली से जो हासिल करके लौटे थे उसके स्वागत सत्कार में व्यस्त हो गये थे। ये जो सवा दो घण्टे पीछे छूट गये थे उसमें भले ही देश में मोदी के आने को लेकर उत्साह की नई सोच का संचार कर दिया जाए लेकिन कम से कम भाजपा दफ्तर के भीतर जो भी मौजूद रहे होंगे उन्होंने एक बात बहुत शिद्दत से महसूस की होगी सवा दो घण्टे का यह आयोजन भी पूरी तरह से प्रायोजित था। पता नहीं टीवीवालों ने क्या दिखाया लेकिन मोदी के अलावा वहां से वापस लौटते किसी भी नेता के चेहरे पर परिवर्तन की खुशी दिखाई नहीं दे रही थी।
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