आज वंजारा जो बात सीबीआई से कह रहे हैं वही बात
कल तक हरेन पंड्या के पिता विट्ठल पंड्या सुप्रीम कोर्ट से और पत्नी
जागृति पांड्या जनता से कहती रही हैं कि हरेन की हत्या के पीछे कोई गहरी
राजनीतिक साजिश है। तो कहीं ऐसा तो नहीं है कि सोहराबुद्दीन और तुलसीराम
प्रजापति की हत्याएं सिर्फ इसलिए कर दी गईं ताकि हरेन पंड्या की हत्या का
राज हमेशा के लिए राज ही रह जाए? वंजारा के संकेतों से तो यही संदेह उभर
रहा है।
उस दिन भोपाल में गिनीज बुक में दर्ज होनेवाली भाजपा की रैली में भी वह शेर वहां दहाड़ने ही आया था। आडवाणी और मोदी के मिलन प्रसंग के परे वह शेर मंच से दहाड़ा भी लेकिन उसकी दहाड़ में चिंताभरी एक ऐसी लाइन भी सामने आई थी जिस पर मीडिया ने बहुत ध्यान हीं दिया। भाजपा के इस शेर ने उस रैली में वह बोला था जो अब तक उसने कभी और कहीं नहीं कहा था। मुलायम और मायावती की तर्ज पर भाजपा के इस शेर ने अपना वह डर पहली बार प्रकट किया कि इस बार कांग्रेस की ओर से सीबीआई आम चुनाव लड़ेगी। नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता और प्रचार के बीच उनका यह डर सचमुच चौंकानेवाला था। क्योंकि अपनी राजनीतिक हैसियत और कद के लिहाज से नरेन्द्र मोदी न तो मुलायम सिंह यादव हैं और न ही मायावती कि उन्हें यह कहना पड़े कि कांग्रेस उनके खिलाफ सीबीआई का दुरूपयोग कर सकती है। फिर, आखिरकार नरेन्द्र मोदी ने पार्टी कार्यकर्ताओं के सबसे बड़े मंच से यह बात क्यों कही?
जिस वक्त नरेन्द्र मोदी यह बात बोल रहे थे उससे थोड़े ही समय पहले डीजी वंजारा ने एक चिट्ठी लिखकर सनसनी पैदा कर दी थी। अपनी चिट्ठी में उन्होने राज्य सरकार को कटघरे में खड़ा करते हुए कहा था कि वे तो आदेश का पालन कर रहे थे, और वे जेल में हैं लेकिन जो लोग उनसे वह सबकुछ करवा रहे थे उनको आजादी क्यों है? नरेन्द्र मोदी के करीबी और तत्कालीन गृहमंत्री अमित शाह का तो उन्होंने अपनी चिट्ठी में नाम भी लिया है। लेकिन यह तो वह किस्सा था जो मीडिया के जरिए लोगों के सामने आया। जो सिर्फ सूत्रों के हवाले से या फिर गोपनीय सूचना के तौर पर बताया जा रहा है, वह यह कि वंजारा ने सीबीआई को हरेन पांड्या की हत्या को नये सिरे से जांच करने के कुछ जरूरी टिप्स भी दिये हैं। सीबीआई टीम से मुलाकात के दौरान कथित तौर पर वंजारा ने कहा है कि पंड्या की हत्या राजनीतिक साजिश थी। जिस वक्त 2003 में भाजपा के कद्दावर नेता हरेन पांड्या की हत्या हुई थी उस वक्त वंजारा उसी एटीएस के चीफ थे जो जिसके छह आईपीएस अफसर और 32 दूसरे पुलिसकर्मी इस वक्त जेल में बंद हैं। खुद शोहराबुद्दीन, तुलसीराम प्रजापति, और इशरत जहां के फर्जी मुटभेड़ में अहमदाबाद की सेन्ट्रल जेल में बंद वंजारा ने अगर यह सूत्र सीबीआई को दिया है तो जाहिर है, यह नरेन्द्र मोदी के लिए चिंता की बात होगी।
सीबीआई को लेकर नरेन्द्र मोदी चिंतित हैं इसका प्रमाण सिर्फ भोपाल की रैली में ही नहीं मिला। इसके बाद अचानक दिल्ली में नरेन्द्र मोदी की टीम सक्रिय हुई। बताते हैं कि दिल्ली में पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह नरेन्द्र मोदी और अरुण जेटली के बीच एक महत्वपूर्ण बैठक हुई जिसके बाद भाजपा नेता अरुण जेटली की ओर से एक नहीं दो दो पत्र प्रधानमंत्री कार्यालय को भेजे गये जिसमें नरेन्द्र मोदी के खिलाफ सीबीआई के दुरूपयोग की आशंका जताई गई। और सिर्फ पत्र ही नहीं भेजे गये। बाकायदा प्रेस कांफ्रेस करके अरुण जेटली ने कहा कि केन्द्र सरकार मोदी के खिलाफ सीबीआई की दुरूपयोग कर सकती है। अरुण जेटली ने इसके बाद दिल्ली होते हुए मुंबई की जो यात्रा की उसमें एक बार फिर उन्होंने उनके खिलाफ सीबीआई के दुरूपयोग की बात की। अब यह कुछ ऐसा था जैसे रामदेव हर जगह कांग्रेस को घेरने के लिए सीबीआई के दुरूपयोग का हवाला देते रहते हैं। रामदेव के गुरू शंकरदेव की हत्या का मामला भी सीबीआई के पास है। और जब से सीबीआई ने इस मामले की जांच शुरू की है रामदेव कांग्रेस के खिलाफ खुलकर खड़े हो गये हैं। तो क्या नरेन्द्र मोदी को भी किसी ऐसे हत्याकांड का डर सताने लगा है जिसमें सीबाआई उनके खिलाफ कोई ऐसी कार्रवाई कर सकती है जिससे उनका राजनीतिक कैरियर तबाह हो सकता है? क्या सचमुच उन अफवाहों में कोई दम है कि डीजी वंजारा ने हरेन पांड्या हत्याकांड की नये सिरे से जांच के सूत्र सीबीआई को दिये हैं, जिसके कारण भाजपा के भीतर मोदी और उनके मित्रों की चिंता बढ़ गई है?
सिर्फ अरुण जेटली और नरेन्द्र मोदी की सार्वजनिक चिंता को छोड़ दें तो फिलहाल ऐसे कोई पुख्ता प्रमाण नहीं हैं कि सीबीआई हरेन पांड्या के हत्यारों को पकड़ने का नये सिरे से कोई अभियान शुरू करनेवाली है। लेकिन लंबे समय से हरेन पांड्या की विधवा जागृति पंड्या इस बात की मांग तो कर ही रही हैं कि उनके पति के हत्याकांड की नये सिरे से जांच होनी चाहिए। 2009 में हरेन पांड्या के पिता विट्ठल पांड्या खुद सुप्रीम कोर्ट आये थे यह अर्जी लेकर कि सुप्रीम कोर्ट उनके बेटे के हत्यारों तक पहुंचने के लिए अमित शाह और नरेन्द्र मोदी से भी पूछताछ की जाए। विट्ठल पांड्या ने उस वक्त शिकायत की थी कि सीबीआई उनकी बहू जागृति पांड्या (हरेन पांड्या की पत्नी) से भी बतौर गवाह पूछताछ नहीं कर रही है। उस वक्त सुप्रीम कोर्ट ने हरेन पांड्या की याचिका यह कहते हुए वापस कर दी कि वे सीबीआई को ऐसा निर्देश नहीं दे सकते। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि किसी पर आरोप लगाने का कोई आधार होना चाहिए। सिर्फ शिकायत के आधार पर इस तरह से पूछताछ की इजाजत नहीं दी जा सकती। उस वक्त निश्चित ही सीबीआई के पास हरेन पांड्या हत्याकांड में नरेन्द्र मोदी या अमित शाह से पूछताछ का कोई आधार नहीं रहा होगा इसलिए बाप से सहानुभूति रखते हुए भी सुप्रीम कोर्ट ने बेटे की हत्या में नरेन्द्र मोदी और अमित शाह पर संदेह करने से मना कर दिया।
तो क्या अब जेल में बंद वंजारा ने सीबीआई को सचमुच कोई ऐसा सूत्र दे दिया है जिसके आधार पर हरेन पांड्या हत्याकांड में सीबीआई नरेन्द्र मोदी तक अपनी पहुंच बना सकती है? भाजपा की घबराहट और एक दशक में बदली हुई परिस्थितियां तो यही संदेह पैदा कर रही हैं। जिस वक्त जुलाई 2009 में सुप्रीम कोर्ट ने विट्ठल पांड्या की अर्जी को खारिज किया था उस वक्त कथित तौर पर हरेन के हत्यारे सलाखों के भीतर थे। उनमें से एक प्रमुख अभियुक्त था असगर अली। असगर अली उन 12 संदिग्ध में से एक था जिन्हें सीबीआई द्वारा हरेन पंड्या की हत्या में गिरफ्तार किया गया था। करीब एक दशक की कानूनी लड़ाई के बाद आखिरकार जुलाई 2011 में गुजरात हाईकोर्ट ने सभी अभियुक्तों को हत्या के साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया था। हालांकि बरी होने के बाद भी असगर अली अभी भी आंध्र प्रदेश के विशाखापत्तनम जेल में बंद है क्योंकि साजिश का मामला अभी भी उसके ऊपर दर्ज है।
इस बीच हरेन के पिता विट्ठल का देहांत हो चुका है और अब हरेन पांड्या की पत्नी जागृति पांड्या अकेले न्याय के लिए जंग लड़ रही हैं। जागृति पांड्या ने अभी इसी साल जून 2013 में असगर अली से विशाखापत्तन जेल में जाकर मुलाकात की थी। मुलाकात के बाद जागृति पांड्या ने तीन बातें साफ तौर पर कहीं थीं। एक, हैदराबाद का रहनेवाला असगर पहली बार अप्रैल 2013 में गुजरात तब गया था जब उसे गुजरात पुलिस द्वारा हरेन की हत्या के आरोप में गिरफ्तार करके गुजरात ले जाया गया जिसके बाद उसे सीबीआई को सुपुर्द कर दिया गया। दो, आईबी का वह संदिग्ध अधिकारी राजेन्द्र कुमार ही इसे पूरे घटनाक्रम के पीछे कहीं न कहीं मौजूद रहा है जिसे लेकर अभी सीबीआई और आईबी के बीच नूरा कुश्ती हो चुकी है। और तीन, एनडीए सरकार के दौरान असली दोषियों को बचाने के लिए सीबीआई का जमकर दुरूपयोग किया गया। जागृति पांड्या की इन तीन बातों को आपस में जोड़े तो जो तस्वीर उभरती है वह यह कि हरेन पांड्या की हत्या उसी फर्जी एनकाउण्टर समूह द्वारा किया गया जो गुजरात को आतंकवाद से मुक्त कराने के नाम पर कुछ खास लोगों को निपटाने का काम कर रहा था। इनमें शोहराबुद्दीन और तुलसीराम प्रजापति दो ऐसे नाम हैं जो कम से कम पाकिस्तान से आये आतंकवादी नहीं थे।
उलटे भट्ट के शपथपत्र के बाद तुलसीराम प्रजापति का नाम हरेन पांड्या की हत्या में सामने आ चुका है। गुजरात भाजपा में केशुभाई पटेल के करीबी और इंसानियत की राजनीति के प्रतीक समझेजाने भाजपा के कद्दावर नेता हरेन पांड्या की हत्या 26 मार्च 2003 को हुई। अहमदाबाद के लॉ पार्क में खड़ी कार में उनकी लाश मिली। हत्या संदेहास्पद थी और उस वक्त भी हरेन पांड्या की हत्या पर यह कहते हुए शक जाहिर किया गया था कि जिस तरह से गोली उनके शरीर में निचले हिस्से से ऊपरी हिस्से की ओर गई है उससे यह साबित होता है कि कार में उन्हें गोली नहीं मारी गई है। बल्कि उनकी हत्या कहीं और की गई और बाद में उन्हें कार में डाल दिया गया है। हरेन की हत्या के तीन साल बाद तुलसीराम प्रजापति की भी गुजरात एनकाउण्टर टीम ने 2006 में हत्या कर दी। तुलसीराम प्रजापति का एनकाउण्टर करने के साल भर पहले 2005 में शोहराबुद्दीन को भी उसी एनकाउण्टर टीम ने निपटा दिया था जिसके ज्यादातर अधिकारी इस वक्त जेल में हैं।
हरेन पंड्या की हत्या में तुलसीराम प्रजापति का पहली बार नाम संजीव भट्ट ने। पूर्व आईपीएस अधिकारी संजीव ने 2011 में कहा था कि 2003 में असगर अली ने उनसे व्यक्तिगत रूप से कहा था कि हरेन पंड्या पर गोली चलानेवाला कोई और नहीं तुलसीराम प्रजापति ही था। गुजरात हाईकोर्ट में एपिडेविट देकर भट्ट ने कहा था कि उस वक्त वे साबरमती जेल सुपरिटेन्डेन्ट थे और उनके पास इस बात के बहुत पुख्ता सबूत हैं कि हरेन पंड्या की हत्या के पीछे कोई बहुत बड़ी गहरी राजनीतिक साजिश थी। संजीव भट्ट के तर्कों और आरोपों को कोई बहुत महत्व नहीं मिला क्योंकि संजीव भट्ट मोदी विरोधी अधिकारी घोषित हो चुके थे। लेकिन अब कमोबेश वही बात अगर कथित तौर पर वंजारा सीबीआई अधिकारियों से कह रहे हैं तब? वंजारा न सिर्फ मोदी के विश्वासपात्र आईपीएस अधिकारी थे बल्कि उस दौर में गुजरात एटीएस के चीफ थे जिस दौर में ये हत्याकांड हो रहे थे।
गुजरात में मोदी के राजनीतिक उभार के वक्त गुजरात में सिर्फ हरेन पंड्या ही वह आखिरी नौजवान नेता बचे थे जो गुजरात भाजपा का भविष्य बनकर उभर रहे थे। केशुभाई पटेल, संजय जोशी और गोरधन झड़पिया के करीबी कहे जानेवाले पंड्या को मोदी पहले ही राजनीतिक रूप से असक्त बना चुके थे। 2001 में जिस वक्त नरेन्द्र मोदी को गुजरात का मुख्यमंत्री बनाकर भेजा गया उस वक्त हरेन पंड्या गुजरात के गृहमंत्री थे। वे एलिसब्रिज सीट से चुनकर गुजरात विधानसभा पहुंचे थे। बताते हैं कि गुजरात दंगों के दौरान उन्होंने गुजरात सरकार के रूख का कैबिनेट की बैठकों में कड़ा विरोध किया था जिसका खामियाजा उन्हें मोदी विरोधी के रूप में भोगना पड़ा। उस वक्त मोदी सरकार में गृहमंत्री होते हुए भी उन्होंने दंगों के विरोध में हो रही जनसुनवाईयों में हिस्सा लिया था। जाहिर है, गुजरात में नरेन्द्र मोदी की अगुवाई में जिस नई राजनीति की शुरूआत हो रही थी, वे उसका विरोध कर रहे थे। इसका खामियाजा उन्हें अगले ही चुनाव में उठाना पड़ा। पहले मोदी ने एलिसब्रिज से उनका टिकट काट दिया और केन्द्र के हस्तक्षेप के बाद पंड्या को टिकट मिला भी तो जीतने के बाद मोदी मंत्रिमंडल में कोई जगह नहीं मिली।
लेकिन हरेन पंड्या को सिर्फ राजनीतिक रूप से कमजोर करके ही नरेन्द्र मोदी संतुष्ट नहीं थे। विरोधी को समाप्त करने की अपनी विशिष्ट शैली के लिए पहचाने जानेवाले नरेन्द्र मोदी हरेन पंड्या पर अपने खुफिया तंत्र के जरिए पूरी नजर रख रहे थे। मीडिया रपटों के अनुसार उस वक्त गुजरात सरकार न सिर्फ हरेन पंड्या के हर मूवमेन्ट पर नजर रख रही थी बल्कि हरेन पंड्या का फोन भी टेप हो रहा था। ऐसा संभवत: इसलिए कि हरेन पंड्य ही गुजरात की राजनीति में वह शख्सियत बचे थे जिनके नेतृत्व में गुजरात भाजपा के मोदी विरोधी नेता मोदी के खिलाफ विद्रोह कर सकते थे। और यह सब बहुत दिन नहीं चला जब अचानक मार्च 2003 में बहुत संदेहास्पद परिस्थितियों में हरेन पंड्या की हत्या कर दी गई। इसके बाद सिलसिलेवार चले हत्याकांड के क्रम में मोदी का कद लगातार ऊंचा ही उठता गया और पार्टी के भीतर भी हरेन की हत्या अतीत का एक हादसा बनकर रह गई।
अब एक दशक बाद वंजारा के विद्रोह ने हरेन पंड्या की हत्या को नये सिरे से जिंदा कर दिया है। हरेन के तथाकथित हत्यारों को हाईकोर्ट ने मुक्त कर दिया है और सीबीआई अब सुप्रीम कोर्ट में है। इसलिए हरेन की हत्या में नये सिरे से खोजबीन शुरू हो सकती है। सोहराबुद्दीन और तुलसीराम प्रजापति हत्याकांडों के जरिए इस खोजबीन की आंच पहली बार अमित शाह और नरेन्द्र मोदी तक पहुंच सकती है। निश्चित रूप से मोदी के बढ़ते राजनीतिक कद के लिए यह हरेन हत्याकांड का जिन्न कभी भी प्रेतछाया की तरह उनके पीछे पड़ सकता है। कम से कम भाजपा का डर और मोदी का सीबीआई पर संदेह तो इसी शक को पुख्ता कर रहे हैं।
उस दिन भोपाल में गिनीज बुक में दर्ज होनेवाली भाजपा की रैली में भी वह शेर वहां दहाड़ने ही आया था। आडवाणी और मोदी के मिलन प्रसंग के परे वह शेर मंच से दहाड़ा भी लेकिन उसकी दहाड़ में चिंताभरी एक ऐसी लाइन भी सामने आई थी जिस पर मीडिया ने बहुत ध्यान हीं दिया। भाजपा के इस शेर ने उस रैली में वह बोला था जो अब तक उसने कभी और कहीं नहीं कहा था। मुलायम और मायावती की तर्ज पर भाजपा के इस शेर ने अपना वह डर पहली बार प्रकट किया कि इस बार कांग्रेस की ओर से सीबीआई आम चुनाव लड़ेगी। नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता और प्रचार के बीच उनका यह डर सचमुच चौंकानेवाला था। क्योंकि अपनी राजनीतिक हैसियत और कद के लिहाज से नरेन्द्र मोदी न तो मुलायम सिंह यादव हैं और न ही मायावती कि उन्हें यह कहना पड़े कि कांग्रेस उनके खिलाफ सीबीआई का दुरूपयोग कर सकती है। फिर, आखिरकार नरेन्द्र मोदी ने पार्टी कार्यकर्ताओं के सबसे बड़े मंच से यह बात क्यों कही?
जिस वक्त नरेन्द्र मोदी यह बात बोल रहे थे उससे थोड़े ही समय पहले डीजी वंजारा ने एक चिट्ठी लिखकर सनसनी पैदा कर दी थी। अपनी चिट्ठी में उन्होने राज्य सरकार को कटघरे में खड़ा करते हुए कहा था कि वे तो आदेश का पालन कर रहे थे, और वे जेल में हैं लेकिन जो लोग उनसे वह सबकुछ करवा रहे थे उनको आजादी क्यों है? नरेन्द्र मोदी के करीबी और तत्कालीन गृहमंत्री अमित शाह का तो उन्होंने अपनी चिट्ठी में नाम भी लिया है। लेकिन यह तो वह किस्सा था जो मीडिया के जरिए लोगों के सामने आया। जो सिर्फ सूत्रों के हवाले से या फिर गोपनीय सूचना के तौर पर बताया जा रहा है, वह यह कि वंजारा ने सीबीआई को हरेन पांड्या की हत्या को नये सिरे से जांच करने के कुछ जरूरी टिप्स भी दिये हैं। सीबीआई टीम से मुलाकात के दौरान कथित तौर पर वंजारा ने कहा है कि पंड्या की हत्या राजनीतिक साजिश थी। जिस वक्त 2003 में भाजपा के कद्दावर नेता हरेन पांड्या की हत्या हुई थी उस वक्त वंजारा उसी एटीएस के चीफ थे जो जिसके छह आईपीएस अफसर और 32 दूसरे पुलिसकर्मी इस वक्त जेल में बंद हैं। खुद शोहराबुद्दीन, तुलसीराम प्रजापति, और इशरत जहां के फर्जी मुटभेड़ में अहमदाबाद की सेन्ट्रल जेल में बंद वंजारा ने अगर यह सूत्र सीबीआई को दिया है तो जाहिर है, यह नरेन्द्र मोदी के लिए चिंता की बात होगी।
सीबीआई को लेकर नरेन्द्र मोदी चिंतित हैं इसका प्रमाण सिर्फ भोपाल की रैली में ही नहीं मिला। इसके बाद अचानक दिल्ली में नरेन्द्र मोदी की टीम सक्रिय हुई। बताते हैं कि दिल्ली में पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह नरेन्द्र मोदी और अरुण जेटली के बीच एक महत्वपूर्ण बैठक हुई जिसके बाद भाजपा नेता अरुण जेटली की ओर से एक नहीं दो दो पत्र प्रधानमंत्री कार्यालय को भेजे गये जिसमें नरेन्द्र मोदी के खिलाफ सीबीआई के दुरूपयोग की आशंका जताई गई। और सिर्फ पत्र ही नहीं भेजे गये। बाकायदा प्रेस कांफ्रेस करके अरुण जेटली ने कहा कि केन्द्र सरकार मोदी के खिलाफ सीबीआई की दुरूपयोग कर सकती है। अरुण जेटली ने इसके बाद दिल्ली होते हुए मुंबई की जो यात्रा की उसमें एक बार फिर उन्होंने उनके खिलाफ सीबीआई के दुरूपयोग की बात की। अब यह कुछ ऐसा था जैसे रामदेव हर जगह कांग्रेस को घेरने के लिए सीबीआई के दुरूपयोग का हवाला देते रहते हैं। रामदेव के गुरू शंकरदेव की हत्या का मामला भी सीबीआई के पास है। और जब से सीबीआई ने इस मामले की जांच शुरू की है रामदेव कांग्रेस के खिलाफ खुलकर खड़े हो गये हैं। तो क्या नरेन्द्र मोदी को भी किसी ऐसे हत्याकांड का डर सताने लगा है जिसमें सीबाआई उनके खिलाफ कोई ऐसी कार्रवाई कर सकती है जिससे उनका राजनीतिक कैरियर तबाह हो सकता है? क्या सचमुच उन अफवाहों में कोई दम है कि डीजी वंजारा ने हरेन पांड्या हत्याकांड की नये सिरे से जांच के सूत्र सीबीआई को दिये हैं, जिसके कारण भाजपा के भीतर मोदी और उनके मित्रों की चिंता बढ़ गई है?
सिर्फ अरुण जेटली और नरेन्द्र मोदी की सार्वजनिक चिंता को छोड़ दें तो फिलहाल ऐसे कोई पुख्ता प्रमाण नहीं हैं कि सीबीआई हरेन पांड्या के हत्यारों को पकड़ने का नये सिरे से कोई अभियान शुरू करनेवाली है। लेकिन लंबे समय से हरेन पांड्या की विधवा जागृति पंड्या इस बात की मांग तो कर ही रही हैं कि उनके पति के हत्याकांड की नये सिरे से जांच होनी चाहिए। 2009 में हरेन पांड्या के पिता विट्ठल पांड्या खुद सुप्रीम कोर्ट आये थे यह अर्जी लेकर कि सुप्रीम कोर्ट उनके बेटे के हत्यारों तक पहुंचने के लिए अमित शाह और नरेन्द्र मोदी से भी पूछताछ की जाए। विट्ठल पांड्या ने उस वक्त शिकायत की थी कि सीबीआई उनकी बहू जागृति पांड्या (हरेन पांड्या की पत्नी) से भी बतौर गवाह पूछताछ नहीं कर रही है। उस वक्त सुप्रीम कोर्ट ने हरेन पांड्या की याचिका यह कहते हुए वापस कर दी कि वे सीबीआई को ऐसा निर्देश नहीं दे सकते। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि किसी पर आरोप लगाने का कोई आधार होना चाहिए। सिर्फ शिकायत के आधार पर इस तरह से पूछताछ की इजाजत नहीं दी जा सकती। उस वक्त निश्चित ही सीबीआई के पास हरेन पांड्या हत्याकांड में नरेन्द्र मोदी या अमित शाह से पूछताछ का कोई आधार नहीं रहा होगा इसलिए बाप से सहानुभूति रखते हुए भी सुप्रीम कोर्ट ने बेटे की हत्या में नरेन्द्र मोदी और अमित शाह पर संदेह करने से मना कर दिया।
तो क्या अब जेल में बंद वंजारा ने सीबीआई को सचमुच कोई ऐसा सूत्र दे दिया है जिसके आधार पर हरेन पांड्या हत्याकांड में सीबीआई नरेन्द्र मोदी तक अपनी पहुंच बना सकती है? भाजपा की घबराहट और एक दशक में बदली हुई परिस्थितियां तो यही संदेह पैदा कर रही हैं। जिस वक्त जुलाई 2009 में सुप्रीम कोर्ट ने विट्ठल पांड्या की अर्जी को खारिज किया था उस वक्त कथित तौर पर हरेन के हत्यारे सलाखों के भीतर थे। उनमें से एक प्रमुख अभियुक्त था असगर अली। असगर अली उन 12 संदिग्ध में से एक था जिन्हें सीबीआई द्वारा हरेन पंड्या की हत्या में गिरफ्तार किया गया था। करीब एक दशक की कानूनी लड़ाई के बाद आखिरकार जुलाई 2011 में गुजरात हाईकोर्ट ने सभी अभियुक्तों को हत्या के साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया था। हालांकि बरी होने के बाद भी असगर अली अभी भी आंध्र प्रदेश के विशाखापत्तनम जेल में बंद है क्योंकि साजिश का मामला अभी भी उसके ऊपर दर्ज है।
इस बीच हरेन के पिता विट्ठल का देहांत हो चुका है और अब हरेन पांड्या की पत्नी जागृति पांड्या अकेले न्याय के लिए जंग लड़ रही हैं। जागृति पांड्या ने अभी इसी साल जून 2013 में असगर अली से विशाखापत्तन जेल में जाकर मुलाकात की थी। मुलाकात के बाद जागृति पांड्या ने तीन बातें साफ तौर पर कहीं थीं। एक, हैदराबाद का रहनेवाला असगर पहली बार अप्रैल 2013 में गुजरात तब गया था जब उसे गुजरात पुलिस द्वारा हरेन की हत्या के आरोप में गिरफ्तार करके गुजरात ले जाया गया जिसके बाद उसे सीबीआई को सुपुर्द कर दिया गया। दो, आईबी का वह संदिग्ध अधिकारी राजेन्द्र कुमार ही इसे पूरे घटनाक्रम के पीछे कहीं न कहीं मौजूद रहा है जिसे लेकर अभी सीबीआई और आईबी के बीच नूरा कुश्ती हो चुकी है। और तीन, एनडीए सरकार के दौरान असली दोषियों को बचाने के लिए सीबीआई का जमकर दुरूपयोग किया गया। जागृति पांड्या की इन तीन बातों को आपस में जोड़े तो जो तस्वीर उभरती है वह यह कि हरेन पांड्या की हत्या उसी फर्जी एनकाउण्टर समूह द्वारा किया गया जो गुजरात को आतंकवाद से मुक्त कराने के नाम पर कुछ खास लोगों को निपटाने का काम कर रहा था। इनमें शोहराबुद्दीन और तुलसीराम प्रजापति दो ऐसे नाम हैं जो कम से कम पाकिस्तान से आये आतंकवादी नहीं थे।
उलटे भट्ट के शपथपत्र के बाद तुलसीराम प्रजापति का नाम हरेन पांड्या की हत्या में सामने आ चुका है। गुजरात भाजपा में केशुभाई पटेल के करीबी और इंसानियत की राजनीति के प्रतीक समझेजाने भाजपा के कद्दावर नेता हरेन पांड्या की हत्या 26 मार्च 2003 को हुई। अहमदाबाद के लॉ पार्क में खड़ी कार में उनकी लाश मिली। हत्या संदेहास्पद थी और उस वक्त भी हरेन पांड्या की हत्या पर यह कहते हुए शक जाहिर किया गया था कि जिस तरह से गोली उनके शरीर में निचले हिस्से से ऊपरी हिस्से की ओर गई है उससे यह साबित होता है कि कार में उन्हें गोली नहीं मारी गई है। बल्कि उनकी हत्या कहीं और की गई और बाद में उन्हें कार में डाल दिया गया है। हरेन की हत्या के तीन साल बाद तुलसीराम प्रजापति की भी गुजरात एनकाउण्टर टीम ने 2006 में हत्या कर दी। तुलसीराम प्रजापति का एनकाउण्टर करने के साल भर पहले 2005 में शोहराबुद्दीन को भी उसी एनकाउण्टर टीम ने निपटा दिया था जिसके ज्यादातर अधिकारी इस वक्त जेल में हैं।
हरेन पंड्या की हत्या में तुलसीराम प्रजापति का पहली बार नाम संजीव भट्ट ने। पूर्व आईपीएस अधिकारी संजीव ने 2011 में कहा था कि 2003 में असगर अली ने उनसे व्यक्तिगत रूप से कहा था कि हरेन पंड्या पर गोली चलानेवाला कोई और नहीं तुलसीराम प्रजापति ही था। गुजरात हाईकोर्ट में एपिडेविट देकर भट्ट ने कहा था कि उस वक्त वे साबरमती जेल सुपरिटेन्डेन्ट थे और उनके पास इस बात के बहुत पुख्ता सबूत हैं कि हरेन पंड्या की हत्या के पीछे कोई बहुत बड़ी गहरी राजनीतिक साजिश थी। संजीव भट्ट के तर्कों और आरोपों को कोई बहुत महत्व नहीं मिला क्योंकि संजीव भट्ट मोदी विरोधी अधिकारी घोषित हो चुके थे। लेकिन अब कमोबेश वही बात अगर कथित तौर पर वंजारा सीबीआई अधिकारियों से कह रहे हैं तब? वंजारा न सिर्फ मोदी के विश्वासपात्र आईपीएस अधिकारी थे बल्कि उस दौर में गुजरात एटीएस के चीफ थे जिस दौर में ये हत्याकांड हो रहे थे।
गुजरात में मोदी के राजनीतिक उभार के वक्त गुजरात में सिर्फ हरेन पंड्या ही वह आखिरी नौजवान नेता बचे थे जो गुजरात भाजपा का भविष्य बनकर उभर रहे थे। केशुभाई पटेल, संजय जोशी और गोरधन झड़पिया के करीबी कहे जानेवाले पंड्या को मोदी पहले ही राजनीतिक रूप से असक्त बना चुके थे। 2001 में जिस वक्त नरेन्द्र मोदी को गुजरात का मुख्यमंत्री बनाकर भेजा गया उस वक्त हरेन पंड्या गुजरात के गृहमंत्री थे। वे एलिसब्रिज सीट से चुनकर गुजरात विधानसभा पहुंचे थे। बताते हैं कि गुजरात दंगों के दौरान उन्होंने गुजरात सरकार के रूख का कैबिनेट की बैठकों में कड़ा विरोध किया था जिसका खामियाजा उन्हें मोदी विरोधी के रूप में भोगना पड़ा। उस वक्त मोदी सरकार में गृहमंत्री होते हुए भी उन्होंने दंगों के विरोध में हो रही जनसुनवाईयों में हिस्सा लिया था। जाहिर है, गुजरात में नरेन्द्र मोदी की अगुवाई में जिस नई राजनीति की शुरूआत हो रही थी, वे उसका विरोध कर रहे थे। इसका खामियाजा उन्हें अगले ही चुनाव में उठाना पड़ा। पहले मोदी ने एलिसब्रिज से उनका टिकट काट दिया और केन्द्र के हस्तक्षेप के बाद पंड्या को टिकट मिला भी तो जीतने के बाद मोदी मंत्रिमंडल में कोई जगह नहीं मिली।
लेकिन हरेन पंड्या को सिर्फ राजनीतिक रूप से कमजोर करके ही नरेन्द्र मोदी संतुष्ट नहीं थे। विरोधी को समाप्त करने की अपनी विशिष्ट शैली के लिए पहचाने जानेवाले नरेन्द्र मोदी हरेन पंड्या पर अपने खुफिया तंत्र के जरिए पूरी नजर रख रहे थे। मीडिया रपटों के अनुसार उस वक्त गुजरात सरकार न सिर्फ हरेन पंड्या के हर मूवमेन्ट पर नजर रख रही थी बल्कि हरेन पंड्या का फोन भी टेप हो रहा था। ऐसा संभवत: इसलिए कि हरेन पंड्य ही गुजरात की राजनीति में वह शख्सियत बचे थे जिनके नेतृत्व में गुजरात भाजपा के मोदी विरोधी नेता मोदी के खिलाफ विद्रोह कर सकते थे। और यह सब बहुत दिन नहीं चला जब अचानक मार्च 2003 में बहुत संदेहास्पद परिस्थितियों में हरेन पंड्या की हत्या कर दी गई। इसके बाद सिलसिलेवार चले हत्याकांड के क्रम में मोदी का कद लगातार ऊंचा ही उठता गया और पार्टी के भीतर भी हरेन की हत्या अतीत का एक हादसा बनकर रह गई।
अब एक दशक बाद वंजारा के विद्रोह ने हरेन पंड्या की हत्या को नये सिरे से जिंदा कर दिया है। हरेन के तथाकथित हत्यारों को हाईकोर्ट ने मुक्त कर दिया है और सीबीआई अब सुप्रीम कोर्ट में है। इसलिए हरेन की हत्या में नये सिरे से खोजबीन शुरू हो सकती है। सोहराबुद्दीन और तुलसीराम प्रजापति हत्याकांडों के जरिए इस खोजबीन की आंच पहली बार अमित शाह और नरेन्द्र मोदी तक पहुंच सकती है। निश्चित रूप से मोदी के बढ़ते राजनीतिक कद के लिए यह हरेन हत्याकांड का जिन्न कभी भी प्रेतछाया की तरह उनके पीछे पड़ सकता है। कम से कम भाजपा का डर और मोदी का सीबीआई पर संदेह तो इसी शक को पुख्ता कर रहे हैं।
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