Saturday, September 3, 2016

खतरे में हिन्दुस्तानी इस्लाम

जैसे क्रोध दूसरों से ज्यादा अपने लिए नुकसानदेह होता है वैसे ही कट्टरपंथ दूसरों से ज्यादा अपने धर्म और समाज के लिए खतरा पैदा करता है। इस लिहाज से आरएसएस इस्लाम से ज्यादा हिन्दुओं के खतरा है फिर भी कट्टरपंथी इस्लामिस्ट और कम्युनिस्ट इस्लाम के लिए आरएसएस को सबसे बड़ा खतरा बताते हैं। यह अनायास नहीं है। इसका कारण है। कारण रिलिजिसय नहीं पोलिटिकल है। हमारे देश के इस्लामिस्ट और कम्युनिस्ट अपना पोलिटिकल स्कोर सेटल करने के लिए आरएसएस को खतरा बताकर अपने फायदे के लिए मुसलमानों को चारे की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं वैसे ही जैसे आरएसएस अपने पोलिटिकल फायदे के लिए हिन्दुओं के एक वर्ग का चारे की तरह इस्तेमाल करता है।

हमारे यहां बड़ी गलती यह हो रही है कि सदियों में इस्लाम ने फारसी सभ्यता के साथ मेल मिलाप करके जो हिन्दुस्तानी इस्लाम गढ़ा था अब उसे हटाकर इस्लाम के नाम पर अरब की संस्कृति लायी जा रही है। अरब की भी क्या कहें, उस नज्द कबीले की संस्कृति लायी जा रही है जिस कबीले के लोग इस वक्त सऊदी पर शासन कर रहे हैं। मोटे तौर पर कहें तो 'खुदा' को 'अल्लाह' से रिप्लेस किया जा रहा है। खुदा हाफिज जैसे प्रचलित शब्द को अल्ला हाफिज बना दिया गया है। बाबा बुल्ले शाह के कलाम तक में खुदा हटाकर अल्लाह भर दिया गया है। गालिब के खुदा अब नज्दी अल्लाह के सामने कमजोर पड़ते जा रहे हैं। खुदा, खुदारा जैसे शब्द आम बोलचाल से ही गायब हो गये हैं।

यह सब अरबी संस्कृति की देन है। इस्लाम की जिस सूफी पंरपरा पर हिन्दुस्तानी मुसलमान अलग छवि रखता था उस पर अब देओबंदी बहावी इस्लाम लादा जा रहा है। जिस देश में अस्सी फीसदी से ज्यादा मुसलमान बरेलवी, शिया और सूफी मत को मानते हों उस देश में बीस फीसद कट्टर बहावी देओबंदी इस्लाम की आवाज बन गये हैं। ये वही बीस फीसद लोग हैं जो इस्लाम को पोलिटिकल पॉवर के लिए इस्तेमाल करते हैं और अरबी संस्कृति को सच्चा इस्लाम बताते हैं। बाकी मुसलमान जो सिर्फ यह जानता है कि वह मुसलमान है इन लोगों के झांसे में आकर उनकी बात को ही इस्लाम की बात मान बैठता है।

इन लोगों के कारण कपड़े से लेकर नाम तक, भाषा से लेकर खान पान तक हर तरफ हिन्दुस्तानी इस्लाम खतरे में है। जिस इस्लामी तहजीब का केन्द्र कभी लखनऊ या भोपाल हुआ करता था उस इस्लामी तहजीब को कट्टरपमथी मदरसों के फतवों से नेस्तनाबूत किया जा रहा है। पाकिस्तान में तो कुछ लोग इसके खिलाफ बोलते भी हैं यहां तो मुसलमान अजीब सी मूर्खता के शिकार हो गये हैं। इस्लाम पर की जानेवाली हर बात उन्हें इस्लाम पर हमला नजर आती है इसलिए बिना कुछ सोचे समझे विरोध में खड़े हो जाते हैं। दुर्भाग्य से बीते कुछ दशकों से कम्युनिस्ट विचारक और कम्युनल पोलिटिकल पार्टियां मुसलमानों का यह भ्रम बनाये हुए हैं ताकि उनकी राजनीति चलती रहे।

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