Wednesday, July 29, 2020

जाकिर नाईक के जहरीले बोल

पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद में प्रस्तावित मंदिर के संदर्भ में डॉक्टर जाकिर नाईक ने एक बार फिर ऐसा बयान दिया है जिसे लेकर उनकी आलोचना हो रही है। इस्लामिक प्रवक्ता जाकिर नाईक ने कहा है कि किसी इस्लामिक स्टेट में गैर मुस्लिमों के लिए इबादतगाह बनाना गैर इस्लामिक है और किसी इस्लामिक देश में मुस्लिम करदाताओं के पैसे से मंदिर या चर्च नहीं बनाया जा सकता। हालांकि जाकिर नाईक का ये बयान अपने आप में ही विरोधाभाषी है। एक तरफ वो इस्लामिक स्टेट की बात कर रहे हैं और दूसरी तरफ मुस्लिम करदाता भी कह रहे हैं। जो वास्तविक इस्लामिक स्टेट होंगे वहां मुसलमान से कर नहीं लिया जाता क्योंकि कर लेना भी एक तरह की मुनाफाखोरी है जिसका इस्लाम में निषेध है। सऊदी अरब में आज भी आयकर नहीं लिया जाता क्योंकि वो इस्लामिक स्टेट है। तो ऐसे में उनकी बात सिरे से ही खारिज हो जाती है क्योंकि पाकिस्तान इस्लामिक स्टेट नहीं बल्कि इस्लामिक रिपब्लिक है।

पाकिस्तान यूरोप के राष्ट्र राज्य के सिद्धांत पर चलता है, वहां चुनाव भी होते हैं और जनता की आय पर कर भी वसूला जाता है। बैंक ब्याज देते भी हैं और वसूलते भी हैं। इसलिए पाकिस्तान को इस्लामिक स्टेट कहा ही नहीं जा सकता। हां, ये बात सही है कि पाकिस्तान अपने आप को सेकुलर स्टेट नहीं मानता और उसका गठन भी इस्लाम के नाम पर ही हुआ था लेकिन बनने के बाद मोहम्मद अली जिन्ना ने अपने पहले सार्वजनिक संबोधन में ही कहा था कि स्टेट को किसी के धर्म से कोई लेना देना नहीं है। लोग अपने मंदिर में, मस्जिद में, चर्च में जाने के लिए आजाद हैं। लेकिन बनने के बाद धीरे धीरे पाकिस्तान इस्लामिक रिपब्लिक की आड़ में इस्लामिक स्टेट बनने की कोशिश करने लगा। इसका पहला प्रयास मौलाना मौदूदी ने किया और उन्होंने पाकिस्तान को एक मॉडल इस्लामी स्टेट के रूप में गठित करने का अभियान शुरु किया। उस समय सन साठ के दशक में उनकी जमात ए इस्लामी पर प्रतिबंध लगा दिया गया और उन्हें सार्वजनिक सभा करने से भी रोक दिया जाता था। लेकिन समय बीतने के साथ पाकिस्तान जिन्ना के रास्ते पर चलने की बजाय मौलाना मौदूदी के रास्ते की तरफ आगे बढने लगा। 

इन्हीं मौलाना मौदूदी के शागिर्द थे डॉ इसरार अहमद जो पाकिस्तान ही नहीं पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में सुन्नी इस्लाम के बड़े जानकार माने जाते हैं। डॉ इसरार अहमद के शागिर्द हैं डॉ जाकिर नाईक जो बांग्लादेश में हुए आतंकी हमले में उनका नाम आने से ही भारत से निर्वासित जीवन व्यतीत कर रहे हैं। आजकल वो मलेशिया में हैं और वहीं रहकर अपना वीडियो संदेश जारी करते हैं जो भारत पाकिस्तान दोनों जगह खूब देखा जाता है। अपने ताजा वीडियो संदेश में उन्होंने इस्लामाबाद में प्रस्तावित मंदिर को गैर इस्लामिक बताते हुए विरोध किया है। लगभग सात मिनट के अपने वीडियो संदेश में जाकिर नाईक ने कहा है कि किसी इस्लामिक देश में गैर मुस्लिमों का प्रार्थना घर बनाने की इजाजत नहीं दी जा सकती। ये पूरी तरह से गैर इस्लामिक है। गैर मुस्लिम या काफिरों के जो प्रार्थना घर पहले से हैं उनको भी दुरुस्त कराने की इजाजत इस्लामिक मुल्क में देना गैर इस्लामिक है। उन्होंने ये भी कहा है कि किसी मुसलमान या इस्लामी रियासत का ऐसे मंदिर/चर्च/गुरुद्वारा या फिर अन्य किसी भी धार्मिक स्थल के लिए चंदा देना गैर इस्लामिक है। ऐसा नहीं किया जा सकता। और सबसे आखिर में उन्होंने कहा है कि फिर भी अगर मठ/मंदिर/चर्च/गुरुद्वारा बना दिया जाता है तो मुसलमानों का फर्ज (कर्तव्य) है कि वो उसे गिरा दें। 

जाकिर नाईक की इन बातों पर हो सकता है आपको ऐतराज हो लेकिन डॉक्टर नाईक अपनी तरफ से कुछ नहीं कह रहे। जो इस्लाम कहता है वो सिर्फ वही बता रहे हैं। अपने विडियो संदेश में उन्होंने ये संदेह भी मिटा दिया है सुन्नी इस्लाम के किसी फिरके में कोई गुंजाइश है क्या? उनका साफ कहना है कि सुन्नी इस्लाम के चारों फिरके इस बारे में एकमत हैं कि इस्लामिक देश में गैर इस्लामिक पूजा पद्धतियों के धर्मस्थल नहीं बनाये जा सकते। इस्लाम के स्वर्ग सऊदी अरब में यह नियम लागू है। वहां मस्जिदों के अलावा चर्च या अन्य धार्मिक स्थल बनाने की इजाजत नहीं है। अब क्योंकि पाकिस्तान भी संपूर्ण रूप से सऊदी अरब बनने के रास्ते पर है तो वहां कैसे इजाजत दी जा सकती है? और पाकिस्तान ही क्यों? संपूर्ण संसार में जहां भी इस्लामिक शासन है वहां ये बात जोर पकड़ेगी क्योंकि कुरान और हदीस ऐसा करने के लिए ही कहते हैं। यूएई ने जरूर आबू धाबी में स्वामीनारायण मंदिर बनाने की अनुमति दे दी क्योंकि यूएई ने अपना राजकीय धर्म इस्लाम नहीं रखा है। आज से करीब पचास साल पहले अस्तित्व में आते समय ही उन्होंने तय कर लिया था कि युनाइटेड अरब अमीरात का कोई राजकीय धर्म नहीं होगा, इस्लाम भी नहीं। 

लेकिन जाकिर नाईक के बयान पर एक अमेरिकी इस्लामिक विद्वान ने यह कहते हुए आपत्ति दर्ज किया कि जाकिर नाईक जो कह रहे हैं वो पूरी तरह से गलत है। आज तक रेडियो ने इस मामले पर अमेरिका में रह रहे डॉ मुक्तदर खान से बात की। डॉ मुक्तदर खान एक अमेरिकी यूनिवर्सिटी में पढाते हैं और इस्लामिक मामलों के साथ साथ अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार भी हैं। डॉ खान ने अपने बयान में पहले तो डॉ जाकिर नाईक के बयान की निंदा की और जब उनसे ये सवाल पूछा गया कि डॉ नाईक अपनी बात के समर्थन में कुरान और हदीस का हवाला दे रहे हैं तो उन्होंने कुरान की ही एक आयत का उल्लेख करते हुए कहा कि कुरान सब प्रकार के मजहब, उनकी महिलाओं की सुरक्षा के लिए कहता है। अपनी बात के समर्थन में उन्होंने कुरान की जो आयत कोट की वह है सूरा अल हज की आयत नंबर २२। उनकी बात की पड़ताल करते हुए जब हमने उस आयत को पढा तो पाया कि उस आयत में ऐसा कुछ नहीं कहा गया है कि मुसलमानों को गैर मुस्लिमों की इबदतगाहों और महिलाओं की रक्षा करनी है। वह आयत थोड़ी सी रहस्यमय है जो स्पष्ट तौर पर कुछ नहीं कहती। कुरान की वह आयत बताती है कि "ये वे लोग है जो अपने घरों से नाहक़ निकाले गए, केवल इसलिए कि वे कहते है कि "हमारा रब अल्लाह है।" यदि अल्लाह लोगों को एक-दूसरे के द्वारा हटाता न रहता तो मठ और गिरजा और यहूदी प्रार्थना भवन और मस्जिदें, जिनमें अल्लाह का अधिक नाम लिया जाता है, सब ढा दी जातीं। अल्लाह अवश्य उसकी सहायता करेगा, जो उसकी सहायता करेगा - निश्चय ही अल्लाह बड़ा बलवान है।"

स्पष्ट तौर पर इस आयत में ऐसा कुछ नहीं कहा गया है जैसा डॉक्टर खान दावा कर रहे हैं। उल्टे यह अल्लाह की सहायता करने के लिए कहता है। अब अल्लाह की सहायता क्या मंदिर और चर्च बनाकर किया जाएगा? जबकि जाकिर नाईक जो दावा कर रहे हैं वो स्पष्ट तौर पर गैर मुस्लिमों के पूजाघरों की इजाजत नहीं देता है। वो कुरान के अध्याय 5 की आयत नंबर 2 का हवाला दे रहे हैं जो कहता है कि  "हक़ अदा करने और ईश-भय के काम में तुम एक-दूसरे का सहयोग करो और हक़ मारने और ज़्यादती के काम में एक-दूसरे का सहयोग न करो।" डॉ जाकिर नाईक का कहना है कि कुरान स्पष्ट तौर पर गैर मुस्लिमों के साथ किसी भी प्रकार के सहयोग करने की मनाही करता है। यह शिर्क है। तो क्या किसी इस्लामी देश में गैर मुस्लिमों का मंदिर बनाने में मदद करके मुसलमान शिर्क कर सकता है? बिल्कुल नहीं। मामला मूर्ति पूजा से जुड़ा हो तो कदापि नहीं। हां, अपने वीडियो संदेश में जाकिर नाईक इतना जरूर कहते हैं कि अगर गैर मुसलमानों का मुसलमानों से कोई समझौता हो जाता है और वो जजिया देने पर राजी हो जाते हैं तब उन्हें धिम्मी (दूसरे दर्जे का नागरिक) का दर्जा देकर उनके पूजाघरों में जाने की छूट दे सकता है। इस्लाम के मुताबिक कोई भी धिम्मी जजिया देकर अपने धर्म का पालन कर सकता है। लेकिन नये निर्माण की रोक इस दशा में भी जारी रहेगी भले ही गैर मुस्लिम अपने ही पैसे से अपने लिए पूजाघर क्यों न बनवा रहे हों। 

भारतीय उपमहाद्वीप में मुसलमानों के शासन के दौरान ऐसे उदाहरण मिलते हैं जब जजिया लेकर उन्होंने हिन्दुओं को अपनी पूजा पद्धति मानने की छूट दे रखी थी। कुछ इतिहासकार तो यहां तक कहते हैं कि जजिया से इतनी अधिक कमाई होती थी कि मुस्लिम शासक धर्म परिवर्तन पर ज्यादा जोर नहीं देते थे। हालांकि कट्टरपंथी डॉ जाकिर नाईक हों या उदारवादी डॉ मुक्तसर खान दोनों ही कुरान की कोई ऐसी आयत प्रस्तुत नहीं कर पाये जो स्पष्ट तौर पर मंदिर बनाने की इजाजत देता या न देता हो। दोनों ही संदर्भों में ही बात कर रहे हैं। अब यह मुसलमान को तय करना है कि वह अल्पसंख्यक होने पर कौन सा संदर्भ इस्तेमाल करता है और बहुसंख्यक होने पर कौन सा संदर्भ इस्तेमाल करता है। हां, डॉ मुक्तदर खान एक महत्व की बात जरूर कहते हैं कि दुनिया में अगर 52 इस्लामिक मुल्क हैं तो सवा सौ के करीब गैर इस्लामिक मुल्क भी हैं जहां मुस्लिम अल्पसंख्यक हैं। अगर वो भी अल्पसंख्यक मुसलमानों के साथ जैसे को तैसा का व्यवहार करने लगेंगे तो क्या होगा? क्या जाकिर नाईक जैसे इस्लामिक विद्वानों के पास इसका कोई जवाब है? 

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