मुल्ला उमर 2013 में ही मारा गया. आज अफगान तालिबान ने भी यह मान लिया कि मुल्ला उमर 2013 में ही मारा जा चुका है. वही मुल्ला उमर जिसने पाकिस्तान की मदद से अफगानिस्तान में तालिबानी शासन की स्थापना किया और दुनिया में आतंक के दूसरे नाम के रूप में पहचाना गया. लेकिन मुल्ला उमर ऐसा था नहीं जैसा हो गया. मुल्ला मोहम्मद उमर के जीवन का शुरुआती पहलू ऐसा रहा है जो निहायत इंसानी जज्बा रखता था.
कंधार में पैदा होनेवाला अनाथ मुल्ला उमर थोड़ा बड़ा हुआ तो पाकिस्तान तालीम लेने आया था. यहां उसने मदरसों में इस्लाम की तालीम ली और कराची में एक धार्मिक शिक्षक के बतौर काम करता रहा. मौलवी नाम का सम्मान उसे यहीं मिला जो बाद में मुल्ला हो गया. अफगानिस्तान की उथल पुथल उसे बेचैन कर रही थी और सबसे पहले मुल्ला उमर ने ही उन चालीस लड़कों की एक "तालिबान" फौज बनाई जो उससे इस्लाम की तालीम लेते थे. इसी फौज के साथ उसने सीमावर्ती अफगानिस्तान के दो गांवों पर हमला कर दिया. मकसद था, "बच्चाबाजी" के खिलाफ आवाज उठाना. बच्चों को शोहदों की कैद से आजाद कराने के बाद वह दोबारा कराची लौट आया और तालीम के अपने काम में लग गया.
लेकिन अफगानिस्तान के बदलते हालात में उसका यह फार्मूला पाकिस्तान को बहुत पसंद आया. आईएसआई के हामिद गुल और कर्नल सुल्तान आमिर तरार ने मुजाहिदीन प्रोजेक्ट के लिए देओबंदी दारुल उलूम हक्कानिया से संपर्क साधा तो उन्हें मुल्ला उमर का पता मिल गया जो हक्कानियां में इस्लाम की शिक्षा ले चुका था. यह मुल्ला उमर ही था जिसने "लड़ाकों" के लिए मुजाहिद की बजाय तालिबान शब्द का इस्तेमाल किया था जिसका मतलब होता है विद्यार्थी.
क्योंकि अपने छापामार कारनामों की वजह से वह अफगानिस्तान के सोवियत विरोधी धड़े की नजर में आ चुका था इसलिए उसकी मुलाकात ओसामा बिन लादेन से हो चुकी थी. बस फिर क्या था, पाकिस्तान ने मुल्ला उमर को पैसा, हथियार और ट्रेनिंग दी और देखते ही देखते पाकिस्तान के भीतर अफगान तालिबान तैयार हो गया.
यहां से मुल्ला उमर जो हुआ उसे पूरी दुनिया जानती है. उसने करीब एक दशक तक अफगानिस्तान को परेशान करके रखा जिसमें चार साल तालिबान शासन के भी शामिल हैं. अफगानिस्तान से तालिबान शासन के खात्मे के बाद मुल्ला उमर कहां गया, कहां रहा वह सब रहस्य ही बना रहा. इस दौरान अफगान तालिबान के कई टुकड़े हो गये. पाकिस्तान ने भी मुल्ला उमर से किनारे करते हुए हक्कानी नेटवर्क को सपोर्ट कर दिया और वह मुल्ला उमर जिसने अफगानिस्तान की घृणित "बच्चाबाजी" के खिलाफ तालिबानी फौज बनाई थी उसे पाकिस्तान ने आतंकवाद का सरगना बना दिया.
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