इस साल रमजान के महीने में दो खबर कमोबेश एकसाथ ही आई हैं. पहली खबर यह कि सऊदी भारत में बहावी इस्लाम को बढ़ावा देने के लिए पूंजी निवेश कर रहा है और दूसरी खबर केरल से जहां मुस्लिम एजुकेशन सोसायटी ने अपने कालेज में जीन्स पहनने पर पाबंदी लगा दिया हैं. दोनों खबर अलग अलग जरूर हैं लेकिन हैं एक दूसरे से जुड़ी हुई.
सऊदी से आनेवाले बहावी इस्लाम का सबसे ज्यादा जोर केरल पर ही है क्योंकि वहां न केवल मुस्लिम आबादी बहुतायत है बल्कि केरल का अरब देशों से जबर्दस्त व्यावसायिक रिश्ता भी है. वैसे भी भारत की पहली मस्जिद केरल में ही बनी थी इसलिए सऊदी अरब अपने बहावी धर्म सुधार का ज्यादा जोर केरल पर ही दे रहा है.
हो सकता है जिस मुस्लिम एजूकेशन सोसायटी ने जीन्स के खिलाफ फतवा दिया है उसे भी सऊदी के 1700 करोड़ में कुछ मिला हो क्योंकि ऐसे दकियानूसी फैसले सऊदी के उस बहावी इस्लाम को बहुत सुहाते हैं जिससे भारत के उदारवादी शिया और सुन्नी मुसलमान पीछा छुड़ाना चाहते हैं.
जो भी हो इतना साफ दिख रहा है कि सऊदी इस्लाम में बहावी कट्टरता पैदा करने के लिए पूरी दुनिया में काम कर रहा है. भारत में भी अपने हजारों धर्म प्रचारकों के जरिए भारत के मुसलमानों को एक बहावी रुलबुक पहुंचाई जा रही है. रुलबुक इस्लाम के कुछ नियम कानून कहती है-
!) किसी पीर, औलिया या फकीर की मजार पर मत जाओ.
!) कानून को भूल जाओ और शरीयत को अपनाओ
!) औरतों को बुर्का पहनाओ और उन्हें काम पर जाने से रोको
!) मर्दों की दाढ़ी बढ़ाओ और पाजामा चार इंच ऊंचा करवाओ.
!) सार्वजनिक जगहों पर औरत मर्द का मिलना जुलना बंद करवाओ.
!) गीत संगीत, हंसना रोना सब बंद करो. न जोर से हंसना है और न किसी की मैयत में जोर से रोना है.
ऐसी और भी अनेक बातें जो मुसलमान को आपस में तो अलग करती ही हैं मुसलमानों के एक वर्ग विशेष में कट्टरता भी भरती हैं. और यह सब हो रहा है इस्लाम के नाम पर. अगर भारत सरकार एनजीओ की विदेशी फण्डिग रोककर विदेशी हस्तक्षेप कम करना चाहती है तो उसे इस बहावी पैसे के बहाव पर भी रोक लगानी चाहिए ताकि जो इस्लाम भारतीय है वह भारतीय ही बना रहे.
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