दुनिया में बीसवीं सदी योग के प्रसार की सदी थी. योग के इस प्रसार में सैकड़ों नहीं हजारों योगियों ने चुपचाप अपना योगदान दिया और पूरी दुनिया में योग के महत्व को स्थापित किया. लेकिन बीसवीं सदी में योग के इस प्रसार को बिना स्वामी शिवानंद सरस्वती को जाने समझा नहीं जा सकेगा.
तमिलनाडु में 1887 में जन्मे स्वामी शिवानंद सरस्वती पेशे से ब्रिटिश मलेशिया में डॉक्टर थे. चिकित्सा करते करते ही उन्हें एक दिन यह महसूस हुआ कि शरीर के सब अंग तो समझ लिए लेकिन आत्मा का पता न चला? बस इतना सवाल मन में उठते ही वे आत्मा की खोज में फिर से भारत लौट आये और ऋषिकेश में स्थित हो गये. यही गुरुदीक्षा ली और यहीं से उन्होंने वह किया जिसने पश्चिमी जगत में योग की आधारशिला रखने में महत्वपूर्ण योगदान दिया.
1936 में डिवाइन लाइफ सोसायटी की स्थापना करनेवाले स्वामी शिवानंद सरस्वती ने अपने कई शिष्यों को पश्चिम में योग प्रसार के लिए भेजा. योग और आध्यात्म पर 200 से अधिक किताबें लिखीं. करीब साठ, सत्तर साल पहले अमेरिका, दक्षिण अफ्रीका और कनाडा में डिवाइन लाइफ सोसायटी के संरक्षण में योग प्रसार का काम शुरू हुआ जो आज तक चल रहा है.
पूरी दुनिया में योग की सबसे प्रामाणिक संस्थाओं में एक बिहार स्कूल आफ योग के संस्थापक स्वामी सत्यानंद सरस्वती स्वामी शिवानंद सरस्वती के ही शिष्य थे और पचास के दशक में उन्हें यह कहते आश्रम से विदा किया था कि "जाओ सत्यानंद दुनिया को योग सिखाओ."
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