ज्यादा पुरानी बात नहीं है. कोई चार या पांच साल पहले की बात है. 2009 का आमचुनाव बीत चुका था और आडवाणी के 'नेटीजनों' ने उनको आइना दिखा दिया था. भारत में पहली बार किसी राजनेता ने वेबसाइट और ब्लाग के जरिए अपना प्रचार किया था और वह ओबामा की तरह सफल नहीं हो पाया था.
उस वक्त भी मेरा यही कहना था कि 2009 नहीं, 2014 के चुनाव में कुछ हद तक और 2019 के चुनाव बहुत हद तक नया मीडिया (तब सोशल मीडिया की बजाय न्यू मीडिया ज्यादा चलन में था) अपनी भूमिका निभायेगा. इसके बाद का चुनाव तो नये मीडिया से ही लड़ा जाएगा. यह कैसे होगा इसका कोई खाका साफ नहीं था और सोशल नेटवर्किंग साइट्स (आर्कुट, हाई-फाइव आदि) सोशल मीडिया हो जाएगा इसका भी अंदाज नहीं था.
लेकिन फिर तभी पहले वेबसाइट के जरिए और फिर फेसबुक पर गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी का आगमन हुआ. हो सकता है यह प्रेरणा उन्हें अपने राजनीतिक संरक्षक लालकृष्ण आडवाणी से ही मिली हो लेकिन निश्चित तौर पर उन्होंने इन मीडिया माध्यमों का आडवाणी से बेहतर इस्तेमाल किया.
देखते ही देखते फेसबुक पर ऐसे ग्रुप की बाढ़ आ गयी जो नरेन्द्र मोदी को राजनीति का मसीहा घोषित कर रही थी. उन दिनों मुख्यधारा की टीवी मीडिया के लिए नरेन्द्र मोदी ऐसे राजनीतिक अछूत थे जिनका नाम सिर्फ गुजरात दंगों को याद करते हुए लिया जाता था. संभवत: मोदी सरकार की अमेरिकी मीडिया सलाहकार एपको कंपनी ने ही यह रास्ता निकाला कि सोशल मीडिया के जरिए वे लोगों तक पहुंचेगे और उनका यह फार्मूला जबर्दस्त हिट रहा.
उन दिनों मीडिया के एक मित्र ने बहुत प्रभावित होते हुए कहा था नरेन्द्र मोदी बहुत पापुलर हो गये हैं. यह बहुत पापुलर वाला खिताब नरेन्द्र मोदी को सोशल मीडिया से ही मिला. जिसका असर टीवी पर हुआ और जब इंटरनेट और टीवी पर नरेन्द्र मोदी "बहुत पॉपुलर" नेता हो गये तो पार्टी ने भी यह कहते हुए उनको अपना नेता मान लिया कि वे बहुत पॉपुलर हैं. फिर जो हुआ वह हम सबके सामने हैं.
फिर भी यह तय कर पाना मुश्किल है कि भारत में सोशल मीडिया ने नरेन्द्र मोदी को स्थापित किया या नरेन्द्र मोदी ने सोशल मीडिया को. जो भी हो इतना तय है कि नरेन्द्र मोदी समकालीन नेताओं में भविष्य को देखने की क्षमता सबसे अधिक रखते हैं. उन्होंने सोशल मीडिया के घोड़े पर तब दांव लगाया जब यह ब्लाग ब्लाग के दायरे में सिमटा हुआ था. बड़े पैमाने पर कॉल सेन्टरों में लोगों की भर्ती की गयी और पोलिटिकल कैम्पेन का नया रास्ता खोला गया. कुख्यात फोटोशॉप फैक्ट्री और सोशल मीडिया की जुगलबंदी ने वास्तविकता को आभाषीय छद्म से पटक दिया. जब तक लोग इस जुगलबंदी को समझ पाते नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री बन चुके थे.
इसलिए आज अगर मोदी फेसबुक के मेहमान हैं तो सम्मान का यह आपसी आदान प्रदान दोनों डिजर्व करते हैं.
उस वक्त भी मेरा यही कहना था कि 2009 नहीं, 2014 के चुनाव में कुछ हद तक और 2019 के चुनाव बहुत हद तक नया मीडिया (तब सोशल मीडिया की बजाय न्यू मीडिया ज्यादा चलन में था) अपनी भूमिका निभायेगा. इसके बाद का चुनाव तो नये मीडिया से ही लड़ा जाएगा. यह कैसे होगा इसका कोई खाका साफ नहीं था और सोशल नेटवर्किंग साइट्स (आर्कुट, हाई-फाइव आदि) सोशल मीडिया हो जाएगा इसका भी अंदाज नहीं था.
लेकिन फिर तभी पहले वेबसाइट के जरिए और फिर फेसबुक पर गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी का आगमन हुआ. हो सकता है यह प्रेरणा उन्हें अपने राजनीतिक संरक्षक लालकृष्ण आडवाणी से ही मिली हो लेकिन निश्चित तौर पर उन्होंने इन मीडिया माध्यमों का आडवाणी से बेहतर इस्तेमाल किया.
देखते ही देखते फेसबुक पर ऐसे ग्रुप की बाढ़ आ गयी जो नरेन्द्र मोदी को राजनीति का मसीहा घोषित कर रही थी. उन दिनों मुख्यधारा की टीवी मीडिया के लिए नरेन्द्र मोदी ऐसे राजनीतिक अछूत थे जिनका नाम सिर्फ गुजरात दंगों को याद करते हुए लिया जाता था. संभवत: मोदी सरकार की अमेरिकी मीडिया सलाहकार एपको कंपनी ने ही यह रास्ता निकाला कि सोशल मीडिया के जरिए वे लोगों तक पहुंचेगे और उनका यह फार्मूला जबर्दस्त हिट रहा.
उन दिनों मीडिया के एक मित्र ने बहुत प्रभावित होते हुए कहा था नरेन्द्र मोदी बहुत पापुलर हो गये हैं. यह बहुत पापुलर वाला खिताब नरेन्द्र मोदी को सोशल मीडिया से ही मिला. जिसका असर टीवी पर हुआ और जब इंटरनेट और टीवी पर नरेन्द्र मोदी "बहुत पॉपुलर" नेता हो गये तो पार्टी ने भी यह कहते हुए उनको अपना नेता मान लिया कि वे बहुत पॉपुलर हैं. फिर जो हुआ वह हम सबके सामने हैं.
फिर भी यह तय कर पाना मुश्किल है कि भारत में सोशल मीडिया ने नरेन्द्र मोदी को स्थापित किया या नरेन्द्र मोदी ने सोशल मीडिया को. जो भी हो इतना तय है कि नरेन्द्र मोदी समकालीन नेताओं में भविष्य को देखने की क्षमता सबसे अधिक रखते हैं. उन्होंने सोशल मीडिया के घोड़े पर तब दांव लगाया जब यह ब्लाग ब्लाग के दायरे में सिमटा हुआ था. बड़े पैमाने पर कॉल सेन्टरों में लोगों की भर्ती की गयी और पोलिटिकल कैम्पेन का नया रास्ता खोला गया. कुख्यात फोटोशॉप फैक्ट्री और सोशल मीडिया की जुगलबंदी ने वास्तविकता को आभाषीय छद्म से पटक दिया. जब तक लोग इस जुगलबंदी को समझ पाते नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री बन चुके थे.
इसलिए आज अगर मोदी फेसबुक के मेहमान हैं तो सम्मान का यह आपसी आदान प्रदान दोनों डिजर्व करते हैं.
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