बजाज परिवार टाटा नैनो के कंपटीशन में सबसे सस्ती कार लाना चाहते थे. उन्होंने फ्रांस की रेनॉ कंपनी से समझौता भी किया लेकिन प्रोजेक्ट में इतनी संभावना थी कि दोनों के रास्ते अलग हो गये और अब सस्ती कार के उसी फार्मूले पर आगे
बढ़ते हुए रेनॉ क्विड लेकर हाजिर हो गयी लेकिन तीन साल से बजाज साहब अपनी कार को बाजार में नहीं ला पा रहे हैं. क्यों?
क्योंकि मामला सुप्रीम कोर्ट में है और केन्द्र सरकार सुप्रीम कोर्ट में अपना पक्ष नहीं बता रही है. जनहित याचिका डाली गयी है कि बजाज की इस कार को मंजूरी मिली तो कार का एक नया सेगमेन्ट खड़ा हो जाएगा जिसकी इंजन क्षमता आटोरिक्शा वाली है. बात भी यही है. बजाज ने इस चौपाये में तिपाये का ही इंजन लगाया है जो 35 किलोमीटर से ज्यादा माइलेज देता है. कीमत भी 1 लाख 35 हजार रखी गयी. आटोरिक्शा और इस कार में जो बुनियादी अंतर हैं वे भले ही इसमें बैठनेवाले को कार का सुख न दें लेकिन आटोवाला दुख भी नहीं देंगे.
सच कहें तो शुरूआत भले ही टाटा ने की हो लेकिन जनता की कार का काम बजाज ने ही पूरा किया जिसका इस्तेमाल सड़क से तिपहिया हटाने के साथ साथ सामान्य परिवार को अपना परिवहन उपलब्ध करानेवाला हो सकता है. लेकिन बजाज की इस क्यूट' कोशिश को सरकारी और कानूनी समर्थन नहीं मिल पा रहा है. हो सकता है नैनो बिरादरी इसके पीछे काम कर रही हो लेकिन नुकसान तो उनका है जो तिपाये से चौपाये पर जाना चाहते हैं लेकिन बिना खर्च बढ़ाये हुए.
बहरहार इंडिया का यह इन्नोवेशन अब दूसरी दुनिया के बाजारों की तरफ बढ़ चला है. हम चाहेें तो मुंह ताक सकते हैं.
बढ़ते हुए रेनॉ क्विड लेकर हाजिर हो गयी लेकिन तीन साल से बजाज साहब अपनी कार को बाजार में नहीं ला पा रहे हैं. क्यों?
क्योंकि मामला सुप्रीम कोर्ट में है और केन्द्र सरकार सुप्रीम कोर्ट में अपना पक्ष नहीं बता रही है. जनहित याचिका डाली गयी है कि बजाज की इस कार को मंजूरी मिली तो कार का एक नया सेगमेन्ट खड़ा हो जाएगा जिसकी इंजन क्षमता आटोरिक्शा वाली है. बात भी यही है. बजाज ने इस चौपाये में तिपाये का ही इंजन लगाया है जो 35 किलोमीटर से ज्यादा माइलेज देता है. कीमत भी 1 लाख 35 हजार रखी गयी. आटोरिक्शा और इस कार में जो बुनियादी अंतर हैं वे भले ही इसमें बैठनेवाले को कार का सुख न दें लेकिन आटोवाला दुख भी नहीं देंगे.
सच कहें तो शुरूआत भले ही टाटा ने की हो लेकिन जनता की कार का काम बजाज ने ही पूरा किया जिसका इस्तेमाल सड़क से तिपहिया हटाने के साथ साथ सामान्य परिवार को अपना परिवहन उपलब्ध करानेवाला हो सकता है. लेकिन बजाज की इस क्यूट' कोशिश को सरकारी और कानूनी समर्थन नहीं मिल पा रहा है. हो सकता है नैनो बिरादरी इसके पीछे काम कर रही हो लेकिन नुकसान तो उनका है जो तिपाये से चौपाये पर जाना चाहते हैं लेकिन बिना खर्च बढ़ाये हुए.
बहरहार इंडिया का यह इन्नोवेशन अब दूसरी दुनिया के बाजारों की तरफ बढ़ चला है. हम चाहेें तो मुंह ताक सकते हैं.
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