Sunday, September 13, 2015

आधुनिक भारत के योग स्तंभ - स्वामी कुवलयानंद

भारत में योग क्रांति और योग पुनर्जागरण की बात हो और स्वामी कुवलयानंद जी का जिक्र न हो तो जानकारी पूरी नहीं होगी.

1883 में गुजरात में जन्में स्वामी कुवलयानंद (जगन्नाथ गणेश गुने) बंबई और बड़ौदा से पढ़ाई के बाद आजादी आंदोलन का हिस्सा हो गये थे. वे श्री अरविन्द से प्रभावित थे और बाद में तिलक के होमरूल मूवमेन्ट में शामिल हो गये थे. इसी दौरान भारतीय संस्कृति का पठन पाठन करते हुए 1907 में उनका परिचय बड़ौदा के जुम्ममदादा व्यायामशाला से हुआ. यहां मानिकराव दादा ने उन्हें तीन साल शरीर के भारतीय शास्त्र से उनका शुरूआती परिचय करवाया. लेकिन उनके जीवन में योग के विधिवत प्रवेश की शुरूआत हुई 1919 में जब बड़ौदा में पहली बार उनकी मुलाकात बंगाली योगी परमहंस माधवदास से हुई. और यहां से कुवलयानंद के जीवन की दिशा बदल गयी.

स्वामी कुवलयानंद योग को आधुनिक वैज्ञानिक कसौटी पर कसकर इसका प्रसार करना चाहते थे ताकि योग के चिकत्सकीय पहलू को लोगों के सामने लाया जा सके. इसके लिए उन्होंने 1924 में दुनिया का पहला योग रिचर्स इंस्टीट्यूट स्थापित किया जिसका नाम था कैवल्यधाम.  मुंबई पुणे के बीच में लोनावाला में स्थापित कैवल्यधाम ने एक रिसर्च मैगजीन "योग मीमांसा" का प्रकाशन भी शुरू किया जो पूरी तरह से योग के चिकत्सकीय पहलू को समर्पित है.

स्वामी कुवलयानंद का 1966 में निधन हो गया लेकिन उन्होंने जिस योग क्रांति के बीज बोये थे वे समय के साथ पल्लवित होते रहे. और आज पूरब में चीन से लेकर पश्चिम में कनाडा तक कैवल्यधाम योग पर एक प्रामाणिक संस्था के रूप में कार्यरत है. यह स्वामी कुवलयानंद ही थे जिन्होंने पहली बार योग को चिकित्सा के रूप में सामने रखा.

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