पिता के निधन के बाद चार दिन चहरुम (शोक काल) से बाहर आते ही महबूबा मुफ्ती ने बीजेपी को शोक में डाल दिया है। खबर है कि कश्मीर में महबूबा मुफ्ती ने बीजेपी के साथ नयी सरकार बनाने के लिए कुछ शर्तें रखी हैं जिसमें डिपुटी सीएम नहीं होगा, सारे महत्वपूर्ण मंत्रालय पीडीपी के पास रहेंगे, पीडीपी का एक कैबिनेट मंत्री दिल्ली में होगा और सभी विवादास्पद मुद्दों पर बीजेपी मौन रहेगी।
पीडीपी पर शुरू से ही बीजेपी के साथ न जाने का दबाव रहा है। कश्मीर में अलगाववादी राजनीति की पैरोकार पीडीपी का ख्वाब हमेशा कश्मीर में कश्मीरियों का इंटीग्रेशन रहा है, इंडिया में कश्मीर का इंटीग्रेशन कभी उनके एजेण्डे में नहीं था। जाहिर है सोनिया गांधी से सांत्वना पाने के बाद महबूबा मुफ्ती बीजेपी से उस तरह बात नहीं करेंगी जिस तरह पिता मोहम्मद सईद कर रहे थे। वे कश्मीर की खलीफा बनना चाहती हैं, महज मुख्यमंत्री होना उनका मकसद नहीं है।
लेकिन आंकड़ों का पेंच फंस रहा है। कांग्रेस और पीडीपी मिलकर भी 39 सीट ही पहुंच पा रहे हैं। माकपा की एक सीट भी अगर इस संभावित गठबंधन में जोड़ दें तो भी आंकड़ा 40 पर जाकर अटक जाता है। जबकि बीजेपी और पीपुल्स कांफ्रेन्स ने अगर नेशनल कांफ्रेन्स से हाथ मिला लिया तो 42 विधायक हो जाते हैं। तब कश्मीर के अन्य चार विधायक ही कश्मीर के गाजी हो जाएंगे और जिसे चाहेंगे उसे तख्त पर बिठायेंगे।
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