Sunday, January 3, 2016

पठानकोट का पाकिस्तान

आज दूसरे दिन भी पठानकोट का संघर्ष जारी है। आज एक और आतंकवादी को मारा गया है और खबर यह है कि अभी एक और आतंकवादी जिन्दा है जिसकी खोज जारी है। इस बीच एनएसजी के एक कर्नल आंतकवादियों द्वारा लाये बम को निरस्त करने के दौरान हादसे के शिकार हो गये।

इधर दिल्ली में भी गहमा गहमी है। ट्रेन उड़ाने की धमकी के कारण सख्ती बरती जा रही है। और कल गफलत में पठानकोट आपरेशन को खत्म मान चुके गृहमंत्री राजनाथ सिंह आज चुप हैं। लेकिन जो संकेत मिल रहे हैं उससे लगता है कि इस महीने होने जा रही भारत पाक वार्ता पर इस आतंकवादी हमले का गंभीर असर नहीं पड़ेगा। यह एक अच्छा संकेत हैं।

पाकिस्तान में सरकार वैसी संप्रभुतासंपन्न नहीं होती है जैसी भारत में है। लोकतंत्र के पाकिस्तानी ढांचे की समस्या यह है यहां सत्ता के कई केन्द्र हैं और जब बात भारत से रिश्ते की हो तो हर चरमपंथी नीति निर्धारक नजर आने लगता है। पाकिस्तान में जिया उल हक ने सत्ता के जिस समीकरण की बुनियाद रखी थी उसमें सेना, आईएसआई और चरमपंथी मुस्लिम गुटों का गठजोड़ है। जिया कोई लोकतातंत्रिक व्यक्ति नहीं थे। सेना से आये थे और राष्ट्रपति के रूप में पाकिस्तान के दूसरे फादर आफ पाकिस्तान बनना चाहते थे। इसलिए उन्होंने शरीया लॉ का दाना फेंककर उन चरमपंथी कबूतरों को फंसाया जो दांत में तिनका नहीं बल्कि बंदूक दबाकर उड़ते थे।

जनरल जिया ने जो बीज बोये थे उसकी फसल आज तक लहलहा रही है। जब जब पाकिस्तान की कोई सरकार एक नेशन स्टेट के रूप में अपनी पहचान बनाने की कोशिश करती है जनरल जिया की उम्मत आड़े आ जाती है। वर्तमान नवाज शरीफ के साथ संकट थोड़ा अधिक इसलिए है क्योंकि वे इसी उम्मत की मदद लेकर लाहौर से इस्लामाबाद पहुंचे हैं। इसलिए सेना के जर्ब-ए-अज्ब की जंग अफगानों, सिंधियों, पख्तूनों और बलोचों के बीच तो चलती है लेकिन पंजाबियों को खुला छोड़ दिया जाता है। सिन्ध में आंख गड़ानेवाले रेन्जर्स डेरा डालकर बैठे रहते हैं लेकिन पंजाब में वही रेन्जर्स आंख मूंद लेते हैं। क्यों? क्योंकि यहां आतंकी सरगना नहीं बल्कि "अमीर" रहा करते हैं। तो फिर सवाल है कि भारत क्या करे?

इतना तो तय है कि भारत के कहने से पाकिस्तान की सरकार कभी हाफिज सईद या मसूद अजहर के खिलाफ कार्रवाई नहीं करेंगी और भारत पाकिस्तान में घुसकर सीधी कार्रवाई कर नहीं सकता। जनरल जिया की इस आतंकी उम्मत पर काबू पाने का सिर्फ एक जरिया है। और वह है कि भारत सरकार पाकिस्तान सरकार के साथ संवाद में रहे और द्विपक्षीय रिश्तों को खराब न होने दे। लेकिन........

लेकिन यह भारत सरकार की जिम्मेदारी है कि वह अपने नागरिकों और सीमाओं की सुरक्षा भी करे। इसका जरिया भी पाकिस्तान सरकार से बेहतर रिश्तों के जरिये ही निकल सकता है। पाकिस्तान सरकार के साथ मिलकर तो आप पाकिस्तान की आतंकी जमात पर काबू पा सकते हैं लेकिन पाकिस्तान सरकार को दुश्मन घोषित करते ही अगर सबसे ज्यादा मजबूत होगी तो वह यही उम्मत होगी। लेकिन पाकिस्तान से आगे बातचीत जारी रखते हुए हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि हम किस पाकिस्तान से बात कर रहे हैं। याद रखिए हम उस पाकिस्तान से बात नहीं कर रहे हैं जो पठानकोट में आतंकवादी बनकर आया है।

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