इंडियन प्रोटोकॉल के मुताबिक भारत में तीन पद सुपर वीवीआईपी की कैटेगरी में आते हैं। प्रेसीडेन्ट, प्राइम मिनिस्टर और वाइस प्रेसिडेन्ट। इनके बाद जितने भी ओहदे हैं वे सब वीआईपी की कैटेगरी में चले जाते हैं।
इन तीन वीवीआईपी लोगों की देखरेख पर भारत की जनता सबसे ज्यादा धन खर्च करती है। इनके रहन सहन, परिवहन, आफिस सब पर खर्च में भारत के लोग कोई कोताही नहीं करते हैं। करना भी नहीं चाहिए क्योंकि यही तीन पद भारतीय लोकतंत्र के प्रतीक पद हैं जो जहां खड़े होते हैं वहां भारत को रिप्रेजेन्ट करते हैं।
इन तीनों पदों पर बैठे लोगों के परिवहन के आधुनिकीकरण पर बीते डेढ़ दशक में पानी की तरह पैसा बहाया गया है। एम्बेसडर, कन्टेसा और सफारी गाड़ियों को हटाकर हाईएन्ड बीएमडब्लू, मर्सीडीज की गाड़ियों को काफिले में शामिल किया गया है। सब बख्तरबंद हैं और किसी आपातस्थिति में वीवीआईपी को सुरक्षित रखने का भरोसा देती हैं। इनके टायरों में आग नहीं लगती, इनके तेल टैंक तक फायर प्रूफ हैं तथा रासायनिक हथियारों के हमले से भी वीवीआईपी को बचाने का भरोसा देती हैं।
इसी तरह हवाई सेवा का भी आधुनिकीकरण करते हुए तीन नये बोइंग बिजनेस जेट 737-800 को शामिल किया गया। इनमें से हर एक विमान की कीमत 950 करोड़ रुपये है। ये विमान हमले की स्थिति में सेल्फ डिफेन्स सिस्टम से लैस हैं। बोइंग ने ये बिजनेस जेट दुनिया के वीवीआईपी लोगों को ध्यान में रखकर ही बनाये हैं जिसमें एक वीवीआईपी की सुरक्षा और सुविधा का पूरा ध्यान रखा गया है। कांफ्रेस एरिया, बेडरुम, शॉवर, मिनी आफिस और सेटेलाइट फोन की सुविधा इन बिजनेस जेट में होती है। इन सबसे बड़ी खूबी यह कि ये बिजनेस जेट नॉन स्टॉप 17 हजार किलोमीटर तक उड़ान भर सकते हैं। अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में इन्हीं सारे
पहलुओं पर गौर करने के बाद ही शायद इन बिजनेस जेट को खरीदने का निर्णय लिया था।
लेकिन इन खूबियों के बाद भी वीवीआईपी की अंतरराष्ट्रीय उड़ानों में इन विमानों का इस्तेमाल नहीं किया जाता। अंतरराष्ट्रीय उड़ानों के वक्त इंडियन एयरफोर्स एयर इंडिया से उसका विमान 747-200 उधार लेता है। अब क्योंकि यह विमान पुराना पड़ चुका है इसलिए इंडियन एयरफोर्स को एयर इंडिया से दो बोइंग 777ER विमान पूरी तरह सौंपने का निर्णय लिया गया है। ये दोनों विमान पूरी तरह से सिर्फ वीवीआईपी की सेवा में रहेंगे और पहले के 747 की तरह उनका इस्तेमाल एयर इंडिया नहीं कर सकेगा। इस तरह से अब भारत के तीन वीवीआईपी के लिए पांच विमान हमेशा सेवा में खड़े रहेंगे।
सरकार के इस फैसले पर सवाल उठाने की जरूरत है। जब तक वीवीआईपी के परिवहन के लिए विशेष विमान नहीं खरीदे गये थे तब तक एयर इंडिया से उधार लेकर परिवहन करना न्यायसंगत था लेकिन अब जबकि तीन हजार करोड़ खर्च करके तीन विशेष विमान, राजदूत, राजहंस और राजकमल खरीदे गये हैं फिर चार हजार करोड़ के दो अतिरिक्त विमान वीवीआईपी की सेवा में तैनात करने का क्या तुक है? सुरक्षा एजंसी एसपीजी जो तर्क दे रही है वह यह कि लंबी दूरी की यात्रा के लिए बिजनेस जेट नाकाफी हैं। सरकार का यह तर्क नाकाफी है।
जिस बोइंग बिजनेस जेट को भारत सरकार ने खरीदा है वह नॉनस्टॉप 17 हजार किलोमीटर की उड़ान भर सकता है। राष्ट्राध्यक्षों की लंबी दूरी की उड़ानों को ध्यान में रखते हुए बोइंग कंपनी ने इन विमानों में अतिरिक्त फ्यूल टैंक लगाये हैं। जबकि लंबी दूरी का हवाला देकर जिस बोइंग 777 को एयर इंडिया से लेकर वीवीआईपी की सेवा में तैनात किया जा रहा है उसकी नॉनस्टॉप उड़ान 9700 किलोमीटर है। यानी भारत के वीवीआईपी अपने राजदूत में नई दिल्ली से न्यूयार्क की यात्रा कर सकते हैं। फिर सवाल यह है कि भारत की जनता के चार हजार करोड़ रूपये वीवीआईपी की यात्रा के नाम पर बेवजह बर्बाद किये जा रहे हैं?
इस सवाल का जवाब मिलना मुश्किल है क्योंकि ये फैसले एसपीजी की सलाह पर खुद कैबिनेट सचिवालय लेता है। लेकिन सवाल तो पूछा ही जाना चाहिए कि क्या चार हजार करोड़ के दो बड़े विमान सिर्फ इसलिए लिये जा रहे हैं कि इन यात्राओं में बड़ी संख्या में डेलिगेशन और सुरक्षा का तामझाम भी जाता है जिसे बोइंग बिजनेस जेट में ले जाना संभव नहीं है? लंबी दूरी की यात्रा, सुरक्षा और सुविधा तो बहाना है असल कारण शायद यही है। लेकिन यह कारण कोई वाजिब कारण नहीं है। वाजिब इसलिए नहीं है क्योंकि इनकी वजह से विमान खरीदने और उनको सिर्फ वीवीआईपी यात्राओं के लिए सुरक्षित रखने का जो अतिरिक्त बोझ भारत की जनता पर पड़ेगा वह फिजूलखर्ची है। ऐसी यात्राओं के वक्त विमान किराये पर लिये जा सकते हैं और बहुत कम खर्चे में डेलिगेशन और सुरक्षा तंत्र को साथ में ढोया जा सकता है।
यह देश सक्षम है, समर्थ हो रहा है लेकिन इतना भी अमीर नहीं है कि प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति की यात्राओं के लिए पांच पांच विमानों का बोझ उठाये। सरकारी खर्चे को कम करने की बजाय जनता के ऊपर चार हजार करोड़ का अतिरिक्त बोझ डालना एक कल्याणकारी और जनता के प्रति जिम्मेदार सरकार का नजरिया नहीं हो सकता, न होना चाहिए।
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