डॉ अमिताभ मट्टू का परिवार कश्मीरी पंडितों के उन आखिरी परिवारों में था जिन्होंने तब भी कश्मीर घाटी नहीं छोड़ा जब सब सब घाटी छोड़कर जा रहे थे। डॉ मट्टू का परिवार वहीं रहा। समय बीता और डॉ मट्टू ने जेएनयू से पढ़ाई पूरी करने के बाद वहीं अध्यापन शुरू किया। फिर जम्मू यूनिवर्सिटी के वाइस चॉसलर भी रहे। जिन्दगी में अब तक उन्होंने बहुत कुछ किया है लेकिन आज कश्मीर में वे जो कर रहे हैं वह शायद कश्मीर की तकदीर बदल दे।
डॉ मट्टू को ओमर अब्दुल्ला ने कश्मीर लौटने के लिए कहा था, डॉ मट्टू जब तक लौटते तब तक ओमर अब्दुल्ला कुर्सी से हट चुके थे। लेकिन वे लौटे और आज मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद के सलाहकार हैं। डॉ मट्टू के साथ मिलकर जम्मू कश्मीर सरकार घाटी में आईटी क्रांति लाने की कोशिश कर रहे हैं। कश्मीर के नौजवानों के लिए यह शायद सबसे बेहतर समाधान है। अगर जम्मू कश्मीर की सईद सरकार और मट्टू अपने अभियान में सफल रहे तो वह दिन दूर नहीं जब श्रीनगर की एक और खूबसूरत पहचान दुनिया को दिखाई देगी जो आज की पहचान से बिल्कुल अलग होगी। बंदूकों को अपनी पहचान बना चुके श्रीनगर में आज भी ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो बंदूक उठाने को आखिरी विकल्प समझते हैं लेकिन सईद और मट्टू की जोड़ी सफल रही तो दस साल में तस्वीर दूसरी होगी।
फिलहाल दिल्ली, मुंबई और चेन्नई की आईटी कंपनियों को न्यौता दिया जा रहा है कि वे श्रीनगर और जम्मू में आईटी कैंपस स्थापित करें। अनिल अंबानी की रिलांयस ने 3000 नौजवानों को नौकरी देनेवाले काल सेन्टर की बुनियाद भी रख दी है। अन्य कंपनियों को यहां आने के लिए प्रेरित किया जा रहा है।
जेएनयू में डॉ मट्टू अस्त्रविहीन समाज का विज्ञान पढ़ाते थे। अब उनके सामने मौका है कि वे उन सिद्धांतों को जमीन पर उतार सकें ताकि एक समाज शस्त्र छोड़कर अपने हाथों में तरक्की का शास्त्र पकड़ ले। उनकी आगाज अच्छा है। उम्मीद करिए अंजाम भी अच्छा ही हो।
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