अगर लखनऊ के छोटे इमामबाड़े में "एक शाम नाइजीरिया के मुसलमानों के नाम" कार्यक्रम न भी होता तो भी इसका जिक्र करना जरूरी है। बोको हरम के लिए बदनाम नाइजीरिया में एक हजार मुसलमानों (गैर सरकारी आंकड़ा) को कत्ल कर दिया गया है। मारे गये मुसलमान शिया मुसलमान हैं लेकिन यह कत्लेआम सुन्नियों के चरमपंथी समूह बोको हरम ने भी नहीं किया है। यह "कत्लेआम" नाइजीरिया की सेना ने किया है। नाइजीरिया में शियाओं के सर्वोच्च धर्मगुरु इब्राहिम जकजकी भी इस हत्याकांड के बाद से लापता हैं और खबर यह है कि उनकी पत्नी और बेटे इस हत्याकांड में मार दिये गये हैं।
नाइजीरिया की कुल 18 करोड़ आबादी में अब ईसाई और मुसलमानों की आबादी आधी आधी हो चुकी है। कुछ स्रोत मुसलमानों की आबादी कुल आबादी का सत्तर फीसदी भी बताते हैं। जो भी हो सच यह है कि नाइजीरिया में मुसलमान बहुसंख्यक हो गये हैं। अभी नाइजीरिया सेकुलर स्टेट है और शासन, प्रशासन और सेना का चरित्र सेकुलर है। लेकिन मुसलमानों के बहुसंख्यक होने के साथ शरीया कानून लागू करने की मुहिम भी तेज हो गयी है। बीते डेढ़ दशक से सुन्नी आतंकी संगठन बोको हरम नाइजीरिया में शरीया लॉ लागू करने के लिए मारकाट कर रहा है। लेकिन सेकुलरिज्म पर अकेला संकट बोको हरम ही नहीं है। नाइजीरिया के अल्पसंख्यक शिया मुसलमान भी इस्लामिक कायदे कानून के लिए अपने तरीके से सशस्त्र संघर्ष कर रहे हैं।
नाइजीरिया में सिर्फ सुन्नी मुसलमान ही नहीं बल्कि शिया मुसलमान भी एक चरमपंथी समूह है। नाइजीरिया में शिया मुसलमानों की तादात कुल मुसलमानों में पांच फीसदी से भी कम है लेकिन पांच फीसदी का यह विस्तार भी अस्सी के दशक से अब तक हुआ है। उसके पहले नाइजीरिया में शिया मुसलमान नाममात्र के ही थे या बिल्कुल नहीं थे। लेकिन 1979 में इरान ने इब्राहिम ज़कज़की को ईरान बुलाकर शिया इस्लाम की शिक्षा दी और वापस लौटकर ज़कज़की ने इस्लामिक मूवमेन्ट आफ नाइजीरिया की नींव रखी। ईरान ने उन्हें नाइजीरिया के 'अयतोल्ला' की पदवी दे रखी है जिसका मतलब होता है जिसमें अल्लाह के निशान दिखते हो।
अयतोल्ला इब्राहिम जक़ज़की की नाइजीरिया में जो भूमिका है वह एक चरमपंथी नेता की ही है। वे भी नाइजीरिया में इस्लामिक स्टेट बनाना चाहते हैं लेकिन उस इस्लामिक स्टेट का आधार सऊदी-बहावी नहीं बल्कि ईरान होगा। इब्राहिम ज़कज़की का इस्लामिक मूलमेन्ट भले ही बोको हरम की तरह कत्लेआम नहीं करता है लेकिन नाइजीरिया में उसकी भी पहचान एक चरमपंथी संगठन के रूप में ही है। नीइजीरिया के शिया मुसलमान दोहरा टकराव रखते हैं। एक तरफ सेकुलर सरकार से तो दूसरी तरह चरमपंथी सुन्नी इस्लाम से। नाइजीरिया में सेना ने जो कार्रवाई की है उसका कारण कहीं न कहीं वही चरमपंथ है जिस पर बोको हरम और इस्लामिक मूवमेन्ट दोनों अमल करते हैं।
लेकिन हमारा सवाल तो लखनऊ वाले कल्बे जव्वाद नकवी साहब से है जिनकी खबर ईरान के सरकारी पोर्टल पर छपी है कि क्या इब्राहिम जकजकी नाइजीरिया में सेकुलर सिद्धांतों के लिए लड़ रहे थे जो सेना की कार्रवाई के खिलाफ आप दुनियाभर का समर्थन चाहते हैं? यह ठीक है कि इस्लामिक मूवमेन्ट बोको हरम जैसे कत्लेआम नहीं करता लेकिन नाइजीरिया में वह भी शरीया लागू करने का हिमायती है बिल्कुल बोको हरम की तरह। नाइजीरिया में जकजकी की वह छवि नहीं है जो ईरान दुनिया के सामने पेश कर रहा है, और जिसके समर्थन में लखनऊ में मातम मन रहा है। जिस सैन्य कार्रवाई की ये दुहाई दे रहे हैं वह कार्रवाई भी तब शुरू हुई जब इस्लामिक मूवमेन्ट के लोगों ने सेना के जनरल पर धावा बोल दिया था।
यह कत्लेआम जितना निंदनीय है उतना ही निंदनीय नाइजीरिया में शरीया लागू करनेवाले प्रयास भी हैं जिसके लिए सिर्फ बोको हरम ही नहीं बल्कि इस्लामिक मूवमेन्ट भी जिम्मेदार है जिसके अगुआ इब्राहिम जकजकी हैं। दोनों लोकतांत्रिक मूल्यों और सिद्धांतों के खिलाफ लड़ रहे हैं।
(फोटो: नाइजीरियाई इस्लामिक मूवमेन्ट के सर्वोच्च नेता इब्राहिम ज़कज़की)
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