बैलगाड़ी के देश में बुलेट ट्रेन की बात की जाए तो आलोचना होना स्वाभाविक है। हमारे सामने रोजमर्रा से जुड़ी जिन्दगी की समस्याओं के ऐसे अंबार खड़े हैं कि बुलेट ट्रेेन की बात भी बेमानी लगती है। हम पहले गरीब के पेट में रोटी पहुंचाएं कि बुलेट ट्रेन चलाएं? आखिर एक लाख करोड़ का कर्ज हम कहां निवेश करें?
आप मुझसे पूछेंगे तो मैं कहूंगा बुलेट ट्रेन में ही निवेश करिए। अव्वल तो यह एक लाख करोड़ न हमारी पूंजी है और न ही हमें दान में मिल रही है। इसका अस्सी फीसदी हिस्सा एक सॉफ्ट लोन है जो जापान 0.1 के व्याज दर पर हमें एक परियोजना में लगाने के लिए दे रहा है। जाहिर है, वह पैसा दे रहा है तो उसे अपना पैसा वापस भी चाहिए। गरीबी उन्मूलम पर यह रकम खर्च करके हम जापान को वापस कैसे करेंगे? यह पैसा व्यवसाय के लिए मिल रहा है और जाहिर सी बात है यह वहीं खर्च किया जाएगा जहां से कमाकर अपनी कीमत वापस निकाल सके। बुलेट ट्रेन वह व्यवसाय है जिसमें जापान पूंजी निवेश करके कमाई करेगा। हालांकि इस मामले में जापान अपने कर्ज से उतना व्याज नहीं वसूल सकेगा जितना वह आमतौर पर लेता है लेकिन घाटे का सौदा तो नहीं ही है।
अब दूसरा सवाल यह है कि अगर यह पैसा बुलेट ट्रेन में लगाने की बजाय देश के मूल रेल ढांचे पर खर्च कर दिया जाए तो देश की ज्यादा बड़ी आबादी को फायदा पहुंचेगा फिर रोजाना महज 40 हजार यात्रियों की सुविधा के लिए इतनी बड़ी रकम क्यों खर्च की जा रही है? तो इसका जवाब होगा कि यह पैसा सिर्फ ट्रेन में नहीं तकनीकि में निवेश किया जा रहा है। वह तकनीकि जिसमें भारत चार दशक पीछे चल रहा है। भारत में ऐसे अनेक व्यावसायिक रूट हैं जिस पर व्यापारी वर्ग थोड़ा अधिक पैसा खर्च करके बुलेट ट्रेन का यात्री बन सकता है। भारत सरकार आनेवाले कुछ सालों में इन सभी रूट पर ट्रेनों की गति बढ़ानेवाली है और कुछ पर बुलेट ट्रेन भी चलानेवाली है। चीन, जापान और फ्रांस के साथ कई तरह के करार किये जा रहे हैं जो भारतीय रेलवे का कायाकल्प कर देंगे। ट्रेनों की औसत गति बढ़ाने, रेलवे स्टेशनों को नये सिरे से बनाने और हाईस्पीड कारिडोर बनाने का काम शामिल है।
रेलवे में सुधार की ये कोशिशें हर दौर में चलती रही हैं लेकिन लालू युग से इसमें तेजी आयी और मनमोहन सिंह के कार्यकाल में जितने भी रेलवे मिनिस्टर हुए उन्होंने बुलेट ट्रेन की बुनियाद को कमजोर करने की बजाय इसे और मजबूत किया। माधवराव सिंधिया ने जिस बुलेट ट्रेन का ख्वाब देखा था और पूंजी न जुटा पाने के अभाव में दिल्ली-आगरा-कानपुर रुट पर पहली बुलेट ट्रेन नहीं चला पाये थे उसे फिर से लालू प्रसाद यादव ने अपने बजटीय भाषण में शामिल किया। लालू इस बारे में इससे ज्यादा कुछ खास न कर सके लेकिन 2009 में जब दूसरी दफा मनमोहन सिंह प्राइम मिनिस्टर बने तो उन्होंने बुलेट ट्रेन की परियोजना को सिरे चढ़ाना शुरू किया। हाई स्पीड ट्रेनों के लिए रेल विकास निगम के तहत एक कंपनी बनाई गयी जो इन परियोजनाओं के निर्माण के प्रति जवाबदेह थी। कई रूट पर विचार किया गया जिसमें दिल्ली कानपुर, दिल्ली अमृतसर, और मुंबई अहमदाबाद का रूट शामिल था। मुंबई अहमदाबाद रूट को पहले पुणे से जोड़ने का विचार था जिसे बाद में त्याग दिया गया। इस समूची कवायद का मकसद सिर्फ इतना था कि पहली बुलेट ट्रेन किस रूट पर चलायी जाए कि वह घाटे का सौदा न बने। जाहिर है, मुंबई अहमदाबाद का हीरा रूट बुलेट ट्रेेन के लिए सबसे आकर्षक रूट था इसलिए चार साल की तैयारी के बाद मई 2013 में जापान सरकार के साथ समझौता हो गया और मुंबई अहमदाबाद रूट पर पहली बुलेट ट्रेन चलाने के लिए जापान सरकार ने मनमोहन सिंह को एक ट्रिलियन येन का सॉफ्ट लोन देने की हामी भी भर दी। अब जो हो रहा है वह सिर्फ पिछले सरकार के फैसले को लागू करने का काम हो रहा है। और अच्छा हो रहा है।
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