अयोध्या में किन्ही मौलवी साहब ने कहा है कि शिव इस्लाम के भी पहले पैगंबर हैं. यह सुनकर कुछ धार्मिक जढ़ जंगम बहुत खुश है कि मामला हिन्दूमय हो गया, तो कुछ को यह बात समझ ही नहीं आ रहा है कि इसका मतलब क्या है?
शिवत्व ही चेतन तत्व है. वह जो अल्लाह का नूर सबमें समाया रहता है वही शिवत्व है. कठोर की कठोरता. उदार की उदारता. धर्म का खतरा यह है कि वे मर्म को सीमित कर सकते हैं. इसलिए धर्मों को परे रखिए. थोड़ी देर के लिए और वह होकर सोचिए जो आप हैं. हम हैं. सब हैं. वही चेतना ईश्वर है जो कभी नष्ट नहीं होती. वही शिव है. वही शिवत्व है.
लेकिन ईश्वर होने भर से संसार का काम कहां चलता है? चेतना या उर्जा को अभिव्यक्त होने के लिए पदार्थ रूप धारण करना पड़ता है. और यहीं से जीवन का रूपांतरण शुरू होता है. वह जो रूपांतरण है वह वही शक्ति है. जीवनी शक्ति. चेतना और जीवनी शक्ति का यही संयोग पदार्थ को जन्म देता है. संसार में जो कुछ दृश्य है वह सब कुछ शिव और शक्ति का संयोग है. चेतना और शक्ति का समागम.
पश्चिम के विज्ञान से परे जीवन के रहस्य की यह खोज कोई नई नहीं है. अतीत की विकसित सभ्यताओं वर्तमान मध्यपूर्व और दक्षिण एशिया ने जीवन के विकास का सूत्र जान लिया था. और दोनों ही जगह पर विकसित हुई जीवन पद्धतियां इसी आधार पर विकसित हुईं. और सूर्य चंद्र की पूजा आराधना के साथ साथ चेतना और शक्ति के प्रतीकों को भी स्थापित किया गया और उनके पूजन की परंपरा शुरू की गयी.
मोहम्मद साहेब से पहले अरब का ज्यादातर हिस्सा देवी (शक्ति) की पूजा करता था. खुद कुरैश कबीले की कुलदेवी कुर थीं जिनके उपासक कुरैशी कहे गये. मेरी अपनी खोजबीन और समझ के मुताबिक मुझे इस बात में कोई शक नजर नहीं आता कि चेतन तत्व को जान लेने के बाद भी मोहम्मद साहब ने अपने कबीले की देवी का प्रतीक वह काला पत्थर ही आखिरकार काबा में रहने दिया बाकी सब मूर्तियां तोड़ दी गयीं. मूर्ति पूजा गैर इस्लामिक जरूर हो गया लेकिन अब काबा का वह चमत्कारी पवित्र काला पत्थर जिसे खुद मोहम्मद साहब ने चूमकर काबा की दीवार में चुनवाया था, इस नये धर्म का केन्द्र बन गया.
आज मौलवी साहब जो कह रहे हैं वह शायद इसलिए कि इस्लाम को बारह सौ साल के पीछे अतीत में ले जाया जा सके. पहले घोषित पैगंबर अब्राहम से भी पहले. उनकी कोशिश और मंशा चाहे जो हो लेकिन यह सत्य है पैगंबर ने काबा के जरिए इस्लाम को जो प्रतीक दिया वह उनकी कुलदेवी का प्रतीक था. कोई भी इतिहासकार अगर इन तथ्यों से असहमत नहीं होगा तो उसके लिए यह इंकार कर पाना बहुत मुश्किल होगा कि इस्लाम के मूल में गॉडेस कुर हैं. वही कुरदेवी जो कुरैशी कबीले की कुलदेवी थीं. जीवन के शिव और शक्ति का प्राचीन सिद्धांत इस्लाम में आज भी कायम है, कोई समझे या न समझे.
शिवत्व ही चेतन तत्व है. वह जो अल्लाह का नूर सबमें समाया रहता है वही शिवत्व है. कठोर की कठोरता. उदार की उदारता. धर्म का खतरा यह है कि वे मर्म को सीमित कर सकते हैं. इसलिए धर्मों को परे रखिए. थोड़ी देर के लिए और वह होकर सोचिए जो आप हैं. हम हैं. सब हैं. वही चेतना ईश्वर है जो कभी नष्ट नहीं होती. वही शिव है. वही शिवत्व है.
लेकिन ईश्वर होने भर से संसार का काम कहां चलता है? चेतना या उर्जा को अभिव्यक्त होने के लिए पदार्थ रूप धारण करना पड़ता है. और यहीं से जीवन का रूपांतरण शुरू होता है. वह जो रूपांतरण है वह वही शक्ति है. जीवनी शक्ति. चेतना और जीवनी शक्ति का यही संयोग पदार्थ को जन्म देता है. संसार में जो कुछ दृश्य है वह सब कुछ शिव और शक्ति का संयोग है. चेतना और शक्ति का समागम.
पश्चिम के विज्ञान से परे जीवन के रहस्य की यह खोज कोई नई नहीं है. अतीत की विकसित सभ्यताओं वर्तमान मध्यपूर्व और दक्षिण एशिया ने जीवन के विकास का सूत्र जान लिया था. और दोनों ही जगह पर विकसित हुई जीवन पद्धतियां इसी आधार पर विकसित हुईं. और सूर्य चंद्र की पूजा आराधना के साथ साथ चेतना और शक्ति के प्रतीकों को भी स्थापित किया गया और उनके पूजन की परंपरा शुरू की गयी.
मोहम्मद साहेब से पहले अरब का ज्यादातर हिस्सा देवी (शक्ति) की पूजा करता था. खुद कुरैश कबीले की कुलदेवी कुर थीं जिनके उपासक कुरैशी कहे गये. मेरी अपनी खोजबीन और समझ के मुताबिक मुझे इस बात में कोई शक नजर नहीं आता कि चेतन तत्व को जान लेने के बाद भी मोहम्मद साहब ने अपने कबीले की देवी का प्रतीक वह काला पत्थर ही आखिरकार काबा में रहने दिया बाकी सब मूर्तियां तोड़ दी गयीं. मूर्ति पूजा गैर इस्लामिक जरूर हो गया लेकिन अब काबा का वह चमत्कारी पवित्र काला पत्थर जिसे खुद मोहम्मद साहब ने चूमकर काबा की दीवार में चुनवाया था, इस नये धर्म का केन्द्र बन गया.
आज मौलवी साहब जो कह रहे हैं वह शायद इसलिए कि इस्लाम को बारह सौ साल के पीछे अतीत में ले जाया जा सके. पहले घोषित पैगंबर अब्राहम से भी पहले. उनकी कोशिश और मंशा चाहे जो हो लेकिन यह सत्य है पैगंबर ने काबा के जरिए इस्लाम को जो प्रतीक दिया वह उनकी कुलदेवी का प्रतीक था. कोई भी इतिहासकार अगर इन तथ्यों से असहमत नहीं होगा तो उसके लिए यह इंकार कर पाना बहुत मुश्किल होगा कि इस्लाम के मूल में गॉडेस कुर हैं. वही कुरदेवी जो कुरैशी कबीले की कुलदेवी थीं. जीवन के शिव और शक्ति का प्राचीन सिद्धांत इस्लाम में आज भी कायम है, कोई समझे या न समझे.
No comments:
Post a Comment