रुस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन के भारत
दौरे पर भले ही मीडिया ने ज्यादा तवज्जो न दिया हो लेकिन रुस और भारत दोनों
के लिए उनका यह दौरा बेहद अहम साबित हुआ। रूस के राष्ट्रपति और भारत के
प्रधानमंत्री के बीच एक उच्च स्तरीय शिखर वार्ता हुई जिसमें दोनों देशों के
बीच जो समझौते हुए उसमें परमाणु उर्जा के लिए नये रियेक्टर बनाने के साथ
साथ एक महत्वपूर्ण रक्षा समझौता भी हुआ जिसके तहत एक समझौता यह भी हुआ कि
भारत रूस के एक हेलिकॉप्टर का चार सौ पीस मेक इन इंडिया करेगा. रूस के जिस
हेलिकॉप्टर का भारत में मेक इन इंडिया किया जाएगा उसका नाम है केए 226टी।
भारत ने जिस कमोव कंपनी के साथ चार सौ हेलिकॉप्टर बनाने का समझौता किया है न वह कमोव कंपनी भारत के लिए नयी है और न ही उसके बनाये हेलिकॉप्टर। अस्सी के दशक से भारतीय नेवी कमोव के हेलिकॉप्टर इस्तेमाल कर रही है और एक दशक पहले कमोव-31 के एक नया बेड़ा भी भारतीय नेवी में शामिल हो चुका है। लेकिन अब तक नेवी के लिए होनेवाले समझौतों से अलग पहली बार कमोव के साथ जो समझौता हुआ है वह नेवी के साथ साथ थलसेना के इस्तेमाल के लिए हेलिकॉप्टर बनाने का भी है।
समझौते के तहत भारत अपने देश में 400 कमोव हेलिकॉप्टर निर्मित करेगा। रूस की कमोव कंपनी का यह एक सैन्य यूटिलिटी हेलिकॉप्टर है जिसके केबिन को जरूरत के हिसाब सैन्य परिवहन, एंबुलेन्स, वाहन परिवहन इत्यादि के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। इसकी एक खासियत और है कि यह डबल रोटर कॉप्टर है। यानी भारी परिवहन जरूरतों और दुर्गम जगहों पर यह ज्यादा कुशलता से काम कर सकता है।
लेकिन इस दोहरी खूबी के बाद भी रूस की कमोव कंपनी के इस हेलिकॉप्टर का दुनिया में दूसरा कोई खरीदार नहीं है। कमोव के नेवल हेलिकॉप्टर रुस चीन और भारत में भी उड़ रहे हैं तो मिलिट्री वर्जन के इन हेलिकॉप्टरों का खरीदार रूस के अलावा कहीं नहीं है। शीतयुद्ध के पहले और उस दौरान भी सोवियत संघ ने ढेरों मिलिट्री हाजार्ड डिजाइन किये थे। दुनिया का सबसे बड़ा विमान हो कि सबसे ताकतवर तोप। सोवियत रूस ने एक से एक नायाब नमूने गढ़े थे जो शीतयुद्ध की समाप्ति के बाद छाये शीतकाल में शीतघरों में बंद कर दिये गये। कारण क्या रहे पता नहीं लेकिन कमोव का यह 226टी मॉडल दुनिया के सैन्य बाजार में बिक नहीं पाया। कमोव का यह हेलिकॉप्टर भी शायद इसी शीतकाल का शिकार हो गया होगा।
1965 में कमोव कंपनी द्वारा विकसित किये कमोव केए226टी का दोहरा रोटर ही शायद इसके लिए दोहरा संकट बन गया। खुद कमोव कंपनी ने इस मॉडल को बहुत आगे नहीं बढ़ाया और फाइटर और अटैक कॉप्टरों के निर्माण और बिक्री पर ज्यादा जोर दिया। पहले इजरायल के साथ मिलकर सैन्य फाइटर कॉप्टर और अब चीन ने हाल में ही 74 अटैक हेलिकॉप्टरों के जिस जेड10 प्रोजेक्ट को पूरा किया है असल में वह कमोव का ही डिजाइन है जो संयुक्त रूप रूस की कमोव कंपनी और चीन ने विकसित किया है। पांचवी पीढ़ी का यह हेलिकॉप्टर हवा से हवा और हवा से जमीन पर जंग लड़ने के अलावा इलेक्ट्रानिक वार में भी कारगर हथियार है।
लेकिन अटैक और फाइटर कॉप्टर के लिए तरसते भारत ने कमोव से वह लेकर मेक इंडिया करने की कोशिश नहीं की। यह समझ पाना मुश्किल है कि जब भारत अमेरिका से फाइटर हेलिकॉप्टर अपाचे इस शर्त पर भी ले रहा है कि बोइंग कंपनी उसका मेक इन इंडिया लाइसेन्स नहीं देगी फिर हमारे रणनीतिकारों और सरकार ने सारा जोर उस केटेगरी के हेलिकॉप्टर पर क्यों दिया जिस केटेगरी के हेलिकॉप्टर हम खुद बना रहे हैं? इस समझौते से मल्टी यूटिलिटी कॉप्टर ध्रुव के प्रोडक्शन पर सीधा असर पड़ेगा, यह तय है। क्या भारत सरकार को यह बात पता नहीं है और अगर पता है तो हमने रूस से उस तकनीकि का हेलिकॉप्टर क्यों ले लिया जो पहले से ही प्रोड्यूज कर रहे हैं?
एनडीए सरकार ने आते ही कहा था कि वह रक्षा सौदों में पारदर्शिता लाने और देश के पैसे का सदुपयोग करने के लिए रक्षा उत्पादों को स्वदेश में निर्मित करने को बढ़ावा देगी। इस समझौते से ऐसा लगता है कि वह दे भी रही है लेकिन समझौते को देखकर शक होता है कि एक नये तरह का भ्रष्टाचार तो नहीं गढ़ा जा रहा है? जिस हेलिकॉप्टर को खुद कमोव कंपनी आउटडेटेड मान रही है उसे इतनी बड़ी तादात में भारत में बनाने का क्या मकसद हो सकता है? रूस के कमोव कंपनी की मजबूरी है कि अगर वह अपना उत्पाद नहीं बेंच पा रही है तो तकनीकि बेंच रही है। चीन के साथ अटैक हेलिकॉप्टर के सौदे में भी उसने यही किया है। लेकिन हमारी ऐसी कौन सी मजबूरी है कि हम अपने देश में चल रहे रक्षा उत्पादों के साथ समझौता करके विदेशी कंपनी की पुरानी पड़ चुकी तकनीकि को अपने यहां ले आये? कहीं ऐसा तो नहीं है कि इस रक्षा सौदे से रूस की कमोव कंपनी को बेल आउट करने का कोई सरकारी प्रोग्राम तो नहीं बना दिया गया?
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