Sunday, March 27, 2016

लाहौर का मेला चिरागां

रविवार को लाहौर खबरों में तो आया लेकिन बहुत खौफनाक वजह से। लाहौर के इकबाल पार्क में एक आत्मघाती हमलावर ने सत्तर से अधिक लोगों को मौत के घाट उतार दिया जो वहां ईस्टर की त्यौहार मनाने आये थे। यह इस्लामिक जिहाद और कट्टरता का एक और मजहबी अपराध था जो पाकिस्तान में कभी न थमने वाला सिलसिला बन गया है। लेकिन रविवार को ही लाहौर में एक और मेला शुरू हुआ जो मजहबी एकता की मिसाल है।

यह बात दीगर है कि अब लाहौर में गैर मजहबी लोग बचे ही नहीम है कि उनसे एकता कायम करने की कोशिश करनी पड़े लेकिन जब माधो शाह हुसैन हुए थे तब यहां हिन्दुओं के साथ मेलजोल बढ़ाने के लिए शाह हुसैन ने ऐसी परंपराएं डाली थीं जो आज हिन्दुओं के खत्म हो जाने के बाद अब इस्लामिक परंपरा बन गयी है। वसंत उत्सव, होली, हवनकुंड की आग और दीपावली की तरह दीये का उर्स लाहौर में शाह हुसैन की विरासत हो गयी है।

इस्लाम में आग सिर्फ एक जगह है और वह है दोजख की आग, जहां पापियों को आग में जला दिया जाता है। लेकिन लाहौर के माधो शाह हुसैन की मजार पर हर साल तीन दिन तक जलनेवाली हवनकुंड की आग उतनी ही पवित्र है जितनी कि वह है। इस यज्ञ कुण्ड में हर साल तीन दिनों तक अग्नि जलाकर रखी जाती है और लोग इसकी पूजा करके मन्नतें मांगते हैं।

माधो शाह हुसैन एक नाम नहीं बल्कि दो नाम मिलकर बने हैं। माधोलाल और शाह हुसैन। हजरत शाह हुसैन करीब चार सौ साल पहले जब पैदा हुए थे तब उनका क्षत्रिय परिवार इस्लाम कबूल कर चुका था। शाह हुसैन ने कुरान पढ़ी। और कुरान की पढ़ाई के दौरान ही एक दिन वह इस बात पर रुक गये कि यह संसार एक ख्वाब है और दुनिया में जो कुछ हो रहा है वह खेल तमाशा है। बस यहां से उनके भीतर की आध्यात्मिक शक्तियां प्रकट होने लगी और वे फकीर हो गये।

उन्हीं दिनों शाह हुसैन की मुलाकात एक ब्राह्मण बालक माधोलाल से हुई। कहते हैं शाह हुसैन को माधो से इतनी मोहब्बत थी कि कोई दिन नहीं बीतता था जब शाह हुसैन माधो से मिलते न हों। इस मेल मुलाकात और मुहब्बत पर बातें भी बनीं और माधो के परिवार की बदनामी भी हुई। इसी सबसे बचने के लिए एक बार माधो का परिवार उन्हें लेकर हरिद्वार आना चाहते थे। किसी कारण से माधो नहीं जा पाये जिसके कारण वे बहुत उदास थे। कहते हैं शाह हुसैन ने अपनी चमत्कारिक शक्ति से पलक झपकते ही माधो को हरिद्वार पहुंचा दिया। फिर इसके बाद माधो और शाह हुसैन जैसे एक ही हो गये। माधो के प्रति शाह हुसैन की ऐसी दीवानगी थी कि उन्होंने खुद को माधो का रांझा कहना शुरु कर दिया।

शाह हुसैन पर माधो की मुहब्बत का असर था कि उन्होंने वसंत मेले और रंग के उत्सव होली मनाने की शुरूआत की जो आज भारत और पाकिस्तान के सूफियों में सबसे बड़ा उत्सव होता है। पाकिस्तान के पंजाब में दो सबसे बड़े उत्सव मनाये जाते हैं जिसमें से एक वसंत उत्सव और दूसरा मेला चिरागां है। मेला चिरागां में परंपरा है कि मिट्टी के दिये ही जलाये जाते हैं और उसी से माधो शाह हुसैन के स्थान को रोशन रखे जाते हैं।

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