2016-17 बारहवें रक्षा पंचवर्षीय योजना का आखिरी वित्तीय वर्ष होगा जिसमें एक लाख चार हजार करोड़ रूपये सिर्फ खरीदारी पर खर्च किये जाएंगे। इस खर्च में थल सेना के लिए 23731 करोड़, नौसेना के लिए 28932 करोड़ और वायुसेना के लिए 38092 करोड़ रूपये का सैन्य साजो सामान की खरीदारी शामिल है। साफ है सबसे ज्यादा पैसा वायुसेना पर खरीदारी के लिए खर्च किया जा रहा है। और यह सिर्फ एक वित्तीय वर्ष या एक पंचवर्षीय योजना की बात नहीं है। तेरहवीं और चौदहवीं पंचवर्षीय योजना में भी आनेवाले दस सालों में सबसे ज्यादा नेवी और एयरफोर्स पर ही खर्च किया जाना है।
रक्षा खरीदारी के लिए तेरहवीं और चौदहवीं रक्षा पंचवर्षीय योजना में 22 लाख 50 हजार करोड़ रूपये रक्षा खरीदारी पर खर्च करने का बजट निर्धारित किया गया है। इसमें एयरफोर्स के हिस्से में 7 लाख 58 हजार करोड़ रूपये की खरीदारी होगी। जाहिर सी बात है 2015 में दुनिया का सबसे बड़ा हथियार आयातक देश संभवत: एक दशक तक दुनिया के सबसे बड़े खरीदार के पायदान पर खड़ा रहेगा। इसलिए दुनियाभर के डिफेन्स सौदागर और दलाल दिल्ली में डेरा जमाये रहेंगे। रूस, ब्रिटेन, फ्रांस, इजरायल और अमेरिका हमेशा से भारत को सैन्य साजो सामान बेचनेवाले सबसे बड़े देश रहे हैं। बरतानिया हकूमत से आजादी के बाद भी ब्रिटेन ही भारत का सबसे बड़ा हथियार सप्लायर था। फिर भारत के समाजवादी झुकाव ने यह जगह रूस को दे दी। इस बीच फ्रांस अमेरिका और इजरायल भी भारत के हथियार सप्लायरों की लिस्ट में शामिल होते गये और आज 2016 में रूस और अमेरिका भारत में हथियारों की सप्लाई के लिए बढ़त हासिल करने की जंग लड़ रहे हैं।
जंगे मैदान के एयरफोर्स में एक तीसरा किरदार भी शामिल हुआ और वह था फ्रांस। फ्रांस की जिस डसां एविएशन ने भारत को मिराज 2000 लड़ाकू विमान दिया था उसने एडवांस मल्टीरोल फाइटर जेट राफेल बेचने की लॉबिंग की। लंबी जद्दोजहद के बाद सवा लाख करोड़ में सवा सौ लड़ाकू विमान खरीदने का यह सौदा 36 राफेल विमान खरीदने पर आकर अटक गया। कीमत को लेकर उठापटक जारी है लेकिन उम्मीद है कि 1700 करोड़ प्रति विमान की दर पर यह सौदा हो सकता है। विमान फ्रांस की डसां एविएशन कंपनी में ही बनेगा और जांच पड़ताल के बाद उसे भारत को सौंप दिया जाएगा। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि जब भारतीय वायु सेना पूरी शिद्दत से राफेल खरीदने का जोर डाल रही थी तब वर्तमान मोदी सरकार ने 126 विमानों का सौदा रद्द करके 36 विमान खरीदने का फैसला किया?
इस सवाल के दो संभावित जवाब हो सकते हैं। पहला, भारत सरकार स्वदेश में निर्मित तेजस लड़ाकू विमान को तरजीह देने के हक में हो सकती है या फिर दूसरा, अमेरिकी लॉकहीड मार्टिन कंपनी की लॉबिंग का असर भी हो सकता है जिसने हाल में ही सिंगापुर एयरशो में यह संकेत दिया है कि अगर सरकार चाहेगी तो वह मेक इन इंडिया पॉलिसी के तहत भारत में ही एफ-16 लड़ाकू विमानों का निर्माण कर सकती है। एफ-16 का लेटेस्ट वर्जन चौथी पीढ़ी का लड़ाकू विमान है जिसे अमेरिका सहित दुनिया के अधिकांश देश अपनी हवाई सुरक्षा के लिए इस्तेमाल करते हैं। तेजस, राफेल और एफ-16 एक ही पीढ़ी और एक ही श्रेणी के लड़ाकू विमान हैं। अगर राफेल के साथ 36 विमानों का सौदा हो जाता है तो भी मिग-21 विमानों के रिटायर होने से होनेवाली कमी को पूरा करने के लिए तेजस या एफ-16 में से किसी एक के साथ आगे बढ़ना होगा। तो फिर सवाल यह है कि बाजी कौन जीतेगा?
चासील साल पहले की कल्पना और तीस साल में बनकर तैयार हुए तेजस के सामने संकट के बाद आज 2016 में भी मंडरा रहे हैं। एयरफोर्स तेजस के परफार्मेन्स से बहुत खुश नहीं है इसलिए उसने हिन्दुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड से तेजस के प्रोडक्शन ढांचे में 43 बदलाव करने के लिए कहे हैं। इन बदलावों के बाद तेजस मार्क 1ए का जो मॉडल तैयार होगा उसका उत्पादन 2019 के पहले संभव नहीं है। इस बीच एचएएल प्रोटोटाइप सहित कुल 16 तेजस तैयार किये हैं। सरकार की तरफ से जनवरी 2015 में इनीशिएल आपरेशन क्लियरेन्स दिया जा चुका है और एयरफोर्स अपनी जरूरतों के हिसाब से परीक्षण कर रहा है।
लेकिन आज भी हथियारों की दलाल लॉबी तेजस के राह में रोड़ा अटका रही है और इस बात की कोशिशें जारी है कि तेजस का उत्पादन चालीस विमान तक सीमीत कर दिया जाए और बाकी आपूर्ति किसी विदेशी आपूर्तिकर्ता के जरिए की जाए। लॉकहीड मार्टिन की घोषणा इसी कोशिश का हिस्सा है। दूसरी तरफ तेजस के नेवी संस्करण का परीक्षण के सफल होते ही अमेरिका की ही एक दूसरी आर्म्स कंपनी बोईंग ने एफ/ए 18 को बेचने की लॉबिंग शुरू कर दी है। अगले साल तक भारत में निर्मित विमानवाहक पोत आईएनएस विक्रांत का सैन्य परीक्षण शुरू हो जाएगा तब विक्रांत के लिए 35 नौसेनिक विमानों की जरूरत होगी। अभी तक की योजना में यह जरूरत मिग-29 और तेजस से पूरी की जानी है लेकिन अगर बोईंग मैदान में उतरता है तो यहां भी तेजस के लिए खतरा खड़ा हो जाता है।
डिफेन्स लॉबी लगातार यह बताने की कोशिश कर रही हैं कि तेजस एक फेल परियोजना है जिसे बंद कर देना ही बेहतर होगा। कभी एचएएल की क्षमता पर सवाल खड़े किये जाते हैं तो कभी तेजस की क्षमता पर। हर ऐसे सवाल का जवाब यह होता है कि लड़ाकू विमानों की आपूर्ति विदेश से कर ली जाए। इसमें एक नयी मुसीबत यह हो गयी है कि विदेशी कंपनियों के देशी साझीदार डिफेन्स में सौदों की संभावना को देखते हुए अब तक हुए समूचे विकास को ध्वस्त करना चाहते हैं। टाटा, महिन्द्रा, रिलायंस, एलएण्डटी और कल्याणी समूह भारत के बड़े डिफेन्स प्रोड्यूसर हैं। विदेश की कंपनियों के साथ यही समझौते कर रहे हैं और जोर दे रहे हैं कि डिफेन्स खरीदारी में निजी भागीदारी को बढ़ाया जाए।
तेजस इस दोहरे प्रहार का शिकार हो रहा है। अभी तक की रिपोर्ट के मुताबिक लगता यही है कि तेजस 120 विमानों के साथ एयरफोर्स में शामिल होगा। हालांकि निर्धारित समयसीमा 2022 है लेकिन जैसे जैसे इधर बजट का पिटारा खुलेगा उधर विदेशी कंपनियों का दबाव भी बढ़ेगा कि उनके विमानों की खरीदारी की जाए जिसमें मेक इन इंडिया उनके लिए एक हथियार की तरह काम कर रहा है। लेकिन मेक इन इंडिया करने भर से डिफेन्स क्षेत्र में आत्मनिर्भरता नहीं आयेगी। चौरासी में आकर भारत ने विधिवत इस दिशा में कोशिश शुरू की और तीस साल के भीतर आपके पास चौथी और पांचवी पीढ़ी के बीच का लड़ाकू विमान है। महज 190 करोड़ की कीमत वाला तेजस राफेल के 1700 करोड़ और एफ-16 के 1200 करोड़ के मुकाबले बहुत मुफीद सौदा है।
बहरीन एयरशो में तेजस ने साबित कर दिया है कि उसकी कमियां उतनी नहीं है जितना उसे बदनाम किया गया है। बहरीन एयर शो में तेजस का परफार्मेन्स देखने के बाद श्रीलंका ने पाकिस्तान के जेएफ-17 से मुंह मोड़कर तेजस खरीदने में रुचि दिखाई है। श्रीलंका की रुचि अस्वाभाविक नहीं है। रूस के प्रोजेक्ट-33 के डिजाइन को खरीदकर चीन ने यह विमान 90 के दशक में अपने लिए बनाया था। लेकिन खुद इस्तेमाल न करके इसने यह विमान और इसकी तकनीकि पाकिस्तान को दे दी। अब चीन की चेंगदू कंपनी पाकिस्तान में ही यह लड़ाकू विमान बनाती है और पाकिस्तान को बेचती है। जबकि इसके उलट तेजस किसी विमान की नकल नहीं है और कावेरी के असफल हो जाने के बाद जीई इंजन और राडार के अलावा ज्यादातर हिस्सा स्वदेशी अनुसंधान का नतीजा है।
तेजस को डिजाइन करनेवाली एयरोनॉटिकल डेवलपमेन्ट एजेन्सी पांचवी पीढ़ी का स्टील्थ लड़ाकू विमान 'एम्का' डिजाइन कर रही है जो भविष्य में पांचवी पीढ़ी के मध्यम श्रेणा के विमानों में शुमार होंगे। परियोजना डिजाइन और डेवलपमेन्ट के महत्वपूर्ण दौर में है। अगर आज हथियार लॉबी तेजस को दरकिनार करके एफ-16 को आगे बढ़ाने में कामयाब हो जाती हैं तो निश्चित रूप से एम्का परियोजना कभी आगे नहीं बढ़ पायेगी और न ही तेजस के विकास से हुए अनुभव का लाभ मिल पायेगा। आजादी के चार दशक बाद भारत ने जिस हवाई सुरक्षा में आत्मनिर्भरता की पहल की थी उसे मेक इन इंडिया के नाम पर देशी विदेशी निजी कंपनियों के हाथ में गिरवी नहीं रखा जाना चाहिए। तात्कालिक तौर पर भले ही देश फायदे में दिखाई दे लेकिन उसे दीर्घकालिक फायदा कभी नहीं होगा। फिलहाल सरकार के रुख से लगता है कि वह तेजस और एम्का को कोई नुकसान नहीं पहुंचाना चाहती। देशी विदेशी कंपनियों की लॉबिंग के बीच यह एक अच्छा संकेत है।
(फोटो: लाइट कॉम्बैट फाइटर जेट तेजस)
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