चीन की शंघाई मैग्लेव दुनिया की सबसे तेज गति ट्रेन है |
अभी अभी चीन के प्रधानमंत्री भारत दौरे पर आये
तो भारत के बाद पाकिस्तान भी गये। इसके ठीक बाद भारत के प्रधानमंत्री
मनमोहन सिंह ने जापान का दौरा किया। अपने तीन दिवसीय दौरे के दौरान भारत के
प्रधानमंत्री ने सिर्फ तात्कालिक तौर पर चीन को कूटनीतिक जवाब ही नहीं
दिया बल्कि जापान में भारतीय प्रधानमंत्री ने एक ऐसे समझौते पर हस्ताक्षर
किया जो चीन को दीर्घकालिक रणनीतिक जवाब साबित होगा। भारतीय प्रधानमंत्री
ने जापानी बुलेट ट्रेन कंपनियों से एक समझौता किया है जो जापान सरकार की
आर्थिक मदद से बैलगाड़ी वाले देश भारत में बुलेट ट्रेन प्रणाली विकसित
करेंगी।
भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और जापानी प्रधानमंत्री शिंजो आबे के बीच जो समझौता हुआ है उसके अनुसार कर्ज के बतौर जापान भारत सरकार को बुलेट ट्रेन दौड़ाने के लिए एक ट्रिलियन येन प्रदान करेगा और पहले चरण में भारत मुंबई से अहमदाबाद के बीच 500 किलोमीटर की बुलेट यात्रा का सपना साकार करेगा। अभी यह सब शुरूआती अवस्था में है और जापान के साथ मिलकर भारत सरकार का रेल मंत्रालय अंतिम रिपोर्ट अगले एक साल में तैयार करेगा। इस रिपोर्ट के तैयार होने के बाद ही इस रूट पर काम शुरू हो सकेगा। इसलिए भारत सरकार की ओर से इस बुलेट ट्रेन मार्ग की कोई समय सीमा निर्धारित नहीं की गई है।
उम्मीद करनी चाहिए कि फिजिबिलटी स्टडी पूरा होने के बाद अगर 2015 तक भी बुलेट ट्रेन बनाने की दिशा में काम शुरू हो जाता है और पूरी गति से काम पूरा किया जाता है तो भी न्यूनतम 10 से 15 साल का समय इसे पूरा होने में लग सकता है। भारत के महत्वाकांक्षी कश्मीर रेलवे परियोजना को देखें तो इस समयसीमा में अंतहीन विस्तार भी हो सकता है। भारत की महत्वाकांक्षी कश्मीर रेलवे परियोजना को अटल बिहारी वाजपेयी सरकार द्वारा राष्ट्रीय महत्व की परियोजना का दर्जा दिये जाने के बाद इसे 2007 तक पूरा करने का लक्ष्य था लेकिन अब भी यह दस साल की देरी से चल रही है। दिल्ली से श्रीनगर के जुड़ने में अभी भी कम से कम चार साल की देर है। इस लिहाज से बुलेट ट्रेन की दिशा में भारत सरकार का रेल मंत्रालय बुलेट की गति से काम करेगा, यह सोचना थोड़ा सा दिन में तारे देखने जैसा है।
लेकिन भारत को बुलेट ट्रेन का ख्वाब दिखानेवाला जापान दिन में तारे देखनेवाले देशों में नहीं है। ट्रेन की रफ्तार बढ़ाने की दिशा में जापान ने बुधवार को एक ऐसा प्रयोग किया जो असल में ट्रेन परिचालन का भविष्य साबित होने जा रहा है। बुधवार 5 जून को जापान ने मैग्लेव ट्रेन का सफल परीक्षण किया जिसकी अधिकतम गति सीमा 581 किलोमीटर प्रति घंटा है। जापान की सेन्ट्रल जापान रेल कंपनी द्वारा शुरू की गई इस परियोजना को 2027 तक पूरा करने की योजना है। इस परियोजना के पूरा हो जाने के बाद जापान के टोक्यो से नागोया के बीच की दूरी महज 40 मिनट में पूरी की जा सकेगी। जापान की राजधानी टोक्यो से नागोया की दूरी 342 किलोमीटर है और वर्तमान समय में भी बुलेट ट्रेन (शिंकनसेन) के जरिए औसत 90 से 100 मिनट में यह दूरी तय की जा रही है।
जापान में जो जापान रेलवे सेन्ट्रल इस मैग्लेव ट्रेन को संचालित करने की योजना पर काम कर रही है, उसी कंपनी ने आज से दशकों पहले 1964 में जापान में पहली बुलेट ट्रेन चलाई थी। यानी, जापान अगले एक दशक में वहां पहुंचने की छलांग लगा रहा है जो ट्रेन की दुनिया में भविष्य होगा। जब बैलगाड़ी वाला देश अपनी छुक छुट ट्रेन पर फिल्मी गाने फिल्मा रहा था, उस वक्त भी जापान बुलेट ट्रेन की सवारी कर रहा था, और बड़ी देर बाद जब भारत सरकार को गति पकड़ने की आवश्यकता महसूस हुई तो वह इतनी देर से बुलेट ट्रेन की सवारी करने की तैयारी कर रहा है कि जब तक बुलेट ट्रेन चलाने की तैयारी होगी, दुनिया मैग्लेव युग में प्रवेश कर चुकी होगी।
मैग्लेव, मैग्नेटिक लेविटेशन का संक्षिप्त नाम है जो चुंबकीय आकर्षण और विकर्षण के सिद्धांत पर काम करता है। इस सिद्धांत के तहत जो रेल प्रणाली विकसित की जा रही है उसकी पटरियां वर्तमान के मोनोरेल की पटरियों जैसी होती है। यानी, मैग्लेव ट्रेन के सर्फेस पर बिजली का करंट देनेवाला कोई वायर नहीं बिछाया जाता है और पटरियों के नाम पर सीमेन्ट की पटरियों में लोहे का गाडर नहीं फंसाया जाता है। एक सपाट कंक्रीट स्लैप के बीचो बीच चुंबकीय आकर्षण और विकर्षण पैदा करनेवाले चुंबक लगाये जाते हैं जिनके प्रभाव में मैग्लेव ट्रेन पटरियों से कुछ मिलीमीटर ऊपर दौड़ती नहीं बल्कि तैरती है। मैग्लेव ट्रेन के बारे में पिछले चार पांच दशकों से प्रयोग हो रहे हैं लेकिन पहली बार चीन की शंघाई मैग्लेव ट्रेन ने इस सपने को साकार कर दिया जब 2004 में 30 किलोमीटर लंबे रूट पर चीन ने एयरपोर्ट से शंघाई शहर को मैग्लेव ट्रेन के जरिए जोड़ दिया। चीन की शंघाई मैग्लेव अधिकतम 480 किलोमीटर की गति से दौड़ सकती है इस लिहाज से यह आज के समय में दुनिया की सबसे तेज गति वाली ट्रेन है। लेकिन अब जापान चीन को मैग्लेव ट्रेन के मामले में पीछे छोड़ने के लिए तैयार हो चुका है।
चीन जापान के इस तकनीकि जंग में भारत जैसे रेल बहुल देश में आज भी हमारे ट्रेनों की स्पीड बैलगाड़ी की गति के आसपास ही हैं। भारत में मेल एक्सप्रेस ट्रेन की औसत गति सीमा 50 से 60 किलोमीटर प्रति घंटा ही होती है। यानी देश के सबसे व्यस्ततम दिल्ली मुंबई रूट पर अगर आप ट्रेन से सफर करते हैं तो एक मेल एक्सप्रेस ट्रेन से दिल्ली से मुंबई पहुंचने में 24 से 25 घण्टे का समय लगता है। जबकि समय रहते अगर सरकार ने ट्रेनों की दशा सुधारने की दिशा में काम किया होता तो दिल्ली से मुंबई की दूरी एक बुलेट ट्रेन से 300 किमी औसत की गति से 4.5 से 5 घण्टे में पूरी की जा सकती है। अब जाकर भारत सरकार को होश आया है कि देश की आर्थिक राजधानी को राजनीतिक राजधानी के बीच कम से कम राजधानी ट्रेनों की गति औसत 175 से 200 किलोमीटर के बीच करना जरूरी है, इसलिए जापान यात्रा के दौरान उन्होंने दिल्ली मुंबई रेलमार्ग को सेमी हाईस्पीड रेल कारीडोर के रूप में विकसित करने का भी समझौता किया है। समझौता भले ही हो गया हो लेकिन साकार होने में अभी भी दशक भर से कम का समय नहीं लगेगा।
भारत में बुलेट ट्रेन को लेकर जब तब कुछ अध्ययन और आहट आती रही है लेकिन अभी तक इस दिशा में कोई ठोस पहल नहीं हो सकी है। भारत में पहली बार 1980 में तत्कालीन रेल मंत्री माधवराव सिंधिया ने बुलेट ट्रेन का सपना देखा था लेकिन रिपोर्ट तैयार होकर धूंल फांकने चली गई। इसके बाद 2009 में रेल मंत्रालय ने विजन 2020 जो श्वेत पत्र तैयार किया था उसमें देश में छह रेल कारीडोर विकसित करने का सपना देखा था जिन पर 250 से 300 किलोमीटर की गति से ट्रेनों के परिचालन की बात कही गई थी। इस दिशा में चार साल बीत जाने के बाद सिर्फ एक प्रगति हुई है कि रेल मंत्रालय ने एक अलग विभाग बना दिया है जिसका नाम है हाई स्पीड रेल कारपोरेशन आफ इंडिया। वह भी अभी एक साल पहले ही अस्तित्व में आया है। जब सपना देखने के बाद एक डिपार्टमेन्ट बनाने में रेलवे को तीन साल लग गये तब ऐसे में रेल के छह कारीडोर कब तक आकार ले लेंगे जिन पर ट्रेने बुलेट की स्पीड से दौड़ लगायेंगी, कल्पना ही की जा सकती है। तब तक आप बुलेट ट्रेन का ख्वाब देखते हुए 'बुलक ट्रेन' में सफर करते रहिए, दुनिया बुलेट से भी आगे मैग्लेव पर जाने की तैयारी कर चुकी है।
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