लंबोदर एन श्रीनिवासन निजी जिंदगी में भी
लंबोदर गजानन के भक्त हैं। चेन्नई के क्रिकेट इतिहास में वे इसलिए तो जाने
ही जाते हैं कि वे खानदानी क्रिकेट प्रेमी हैं लेकिन उनको इसलिए भी याद
किया जाता है कि चेपक स्टेडियम के बाहर उन्होंने गणेश जी का मंदिर भी
स्थापित करवा रखा है। आधुनिकता के इस खेल में परंपरा का ऐसा मेल सिवा
श्रीनिवासन के कर कौन सकता था? लेकिन श्रीनी ऐसा ही सोचते हैं और अपने
लंबोदर गजानन की कृपा से जीवन में इसी तरह उन्नति करते हुए अडिग बने रहे
हैं।
इस वक्त वे जिस भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के अध्यक्ष हैं, उस भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के भीतर उनका प्रवेश कोषागार संभालने के लिए करवाया गया था, 2005 में। तब तक वे परिवार की विरासत इंडिया सीमेन्ट लिमिटेड अर्थात आईसीएल संभालते थे। अब वह कंपनी भी 35 सौ करोड़ रूपये का कारोबार कर रही है और नब्बे लाख टन सीमेन्ट पैदा करके भारत निर्माण के काम में लगी हुई है। इधर 2005 में वे भले ही बीसीसीआई पहुंच गये हों लेकिन कारोबार पर कभी कोई फर्क नहीं आया।
फर्क आया उस साल जिस साल ललित मोदी ने भारतीय क्रिकेट के इतिहास में एक अनोखा प्रयोग कर दिया। क्रिकेट के ललना ललित मोदी रणजीत ट्राफी की फीकी होती चमक से परेशान थे और चाहते थे कि एक ऐसा क्रिकेट का धरातल तैयार हो जो क्रिकेट में सिनेमाहाल की बजाय मल्टीप्लेक्स का मजा देता हो। ललित मोदी ने क्रिकेट का जो मल्टीप्लेक्स निर्मित किया वह ब्रिटेन के काउंटी क्रिकेट से कुछ कुछ मेल खाता था जहां दुनिया भर के खिलाड़ी अनुबंध के तहत जाकर क्रिकेट खेलते थे, और मनोरंजन करते थे। ललित मोदी की योजना इसलिए भी बीसीसीआई के भीतर परवान चढ़ गई क्योंकि 2007 में जी नेटवर्क के नेता सुभाष चंद्रा आईसीएल लेकर मैदान में उतर चुके थे। अब अगर बीसीसीआई को अपनी साख बचानी थी, तो तत्काल उसे कुछ ऐसी करना था जो इंडियन क्रिकेट लीग का मैदान साफ कर सके।
इसलिए 2008 में आईपीएल का अवतार हो गया। फरवरी 2008 में आईपीएल के लिए पहली बोली लगी और उसी साल आनन फानन में आठ टीमें बनकर तैयार हो गई। भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान महेन्द्र सिंह धोनी उस साल सबसे मंहगे खिलाड़ी के रूप में बिके और उन्हें खरीदनेवाले कोई और नहीं बल्कि बीसीसीआई के कोषागार प्रमुख लंबोदर एन श्रीनिवासन ही थे। इस साल जो आठ टीमें बनी उसमें चेन्नई सुपर किंग्स भी थी। इस टीम को तैयार किया था इंडिया सीमेन्ट ने जिसके मालिक एक बार फिर वही एन श्रीनिवासन थे जो बीसीसीआई के कोषागार प्रमुख थे। सिर्फ धोनी को ही उन्होंने 15 लाख रूपये में नहीं खरीदा बल्कि दस सालों के लिए आईपीएल की फ्रेंचाइजी पाने के लिए 91 मिलियन डॉलर बीसीसीआई को अदा किये। श्रीनिवासन ने कृष्णमाचारी श्रीकांत को चेन्नई सुपर किंग्स का ब्रांड एम्बेसडर भी नियुक्त कर लिया जो गलती से उस वक्त बीसीसीआई की चयन समिति के अध्यक्ष थे।
भ्रष्टाचार और सट्टेबाजी की खबरें भले ही आईपीएल के पांच साल बाद सतह पर आई हों लेकिन खुद आईपीएल खेल ही भ्रष्टाचार और सट्टेबाजी की बुनियाद पर खड़ा है। ललित मोदी ने आईसीएल को किनारे करने के लिए जिस आईपीएल की शुरूआत की थी, आगे चलकर वह क्रिकेट की कब्रगाह साबित ही होनेवाला था। अस्सी किलो के एन श्रीनिवासन की रुचि खेल में इसलिए नहीं हो सकती कि किसी जमाने में उन्होंने क्रिकेट खेला है। उनकी रूचि होगी तो सिर्फ इसलिए होगी क्योंकि आज वे इस खेल में पूंजी का खेल कर सकते हैं। और पहले दिन से वे वही कर रहे हैं। तमाशा यह है कि जो उन्हें हटाने की मांग कर रहे हैं, वे भी कोई क्रिकेट प्रेम में ऐसा नहीं कर रहे हैं। उन्हें भी इस सल्तनत की गद्दी चाहिए, ताकि वह खेल वे खुद कर सकें जो अभी मयप्पन और उनके ससुर ''वीरप्पन" मिलकर कर रहे थे। यह सब करने के बाद 2008 के पहले ही मुकाबले में सब कुछ होने के बाद फाइनल मुकाबला राजस्थान रॉयल्स और चेन्नई सुपर किंग्स के बीच करवा दिया गया। सिर्फ फाइनल मुकाबला ही चेन्नई और राजस्थान के बीच हुआ हो ऐसा भी नहीं है, विजेता भी चेन्नई सुपर किंग्स हो गई। देखते ही देखते पूरी तरह से खेल भावना का आदर करते हुए सिर्फ चेन्नई सुपर किंग्स तीन बार विजेता ही नहीं बनी बल्कि उस टीम का ब्रांड वैल्यू भी आसमान छूने लगा क्योंकि टीम का सक्सेस रेट 66.67 प्रतिशत था। अब तक आईपीएल में चेन्नई सुपर किंग्स ने कुल 39 मैच खेलकर 26 मैच जीत लिए थे। जाहिर है, चेन्ऩई सुपर किंग्स की इस सफलता के लिए सारा श्रेय श्रीनिवासन की दूरदर्शी व्यापारिक सोच को ही दिया जा सकता है जो अब इंडिया सीमेन्ट से बढ़िया व्यापार कर रहे थे।
यह आईपीएल में चल रहे पूंजी के खेल का ही कमाल था कि इस टूर्नामेन्ट के जन्मदाता को ही देश से दरबदर कर दिया गया। कहते हैं ललित मोदी ने अकेले आईपीएल से इतना माल कमाया है जितना देश के समस्त मोदी मिलकर सारे व्यापारिक गतिविधियों से नहीं कमा सके होंगे। ललित मोदी के जाते ही किसी गुप्त समझौते के तहत आईपीएल की कमान कांग्रेसी शुक्ला को सौंप दी गई जबकि बीसीसीआई की गद्दी पर शरद पवार अपने करीबियों को हटाते बिठाते रहे। इन दो भाई के अलावा क्रिकेट का कारोबारी एक तीसरा भाई भी है जो सट्टे लगवाता है। उस भाई का नाम अब अनआफिसियल नहीं रहा। दिल्ली पुलिस भी कह रही है कि क्रिकेट में कुछ भाईगीरी का चक्कर भी शामिल है। अगर ऐसा है तो तीन भाईयों की कहीं न कहीं कोई न कोई तिकड़ी भी बनी होगी जिसके कारण श्रीनिवासन को वीरप्पन सा स्वरूप अख्तियार करना पड़ गया होगा। आखिर, अंडरवर्ल्ड के अपने कायदे कानून जो होते हैं।
2011 में इस "वीरप्पन'' ने बीसीसीआई के भीतर सबसे बड़ा मुकाम हासिल कर लिया। जिसका केवल कोषागार उनके हाथ में अब उसका सारा कारोबार ही उनको सौंप दिया गया। शशांक व्यंकटेश मनोहर पेशे से वकील थे, इसलिए उनके राज में उन्नति बहुत अच्छी नहीं थी। उन्नति कैसे की जाती है यह तो व्यापार जगत के इस वीरप्पन को पता था। लेकिन उन्नति के इस चक्रव्यूह में खुद व्यापार का वीरप्पन ही फंस गया है। जिस दामाद गुरूनाथ मयप्पन को उन्होंने फिक्सिंग के कारोबार में लगा रखा था, वह बेचारा मुंबई पुलिस के हत्थे चढ़ गया है। श्रीनी और उनकी कंपनी दोनों कह रहे हैं कि तकनीकि तौर पर दामाद के भ्रष्टाचार में फंसने के कारण ससुर को दरवाजा नहीं दिखाया जा सकता। वैसे भी बेचारा मयप्पन क्रिकेट का कोई खिलाड़ी तो था नहीं। वह तो चेन्नई सुपर किंग्स फ्रेंचाइजी का सिर्फ कोई प्रिंसिपल भर था। जैसे ही भ्रष्टाचार में उसके लिप्त होने की खबर आई उसकी प्रिंसिपली भी उससे वापस ले ली गई। लेकिन ये दुनियावाले अब भी श्रीनी का पीछा नहीं छोड़ रहे हैं।
लेकिन क्रिकेट की दुनियावाले ही श्रीनी के पीछे पड़े हों, ऐसा भी नहीं है। खुद श्रीनी भी क्रिकेट की दुनिया का पीछा इतनी आसानी से नहीं छोड़नेवाले। वे जानते हैं कि क्रिकेट कितना महत्वपूर्ण कारोबार है और किसी कारोबारी से कोई उसका कारोबार नहीं छीन सकता। ठीक वैसे ही जैसे किसी जंगल से किसी वीरप्पन को बाहर नहीं किया जा सकता वैसे ही किसी कारोबारी को उसके कारोबार से अलग नहीं किया जा सकता। मयप्पन के ससुर ऐसे ही क्रिकेट के कारोबारी हैं। अरबों का दाम दांव पर लगा है। दाम गया तो दम निकलते देर नहीं लगेगी। इसलिए इस नूरा कुश्ती का आगाज भले ही अचानक हो गया हो लेकिन अंजाम बहुत 'कत्लेआम' के बाद ही निकलेगा। वैसे भी, ''वीरप्पन'' इतनी आसानी से जंगल नहीं छोड़ा करते।