Friday, June 21, 2013

बाढ़ नहीं आई

डरानेवाली चेतावनियां भी डरकर दुबक गईं। चार पांच दिनों तक दिल्ली पर मंडरानेवाला असाढ़ के "बाढ़ का खतरा" टल गया। घुटनेभर पानी में घुसकर दम घुट जाने से बचाने का उपाय बतानेवाले चैनलकारों की चिल्ल पों भी दिल्ली से दूर देहरादून घाटी शिफ्ट हो गई। नाप जोख के जितने आंकड़े पैमाने बनाये गये थे, कुछ काम नहीं आये। जिस यमुना में किलोमीटर भर गाद भरी हो इस यमुना की मिलीमीटर और सेन्टीमीटर में पानी के उतार चढ़ा की नाप जोख की जा रही थी। यह जानते हुए कि दिल्ली के दरवाजे से यमुना का जो पानी दाखिल हो रहा है वह नियंत्रित पानी है और उसका आकार प्रकार उतना ही ऊपर नीचे होगा, जितना सरकारें चाहेंगी। फिर भी, झटके में वह सारा रंगमंच तैयार कर दिया गया जिससे देश के रंगमंच पर बाढ़ का मंचन हो सके।
ऊधर पहाड़ पर प्रलय बरस रही थी लेकिन इधर दिल्लीवाले बाढ़ की आस लगाये बैठे थे। हरियाणा के हथिनीकुंड बैराज से आठ लाख क्यूसेक पानी छोड़ने के साथ ही यमुनानगर से सिर्फ पानी ही बहकर दिल्ली की ओर नहीं दौड़ा, बाढ़ की खबर भी साथ साथ बहती हुई आई। कुछ दिल्लीछाप अखबार और चैनलों ने दिल्लीवाली सरकार के हवाले से चेतावनी भी जारी कर दी कि सावधान हो जाएं। बाढ़ आ रही है। कौन सावधान हो जाए, और क्यों सावधान हो जाए इसका स्पष्टीकरण बस इतना ही था कि बाढ़ आ रही है, इसलिए सावधान हो जाएं। टंकी के पानी से भी परे जिनका जलज्ञान सिमटकर बॉटल और कमोड के बीच अटक गया है उन दिल्लीवालों के लिए इन चेतावनियों का वह मतलब नहीं निकला जो दिल्ली सरकार और अखबार देना चाहते थे। मतलब वह निकला जो दरियादिल दिल्ली का दस्तूर है।

यमुना नदी को काटने वाले जितने भी पुल बनाये गये हैं, उन पुलों पर अचानक लोगों की सवारियां रुकने लगी। जनता के हाथ में कोई मीटर, घनमीटर तो होता नहीं इसलिए आंखों ही आंखों से बाढ़ का अंदाज लिया जाने लगा। "अभी तो बाढ़ नहीं आई है, हो सकता है शाम तक पानी और बढ़े।" "पानी बढ़ रहा है, रात तक चढ़ जाएगा।" बढ़ते और चढ़ते पानी की इन आशंकाओं के बीच उनके लिए सुखद यही है कि वे उस नदी में पानी देख पा रहे हैं जिसें साल भर सिर्फ औद्योगिक घरानों का कचरा, दिल्ली वालों का मलमूत्र और इन दोनों से बननेवाली गाद नजर आती है। तीन चार दिनों तक अगर दिल्लावाले छल्लीवालों के पास खड़े होकर छल्ली खाते हुए बाढ़ का इंतजार करते रहे तो सरकार भी कोई हाथ पर हाथ धरे नहीं बैठी थी। दिल्ली सरकार के पास औपचारिक तौर पर ही सही कुछ ऐसे विभाग तो हैं ही जो बाढ़ जैसी भीषण परिस्थितियों से निपटने के लिए हर साल कुछ बजट मिल जाता है। उनके बजटीय प्रावधान की मजबूरी उन्हें भी बाध्य करती है कि वे बाढ़ की विभिषिका के लिए ईश्वर से प्रार्थना करें। करीब करीब तीन दशकों से भगवान ने ऐसे विभागों में काम करनेवाले बाबुओं की प्रार्थना तो नहीं सुनी है लेकिन सुनी सुनाई बातों को सुनामी बताकर ये डिपार्टमेन्ट हर साल तंबू लेकर दिल्ली के पुश्ते वाली सड़कों पर डेरा डाल देते हैं।

दिल्लीवालों पर बाढ़ की दोहरी मार पड़ी है। उधर पहाड़ में जो पहाड़तोड़ बारिश हुई है उसका खामियाजा भी सबसे अधिक दिल्लावालों को ही भुगतना पड़ा है क्योंकि सबसे ज्यादा लॉज और होटल यहीं के व्यापारियों ने वहां बना रखे हैं तो गर्मी की छुट्टियों में सबसे ज्यादा धर्मयात्राएं भी यहीं के लोग करते हैं। जाहिर है मरनेवालों से लेकर गायब होनेवालों तक सबसे बड़ी संख्या आखिरकार दिल्लीवालों की ही होगी। लेकिन उधर बाढ़ से बड़ी मार इधर बाढ़ का इंतजार करनेवाले दिल्लीवालों पर पड़ी है जिन्हें 'फ्लड' को 'एन्ज्वाय' करने का मौका नहीं मिल पाया।

इस बार भी ऐसा ही हुआ। जैसे ही हमेशा गलत भविष्यवाणी करनेवाले मौसम विभाग और राज्य सरकार ने मिलजुलकर जल बढ़ाव की आशंका जताई ये डिपार्टमेन्ट अपने अपने जामे से बरसाती मेंढक की तरह बाहर निकल आये। उधर नोएडा से लेकर उधर वजीराबाद तक कमोबेश पूरी यमुना नदी के किनारे किनारे सड़कें बन चुकी हैं। इन सड़कों को पुश्तेवाली रोड कहा जाता है। इन पुश्तेवाली और बिना पुश्तेवाली सड़कों के किनारे भी, तंबू कनात तान दिये गये। तत्परता और फुर्ती ऐसी कि बुधवार शाम तक ये तंबू कनात गड़ गये और उनके भीतर पता नहीं कहां से उठाकर लाई गई खाट और चारपाइयां भी बिछा दी गई। शौचालय जैसी आवश्यक जरूरतों को ध्यान में रखते हुए सचल शौचालय भी साथ साथ निर्मित कर दिये। जो लोग सालभर यमुना के पाट पर नित्यकर्म करते हैं उनके लिए बाढ़ का ऐसा जुगाड़ निश्चित रूप से साल भर बाढ़ के बढ़े रहने की मनौती से कम नहीं है।

दिल्ली के छुट्टा कारोबारी बड़ी जल्दी भांप जाते हैं कि व्यापार की बेहतर संभावना कहां पैदा हो रही है। रामलीला मैदान के भीतर कोई आंदोलन हो कि जंतर मंतर पर धरना ये छुट्टा व्यापारी ऐसे अवसरों में औकातभर व्यापार खोज लेने में माहिल होते हैं। इसलिए जैसे ही बाढ़ की अफवाह उड़ी ये छुट्टा कारोबारी जहां मौका मिला यमुना के किनारे किनारे खड़े हो लिए। छल्लीवाले, कोल्डड्रिंक की ठेलियां चलानेवाले, आम अमरूद और ककड़ी खीरा के कारोबारी, कई जगह तो गुब्बारे बेचनेवाले भी नजर आने लगे। यमुना के आर पार आने जानेवाले तो रुककर आंखों ही आंखों में बाढ़ का अंदाजा ले ही रहे थे, जो बाकायदा बाढ़ देखने ही आ रहे थे, उनके लिए ये खुदरा कारोबारी बेहतरीन नजारे का पिकनिकनुमा माहौल प्रदान कर रहे थे।

इस बीच दिल्ली सरकार यमुना नदी के आस पास खाली पड़ी जमीन पर खेती करनेवाले जिन खेतिहर मजदूरों को खदेड़कर किनारे पर लाई थी, उनके लिए घर का इंतजाम भी हो गया और सरकारी आंकड़े भी जारी होने लगे कि दिल्ली सरकार ने पांच हजार "बाढ़ प्रभावित" लोगों का रेस्क्यू आपरेशन कुशलता से पूरा कर लिया है। इस रेस्क्यू आपरेशन (बचाव अभियान) के साथ साथ दो जगहों पर बाढ़ का पानी चढ़ जाने की खबर भी सुनाई दी। एक मजनू का टीला पर और दूसरा दिल्ली के बस अड्डे वाली रिंग रोड पर। मजनूं का टीला वाले मोहल्ले में जिसमें ज्यादातर तिब्बती शरणार्थी रहते हैं, वहां दिल्ली पुलिस के जवानों ने लाउडस्पीकर लगाकर चेतावनी भी दे डाली तो कुछ मनचले नौजवानों ने प्लास्टिक की लाइफ बोट भी दौड़ा दी। शुक्र है बोट तैर गई क्योंकि उसको तैरने के लिए घुटनेभर पानी से ज्यादा की जरूरत नहीं होती है। चैनलवाले कैमरे ले लेकर दौड़ लगा रहे थे और बार बार लोहेवाले पुल के पास डेरा डाल रहे थे। कुछ लाइफ बोट जैसे दृश्य भी दिखाए गये जिसमें बैठे जवान तफरी करते नजर आ रहे थे। चैनलवालों के कहने पर वे माइक लगाकर चेतावनियां भी जारी कर रहे थे, लेकिन उन चेतावनियों को सुननेवाले उधर बीच यमुना में कोई नहीं था, बल्कि इधर सड़क पर लोग खड़े थे।

बाढ़ का सारा रंगमंच तैयार हो चला था। सारी तैयारियां हो गई थी, बस एक अदद बाढ़ का ही इंतजार था। लेकिन दो तीन दिनों की इन तैयारियों पर तब तुषारापात हो गया जब खबर आई कि यमुना का बढ़ा पानी दिल्ली आने से पहले ही यूपी में फैल गया है, इसलिए अब खतरे के निशान तक पहुंच रहा पानी घट जाएगा। और बुधवार तक बाढ़ का इंतजार कर रहे दिल्लावालों के लिए मुंआ शुक्रवार तो ऐसे आया जैसे रातों रात कोई यमुना का पानी पी गया हो। वजीराबाद वाला वह लड़का बड़ा निराश होकर बताने लगा कि, फिर यमुना वहीं पहुंच गई, जहां थीं। वह पूरा सच तो नहीं बोल रहा था लेकिन हर वक्त एन्ज्वाय तलाशते दिल्लावाले पूरा सच जानते भी कहां हैं जो बोलने लगेंगे?

फिर भी, अभी दिल्लीवालों के लिए उम्मीद की एक किरण बाकी है कि 'अभी खतरा पूरी तरह से टला'' नहीं है। यमुना को उचक उचक कर निहारनेवाले लोग हों कि दिल्ली की दरियादिल सरकार, चैनलवाले हों कि खोमचेवाले, वे सब अभी भी एक अदद बाढ़ के इंतजार में हैं।

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