तकनीकि रूप से तो तेलंगाना भले ही अभी भी अलग राज्य के रूप में अस्तित्व में नहीं आया है लेकिन राजनीतिक रूप से तेलंगाना को अलग राज्य का दर्जा दे दिया गया है। पिछले चार पांच दिनों से कांग्रेस के भीतर चल रही राजनीतिक कवायद को आज दो महत्वपूर्ण बैठकों में अमली जामा पहना दिया गया। पहली बैठक तथाकथित रूप से उस यूपीए की हुई जिसकी अध्यक्ष सोनिया गांधी हैं और दूसरी बैठक उस कांग्रेस वर्किंग कमेटी की हुई जिसकी अध्यक्ष सोनिया गांधी हैं।
इन दो राजनीतिक बैठकों में अलग तेलंगाना राज्य के गठन पर लगी मोहर के बाद एक तीसरी विशेष बैठक बुधवार को प्रधानमंत्री निवास पर होगी जिसे कैबिनेट मीटिंग कहा जाता है और उस कैबिनेट मीटिंग में तेलंगाना राज्य को अलग से स्थापित करने की औपचारिक घोषणा कर दी जाएगी। इसके बाद अधिकारियों और कर्मचारियों की अंतहीन बैठकें होंगी जिसमें आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के बीच बंटवारे का हिसाब किताब किया जाएगा।
लेकिन यूपीए, कांग्रेस और कैबिनेट की इन बैठकबाजियों के बीच एक ऐसी आशंका भी आला नेताओं के मन में घर कर गई है कि अलग तेलंगाना कहीं खुद कांग्रेस के गले की फांस न बन जाए। इसलिए आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री किरण रेड्डी को बुलाकर उन्हें समझा दिया गया है कि अलग तेलंगाना क्यों बहुत जरूरी हो चला है और कल तक इस्तीफे की धमकी देनेवाले किरण कुमार रेड्डी आज अपने बयान को तोड़ मरोड़ कर पेश करने की दलील दे रहे हैं। हो भी सकता है कि रेड्डी के बयान को मीडिया ने तोड़ मरोड़ कर पेश कर दिया हो लेकिन जिस राजनीतिक मकसद को पूरा करने के लिए कांग्रेस ने चुनाव से पहले तेलंगाना राज्य पर अपनी सहमति दी है उसका फायदा मिलना भी शुरू हो चुका है। तेलंगाना राष्ट्र समिति की सांसद और तेलुगु की मशहूर अभिनेत्री रह चुकीं विजयाशांति ने घोषणा कर दी है कि वे अब कांग्रेस में जा रही हैं क्योंकि कांग्रेस ने वह कर दिया है जो उसे बहुत पहले कर देना चाहिए था।
अलग तेलंगाना की जो रुपरेखा सामने आई है उसमें कुछ संभावित विवादों को अभी से दरकिनार करने की कोशिश की गई है। जिस वक्त एनडीए शासनकाल के दौरान तीन अलग राज्यों के गठन की घोषणा की गई थी उस वक्त उत्तराखण्ड को निर्मित करते समय दो बड़ी गलतियां कर दी गई थीं। एक, उत्तराखण्ड का नाम उत्तरांचल कर दिया गया था और दूसरा पहाड़ के राज्य में न जाने किस दिमाग से मैदान के दो जिले भी शामिल कर दिये गये थे। एक गलती तो सुधार दी गई लेकिन दूसरी गलती की सजा उत्तराखण्ड आज भी भुगत रहा है। कुछ इसी तर्ज पर पहले रायलसीमा तेलंगाना बनाने की योजना थी, जिसे खारिज कर दिया गया और अब सिर्फ तेलंगाना गठित करने का प्रस्ताव मंजूर किया गया है। इसी तरह हैदराबाद के मुद्दे पर भी जो जानकारी मिल रही है, उसके मुताबिक हैदराबाद को केन्द्र शासित प्रदेश बनाने की बजाय उसकी महानगरपालिका वाली हैसियत बरकरार रखी जाएगी और आंध्र और तेलंगाना के बीच उसका बंटवारा कर दिया जाएगा।
कांग्रेस ने अपने चुनावी मकसद को पूरा करने के लिए जिस तेलंगाना राज्य के गठन को मंजूरी दी है उस तेलंगाना में कुल दस जिले होंगे। ग्रेटर हैदराबाद, रंगारेड्डी, मेडक, नलगोंडा, महबूबनगर, वारंगल, करीमनगर, खम्मम, आदिलाबाद और निजामाबाद। किसी दौर में निजाम का निजाम रहे भारत के प्रस्तावित इस 29वें राज्य की 3.5 करोड़ की आबादी में 85 प्रतिशत से अधिक आबादी हिन्दू है। राम और देवी के प्रति अगाध श्रद्धा रखनेवाले तेलंगाना क्षेत्र में 12 प्रतिशत मुसलमान और 1 प्रतिशत ईसाई हैं। तेलंगाना की मुख्य भाषा तेलुगु है लेकिन यहां 12 प्रतिशत लोग उर्दू भी बोलते हैं लिहाजा उर्दू को दूसरी प्रमुख भाषा का दर्जा प्राप्त है। हिन्दू बहुल आबादी वाला तेलंगाना राज्य उत्सवधर्मी राज्य है और कमोबेश सालभर यहां कोई न कोई धार्मिक उत्सव चलता रहता है। नवरात्रि के दौरान चलनेवाला बथुकअम्मा उत्सव में स्थापित होनेवाला कलश तो तेलंगाना आंदोलन का प्रतीक ही बन गया था जब सात दिनों तक तेलंगाना वासी साक्षात देवी की उपासना करते हैं। अबकी नवरात्रि में जरूर यह उत्सव ज्यादा धूमधाम से मनाया जाएगा।
तेलंगाना के गठन से आंध्र प्रदेश के 294 सदस्यीय विधानसभा से 119 विधायक और 42 सदस्यीय लोकसभा से 17 सांसद कम हो जाएंगे। ये 119 विधायक और 17 सांसद अब तेलंगाना राज्य के तहत जनप्रतनिधित्व करेंगे। सवाल यह है कि तेलंगाना गठन के बाद इन 119 विधायकों और 17 सांसदों से क्या कांग्रेस को वह मिल पायेगा जिसके लिए उसने शेष 175 विधायकों और 25 सांसदों को दांव पर लगा दिया है? राजनीतिक नजरिए से देखें तो सवाल नाजायज नहीं है। क्योंकि राजनीतिक रूप से तेलंगाना सिर्फ तेलंगाना आंदोलन की भारी मांग पर पर स्वीकार नहीं किया है। जिस यूपीए और कांग्रेस वर्किंग कमेटी की अलग अलग बैठकों ने तेलंगाना के गठन को राजनीतिक मंजूरी दी है उस यूपीए और कांग्रेस के तीसरे कार्यकाल का बहुत कुछ दारोमदार दक्षिण में इसी तेलंगाना पर टिका रहेगा। कोई और जाने न जाने तेलंगाना के मुद्दे पर यूपीए और कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठकों की अध्यक्षता करनेवाली सोनिया गांधी इस बात को बखूबी जानती समझती हैं।
इन दो राजनीतिक बैठकों में अलग तेलंगाना राज्य के गठन पर लगी मोहर के बाद एक तीसरी विशेष बैठक बुधवार को प्रधानमंत्री निवास पर होगी जिसे कैबिनेट मीटिंग कहा जाता है और उस कैबिनेट मीटिंग में तेलंगाना राज्य को अलग से स्थापित करने की औपचारिक घोषणा कर दी जाएगी। इसके बाद अधिकारियों और कर्मचारियों की अंतहीन बैठकें होंगी जिसमें आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के बीच बंटवारे का हिसाब किताब किया जाएगा।
लेकिन यूपीए, कांग्रेस और कैबिनेट की इन बैठकबाजियों के बीच एक ऐसी आशंका भी आला नेताओं के मन में घर कर गई है कि अलग तेलंगाना कहीं खुद कांग्रेस के गले की फांस न बन जाए। इसलिए आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री किरण रेड्डी को बुलाकर उन्हें समझा दिया गया है कि अलग तेलंगाना क्यों बहुत जरूरी हो चला है और कल तक इस्तीफे की धमकी देनेवाले किरण कुमार रेड्डी आज अपने बयान को तोड़ मरोड़ कर पेश करने की दलील दे रहे हैं। हो भी सकता है कि रेड्डी के बयान को मीडिया ने तोड़ मरोड़ कर पेश कर दिया हो लेकिन जिस राजनीतिक मकसद को पूरा करने के लिए कांग्रेस ने चुनाव से पहले तेलंगाना राज्य पर अपनी सहमति दी है उसका फायदा मिलना भी शुरू हो चुका है। तेलंगाना राष्ट्र समिति की सांसद और तेलुगु की मशहूर अभिनेत्री रह चुकीं विजयाशांति ने घोषणा कर दी है कि वे अब कांग्रेस में जा रही हैं क्योंकि कांग्रेस ने वह कर दिया है जो उसे बहुत पहले कर देना चाहिए था।
अलग तेलंगाना की जो रुपरेखा सामने आई है उसमें कुछ संभावित विवादों को अभी से दरकिनार करने की कोशिश की गई है। जिस वक्त एनडीए शासनकाल के दौरान तीन अलग राज्यों के गठन की घोषणा की गई थी उस वक्त उत्तराखण्ड को निर्मित करते समय दो बड़ी गलतियां कर दी गई थीं। एक, उत्तराखण्ड का नाम उत्तरांचल कर दिया गया था और दूसरा पहाड़ के राज्य में न जाने किस दिमाग से मैदान के दो जिले भी शामिल कर दिये गये थे। एक गलती तो सुधार दी गई लेकिन दूसरी गलती की सजा उत्तराखण्ड आज भी भुगत रहा है। कुछ इसी तर्ज पर पहले रायलसीमा तेलंगाना बनाने की योजना थी, जिसे खारिज कर दिया गया और अब सिर्फ तेलंगाना गठित करने का प्रस्ताव मंजूर किया गया है। इसी तरह हैदराबाद के मुद्दे पर भी जो जानकारी मिल रही है, उसके मुताबिक हैदराबाद को केन्द्र शासित प्रदेश बनाने की बजाय उसकी महानगरपालिका वाली हैसियत बरकरार रखी जाएगी और आंध्र और तेलंगाना के बीच उसका बंटवारा कर दिया जाएगा।
कांग्रेस ने अपने चुनावी मकसद को पूरा करने के लिए जिस तेलंगाना राज्य के गठन को मंजूरी दी है उस तेलंगाना में कुल दस जिले होंगे। ग्रेटर हैदराबाद, रंगारेड्डी, मेडक, नलगोंडा, महबूबनगर, वारंगल, करीमनगर, खम्मम, आदिलाबाद और निजामाबाद। किसी दौर में निजाम का निजाम रहे भारत के प्रस्तावित इस 29वें राज्य की 3.5 करोड़ की आबादी में 85 प्रतिशत से अधिक आबादी हिन्दू है। राम और देवी के प्रति अगाध श्रद्धा रखनेवाले तेलंगाना क्षेत्र में 12 प्रतिशत मुसलमान और 1 प्रतिशत ईसाई हैं। तेलंगाना की मुख्य भाषा तेलुगु है लेकिन यहां 12 प्रतिशत लोग उर्दू भी बोलते हैं लिहाजा उर्दू को दूसरी प्रमुख भाषा का दर्जा प्राप्त है। हिन्दू बहुल आबादी वाला तेलंगाना राज्य उत्सवधर्मी राज्य है और कमोबेश सालभर यहां कोई न कोई धार्मिक उत्सव चलता रहता है। नवरात्रि के दौरान चलनेवाला बथुकअम्मा उत्सव में स्थापित होनेवाला कलश तो तेलंगाना आंदोलन का प्रतीक ही बन गया था जब सात दिनों तक तेलंगाना वासी साक्षात देवी की उपासना करते हैं। अबकी नवरात्रि में जरूर यह उत्सव ज्यादा धूमधाम से मनाया जाएगा।
तेलंगाना के गठन से आंध्र प्रदेश के 294 सदस्यीय विधानसभा से 119 विधायक और 42 सदस्यीय लोकसभा से 17 सांसद कम हो जाएंगे। ये 119 विधायक और 17 सांसद अब तेलंगाना राज्य के तहत जनप्रतनिधित्व करेंगे। सवाल यह है कि तेलंगाना गठन के बाद इन 119 विधायकों और 17 सांसदों से क्या कांग्रेस को वह मिल पायेगा जिसके लिए उसने शेष 175 विधायकों और 25 सांसदों को दांव पर लगा दिया है? राजनीतिक नजरिए से देखें तो सवाल नाजायज नहीं है। क्योंकि राजनीतिक रूप से तेलंगाना सिर्फ तेलंगाना आंदोलन की भारी मांग पर पर स्वीकार नहीं किया है। जिस यूपीए और कांग्रेस वर्किंग कमेटी की अलग अलग बैठकों ने तेलंगाना के गठन को राजनीतिक मंजूरी दी है उस यूपीए और कांग्रेस के तीसरे कार्यकाल का बहुत कुछ दारोमदार दक्षिण में इसी तेलंगाना पर टिका रहेगा। कोई और जाने न जाने तेलंगाना के मुद्दे पर यूपीए और कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठकों की अध्यक्षता करनेवाली सोनिया गांधी इस बात को बखूबी जानती समझती हैं।
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