इससे अच्छा कोई समय हो
भी नहीं सकता था। दोनों के लिए। न कांग्रेस के लिए और न ही मुलायम सिंह
यादव के लिए। कमोबेश पिछले पांच साल में जब जब केन्द्र की कांग्रेस सरकार
पर संकट आया मुलायम सिंह यादव संकट मोचक बनकर खड़े नजर आये। हर बार
उन्होंने समझौता किया। विचारधारा से। साथी दलों से। खुद से। लेकिन उन्होंने
कांग्रेस का साथ दिया। कारण कुछ और नहीं बल्कि वही एक केस था जो सुप्रीम
कोर्ट में दिसंबर 2012 के पहले लटका पड़ा था, फैसले के इंतजार में। दिसंबर
2012 में सुप्रीम कोर्ट ने उस केस से यह कहते हुए अपना पीछा छुड़ा लिया कि
जो करना है सीबीआई करे और जो दिखाना सुनाना है सरकार को दिखाए सुनाए।
यह वह सुप्रीम कोर्ट बोल रहा था जिसने बाद में इस बात पर बवाल कर दिया था कि सीबीआई अपनी जांच रिपोर्ट कानून मंत्री को भला क्यों कर दिखा दी? सीबीआई जांच में पीएमओ का हस्तक्षेप क्योंकर होता है? लेकिन उस वक्त दिसंबर 2012 में विश्वनाथ चतुर्वेदी बनाम यूनियन आफ इंडिया जनहित याचिका क्रमांक 633 (2005) के मामले में दो साल से सुरक्षित रखे फैसले का पिटारा खोला था तो एक तरह से वह रास्ता बना दिया था जो अब सीबीआई करने जा रही है। मुलायम सिंह की आय से अधिक संपत्ति के मामले में सीबीआई की क्लीन चिट।
क्लीन चिट का चिट्ठा बनकर तैयार है और कभी भी मुलायम सिंह की पीठ पर चिपका दिया जाएगा। उसके बाद मुलायम सिंह यादव भी उसी तरह ईमानदार और सामान्य आय वर्ग के नेता बन जाएंगे जिस तरह से बीते साल कांग्रेस को समर्थन देकर मायावती बन गई थीं। मायावती के मामले में वह काम माननीय सुप्रीम कोर्ट ने किया था, मुलायम सिंह के मामले में सुप्रीम कोर्ट का कथित तोता वह काम करने के लिए तैयार है। उम्मीद कम है कि इस बार सीबीआई या कि सरकार मुलायम सिंह को क्लीन चिट देने से पीछे हटेगी। कारण बहुत पेचीदा नहीं है।
सरकार अब अपने अंतिम चरण में है। क्योंकि सोनिया गांधी के महत्वाकांक्षी चुनावी खाद्यान्न सुरक्षा विधेयक पर संसद में मुलायम सिंह का साथ चाहिए इसलिए उनकी ओर से मुलायम सिंह को क्लीन चिट दिलवा देने में कोई हर्जा नहीं है। और मुलायम सिंह यादव के लिए हर बार की तरह एक आखिरी बार कांग्रेस की सरकार को संकट से उबार लेने में कोई परेशानी इसलिए नहीं है क्योंकि एक बार उनके सिर से गिरफ्तारी की तलवार हट जाए तो शायद आगामी लोकसभा चुनाव में वे ज्यादा धारदार तरीके से कांग्रेस विरोधी राजनीति कर सकेंगे। कांग्रेस के रणनीतिकार भी इस बात को समझते हैं लेकिन यह सब जानते हुए भी मुलायम को 'बंधक' बनाकर रखने का उनका मकसद पूरा हो चुका है इसलिए मुक्ति दे देने में कोई हर्जा नहीं है।
मुलायम सिंह यादव, विश्वनाथ चतुर्वेदी और कांग्रेस के बीच चली त्रिकोणीय जंग में शामिल एक मध्यस्थ ने तब बहुत विश्वास के साथ कहा था कि सरकार सबसे बड़ी चीज होती है। वह जो चाहती है, वही होता है। चतुर्वेदी जैसे '...तियों' को यह बात समझ नहीं आती है तो यह उनकी प्राब्लम् है। इस देश की माली हालत और व्यवस्थागत बदहाली को देखते हुए उसकी बात सही लगती है। इस भ्रष्ट व्यवस्था में ईमान सबसे बड़ा 'अपराध' है और ईमानदार आदमी सबसे बड़ा 'अपराधी।'
मुलायम सिंह को यह मुक्ति तो उसी वक्त मिल जाती जिस वक्त उन्होंने अपने वामपंथी राजनीतिक साथियों को छोड़कर कांग्रेस की यूपीए सरकार का साथ दे दिया, अमेरिका के साथ परमाणु समझौते के मुद्दे पर। लेकिन यह तो वह विश्वनाथ चतुर्वेदी थे जो न्याय की इस लड़ाई को अंजाम तक ले जाना चाहते थे। इस बीच कई बार ऐसे मौके आये जब कभी सीबीआई ने कहा कि वह जांच नहीं करना चाहती है और फिर कह दिया कि जांच करना चाहती है। 2009 में इस मामले में एफआईआर भी दर्ज हो गया। मुलायम सिंह यादव, अखिलेश यादव और डिंपल यादव के मामले में सारी कानूनी कवायद पूरी करने के बाद 17 फरवरी 2011 को अपना वह आदेश सुरक्षित रख लिया जिसमें उसे यह तय करना था कि मुलायम सिंह यादव के खिलाफ सीबीआई जांच करे या फिर घर बैठ जाए।
तब से लेकर दिसंबर 2012 तक समय समय पर मुलायम सिंह यादव कांग्रेस की मदद करते रहे और "सुरक्षित फैसले" का इंतजार करते रहे। दिसंबर 2012 में फैसला आया और डिंपल को मुक्ति देने के साथ ही बाकी का काम सरकार के हाथ में सौप दिया गया। मार्च 2007 से दिसंबर 2012 के बीच मुलायम सिंह यादव की आय से अधिक संपत्ति के मामले में पर्दे पर जितना कुछ दिखता रहा वह कुछ नहीं था। पर्दे के पीछे का खेल ज्यादा गंभीर और रोचक था।
जो विश्वनाथ चतुर्वेदी आय से अधिक संपत्ति के मामले में मुलायम सिंह को घेरे बैठे थे, वे पेशे से सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता जरूर हैं लेकिन कांग्रेस के नेताओं से उनके दोस्ताना संबंध है। इस पूरे प्रकरण के दौरान मुलायम सिंह यादव अगर कांग्रेस पर जोर डाल रहे थे तो कांग्रेस के कुछ वरिष्ठ नेता लगातार विश्वनाथ चतुर्वेदी पर जोर डाल रहे थे कि वे मुलायम सिंह के खिलाफ दायर याचिका को वापस ले लें। उन्हें तोड़ने के लिए कांग्रेस और समाजवादी पार्टी दोनों ही ओर से इतनी भीषण कोशिश की गई कि पत्थर भी होता तो टूटकर चकनाचूर हो जाता। कहा तो यहां तक जाता है कि प्रधानमंत्री कार्यालय और दस जनपथ तक चतुर्वेदी पर दबाव डाल रहा था कि वे अब मुलायम सिंह यादव को मुक्त कर दें। सत्ता और लाभ की राजनीति करनेवालों ने उनके सामने साम, दाम, दंड, भेद सब हथियार इस्लेमाल किया लेकिन चतुर्वेदी थे कि अड़े रहे।
उन दिनों भी विश्वनाथ चतुर्वेदी उसी तरह यायावर थे, जैसे आज हैं। उनकी जान को भी खतरा था। केन्द्र की कांग्रेस सरकार ने उनको सख्त सुरक्षा पहरा मुहैया करा रखा था। राजेन्द्र नगर वाले उनके घर की तंग सीढ़ियों पर इतने पुलिसवाले भरे रहते थे कि एकबारगी लगता था कि इतना सुरक्षित आदमी इतनी असुरक्षित सी जगह पर आखिर क्यों रहता है? लेकिन वह दिन भी आया जब उनकी सारी सुरक्षा वापस ले ली गई। फिर भी वे आगे बढ़ते रहे। थोड़े ही समय में लगा कि वे शायद अब अप्रासंगिक होते जा रहे हैं। बगल में गनर को दबाए, अपनी छोटी सी गाड़ी को खुद ही चलाते हुए लुटियन्स जोन की सड़कों पर दौड़ लगानेवाले विश्वनाथ चतुर्वेदी अपना पीने का पानी और खाने की सुपारी भी घर से साथ लेकर चलते हैं। कुछ ऐसे मौके भी आये जब उनकी इस फांकामस्ती को भी उनके टूटने का आधार बनाया गया लेकिन न जाने कौन सी मिट्टी का बना यह आदमी, हर समय दबाव से अधिक सख्त साबित हुआ।
उस दिन भी जब शुक्रवार को उन्हें फोन किया था। बिहार के मिड डे मील पर आज मीडिया बड़ा हंगामा कर रहा है लेकिन न जाने कितने लोगों को मालूम होगा कि मिड डे मील में सबसे बड़े घोटाले का सबसे बड़ा पर्दाफाश इसी आदमी की देन थी जब उन्होंने मुलायम सिंह यादव सरकार के मंत्री राजा भैया को सीबीआई जांच के लिए अदालत में घसीटा था। लेकिन शुक्रवार को उन्होंने छूटते ही कहा था कि ''अब मुलाकात नहीं होगी। सीबीआई क्लीन चिट देने जा रही है।'' मुलाकात क्यों नहीं होगी यह तो समझ में आया ही, सीबीआई किसको क्लीन चिट देने जा रही है, यह बताने की जरूरत नहीं थी। वे आगे की कानूनी तैयारियों में लग गये थे। कह रहे हैं कि अगर सीबीआई ने क्लीन चिट दिया तो वे क्लीन चिट को सुप्रीम कोर्ट में चैलेन्ज करेंगे। हालांकि ऐसा न करने के लिए उनके ऊपर एक कांग्रेसी मंत्री का कड़ा दबाव भी है।
फिर भी, दबाव में आने की बजाय चतुर्वेदी जी संग्राम करने चल पड़े हैं। यह जानते हुए भी कि एक भ्रष्ट व्यवस्था के सामने किसी अकेले ईमानदार की औकात अदने से अधिक नहीं होती, वे पीछे लौटने को तैयार नहीं है। हो सकता है सीबीआई की इस क्लीन चिट से मुलायम सिंह यादव के घर और कांग्रेस दफ्तर दोनों जगह घी के चिराग जल पड़ें लेकिन उस ईमान का क्या जिसकी दुहाई सब सरकारें और न्यायपालिकाएं दिया करती हैं? उस ईमान का ठेका अकेले किसी विश्वनाथ चतुर्वेदी के ही कंधे पर क्योंकर हो? सवाल किसी कांग्रेस या मुलायम सिंह यादव से ज्यादा उस जनता के लिए प्रासंगिक है जिसे बेईमान और ईमान के बीच किसी एक का चुनाव करना होता है।
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